जानकारी काल
वर्ष-24, अंक-01 , मई -2023, पृष्ठ 48 मूल्य 2-50

संरक्षक श्रीमान कुलवीर शर्मा महामंत्री समर्थ शिक्षा समिति डॉ वी एस नेगी प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य प्रधान संपादक व प्रकाशक सतीश शर्मा कार्यालय ए 214 बुध नगर इंद्रपुरी नई दिल्ली 110012 मोबाइल 9312002527 संपादक मंडल सौरभ शर्मा,कपिल शर्मा,गौरव शर्मा, डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध,राजेश शुक्ल प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F, कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इन्दर पूरी नई दिल्ली 110012 से प्रकाशित | सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी R N I N0-68540/98 Jaankaarikaal.com sumansangam.com jaankaarikaal.blogspot.com | अनुक्रमणिकासम्पादकीय – 3 रवीन्द्रनाथ का शिक्षा दर्शन – 4 लेखमकान से घर – 7 कहानी आदि गुरू शंकराचार्य – 9 लेख मई मास के महत्वपूर्ण दिवस व महापुरुष के जन्म दिन – 11 मासिक पंचांग,पंचक विचार,भद्रा विचार,मई मास के व्रत,सर्वार्थ सिद्ध योग,मूल विचार – 16 ज्योतिष मांगलिक दोष विचार परिहार – 20 ज्योतिष मोहिनी एकादशी – 21 कथा अचला एकादशी – 22 कथा निर्जला एकादशी – 23 कथा बुढापा – 24 कविता स्पर्श – 25 कहानी दिल की आरजू – 28 कविता भारत का लम्बा संघर्ष – 29 लेख मै कौन हूॅ – 33 कविता बाज का शिकार – 34 कहानी गुरू अरदास जी – 35 धर्मग्रंथ – 36 लेख पुदीने की पत्तियो से लाभ – 37 लेख विपिन चन्द्र पाल – 39 लेख कमाई – 40 कहानी महाराष्ट्र दिवस – 41 लेख भविष्यवाणी – 42 कहानी गुलर के औषधीय गुण – 44 स्वास्थ्य अंकशास्त्र की मदद से जाने जीवन से जुडे शुभ या अशुभ समय को – 46 हार्ट अटैक – 48 |
सम्पादकीय
अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥
आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं – बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता ।
कहीं पर भी कोई भी सुव्यवस्था, बदलाव, रुपांतरण (समाज, स्वयं, अन्यत्र) स्थापित करने में प्रमुख साधन हैं, शुभेच्छा , लक्ष्य अदम्य साहस सद्भावना, आत्म समर्पण। हमारी चेतना की डोर सर्व के साथ जुड़ जाएंगी, जीवन यात्रा में प्रभु ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं जो हमें पतन, स्खलन, फिसलन, अंधेरे में से बाहर निकाल कर पूर्णता प्राप्त करने में मदद करते हैं। भागवत स्पर्श से सभी असाध्य कार्य साध्य हो जातें हैं। इसके अलावा बाकी सब हवाई किले, सम्भावनाएं,अस्त व्यस्ताएं हैं जिनकी कभी कभी आवश्यकता पड़ती है (तर्क वितर्क, हिसाब किताब आदि, अस्थाई पड़ाव )। नवसर्जन तो पुराने ढांचे को तोड़कर ही संभव हो सकता है, अन्यथा केवल लिपापोती, भ्रम है। इसमें हमारी महत्वाकांक्षाएं, अहंकार छद्मवेश धारण करके हमें सही मार्ग से भटकाने का प्रयास करेगा, यह भी एक वास्तविकता है,जिस पर पैनी नजर रखी जाए, जो प्रभु इच्छा को शिरोधार्य करके ही संभव है,तू ही नचाने वाला (सूत्रधार) मैं नाचने वाला तेरे हाथों में कठपुतली। और कोई रास्ता है ही नहीं।
किसी ने ठीक ही कहा है कि यह संसार एक आईना(मिरर) है। यद्यपि हम सब एक हैं , लेकिन सृजनहार ने अनेक रूप धारण कर रखे हैं। मनुष्यों का स्वभाव ऐसा है कि इस आईने में केवल अपने जैसे रुप, स्वभाव, मनोवृत्ति वाले लोगों, चीजों को देखना पसंद करते हैं, बाकी के लिए सोचतें हैं कि ये हमारे साथ नहीं रह सकते,इनको जीने का कोई अधिकार नही है (तालिबान,नाजी जर्मनी)।कमियां हम सब में हैं पूर्ण कोई नहीं है लेकिन यह अपनी कमजोरियों को नजरंदाज करके दूसरों में कमियां ढूंढते हैं और यह स्वाभाविक है, हमारे मन की एक वृत्ति है। परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो इससे कोई लाभ नहीं है,हम एक दूसरे को कोसतें रहते हैं, अन्त में यहीं हमारा स्वभाव, दृष्टिकोण बन जाता है दृष्टिभ्रम)। यहां पर थोड़ा सा ठहरकर हम अपने मन को जरा सा भी ऊपर देखने के लिए कहें तो स्थिति बदल जाती है। हमारे अंदर परिवर्तन आना शुरू हो जायेगा, एक नया जीवन शुरू हो जायेगा, जिसका प्रभाव सारे जङचेतन जगत पर पड़ता है। व्यक्ति अन्दर से जितना कुरुप होता है वह उतना ही बाहर से अपने आप को ढकने की आवश्यकता महसूस करता है। और अधिक विस्तार कि आवश्यकता नहीं है, आप सभी मुझसे अच्छा सोचने की समझ रखते हैं।

