Bhgwan Krishan Ko Jane

वास्तविक उन्नति भगवान (कृष्ण) को जानना है

वास्तव में भगवान का, ईश्वर का, कोई नाम नहीं है| यह कहने का मेरा अभिप्राय यह है कि कोई नहीं जानता कि उनके कितने नाम हैं| ईश्वर अनंत है,अतः उनके नाम भी अनंत होने चाहिए| उदाहरणार्थ श्री कृष्ण को कभी-कभी यशोदा नंदन, देवकीनंदन, वसुदेवनंदन या नंदनंदन, गोविंद, गोपाल, पार्थसारथी, नटवरनागर, गोविंदवल्लभ,राधेश्याम,राधे रसिकबिहारी,बांकेबिहारी आदि आदि कहा जाता है|

ईश्वर अपने अनेक भक्तों के साथ अनेकानेक प्रकार का व्यवहार करते हैं और उन व्यवहारों के अनुसार भी भगवान का एक विशेष नाम हो जाता है| भगवान के असंख्य भक्त हैं और उन भक्तों के साथ उनके असंख्य संबंध हैं अतएव उनके असंख्य नाम हैं| कृष्ण हिंदुओं के भगवान का नाम है| कुछ लोग यह भी सोच सकते हैं कि ‘कृष्ण’ नाम सांप्रदायिक है | परंतु वास्तविकता तो यही है कि यदि भगवान का कोई नाम हो सकता है तो वह ‘कृष्ण’ ही है| ‘कृष्ण’ नाम का अर्थ है सर्व-आकर्षक| भगवान सभी को आकर्षित करते हैं यही भगवान की परिभाषा है| हमने श्रीकृष्ण को अनेकानेक चित्रों के दर्शन किए हैं और उनमें देखा है कि वे वृंदावन में गाय, बछड़े, पशु,पक्षी, वृक्ष पौधे तथा यहाँ तक कि जल को भी आकर्षित करते हैं| गोप-बालक, गोपियाँ,नंद महाराज, पांडव व समस्त मानव समाज भी कृष्ण के प्रति आकर्षित हैं| इसलिए भगवान को कोई विशिष्ट नाम दिया जा सकता है तो वह नाम है ‘कृष्ण’| समग्र वैदिक साहित्य के रचयिता श्री व्यास देव जी के पिता महर्षि पराशर के अनुसार भगवान की परिभाषा है, `पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान´ उन्हें कहा जाता है जो 6 `ऐश्वरयों ´ से परिपूर्ण हैं- जिनके पास पूर्ण बल, यश,धन, ज्ञान, सौंदर्य व वैराग्य है| पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान सभी प्रकार की संपत्ति के स्वामी हैं| इस संसार में अनेक धनवान व्यक्ति हैं परंतु उनमें से कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके पास धन का समस्त भंडार है| न ही कोई यह दावा कर सकता है कि उनसे बढ़कर कोई धनवान नहीं है| श्रीमद्भागवतम से, हम यह समझते हैं कि जब श्रीकृष्ण इस धरती पर उपस्थित थे तो उनकी 16108 पत्नियाँ थीं और सभी रानियों के लिए अलग-अलग संगमरमर से बने व रत्नों से जड़े हुए राजमहल थे जिनमें वे निवास करती थीं| कमरों में हाथी दांत और सोने से बना फर्नीचर था और अतुल वैभव स्थान-स्थान पर बिखरा पड़ा था| मानव समाज में इसके जैसा उदाहरण कहीं नहीं है| भगवान श्रीकृष्ण अपने स्वरूप का भी विस्तार कर 16108 रानियों से व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग उनके निवास पर उनके साथ समय बिताते थे| इस प्रकार श्रीकृष्ण जो अनंत रूपों में विस्तार करने में सक्षम हैं| भगवान ‘सर्वशक्तिमान ‘हैं | वह 16108 ही नहीं 16 करोड़ 60 लाख पत्नियों का भी निर्वाह कर सकते हैं फिर भी उनको कोई कठिनाई नहीं हो सकती,

अन्यथा `सर्वशक्तिमान´शब्द का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता| यह सभी बातें श्री कृष्ण भगवान के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने वाली हैं|

इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण का बल असीम है| उनमें जन्म के समय से ही बल विद्यमान था| जब वे केवल 3 माह के थे  तो सातों पूतना नामक राक्षसी का वध किया| भगवान आरंभ से ही भगवान है| वह किसी ध्यान या यौगिक बल के द्वारा भगवान नहीं बनते| अपने प्राकट्य के साथ ही श्रीकृष्ण भगवान थे|

भगवान श्रीकृष्ण का यश भी असीम है| उनका यशगान विश्व के सभी देशों में दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और धार्मिक लोगों के द्वारा भगवतगीता तथा श्रीमद्भागवतम का अध्ययन करके किया जाता है| भगवतगीता के अनेकानेक संस्करण छपते हैं और विक्रय होते हैं| श्रीमदभगवतगीता का यश श्रीकृष्ण का ही यश है|