रवीन्द्रनाथ का शिक्षा दर्शन
जगमोहन राजपूत
रवीन्द्रनाथ टैगोर का बचपन उस समय के धनाढय घर की परंपरा के अनसार ही प्रारम्भ हुआ। उनकी देखभाल सेवकों द्वारा अधिक की गई। बाद में उन्होने स्वयं उस समय को परिवार के ‘सेवकों’ के निरंकुश शासन के रूप में वर्णित कया। उनके ऊपर जो बंधन लगाए गए, उनमें उन्हे घर कैद-सा लगा। बच्चों को प्राकृतिक सोंदर्य का अवलोकन करने के आनंद लेने से रोकना उन्हें अपार मानसिक कष्ट देतारहा। वे घर के बंधनों से बाहर आना चाहते थे। उन्होने स्कूल जाने की उत्सुकता स्वयं व्यक्त की पर परिवार का दबाव नहीं था। मगर जब गए तो उन्होने वहां भी हर तरफ बंधन ही देखे, लगभग वैसे ही जैसे घर की चारदिवारी में मिले थे। वहां के ऐसे अनुभव के बाद वे स्कूल के बंधन से छूटने को व्याकूल हो गए। जेल की तरह दवारें, निर्मम अनुशासन और राजा । अध्यापक उन्हें ‘बेंत की प्रतिमूर्ति’ ही दिखाई देता था। असहनीय परिस्थितियों में अपरिचित भाषा में दी जा रही शुष्क तथा नीरस शिक्षा से ही नियमों, सिद्धांतों, तथ्यों, संकल्पनाओं को रटने पर निर्भर थी। इसमें जो सिखाया जाता था उस पर विचार करने या उसे समझ के आत्मसात करने की कोई संभावना ही नहीं बनती थी।‘शिक्षार हेरफेर’ लेख में टैगोर ने लिखा था कि सोचने की शक्ति और कल्पना शक्ति दो ऐसी अत्यंत महत्वपूर्ण मानसिक शक्तियाँ है, जिनसे मनुष्य की क्षमताएँ लगातार बढ़ती रहनी चाहिए। यह एक कार्यशील और
सृजनात्मक जीवन के आवश्यक अंग है, उसमें नवाचार ओर नवोन्मेष लाने के कारक हैं। बचपन से ही विचार तथा कल्पना की शक्ति को प्रस्फ़ुतित करने का प्रयास अनिवार्य रूप से होना चाहिए। दुर्भाग्य से स्कूल में रटाने पर इतना ज़ोर दिया जाता रहा है कि की ये दोनों लगातार कुंद होते जाते है। जैसे ही इन पर ध्यान देना प्रारम्भ होगा, तो दो अन्य अत्यावयशक तत्व स्वत: उभरेंगे-जिज्ञासा और सृजनात्मकता। यह तभी संभव है जब बच्चों पर अनावश्यक नियंत्रण नहीं थोपा जाएगा। गुरुदेव हर अवसर पर किताबी शिक्षा के प्रति अपनी दूरी को अवश्य प्रगत करते थे। वे प्रकृति से सीधे सीखने की क्षमता को प्रोत्साहन देने के पक्षधर थे। अध्यापकों के प्रयास बच्चों को जीवन की वास्तविकता और अपने आसपास के पर्यावरण से परिचित कराने की दिशा में ही केन्द्रित होने चाहिए। हमारी शिक्षा कुछ ऐसी है जैसे पेड़ की जड़ों से सैकड़ों गज दूर वर्षा हो ओर उसमें से कुछ बूंदे ही बड़ी मुश्किल से जड़ों तक यानि हमें अपने जीवन को स्वारने के लिए मिल सकें। हमारे सामने यक्ष प्रश्न शिक्षा और जीवन के बीच समरसता-हारमनी-स्थापित करने का है। कृष्ण कृपलानी की पुस्तक ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक जीवनी’ में यह पक्ष बड़े ही प्रभावशाली ढंग से उभरता है : ‘उनका मानना था कि बालक का मस्तिष्क अपने परिवेश के प्रति असाधारण रूप से सजग होता है और वह उसे इंद्रिय अनुभव द्वारा ग्रहण करता है। अपने मस्तिष्क से सीखने के पूर्व वह इन अनुभवों को इंद्रियों से आत्मसात करना सीख चुका होता है। इसलिए उसे एक ऐसा वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए, जो उसकी जिज्ञासा को उत्प्रेरित करें, ताकि उसे अपने चारों ओर की दुनिया सहज और आनंदपूर्ण लगे । उसे इस बात के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वह अपना काम स्वयं करे और जहां तक संभव हो शिक्षक पर उसकी निर्भरता कम हो। इसलिए जहां तक हो सके उसे कला का शिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि बालक अपने वातावरण को समझ सके और उससे प्यार कर सके। रवीन्द्रनाथ के अनुसार प्रकृति ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। वे कला से प्रारम्भ करने की बात करते थे, गांधी ‘क्राफ्ट’ की बात करते थे। बूनियादी तालिम में जो हाथ से काम सीखने की बात थी, उस पर गुरुदेव के यहां भी जोर दिया जाता था कि बालक अपने हर अगं–प्रत्यंग के कार्य और उनकी संवेदना को समझ ले। इस सारे चिंतन और शैक्षिक दर्शन के विपरित शिक्षा के नाम पर जो तब हो रहा था और आज भी हो रहा है, उस पर गुरुदेव का कथन था, ‘हमारे देश की शैक्षिक संस्थाएं मात्र ज्ञान का भिक्षापात्र है और ये हमारे राष्ट्रीय आत्मसम्मान का सर नीचा करती है और हम इस बात के लिए उत्साहित करती है कि हम उधार लिए पंखों का आडंबरपूर्ण प्रदर्शन कर सके। इस सबके परिणाम के संबंध में वे आगाह भी करते हैं, ‘अगर सारी दुनियाँ आगे बढ़ते-बढ़ते अतिरंजित पश्चिम की तरह ही हो जाए तो फिर ऐसी फूहड़ नकल वाले आधुनिक युग की छद्मता अपने आप समाप्त हो जाएगी, वह अपनी ही विमूढ़ता के नीचे दम तोड़ देगी। टैगोर और गांधी पश्चिम के ज्ञान-विज्ञान के प्रशंसक थे, मगर भारत की विशेषता और विशेषज्ञता को नजरदाज़ करने को तैयार नहीं थे। गुरुदेव के अनुसार हमें नैतिक ज्ञान भंडार को किसी भी सूरत में भूलना नहीं चाहिए
क्योंकि यह पश्चिम के उस ज्ञान से कहीं उच्च स्तर का तथा प्रभावशाली है, जिसमें केवल अनगिनत उत्पाद तथा भौतिकता लगातार संघर्षरत है। गुरुदेव ने स्पष्ट लिखा है कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि आधुनिक ज्ञान मानवता को सदा के लिए यूरोप का दिया एक वरदान है। हमें उन्हें उपयोग में लाना चाहिए और पिछड़े बने रहने से मुक्ति पानी चाहिए, मगर उसे उसी स्वरूप में बिना विश्लेषण के स्वीकार नहीं किया जा सकता। शिक्षा का जो अनुपयुक्त और अव्यवहारिक स्वरूप भारत पर थोपा गया था, उससे उनका (और गांधी का भी) विरोध पूर्ण था। उससे बचने के लिए आवश्यक था कि भारत की संस्कृति के हर पक्ष को संबल देकर शिक्षा में उभारा जाए, न कि पश्चिम की संस्कृति के विरोध में राष्ट्रीय ऊर्जा को खपाया जाए। गुरुदेव मानते थे की मनुष्य की वैचारिकता के बृहद और विस्तृत अध्ययन द्वारा भारतीय जीवन में विविधता में निहित सामंजस्य तथा तालमेल को समझा जा सकता है। गुरुदेव सदा ही खुलेपन, नैसर्गिक तथा आनंदपूर्ण वातावरण की ओर इंगित करते रहे, जिसे पाना बच्चों का नैसर्गिक अधिकार माना जाना चाहिए। गुरुदेव का सारा शैक्षिक दर्शन प्रकृति को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक मानता रहा। उसे ही व्यवहारिक रूप में शांति निकेतन परिसर में सभी के समक्ष रखा गया। मनुष्य की नियति है कि वह प्रकृति की सदा बदलती रहती मनोदशाओं को जानने-समझने का प्रयास करे। अगर वह ऐसा पूर्ण मनोयोग से करेगा, तो उसका प्रकृति से मानसिक और संवेदनात्मक संबंध स्थापित हो जाएगा। चूंकि स्कूल-आधारित शिक्षा व्यवस्थाएं ऐसा नहीं कर पाई है, इसलिए मनुष्य और प्रकृति के बीच की संवेदनात्म्क कड़ी कमजोर हो गई और मनुष्य प्रकृति को केवल संसाधनों के दोहन और संग्रहण में ही उलझ कर रह गया। परिणाम सामने है, जलवायु परिवर्तन, वायु-प्रदूषण, जल संकट और कितने ही अन्य। विज्ञान बढ़ा है, ज्ञान बढ़ा है लेकिन विवेक नहीं बढ़ा है। परिणाम स्वरूप मानवता नहीं बढ़ी है। गुरुदेव मानते थे कि प्रकृति और ललित कलाओं से संपर्क का बालक की भावनाओं पर जो प्रभाव पड़ता है वह उसे मानवीय मूल्यों को आत्मसात करने में सहायक होगा। वह उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए भी आवश्यक है। इनमें जो भी रुचि लेगा उसकी जिज्ञासा और प्रखर होगी तथा इससे उसकी सृजनात्मक को भी संबल मिलेगा। इसके लिए ऐसी शिक्षा व्यवस्था को साकार रूप देना होगा, जिसकी जड़ें देश की मिट्टी, यानि संस्कृति, विरासत, इतिहास और ज्ञानार्जन परंपरा में गहराई तक गई हुई होनी चाहिए। आज के नीति निर्धारकों के समक्ष यही चुनौती है।
महर्षि अरविन्द ने कहा
“जब दरिद्र तुम्हारे साथ हो , तो उनकी सहायता करो। लेकिन अध्ययन करो। और यह प्रयास भी करो कि तुम्हारी सहायता पाने के लिए दरिद्र लोग न बचे रहे |

मकान से घर..
चित्रा..
“यह तो लाकडाउन की वजह से बंधा हुआ हूं, वरना कब का अपने घर चला गया होता।” हर छोटी – छोटी बात पर राहुल के पिता यही बोलते।
वास्तव में यह वह नहीं, बल्कि उनका अहंकार बोलता था। यह सच है कि अपना मकान उन्होंने पाई-पाई जोड़ कर बनवाया था, एक एक ईट सामने खड़े होकर चिनवाई थी। किन्तु उससे इस कदर मोह हो जाना कि उसके सामने रिश्ते नाते, अपने बच्चे, उनकी भावनाओं की कोई कद्र न हो, यह कहां तक सही है।
उसी घर में बच्चे बड़े हुए, बच्चों की शादियां हुई। और जैसा अक्सर होता है शादी के बाद अपने ही बच्चे पराये लगने लगे। अपनी मर्जी से बच्चों को कभी मकान में एक कील तक गाढने की इजाजत नहीं थी। धीरे-धीरे वहां रहना बच्चों को मुश्किल लगने लगा पर माता- पिता को छोड़कर जाने का ख्याल भी उचित नहीं लगता था। सो कई वर्ष एक साथ उसी मकान में निकाले। जब तब पिताजी बच्चों को उस मकान का हवाला देकर अहसान जताते, ताने मारते।
आखिर एक दिन राहुल का तबादला हो गया और उसे अपने परिवार के साथ वहां से जाना पड़ा। उसने तो मां पिताजी के सामने भी प्रस्ताव रखा कि वह उनके साथ चलें पर वह कहां जाने वाले थे। उन्हें तो सबसे ज्यादा लगाव अपने मकान से था।
कोई बात होती तो वे साफ कह देते कि हमें किसी की जरूरत नहीं है।
धीरे-धीरे उनकी उम्र बढ़ती गई, वक्त बेवक्त राहुल को उनके पास आना पड़ता और हर बार वह उन्हें यही समझाता-
“मां, कितनी बार तुम्हें कहा हमारे पास आ जाओ। दूर रहकर तुम्हें हमारी और हमें तुम्हारी चिंता सताती रहती है। वक्त बेवक्त एक दूसरे की जरूरत पड़े तो इतनी दूर कैसे आए जाए। फिर कह रहा
हूं मां, पिताजी से बात करो और मेरे साथ चलो।”
मां हर बार विवश होकर यही कहती ,”तुम तो जानते हो तुम्हारे पिताजी जीते जी इस मकान को कभी नहीं छोड़ेंगे।”
मैं उनकी भावनाओं को समझता हूं पर पिछले 30-35 साल इस मकान में रह लिए। जरूरत और समय के हिसाब से निर्णय लेने पड़ते हैं। इस तरह मकान का मोह रखना तो कोई समझदारी नहीं है। तुम यहां दुखी होती हो तो हमें भी दुख होता है। तुम पिताजी से बात करो और मेरे साथ चलो, हम सब एक साथ रहेंगे।
इस तरह की बातचीत राहुल और माता-पिता के बीच कुछ- कुछ महीने बाद होती ही रहती थी, किन्तु कोई हल न निकलता। एक तो मकान का मोह, दूसरे मन में ऐसी बातें बसी थी कि बच्चे माता-पिता को केवल अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए ही अपने पास रखना चाहते हैं और हो न हो मन में इस बात की ग्लानि भी होगी कि जब बच्चे यहां रहते थे तो हम किस कदर उन्हें मकान का हक जताकर सताया करते थे। यही सब बातें थी जो उन्हें बच्चों के पास जाकर रहने से रोकती थी। शायद उन्हें लगता था कि जैसा बर्ताव हमने बच्चों के साथ किया था वैसा ही वह करेंगे जब हम उनके घर में जाकर रहेंगे।
इस बार तो राहुल जिद पर अड़ गया और उन्हें अपने साथ ले गया ।
अभी तीन-चार दिन ही बीते थे कि अचानक एक अजीब सा समाचार सुनने को मिला। कोरोना नाम के वायरस ने चीन से शुरूवात करके पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। भारत में भी उसका असर दिखाई देने लगा और तुरंत ही सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा कर दी। अब तो राहुल के माता-पिता वहां रहने को विवश हो गए। मां का तो मन फिर भी लग रहा था पर पिताजी को रह-रहकर मकान की चिंता सता रही थी, वहां रहते हुए उनके उस अहंकार को भी ठेस पहुंच रही थी जो बेवजह उन्होंने पाल रखा था।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए मां पिताजी दोनों का राहुल के परिवार के साथ लगाव बढ़ता गया। बच्चे उनके साथ खेलते, उनसे संस्कार ग्रहण करते, उन्हें नई -नई चीजें सिखाते। राहुल की पत्नी मां से तरह-तरह के व्यंजन बनाना सीखती। यह सब देख कर ऐसे माहौल में धीरे- धीरे मां पिताजी दोनों खुश रहने लगे और उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा।
अब पिताजी को कहीं न कहीं अपनी गलती का अहसास हुआ कि क्यों उन्होंने उस मकान के मोह में बच्चों का दिल दुखाया और खुद भी एकांतवास की सजा भुगती जबकि ईंट पत्थरों का तो सिर्फ मकान होता है घर तो उसमें रहने वालों और उनकी रौनक से बनता है।
सचमुच कोरोना की आपदा ने कई लोगों को नई सोच और नया जीवन दिया है।
इस कोरोना के कारण ही वे मकान से घर में आ गए थे।

आदि गुरु शंकराचार्य
एक वृद्ध सन्यासी ओंकारेश्वर क्षेत्र में एक गुफा के भीतर तपस्यारत था। शरीर की अवस्था अब ऐसी न थी कि वह यात्राएं कर सकें। सन्यासी का प्रभाव ऐसा था कि जो जंगली पशु सदा हिंसक रहते, वे गुफा के समीप आते ही शांत हो जाते। सन्यासी का सारा समय ध्यान में गुजरता, उसे प्रतीक्षा थी किसी के आगमन की। उसे परंपरा से प्राप्त ज्ञान किसी को सौंप कर ही इस संसार से विदा लेनी थी। प्रतीक्षा लंबी होती जा रही थी, लेकिन विश्वास दृढ़ था।
एक दिन वहां से बहती नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई। नर्मदा का उफान देखकर किसी की हिम्मत नही थी कि कोई उसके समीप भी जा सके। पशु पक्षियों में भगदड़ मच गई, शोर मचाती नर्मदा हर तट, बांध को तोड़ती जा रही थी।
एक बालक जिसने भगवा रंग के वस्त्र पहने थे, माथे पर त्रिपुंड, शरीर पर यज्ञोपवीत, सर पर गोखुरी शिखा, गले मे रुद्राक्ष और चेहरे पर सूर्य सा तेज औऱ हाथ म् कमंडल पकड़ा हुआ था, नर्मदा के समीप आकर खड़ा हो गया। वह रुक नही सकता था, उसने शांत चित्त से नर्मदा को देखा, उफान देखकर अंदाजा हो गया कि अभी नदी को पार नही किया जा सकता। उस बाल ब्रह्मचारी ने माँ नर्मदा को प्रणाम किया औऱ नर्मदा की स्तुति करते हुए कहा,
“सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ||”
इस नर्मदाष्टकम को सुनकर देखते ही देखते नर्मदा उसके कमंडल में आकर समा गई।
नदी के दूसरे छोर पर जंगल में स्थित गुफा में समाधिरत सन्यासी की आंखे खुल गई, वह जान गया कि प्रतीक्षा समाप्त हुई। तभी बाल ब्रह्चारी उसके सामने आकर खड़ा हो गया। दोनों ने एक दूसरे को देखा, ब्रह्मचारी ने सन्यासी को प्रणाम किया तो सन्यासी ने परम्परा के निर्वाहन हेतु उसे बाहर से आशीर्वाद दिया, किन्तु मन ही मन प्रणाम किया।
सब कुछ जानते हुए भी लोकाचार की मर्यादा रखते हुए सन्यासी ने पूछा,”कौन हो तुम? अपना परिचय दो।”
बाल ब्रह्चारी जो मात्र आठ वर्ष का था, उसने कहा,
“मनो बुद्धय अहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम॥
मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।।”
निर्वाण षट्कम के रूप में ब्रह्चारी ने जो परिचय दिया वह सुनकर सन्यासी की आँखों से आंसू निकल आये औऱ उसने प्रेम से उस बालक को गले लगा लिया।
सन्यासी की प्रतीक्षा औऱ ब्रह्चारी की खोज समाप्त हुई। सन्यासी गोविंद भगवत्पाद ने ब्रह्चारी शंकर को विधिवत सन्यास की दीक्षा दी औऱ परंपरागत ज्ञान को शंकर को सौंप दिया।
यही बालब्रह्चारी शंकर, आदि गुरु शंकराचार्य बने जो स्वयं शिवातार थे। वैशाख शुक्ल पंचमी को 507 ईसापूर्व केरल के कलाड़ी ग्राम में जन्मे आदिगुरु ने महाराज सुधन्वा की सहायता से वैदिक धर्म को पुनर्जीवित किया। उन्होंने चार मठों की स्थापना की, पूर्व में गोवर्धन, उत्तर में जोशी, पश्चिम में शारदा औऱ दक्षिण में श्रृंगेरी।
स्वामी विवेकानद ने कहा
” लुढ़कते पत्थर में काई नहीं लगती ” वास्तव में वे धन्य है जो शुरू से ही जीवन का लक्ष्य निर्धारित का लेते है। जीवन की संध्या होते – होते उन्हें बड़ा संतोष मिलता है कि उन्होंने निरूद्देश्य जीवन नहीं जिया तथा लक्ष्य खोजने में अपना समय नहीं गवाया। जीवन उस तीर की तरह होना चाहिए जो लक्ष्य पर सीधा लगता है और निशाना व्यर्थ नहीं जाता |
मई 2023 के महत्वपूर्ण दिवस
1 मई: अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या मई दिवस
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को मजदूर दिवस या मई दिवस के नाम से भी जाना जाता है। यह हर साल 1 मई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। भारत में, मजदूर दिवस को अंर्तराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या कामगार दिवस के रूप में जाना जाता है। दिए गए लिंक में दिए गए इस दिन को मनाने आदि के पीछे क्या इतिहास है?
1 मई: महाराष्ट्र दिवस
इसे मराठी में महाराष्ट्र दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह महाराष्ट्र में राजकीय अवकाश है। महाराष्ट्र राज्य का गठन 1 मई 1960 को बॉम्बे राज्य के विभाजन से हुआ था।
1 मई: गुजरात दिवस
यह गुजरात में राजकीय अवकाश है। गुजरात राज्य का गठन 1 मई 1960 को हुआ था।
1 मई – विश्व हंसी दिवस (मई का पहला रविवार)
हर साल मई के पहले रविवार को विश्व हंसी दिवस मनाया जाता है। 1998 में, पहला उत्सव मुंबई, भारत में हुआ। इसकी व्यवस्था विश्वव्यापी हंसी योग आंदोलन के संस्थापक डॉ मदन कटारिया ने की थी।
2 मई- विश्व टूना दिवस
यह 2 मई को मनाया जाता है और टूना मछली के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा स्थापित किया गया है।
2 मई – विश्व अस्थमा दिवस (मई का पहला मंगलवार)
दुनिया में अस्थमा के बारे में जागरूकता फैलाने और देखभाल करने के लिए हर साल मई के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। अस्थमा के लिए ग्लोबल इनिशिएटिव द्वारा एक वार्षिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। अस्थमा ब्रोंकाइटिस की पुरानी सूजन है जिससे खांसी, सांस फूलना, सीने में जकड़न आदि होती है।
3 मई – प्रेस स्वतंत्रता दिवस
हर साल प्रेस स्वतंत्रता दिवस या विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 3 मई को दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करने और अपने पेशे के अभ्यास में अपनी जान गंवाने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।
4 मई – कोयला खनिक दिवस
हर साल 4 मई को कोयला खनिकों को सम्मानित करने के लिए कोयला खनिक दिवस मनाया जाता
है। आपको बता दें कि कोयला खनन जमीन से कोयला
4 मई – कोयला खनिक दिवस
हर साल 4 मई को कोयला खनिकों को सम्मानित करने के लिए कोयला खनिक दिवस मनाया जाता है। आपको बता दें कि कोयला खनन जमीन से कोयला निकालने के लिए किया जाता है। कोयला खनन भारत के सबसे खतरनाक व्यवसायों में से एक है। कोयला खनिक वे पुरुष होते हैं जो जानते हैं कि दिन बीत जाने पर वे काम के बाद घर वापस नहीं लौट सकते। फिर, वे कोयले की खानों में भी चलते हैं और अपनी दैनिक मजदूरी कमाते हैं।
4 मई – अंतर्राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस
हर साल 4 मई को अंतर्राष्ट्रीय अग्निशमन दिवस मनाया जाता है। यह 4 जनवरी 1999 को ऑस्ट्रेलिया में बुशफायर में पांच अग्निशामकों की मौत के कारण दुनिया भर में ईमेल के माध्यम से एक प्रस्ताव के बाद स्थापित किया गया था। इसलिए, यह दिन उन बलिदानों को पहचानने और उनका सम्मान करने के लिए मनाया जाता है जो अग्निशामक यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि उनके समुदाय और पर्यावरण यथासंभव सुरक्षित हैं।
5 मई – बुद्ध जयंती या बुद्ध पूर्णिमा
ऐसा माना जाता है कि वैशाख महीने की पूर्णिमा को कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। उन्हें ‘एशिया का ज्योति पुंज’ या ‘एशिया का प्रकाश’ भी कहा जाता है। इस वर्ष, बुद्ध जयंती या बुद्ध पूर्णिमा 5 मई को मनाई जाती है।
6 मई – अंतर्राष्ट्रीय नो डाइट डे
यह प्रतिवर्ष 6 मई को मनाया जाता है। यह वसा स्वीकृति और शरीर के आकार की विविधता सहित शरीर की स्वीकृति का उत्सव है।
7 मई – विश्व एथलेटिक्स दिवस
प्राथमिक खेल के रूप में एथलेटिक्स को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और संस्थानों में युवाओं के बीच खेलों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 7 मई को विश्व एथलेटिक्स दिवस मनाया जाता है। और एथलेटिक्स के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं और युवाओं का परिचय देना।
8 मई – विश्व रेड क्रॉस दिवस
रेड क्रॉस के संस्थापक की जयंती मनाने के लिए हर साल 8 मई को विश्व रेड क्रॉस दिवस मनाया जाता है। आपको बता दें कि रेड क्रॉस के संस्थापक हेनरी डुनांट थे और साथ ही रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (आईसीआरसी) के संस्थापक थे। उनका जन्म 1828 में जिनेवा में हुआ था। वे प्रथम नोबेल शांति पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता बने।
8 मई – विश्व थैलेसीमिया दिवस
विश्व थैलेसीमिया दिवस या अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस हर साल 8 मई को थैलेसीमिया से पीड़ित सभी
रोगियों और उनके माता-पिता के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने अपनी बीमारी के बोझ के
बावजूद जीवन के लिए कभी आशा नहीं खोई। यह दिन उन लोगों को भी प्रोत्साहित करता है जो बीमारी के साथ जीने के लिए संघर्ष करते हैं।
9 मई – रवींद्रनाथ टैगोर जयंती
ड्रिपपंचांग के अनुसार, बोइशाख 25 का दिन वर्तमान में ग्रेगोरियन कैलेंडर पर 8 मई या 9 मई के साथ ओवरलैप होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह 7 मई को अन्य राज्यों में मनाया जाता है। उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। वह भारत के शीर्ष कलाकारों, उपन्यासकारों, लेखकों, बंगाली कवियों, मानवतावादियों, दार्शनिकों आदि में से एक थे। 1913 में उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
10 मई- विश्व ल्यूपस दिवस
हर साल 10 मई को दुनिया भर में लोग विश्व लुपस दिवस मनाते हैं। इसका उद्देश्य हमें इस तथ्य के बारे में और अधिक जागरूक करना था कि प्रतीत होने वाले असंबद्ध लक्षण वास्तव में एक पुरानी, अपंग ऑटोइम्यून बीमारी के लक्षण हैं।
11 मई – राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस
हमारे दैनिक जीवन में विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने और छात्रों को करियर के विकल्प के रूप में विज्ञान को चुनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जाता है। इसी दिन 11 मई 1998 को शक्ति, पोखरण परमाणु परीक्षण किया गया था।