सौंदर्य,एक अन्य ऐशश्वर्य है जो श्री कृष्ण में अतुलनीय हैं| श्रीकृष्ण ने स्वयं तो अत्यंत सुंदर हैं ही उनके पार्षद-गण भी उतने ही सुंदर हैं| अमेरिका,इंग्लैंड के लोग कितने गौरवर्ण और सुंदर हैं| संपूर्ण विश्व के लोग उनके प्रति आकर्षित हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक ज्ञान, धन-संपत्ति और सुंदरता इत्यादि में उन्नत हैं| इस ब्रह्मांड में पृथ्वी एक नगन्य लोक है फिर भी इस लोक के एक देश अमेरिका के पास अनेकानेक आकर्षक वस्तुयें हैं| श्रीकृष्ण भगवान स्वयं कितने सुंदर और आकर्षक होंगे जो इस समस्त व्यक्त और अव्यक्त सृष्टि के रचयिता हैं, जिन्होंने इस समस्त सौंदर्य की सृष्टि की है|

सुंदरता के कारण ही नहीं वरन अपने ज्ञान के कारण भी एक व्यक्तिआकर्षण का केंद्र होता है| एक वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक भले ही अपने ज्ञान के कारण आकर्षक लगे, परंतु श्रीमद्भागवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए ज्ञान से श्रेष्ठ कौन सा ज्ञान है? इसकी संपूर्ण जगत में कोई तुलना नहीं है|

 इन सब ऐश्वर्यों के साथ ही साथ श्रीकृष्ण पूर्ण वैराग्य से भी युक्त हैं| इस भौतिक जगत में कृष्ण के निर्देशन में कितने ही कार्य हो रहे हैं किंतु श्रीकृष्ण वास्तव में यहां उपस्थित नहीं है| इस प्रकार स्वयं श्रीकृष्ण इस भौतिक जगत से अलग रहते हैं फिर सृष्टि का कार्य नियमित सुचारू रूप से चलता है| वह इसमें लिप्त नहीं बल्कि इसमें इन से परे वैराग्य से ही रहते हैं| इसलिए भगवान के कार्यों के अनुसार उनके अनेकानेक नाम है परंतु उनके इतने असीम ऐश्वर्य हैं और इन इन ऐश्वार्यों के द्वारा ही भगवान सभी को आकर्षित करते हैं, अतः उनको `कृष्ण´ कहा जाता है| वैदिक साहित्य स्वीकार करता है कि भगवान के अनेक नाम हैं,परंतु `कृष्ण´नाम प्रधान है| श्री भगवान का नाम,यश, लीला, सौंदर्य एवं उनके प्रेम का प्रसार करना ही जीवन का ध्येय होना चाहिए| मानव समाज को पूर्ण ज्ञान प्रदान करना ही कृष्ण भक्त के जीवन का परम लक्ष्य होता है| भगवान के साथ दिव्य प्रेमा भक्ति का संबंध बनाकर उनकी सेवा में निमग्न होना व जाना ही आध्यात्मिक उन्नति है|

अतः भगवान श्रीकृष्ण को समझना एक कठिन विषय है, फिर भी भगवान भगवतगीता में स्वयं को समझाते हैं| हम सभी को इसका अध्ययन भक्ति भाव से नित्य प्रति करना चाहिए तभी भगवान को समझना अत्यंत सरल व सहज हो जायेगा| अपनी आध्यात्मिक उन्नति का वास्तविक लक्ष्य भगवान के साथ मधुर संबंध स्थापित करना ही होना चाहिए| हमारा थोड़ा सा प्रयास प्रभु की कृपा का पात्र बना देता है| गीता में भगवान स्वयं अपना ज्ञान देते हैं तब वह विषय वस्तु कठिन नहीं रहती| भगवान असीम हैं और हम सीमित हैं| हमारा ज्ञान तथा इंद्रिय प्रतीति दोनों ही अत्यधिक सीमित है तब हम असीम को कैसे समझ सकते हैं? तो यदि हम असीमित के द्वारा दी गई व्याख्या को केवल स्वीकार कर ले तो हम उनको समझ सकते हैं| उस ज्ञान को समझ लेना ही हमारी पूर्णता है|भगवान ने गीता में कहा है कि “हजारों मनुष्यों में से कोई एक पूर्णता के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्न करने वाले सिद्ध पुरुषों में से भी कोई दुर्लभ मनुष्य ही मुझे तत्व से जानता है|”

भगवान को जानने के लिए मन में दृढ़ता और विश्वास होना जरूरी है| संशयात्मक बुद्धि से आप समझ भी नहीं पायेंगे| एकनिष्ठ होकर ही भगवान का ज्ञान समझें | यदि एक बालक यह जानना चाहता है कि उसका पिता कौन है तो साधारण सी विधि है कि वह अपने माँ से पूछे तब माँ कहेगी, “यह तुम्हारे पिताजी हैं|” पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का यही मार्ग है| वास्तविक उन्नति का अर्थ है भगवान को जानना| यदि हमारे पास भगवान के ज्ञान का अभाव है तब हम वास्तव में उन्नत नहीं है| भगवान और उनका प्रशासन विद्यमान है| उनकी आज्ञा से ही सूर्य व चंद्रमा उदित हो रहे हैं,जल में प्रवाह है एवं सागर में तरंगें उठती हैं| सभी कार्य इतने सुंदर ढंग से हो रहे हैं कि वास्तव में विवेकी व्यक्ति ही पूर्णतः सिद्ध कर पाता है और भगवान के अस्तित्व को समझ पाता है| अविवेकी और नास्तिक जन ही भगवान को नकारते हैं| भगवान के भक्त और आस्तिक प्रवृत्ति वाले लोग सुदृढ़ विश्वास रखते हैं कि भगवान हैं और वे भगवान श्रीकृष्ण हैं| अतएव भगवान के भक्त दिन-रात प्रेमभाव से उनकी अर्चना कर इस जीवन की वास्तविक उन्नति में रत रहते हैं|                        ~करुणा ऋषि

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