12 मई – अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस
हर साल 12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन की सालगिरह मनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में नर्सों द्वारा समाज के लिए किए गए योगदान का जश्न भी मनाता है। इस दिन नर्स संगठन की अंतर्राष्ट्रीय परिषद हर साल एक अलग विषय के साथ विश्व स्तर पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने और सहायता करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नर्स किट का उत्पादन करती है।
14 मई – मदर्स डे (मई का दूसरा रविवार)
मातृत्व का सम्मान करने के लिए हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है और दुनिया भर में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। मदर्स डे की स्थापना अन्ना जार्विस ने की थी जिन्होंने 1907 में माताओं और मातृत्व के सम्मान में मदर्स डे मनाने का विचार दिया था। राष्ट्रीय स्तर पर इस दिन को 1914 में मान्यता मिली थी।
15 मई – अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस
हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। परिवार समाज की मूल इकाई है। यह
दिन परिवारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उन्हें प्रभावित करने वाली सामाजिक,
आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रक्रियाओं के बारे में ज्ञान बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
17 मई – विश्व दूरसंचार दिवस
विश्व दूरसंचार दिवस हर साल 17 मई को मनाया जाता है। यह ITU की स्थापना का प्रतीक है जब 17 मई 1865 को पेरिस में पहले अंतर्राष्ट्रीय टेलीग्राफ कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसे विश्व दूरसंचार और अंतर्राष्ट्रीय समाज दिवस के रूप में भी जाना जाता है। 1969 से, यह प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
17 मई – विश्व उच्च रक्तचाप दिवस
इस दिन को विश्व उच्च रक्तचाप लीग (WHL) द्वारा प्रतिवर्ष 17 मई को मनाया जाता है। यह दिन उच्च रक्तचाप के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है और लोगों को इस साइलेंट किलर महामारी को रोकने और नियंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
18 मई – विश्व एड्स टीका दिवस
विश्व एड्स टीका दिवस या एचआईवी टीका जागरूकता दिवस हर साल 18 मई को मनाया जाता है। यह दिन उन हजारों शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य पेशेवरों के प्रयासों को चिह्नित करता है जिन्होंने एड्स की सुरक्षित और प्रभावी दवा खोजने की प्रक्रिया में योगदान दिया है। यह निवारक एचआईवी टीका अनुसंधान के महत्व के बारे में समुदायों को शिक्षित करने का अवसर भी है।
18 मई – अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस
संग्रहालय और समाज में इसकी भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 18 मई को अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय परिषद (ICOM) ने 1977 में अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस बनाया। संगठन ने हर साल एक उचित विषय का सुझाव दिया जिसमें वैश्वीकरण, सांस्कृतिक अंतराल को पाटना और पर्यावरण की देखभाल करना शामिल हो सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 2023: उद्धरण, शुभकामनाएं, संदेश, अभिवादन, थीम, महत्व और बहुत कुछ
19 मई – राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस (मई में तीसरा शुक्रवार)
हर साल मई में तीसरे शुक्रवार को सभी संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए वन्यजीव संरक्षण और बहाली के प्रयासों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मनाया जाता है। लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम 1973, वन्यजीवों और संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण पर केंद्रित है।
19 मई- शनि जयंती
ऐसा कहा जाता है कि शनि जयंती के त्योहार के दौरान भगवान शनि (शनि) अपनी जयंती मनाते हैं, जिसे श्री शनैश्चर जन्म दिवस के रूप में भी जाना जाता है। भगवान सूर्य और देवी छाया के पुत्र शनिदेव
का जन्म वैशाख माह की अमावस्या को हुआ था, जो इस वर्ष शुक्रवार, 19 मई, 2023 को पड़ रही है।
20 मई – सशस्त्र सेना दिवस (मई का तीसरा शनिवार)
सशस्त्र सेना दिवस प्रत्येक मई के तीसरे शनिवार को मनाया जाता है। यह दिन संयुक्त राज्य सशस्त्र
बलों में सेवा करने वाले पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।
21 मई – राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस
हर साल 21 मई को आतंकवादियों द्वारा की गई हिंसा के बारे में जागरूकता फैलाने और पूर्व भारतीय पीएम राजीव गांधी की याद में भी मनाया जाता है, जो इस दिन गुजरे थे।
22 मई – अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
जैव विविधता के मुद्दों के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए हर साल 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है।
22 मई- महाराणा प्रताप जयंती
महाराणा प्रताप जयंती का अवसर चित्तौड़ के पहले जन्मदिन के शानदार और बहादुर शासन का सम्मान करता है। वह एक महान योद्धा, राजस्थान का गौरव और डरने की ताकत थे। वह मेवाड़ राजा के पुत्र राणा उदय सिंह द्वितीय थे।
23 मई – विश्व कछुआ दिवस
कछुओं और कछुओं की सुरक्षा और दुनिया भर में उनके लुप्त हो रहे आवासों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 23 मई को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह दिन बेहतर भविष्य का वादा करता है जहां मनुष्य और कछुए शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।
29 मई – राष्ट्रीय स्मृति दिवस (मई का अंतिम सोमवार)
राष्ट्रीय स्मृति दिवस मई के अंतिम सोमवार को मनाया जाता है। इस वर्ष यह 29 मई 2023 को मनाया जाएगा।
30 मई- गंगा दशहरा
गंगा दशहरा, जिसे गंगावतरण के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू त्योहार है जो हिंदू कैलेंडर माह ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। हिंदुओं द्वारा यह माना जाता है कि पवित्र नदी गंगा इस दिन स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थी।
31 मई – तंबाकू विरोधी दिवस
या विश्व तंबाकू निषेध दिवस हर साल 31 मई को दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने और स्वास्थ्य पर तंबाकू के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए मनाया जाता है, जो हृदय रोग, कैंसर, दांतों की सड़न का कारण बनता है। , दांतों का धुंधला होना आदि।
मई मास 2023 का पंचांग
दिनांक | भारतीय व्रत उत्सव मई – 2023 |
1 | मोहिनी एकादशी व्रत,मजदुर दिवस |
3 | प्रदोष व्रत |
4 | श्री नर्सिंह जयंती |
5 | सत्य व्रत, पूर्णिमा, श्री बुध जयंती |
7 | नारद जयंती |
8 | श्री गणेश चतुर्थी व्रत |
12 | कालाष्टमी |
15 | संक्रांति पुन्य,अपरा एकादशी |
17 | प्रदोष व्रत, मास शिव रात्रि |
19 | भावुका अमावस्या , वट सावित्री व्रत, शनिचरी जयंती |
22 | महाराणा प्रताप जयंती |
23 | विनायक चतुर्थी व्रत , श्री गुरु अर्जुन देव बलिदान दिवस |
25 | स्क्न्थ छत ,विध्य्वाशनी पूजा |
26 | श्री रामानुजाचार्य जयंती |
28 | श्री दुर्गा अष्टमी , धूमावती जयंती ,मेला छीर भवानी कश्मीर |
30 | श्री गंगा दशहरा ,श्री बटुक भैरव जयंती |
31 | निर्जला एकादशी व्रत |
पंचक विचार मई – 2023
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 13 को 00 – 18 से 17 को 07- 38 बजे तक पंचक है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी – 9312002527,9560518227
भद्रा विचार मई – 2023
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार – भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी – 9312002527,9560518227
दिनांक | शुरू | दिनांक | समाप्त |
01 | 09-29 | 01 | 22-10 |
04 | 23-44 | 05 | 11-18 |
08 | 07-19 | 08 | 18-19 |
11 | 11-27 | 11 | 22-16 |
14 | 15-43 | 15 | 02-46 |
17 | 22-38 | 18 | 10-03 |
23 | 12-05 | 24 | 00-58 |
27 | 07-42 | 27 | 20-35 |
31 | 01-27 | 31 | 13-47 |
मूल नक्षत्र विचार मई -2023
दिनांक | शुरू | दिनांक | समाप्त |
07 | 20-21 | 09 | 17-44 |
16 | 08-14 | 18 | 07-22 |
25 | 17-53 | 27 | 23-42 |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी – 9312002527,9560518227
सर्वार्थ सिद्धि योग मई -2023
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है|
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी – 9312002527,9560518227
दिनांक | प्रारंभ | दिनांक | समाप्त |
03 | 05-43 | 03 | 20-56 |
12 | 05-36 | 12 | 13-03 |
16 | 05-34 | 16 | 08-14 |
18 | 05-35 | 18 | 07-22 |
20 | 08-02 | 21 | 05-31 |
22 | 05-31 | 22 | 10-36 |
25 | 05-30 | 25 | 17-53 |
29 | 02-19 | 29 | 05-29 |
31 | 05-29 | 31 | 05-29 |
सुर्य उदय- सुर्य अस्त मई -2023
दिनांक | उदय | दिनांक | अस्त |
1 | 05-41 | 1 | 18-55 |
5 | 05-38 | 5 | 18-58 |
10 | 05-35 | 10 | 19-01 |
15 | 05-57 | 15 | 19-04 |
20 | 05-29 | 20 | 19-07 |
25 | 05-27 | 25 | 19-09 |
30 | 05-25 | 30 | 19-12 |
अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें – शर्मा जी – 9560518227
ग्रह स्थिति मई – 2023
ग्रह स्थिति – दिनांक 02 को शुक्र मिथुन में,दिनाक 10 को मंगल कर्क में,दिनांक 14 को बुध उदय पूर्व में,दिनांक 15 को सूर्य वर्षभ में,दिनांक 15 को बुध मार्गी ,दिनांक 30 को शुक्र कर्क में |
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी – 9312002527,9560518227

मांगलिक दोष विचार परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नामी देव प्रबोधिनी एकादशी बसंत पंचमी फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।

मोहिनी एकादशी
मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है इसी दिन भगवान पुरुषोत्तम राम की पूजा की जाती है भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कराकर श्वेत वस्त्र पहनाए जाते हैं इसके बाद प्रतिमा को किसी ऊंचे स्थान पर रखकर धूप दीप से आरती उतारी जाती है आरती के बाद मीठे फलों द्वारा भोग लगाकर सभी भक्तजन में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दक्षिणा देनी चाहिए रात्रि में भगवान का कीर्तन करके मूर्ति के समीप ही सहन करना चाहिए | एकादशी व्रत के प्रभाव से निर्मित कार्यों से छुटकारा मिल जाता है |
मोहिनी एकादशी व्रत की कथा – सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की नगरी स्थिति थी | वहा धृतनाभ नामक राजा राज्य किया करता था। उसके राज्य में एक धनवान व्यक्ति रहता था वह बड़ा धर्मात्मा और विष्णु भगवान का अनन्य भक्त था। उसके पाॅच पुत्र थे बड़ा पुत्र महा पापी था। जुआ खेलना मद्य पान करना परस्त्री गमन वेश्याओं का गमन,आदि नीच कर्म करने वाला था। उसके माता-पिता ने उसे कुछ दान वस्त्र आभूषण देकर घर से निकाल दिया। आभूषणों की बेचकर कुछ दिन उसने काट लिऐ । अतः धनहीन हो गया और चोरी करने लगा पुलिस ने उसको पकड़ कर बंद कर दिया। दंड अवधि समाप्त होने के पश्चात उसे नगरी से निकाल दिया गया । वह वन में पशु पक्षियों को मारता तथा उनको खाकर अपना पेट भरता था। एक दिन उसके हाथ एक भी शिकार ने लगा वह भूखा प्यासा कौडिन्य मुनि के आश्रम आया और मुनि के आगे हाथ जोड़कर बोला हे मुनिवर मैं आपकी शरण में हूं । मैं प्रसिद्ध पातकी हूं कृपया आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरा उद्धार हो। आप पतित पावन हो मुनि बोले वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो । अनंत जन्मों के तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे । मुनि की शिक्षा से वैश्य कुमार ने मोहिनी एकादशी का व्रत किया और पाप रहित होकर विष्णु लोक को चला गया । इस एकादशी के महत्तम को कोई भी सुनता या करता है। उससे हजारों गोदान का फल मिलता है और पुण्य प्राप्त होता है।

अचला एकादशी
अचला एकादशी या अपरा एकादशी अचला एकादशी जेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाते हैं इसी अपरा एकादशी भी कहते हैं इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या परनिंदा भूत योनि आदि निकृष्ट पापों से छुटकारा मिल जाता है। तथा कीर्ति पुण्य एवं धन-धान्य से अभी वृद्धि होती है। अचला एकादशी की कथा – बहुत समय पहले की बात है एक महीध्वज नाम का राजा था वह बड़ा ही धर्मात्मा था। इसके विपरीत उसी का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ी ही क्रूर प्रवृत्ति का अधर्मी तथा अन्यायी था । वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था। उसने एक दिन अवसर पाकर अपने बड़े भाई का राजा महिध्वज की हत्या कर दी और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया। राजा की आत्मा पीपल पर निवास करने लगी और आने जाने वालों को सताने लगी। अकस्मात एक दिन धौम्य ऋषि वहां से जा रहे थे कि उन्होंने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पाद का कारण और उसके जीवन का वृतांत को सुना और समझा। ऋषि महोदय ने प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। अंत में ऋषि ने प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए उसे अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत करने से राजा दिव्य शरीर पाकर स्वर्ग लोग को चला गया।
विजय की प्रबल इच्छा, अनुशासन,और कुशलता आपको सफल बनाती है।
थोड़ी सी असफलता से,भाग्य के भरोसे बैठना,कायरता का परिचय है।

निर्जला एकादशी
निर्जला एकादशी जेठ सुदी एकादशी को मनाई जाती है इस दिन सबको निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए यदि बिना खाए नहीं रहा जाए तो फलाहार लेकर व्रत करें एकादशी के दिन सब मटके में जल भरकर उसे ढक्कन से ढक दें और ढक्कन में चीनी व दक्षिणा फल इत्यादि रख दें जिस ब्राह्मण को मटका दें उसी ब्राह्मण को एकादशी के दिन सीधा दे।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा – प्राचीन काल में एक बार भीमसेन ने व्यास जी से कहा भगवान युधिस्टर अर्जुन नकुल सहदेव कुंती तथा द्रोपती आदि सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं तथा मुझसे भी यह कार्य करने को कहते हैं। मैं कहता हूं कि मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता मैं दान देकर तथा वासुदेव भगवान की अर्चना करके उन्हें प्रसन्न कर लूंगा। बिना व्रत के जिस तरह से भी हो सके मुझे आप एकादशी का व्रत करने का फल बताइए मैं बिना काया क्लेश के ही फल चाहता हूं। इस पर वेदव्यास जी बोले भीमसेन यदि तुम्हे स्वर्गलोक प्रिय है और नरक से सुरक्षित रहना चाहते हो तो एकादशी का व्रत करना होगा। भीमसेन बोले हे देव एक समय के भोजन करने से तो मेरा काम नही चल सकेगा। मेरे उदर में बृक नामक अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित रहती है। पर्याप्त भोजन करने पर भी मेरी भूख शांत नहीं होती है। हे ऋषिवर आप कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बताइए जिसके करने मात्र से मेरा कल्याण हो जाए। इस पर व्यास जी बोले थे भद्र ज्येष्ठ की एकादशी को निर्जल व्रत कीजिए। स्नान, आचमन में जल ग्रहण कर सकते हैं। अन्न बिल्कुल ना ग्रहण कीजिए अन्नाहार लेने से व्रत खंडित हो जाता है। तुम भी जीवन पर्यंत इस व्रत का पालन करो। इससे तुम्हारे पूर्व कृत एकादशयो के अन्न खाने का पाप समूल नष्ट हो जाएगा। इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए एवं गोदान करनी चाहिए व्यास जी अनुसार भीमसेन ने बड़े साहस के साथ में निर्जला एकादशी का यह व्रत किया। जिसके परिणाम स्वरुप प्रातः होते होते संज्ञा हीन हो गए। तब पाण्डवो ने गंगाजल तुलसी, चरणामृत, प्रसाद देकर उसकी मूर्छा दूर की तभी से भीमसेन पाप मुक्त हो गए।

बुढ़ापा
उमर तुमने चाहे गुजारी हो कैसे,
दुनियां को देखा हो चाहे भी जैसे,
बुढ़ापा जो बीते अच्छा तुम्हारा ,तो
कर्म नेक तुमने किया होगा समझो ।
जवानी में सूरमा भले चाहे होगे ,
पहाड़ों को रेत किया होगा तुमने ,
बीमारी बिना गर बुढ़ापा जो बीते ,तो
करम नेक तुमने किया होगा समझो ।
भले लाखों जिंदगी हो तुमने बसाई,
भले कितनी दौलत हो तुमने कमाई ,
इज्जत से उतरे निवाला हलख से ,तो
करम नेक तुमने किया होगा समझो ।
पढ़ाया हो बच्चों को चाहे ही कितना ,
लुटाई हो दौलत उनपे चाहे जितना ,
औलादे गर तुमपे सब कुछ लुटा दे ,तो
करम नेक तुमने किया होगा समझो ।
सुनिल अग्रहरि
अल्कोंन इंटरनेशनल स्कूल ,दिल्ली

. स्पर्श
जयसिंह भारद्वाज, फतेहपुर (उ.प्र.)
रात्रि के दस बज रहे थे और शशांक सर अपने स्टडी रूम में थे तभी एक अनजाने नम्बर से कॉल आयी। उन्होंने पिक किया और कहा, “हेलो”
“हेलो, सर प्रणाम”
“प्रसन्न रहिये, आप कौन बोल रहे हैं?”
“सर, मैं विनीत, आपका स्टूडेंट…”
“विनीत! मैं पहचान नहीं पा रहा हूँ बेटे”
“अरे सर! इकलौता विनीत जो बहुत अधिक क्वेश्चंस करता था आपसे…”
“अरे! हाँ विनीत! समझ गया। बेटे क्या परेशानी आ गयी?”
“सर, परेशानी नहीं बल्कि एक शुभ सूचना शेयर करनी थी आपसे।”
“अरे क्यों नहीं! बताइए विनीत क्या बात है?”
“सर, एक्साइज इंस्पेक्टर के पद पर मेरा सेलेक्शन हो गया है। अभी पाँच मिनट पहले ही रिजल्ट डिक्लेयर हुआ है और सर्वप्रथम आपको कॉल की है।” विनीत ने एक साँस में बात समाप्त की।
“क्या! सचमुच!! अरे वाह! बधाई हो विनीत! मुझे बहुत खुशी मिली यह बात सुनकर।”
“सर, यह सब आपके स्पर्श का प्रतिफल है। मैं किसी दिन आपसे आशीर्वाद लेने आऊँगा आपके पास। अनुमति है न सर!” उत्सुकता से भरा स्वर था विनीत का।
“अवश्य है। आइये, किसी भी दिन आइये स्वागत है बेटे।”
“ठीक है सर प्रणाम”
“खुश रहो मेरे प्यारे बच्चे।”
फोन डिस्कनेक्ट करके मैथ टीचर शशांक सर सोचने लगे। ऐसे फोन कई बच्चों के प्रतिदिन आते रहते हैं किंतु विनीत…. विनीत की बात ही और है।
सदैव कॉम और कूल रहने वाले शशांक सर हालाँकि जाहिर नहीं करते थे किंतु इन दिनों एक लड़के से इरिटेट होने लगे थे। शशांक सर अपनी बिल्डिंग के विभिन्न तलों के विशाल कमरों में लगे प्रोजेक्टर्स के माध्यम से एक साथ एक बैच में पन्द्रह से बीस हज़ार बच्चों को पढ़ाते थे। इनदिनों एक बच्चा विनीत हर समाधान के बाद खड़ा होकर फिर से हल बताने का अनुरोध करता था। उस चक्कर में शेष हजारों बच्चों का टाइम खराब होता था। और तो औऱ क्लास छूटने के बाद भी वह कॉपी लेकर सामने खड़ा हो जाता और किसी प्रश्न के समाधान के लिए अनुरोध करने लगता।
तीन चार दिनों के एक दिन जब दरवाजे के पास वह कॉपी लेकर खड़ा मिला तो शशांक सर का क्रोध आसमान छूने लगा। जैसे ही उसने प्रश्न आगे किया तभी शशांक सर ने उसे झिड़कते हुए कहा, “जब तुन्हें एक प्रश्न दो-तीन बार मे भी नहीं समझ में आ रहा है तो तुम क्या खाक कम्पटीशन क्लियर कर पाओगे? यह तुम्हारे वश की बात नहीं है।” और वे आगे बढ़ गए।
घर पहुँच कर वे इस बात को सोच कर रो पड़े। पत्नी ने पूछा तो उन्होंने विस्तार से बताया और कहा, “मुझे डर है कि कहीं वह बच्चा स्टडी ही न छोड़ दे मेरी डांट के कारण। यदि ऐसा हुआ तो मैं स्वयं को कभी क्षमा नहीं कर पाऊँगा।”
सुबह कक्षा में विनीत उसी तरह हर समाधान के बाद खड़े होकर फिर से समझाने की विनती करना शुरू दिया तो इरिटेट होने के बावजूद शशांक सर को तनिक सन्तुष्टि मिली। पूरे पाठ्यक्रम के दौरान विनीत को सहपाठियों की ढेर सारी झिड़की मिलती रहीं, स्वयं शशांक सर से भी मिलीं किन्तु वह इन सबको अनदेखा करके प्रश्नों के समाधानों को मस्तिष्क में सुव्यवस्थित करता गया। आज उसका फोन शशांक सर को उद्वेलित कर गया और एकबार फिर उनकी आंखें सजल हो गईं। वे सोचने लगे कि सफलता किसी को भी मिल सकती है बस उसमें सीखने की लगन होनी चाहिए। तभी उन्हें राकेश की याद आ गयी।
राकेश भी उनका एक स्टूडेंट ही था। एकदिन जब वे पार्किंग में अपनी गाड़ी खड़ी करके उतर रहे थे तो उन्होंने पाया कि मैली कुचैली यूनिफॉर्म पहने उलझे से बालों वाला एक लड़का अपनी पुरानी सी साइकिल से आया और कार के बगल में ही खड़ी करके क्लास के लिए जाने लगा। साइकिल में भी कई स्थानों पर सफेद पेंट लगा हुआ था।
सीढ़ियां चढ़ते समय शशांक सर ने कन्धें में हाथ रखते हुए उस लड़के से नाम पूछा तो उसने राकेश बताया।
“राकेश, तुम न तो स्वयं साफ सुथरे हो और न ही यूनिफॉर्म। तुम्हारी साइकिल भी कितनी गन्दी है। कैसे और क्यों है यह सब?”
“सर, मेरे माँबाप नहीं हैं। चाचा ने हमें हमारे घर से भगा दिया है। यहाँ मैं अपने छोटे भाई के साथ रहता हूँ। यहाँ से पढ़ कर जाता हूँ तो एक ठेकेदार के पास सफेदी (रंग रोगन) करने का काम करता हूँ। बाद में शाम को घर जाकर भोजन बनाता हूँ, अपनी तैयारी करता हूँ और छोटे भाई को भी पढ़ाता हूँ।”
शशांक सर भौंचक्क रह गए थे राकेश की निष्ठा व लगन को देख कर। उन्हें विश्वास हो गया था कि यह बच्चा निश्चित ही कामयाब होगा। जिसदिन राकेश ने उन्हें बताया था कि उसका
सेलेक्शन इनकम टैक्स इंस्पेक्टर के पद पर हो गया है तो उन्हें अपार खुशी मिली थी। उन्हें अपने गुरु से सुनी एक कहानी याद आ गयी जो क्लास के बीच में अक्सर अपने स्टूडेंट्स को भी सुनाया करते थे…
… एक मूर्तिकार को रास्ते में एक पत्थर दिखा तो उन्होंने उस पत्थर से कहा,”यदि तुम कुछ पीड़ा सहन कर लो तो मैं तुम्हें भगवान की एक मूर्ति में बदल सकता हूँ।” पत्थर सहर्ष तैयार हो
गया। मूर्तिकार जब हाफ स्टेज पर था तब पत्थर ने कहा,”बस करिये। मुझसे अब और अधिक नहीं सहा जा रहा है तुम्हारी छेनी और हथौड़ी का प्रहार।”
मूर्तिकार उस पत्थर को वहीं छोड़कर आगे बढ़ा तो एक दूसरा पत्थर मिल गया। उससे भी वही प्रश्न किया। दूसरा पत्थर भी सहर्ष मान गया और मूर्तिकार की कठोर छेनी और कोमल स्पर्श ने उस पत्थर को एक सुंदर मूर्ति में परिवर्तित कर दिया।
मूर्तिकार ने उसे उठाकर एक वृक्ष के तने के पास रख दिया। राह से आते जाते लोग उसे नमन करने लगे और फूल मालाएँ चढ़ाने लगे। किसी साधु की दृष्टि पड़ी तो वह वहाँ ठहर गया और इस स्थल को साफ सुथरा कर के मूर्ति के सामने दियाबत्ती करने लगा। लोग दान देने लगे और वह दिन भी आया जब वहाँ मंदिर बनने लगा। तब साधु ने किसी भक्त को कहा कि वह कोई पत्थर खोज कर ले आये जिसे इस मूर्ति के आगे लगवा दिया जाए ताकि नारियल तोड़ने में फर्श न टूटे। भक्त को वही अनगढ़ पत्थर मिल गया जिसे मूर्तिकार ने अधूरा छोड़ दिया था।
अब लोग उस अनगढ़ पत्थर पर नारियल तोड़ते और मधुर जल सामने मुस्कुरा रही मूर्ति को अर्पण करते।
सीख यही है कि जिसने भी गुरु के कठोर / कोमल स्पर्श को सहन कर लिया वह एक दिन प्रतिष्ठित हो जाता है अन्यथा सारा जीवन मुसीबतों से दो-चार होता रहता है।
एक सूखा पेड़ पूरे जंगल को जलाकर राख कर सकता है
उसी प्रकार एक दुष्ट व्यक्ति पूरे समाज के लिए खतरा है

दिल की आरजू
सूरज हर शाम ढल हो जाता हैं,
पतझड़ भी वसंत में बदल जाता है।
किसी भी मुसीबत में हिम्मत मत हारना,
समय कैसा भी हो गुजर ही जाता है।।
साधन ही नहीं साधना भी सुंदर होनी चाहिए ,
दृष्टि ही नहीं दृष्टिकोण भी सुंदर होना चाहिए।।
घर छोटा और दिल बड़ा होना चाहिए,
काम छोटा और अनुभव बड़ा होना चाहिए ।
पद छोटा और विचार बड़ा होना चाहिए,
इनाम छोटा और प्रयास बड़ा होना चाहिए ।।
इतनी मेहरबानी प्रभु बनाए रखना , सही रास्ते पर चलाए रखना।
ना दुखे दिल किसी का मेरे शब्दों से, इतना रहम सब पर बनाए रखना ।
दुनिया के रैन बसेरे में ,
पता नहीं कितने दिन रहना है ।
जीत लो सबके दिलों को है ,
बस यही आप से कहना है ।।
श्रीमती शिखा सक्सेना
एहल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल

भारत का लम्बा संघर्ष
– श्रीश देवपुजारी
६२२ ईस्वी से लेकर ६३४ ईस्वी तक मात्र १२ वर्षों में अरब के सभी मूर्ति पूजकों को मुहम्मद साहब ने इस्लाम की तलवार से पानी पिलाकर मुसलमान बना दिया। ६३४ ईस्वी से लेकर ६५१ तक, यानी मात्र १६ वर्षों में सभी पारसियों को तलवार की नोक पर इस्लाम की दीक्षा दी गयी। ६४० में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांव रखे और देखते ही देखते मात्र १५ वर्षों में, ६५५ तक इजिप्त के लगभग सभी लोग मुसलमान बना दिये गए। पारस और इजिप्त दोनों सभ्यताएं समाप्त हुई। उत्तर अफ्रीकन देश जैसे- अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को ६४० से ७११ ईस्वी तक पूर्ण रूप से इस्लाम में बदल दिया गया। इन ३ देशों का सम्पूर्ण सुख चैन लेने में मुसलमानों ने मात्र ७१ वर्ष लगाए।
७११ ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ। ७३० ईस्वी तक स्पेन की ७०% जनसंख्या मुसलमान थी। मात्र १९ वर्षों में यह परिवर्तन आया। तुर्क थोड़े से वीर निकले। तुर्को के विरुद्ध जिहाद ६५१ ईस्वी में प्रारंभ हुआ और ७५१ ईस्वी तक सारे तुर्क मुसलमान बना दिये गए। इंडोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र ४० वर्षों में पूरा हुआ। सन १२६० में मुसलमानों ने इंडोनेशिया में मार काट मचाई, और १३०० ईस्वी तक सारे इंडोनेशियाई मुसलमान बन चुके थे। फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को ६३४ से ६५० के बीच मुसलमान बना दिया गया। उसके बाद ७०० ईस्वी से भारत के विरुद्ध जिहाद प्रारम्भ हुआ वह अब तक चल रहा है।
इस्लामिक आक्रमणकारियों की क्रूरता का अनुमान इस बात से लगाएं कि मुसलमानों का जब ईरान
पर आक्रमण हुआ, मुसलमानी सेना ईरानी राजा के राजभवन तक पहुंच गई तब राजभवन में लगभग
३ वर्ष की पारसी राजकुमारी थी। ईरान पर आक्रमण अली ने किया था, जिसे शिया मुसलमान मानते है। पारसी राजकुमारी को बंदी बना लिया गया। लूट के माल पर पहला स्वामित्व खलीफा मुगीरा इब्न सूबा का था। खलीफा को वह कोमल बालिका भोग के लिए भेंट की गई। किन्तु खलीफा ईरान में अली की लूट से इतना प्रसन्न हुआ कि अली को कह दिया, इसका भोग तुम करो।
मुसलमानी क्रूरता और पशु संस्कृति का एक सबसे घिनौना उदाहरण देखिये कि तीन साल की बच्ची में भी उन्हें स्त्री दिख रही थी। वह उनके लिए बेटी नही, भोग की वस्तु थी। बेटी के प्रेम में पिता को भी बंदी बनना पड़ा, इस्लाम या मृत्यु में से एक चुनने का विकल्प पारसी राजा को दिया गया। पारसी राजा ने मृत्यु चुनी। अली ने उस तीन साल की सुकोमल राजकुमारी को अपनी पत्नी बना लिया। अली की पत्नी Al Sahba’ bint Rabi’ah मात्र ३ साल की थी, और उस समय अली ३० साल का था।
ईरान हो, इजिप्त हो या अफ्रीकन देश, सबका यही इतिहास है। जिस समय सीरिया आदि को जीता गया था, उसकी कहानी तो और पीड़ादायक है। मुसलमानों ने ईसाई सैनिकों के आगे अपनी औरतों को कर दिया। मुसलमान औरतें ईसाइयों के पास गयी और निवेदन किया कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो। बेचारे मूर्ख ईसाइयों ने इन धूर्तों की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी। फिर क्या था, सारी शूर्पणखाओं ने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया।
अब आप भारत की स्थिति देखिये।
जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुंचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनका धैर्य नहीं था कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर नेत्र उठाकर भी देख सकें। ६३६ ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला। एक भी आक्रांता जीवित वापस नहीं जा पाया।
कुछ वर्षों तक तो मुस्लिम आक्रांताओं का धैर्य तक नहीं हुआ कि भारत की ओर मुंह करके सोया भी जाएं। कुछ ही वर्षों में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी। दुबारा आक्रमण हुआ। इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था। उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा। सेना का पूर्णतः सफाया हो गया और सेनापति हाकिम बंदी बना लिया गया। हाकिम को भारतीय राजपूतों ने बहुत मारा और बड़ा बुरा हाल कर वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति की वार्ता, उस्मान तक पहुंच जाएं।
यह क्रम लगभग ७०० ईस्वी तक चलता रहा। जितने भी मुसलमानों ने भारत की ओर तांका, राजपूतों ने उनका सिर कंधे से नीचे उतार दिया। जब ७ वी सदी प्रारम्भ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्किस्तान जैसे बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पितामह ‘बप्पा रावल’ का जन्म हो चुका था। वे महाप्रतापी योद्धा बन चुके थे। इस्लाम के पंजे में जकड़े गए अफगानिस्तान तक के मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया। केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंचे, जहां स्वयं खलीफा को अपने प्राण की भीख मांगनी पड़ी।
उसके बाद भी यह क्रम रुका नहीं। नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले। जिन्होंने अपना पूरा जीवन राजधर्म का पालन करते हुए पूरे भारत की न केवल रक्षा की, अपितु हमारी शक्ति का डंका विश्व में बजाए रखा। पहले बप्पा रावल में प्रमाणित किया था कि अरब अपराजेय नहीं है। किन्तु ८३६ ईस्वी के समय भारत में वह हुआ, जिससे मुसलमान थर्रा गए।
मुसलमानों ने इतिहास में जिन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु कहा है वह राजपूत सरदार थे – ‘सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार’। मिहिरभोज के बारे में कहा जाता है कि उनका प्रताप ऋषि अगस्त्य से भी अधिक चमका। ऋषि अगस्त्य वहीं है, जिन्होंने श्रीराम को वह अस्त्र दिया था, जिससे रावण का वध सम्भव था। राम के विजय अभियान के अप्रसिद्ध योद्धाओं में एक अगस्त्य ऋषि थे। उन्होंने मुसलमानों को केवल ५ गुफाओं तक सीमित कर दिया। यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी भी युद्ध में जीतते ही थे और वहां की प्रजा को मुसलमान बना देते थे। भारतीय वीर मिहिरभोज ने इन अक्रान्ताओं को थर्रा दिया।
पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के ४०० वर्षों बाद तक भारत के राजपूतों ने मुसलमानों को रोके रखा। उस युद्धकाल में भी भारत की अर्थव्यवस्था को गिरने नहीं दिया। उसके बाद मुसलमान विजयी हुए, किन्तु राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी हार नहीं मानी। एक दिन वह चैन से नहीं बैठे। अंतिम वीर दुर्गादास राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के स्वामित्व से निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, वीरता और शौर्य को चार चांद लगा दिए।
किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने २० वर्ष नहीं लिए और भारत में ५०० वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगवाई। महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, दुर्गावती, चौहान, परमार लगभग सारे राजपूत अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए। एक समय ऐसा भी आ गया कि लड़ते लड़ते राजपूत केवल २% पर आकर ठहर गए।
एक बार पूरी दुनिया देखें, जिन मुसलमानों ने २० वर्षों में आधी विश्व की जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बांग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए?
नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय, सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार, पृथ्वीराज चौहान, छत्रसाल बुंदेला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रहराज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लांझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी रमणसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवंत सिंह राठौड़, भीमदेव सोलंकी, सिद्ध श्री राजा जयसिंह सोलंकी, पुलकेशिन द्वितीय, राणा प्रताप, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रत्नाबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती जैसी अनेक राजाओं और रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

अन्य योद्धा तोगाजी वीरवर, कल्लाजी जयमलजी, जेता कुपा, गोरा बादल, राणा रतनसिंह, पजबन रायजी कच्छावा, मोहनसिंह मंढाड़, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चंद्रसेनजी दोड़, राव चंद्रसिंहजी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलंकी, धीरसिंह पुंडीर, बल्लूजी चंपावत, भीष्म रावत चुण्डाजी, रामशाहसिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर, छत्रपति शिवाजी, संभाजी, बाजीराव पेशवा, संताजी, धनाजी, माधवराव पेशवा, रणजीत सिंह, बंदा बैरागी और गुजरात के सती जुझार, भांजी जडेजा, अजय पाल देवजी।
यह तो कुछ ही नाम है जिन्हें हमने इतिहास की अत्यंत पुरानी पुस्तकों से प्राप्त किये। ये आपको सोशल मीडिया या किसी विद्यालय के पाठ्यक्रम में नहीं मिलेंगे। एक से बढ़कर एक योद्धा उत्पन्न हुए हैं जिन्होंने १८ वर्ष की आयु से पहले ही अपना योगदान दे दिया और लड़ते लड़ते हुतात्मा हो गए। घर के घर, गांव के गांव, ढाणी की ढाणी खाली हो गई जहां कोई भी पुरुष नहीं बचा। किसी गांव या ढाणी में पूरा का पूरा परिवार हुतात्मा हो गया, धर्म के लिए रणवेदी पर बलिदान हो गया।
ऐसा भीषण संघर्ष यदि नहीं किया होता तो आज भारत देश भी पूरी तरह सीरिया या अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लामिक देश बन चुका होता।
(लेखक संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री है।)
सच्चे मित्र की प्राप्ति से
बल की वृद्धि होती है। ।

मैं कौन हूँ
मैं देवदूत नहीं हूँ, जो केवल देता ही रहे
मुझे भी चाहिए साथ, केवल मुश्किलों में
मैं पत्थर नहीं हूँ, जो ठोकर ही खाता रहे
मुझे संभलना पड़ता है, हर ठोकर के बाद
मैं फूल नहीं हूँ, जो सदा मुरझाता ही रहे
मुझे खिलना पड़ता है, नई मुस्कान के साथ
मैं दीपक नहीं हूँ, जो सदा जलता ही रहे
मुझे भी सहारा चाहिए,जीवन के तूफ़ानों में
मैं थोड़ा सा इंसान हूँ,जो पिघल जाता है
थोड़ा सा प्रेम पाकर, बिना किसी स्वार्थ के
मनोभाव
रिँकू शर्मा

बाज का शिकार
दिनेश भरद्वाज
बाज के बच्चे ने अभी-अभी उड़ना सीखा था… उत्साह से भरा होने के कारण वह हर किसी को अपनी कलाबाजियां दिखाने में लगा था। तभी उसने पेड़ के नीचे एक सूअर के बच्चे को भागते देखा, ” माँ वो देखो सूअर, कितना स्वादिष्ट होगा ना, मैं अभी उसका शिकार करता हूँ। नहीं बेटा,” माँ बोलीं, “अभी तुम इसके लिए तैयार नहीं हो, सूअर एक बड़ा शिकार है, तुम चूहे से शुरुआत करो।” बाज आज्ञाकारी था, उसने फ़ौरन माँ की बात मान ली और जल्दी ही उसने बड़ी कुशलता के साथ चूहों का शिकार करना सीख लिया। अब उसका आत्मविश्वास बहुत बढ़ चुका था, वह अपनी माँ के पास गया और फिर से सूअर का शिकार करने के लिए कहने लगा। “अभी नहीं बेटा, पहले तुम खरगोश का शिकार करना सीखो”, माँ ने समझाया। कुछ ही दिनों में बाज ने खरगोशों का शिकार करना भी सीख लिया। उसे पूरा यकीन था कि अब वो अपने पहले लक्ष्य सूअर को ज़रूर मार सकता है… और इसी की आज्ञा लेने वह माँ के पास पहुंचा। पर इस बार भी माँ ने उसे मना कर दिया और पहले मेमने का शिकार करने को कहा। बाज जल्दी ही मेमनों का शिकार करने में पारंगत हो गया। फिर एक दिन वह अपनी माँ के साथ यूँही डाल पर बैठा था कि एक सूअर का बच्चा उधर से गुजरा… बाज ने अपनी माँ की ओर देखा… माँ मुस्कुराई और सूअर पर झपट पड़ने का इशारा किया। बाज ने फ़ौरन नीचे की ओर उड़ान भरी और उस दिन उसने पहली बार अपना मनपसंद खाना खाया।
दोस्तों, सोचिये अगर माँ ने पहली बार में ही उसे सूअर का शिकार करने को कह दिया होता तो क्या होता?
नन्हा बाज निश्चित तौर पर असफल हो जाता… और संभव है उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता। लेकिन जब उसने पहले छोटे-छोटे शिकार किये तो उसका आत्मविश्वास और उसकी काबिलियत दोनों निखरती गयीं। और अंततः वह अपने मनपसन्द लक्ष्य को पाने में सफल हुआ।
शिक्षा:-
बाज की ये प्रसंग हमें अपने बड़े लक्ष्य को छोटे-छोटे आसान हिस्सों में बाँट कर उसे पाने की सीख देती है। इसलिए बड़ा लक्ष्य बनाइये, ज़रूर बनाइये लेकिन उसे पाने के लिए अपने अन्दर धैर्य रखिये, अपने गुरु की बात मानिए और योजनाबद्ध तरीके से उसे छोटे हिस्सों में बांटकर अंततः अपने उस बड़े लक्ष्य को हासिल करिए..!!
गुरु अमरदास जी
गुरु अमरदास सिक्खों के तीसरे गुरु थे। गुरु अमरदास 26 मार्च, 1552 से 1 सितम्बर, 1574 तक गुरु के पद पर आसीन रहे मध्यकालीन भारतीय समाज ‘सामंतवादी समाज’ होने के कारण अनेक सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था। उस समय जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या-हत्या, सती-प्रथा जैसी अनेक बुराइयां समाज में प्रचलित थीं। ये बुराइयां समाज के स्वस्थ विकास में अवरोध बनकर खड़ी थीं। ऐसे कठिन समय में गुरु अमरदास जी ने इन सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया। जाति-प्रथा एवं ऊंच-नीच को समाप्त करने के लिए गुरु जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त किया। उस जमाने में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार ‘पांतें’ लगा करती थीं, लेकिन गुरु जी ने सभी के लिए एक ही पंगत में बैठकर ‘लंगर छकना’ (भोजन करना) अनिवार्य कर दिया। कहते हैं कि जब मुगल बादशाह अकबर गुरु-दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब आया, तो उसने भी ‘संगत’ के साथ एक ही ‘पंगत’ में बैठकर लंगर छका। यही नहीं, छुआछूत को समाप्त करने के लिए गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में एक ‘सांझी बावली’ का निर्माण भी कराया। कोई भी मनुष्य बिना किसी भेदभाव के इसके जल का प्रयोग कर सकता था।


धर्मग्रंथ
– ठाकुर भारत चौहान
एक बूढ़ी माता मंदिर के सामने भीख माँगती थी। एक संत जी ने पूछा — आपका बेटा लायक है, फिर यहाँ क्यों ??
बूढ़ी माता बोली – बाबा, मेरे पति का देहांत हो गया है। मेरा पुत्र परदेस नौकरी के लिए चला गया, जाते समय मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया था, वे खर्च हो गये, इसीलिए भीख माँग रही हूँ।
संत ने पूछा — क्या तेरा बेटा तुझे कुछ नहीं भेजता ?
बूढ़ी माता बोली — मेरा बेटा हर महीने एक रंग-बिरंगा कागज़ भेजता है जिसे मैं दीवार पर चिपका देती हूँ। संत ने उसके घर जाकर देखा कि दीवार पर 60 बैंक ड्राफ्ट चिपका कर रखे थे, प्रत्येक ड्राफ्ट ₹50,000 राशि का था, पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी संपति है। संत ने उसे ड्राफ्ट का मूल्य समझाया |
हमारी स्थिति भी उस बूढ़ी माता की भाँति ही है। हमारे पास *धर्मग्रंथ* तो हैं पर माथे से लगा कर अपने घर में सुसज्जित कर के रखते हैं, जबकि हम उनका वास्तविक लाभ तभी उठा पाएगें जब हम उनका अध्ययन, चिंतन, मनन करके उन्हें अपने जीवन में उतारेगें । हम हमारे धर्मग्रंथों की वैज्ञानिकता को समझें, हमारे त्यौहारों की वैज्ञानिकता को समझें और अनुसरण करें |

पुदीने की पत्तियां से लाभ
गर्मियों में आसानी से मिलने वाला पुदीना खुशबू, स्वाद और ताजगी भरने के लिए जाना जाता है जो हमारे शरीर को अंदर और बाहर से ठंडा रखता है। इससे न केवल ताजगी मिलती है बल्कि सेहत और सौंदर्य को भी सुधारा जा सकता है। पुदीने की पत्तियों में कई ऐसे गुण होते हैं जो हैल्थ से जुड़ी कई प्रॉबल्म से राहत दिलाने के साथ-साथ चेहरे की चमक व रंगत को निखारने का काम करते है। आज हम आपको पुदीने के कुछ सेहत और सौंदर्य से जुड़े फायदे बताते हैं जिनको जानने के बाद आप भी पुदीने की अपनी डाइट व ब्यूटी रूटीन में शामिल कर लेंगे।
पुदीने के गुण – पुदीने में कैलोरी की मात्रा 6, फाइबर 1 ग्राम, विटामिन ए आरडीआई का 12%, आयरन 9%, मैंगनीज 8%, फोलेट 4% होता है। इसके अलावा पुदीना में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट व विटामिन A आंखों की रोशनी को बरकरार व नाइट विजन जैसी समस्याओ से छुटकारा दिलाता है। इसमें मिलने वाले एंटीऑक्सिडेंट और ऑक्सीडेटिव तनाव से दूर रखते हैं।
पाचन में सुधार – अगर आप पाचन ठीक नहीं होगा तो खाना पचाने में आपको दिक्कत होगी। इसलिए पुदीना पाचन शक्ति को दुरुस्त रखने में मदद करता है। अगर आप पेट खराब हो तो 1 कप पुदीने की चाय पीने से राहत मिलेगी। दरअसल, पुदीने की खुशबू मुंह में लार ग्रंथियों को सक्रिय करती हैं जो पाचन एंजाइम को निकालने का कार्य करती हैं।
वजन कंट्रोल – पुदीना अलग-अलग तरीके के पाचन एंजाइमों को प्रेरित करता है जो खाने में मौजूद
पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं, साथ ही वसा के रूप में एकत्रित चर्बी को इस्तेमाल करने योग्य
ऊर्जा में बदलते हैं। इसलिए पुदीने की चटनी या इसकी ड्रिंक पीने से वजन को कंट्रोल में किया जा सकता हैं।
सांस संबंधी रोग – पुदीने में फेफड़ों में जमा गंदगी को निकालने के गुण होते हैं, जिससे सांस संबंधी प्रॉबल्म्स अस्थमा कफ व खांसी भी नहीं होती। अस्थमा की प्रॉबल्म में पुदीने की पत्तियों को सुखाकर इसका चूर्ण बनाएं। अब 1 चम्मच चूर्ण को दिन में दो बार पानी के साथ जरूर खाएं।
अनियमित पीरियड्स – अनियमित पीरियड्स में भी पुदीने का सेवन करें। अगर आपको भी समय पर पीरियड्स नहीं आते तो ऐसे में पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार सेवन करें। इससे पीरियड्स से जुड़ी हर तरह की समस्या से राहत मिलेगी।
बीपी कंट्रोल – हाई और लो ब्लड प्रैशर को कंट्रोल में रखने के लिए भी पुदीना काफी मददगार है। अगर आप हाई बीपी के पेशेंट है तो बिना चीनी व नमक के पुदीने का रस पिएं, जोकि लो ब्लड प्रैशर में पुदीने की चटनी या रस में सेंधा नमक, काली मिर्च, किशमिश डालकर खाएं। इससे बीपी कंट्रोल में रहेगा।
लू से बचाएं – गर्मियों में लू लगना आम बात है जो काफी दिक्कत देती है। अगर आप लू से बचना चाहते हैं तो पुदीने और प्याज की चटनी बनाकर खाएं। नियमित इसकी चटनी के सेवन से लू लगने की आशंका कम होगी और उमस के मौसम में जी मचलाने की समस्या भी कम होगी।
आप चाहे तो 1 चम्मच सूखे पुदीने का चूर्ण और आधा चम्मच छोटी इलायची का पाउडर 1 गिलास पानी में उबालकर भी पी सकते हैं।
डिहाइड्रेशन से बचाव – अगर आप डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी से बचे रहना चाहते है तो पुदीना का सेवन करें। पुदीने में प्याज और नींबू का रस मिलाकर पीने से लाभ मिलेगा। अगर आप उल्टी,दस्त से परेशान है तो ऐसे में दिन में हर 2 घंटे बाद आधा कप पुदीने का रस पिएं। इससे जल्दी राहत मिलेगी।
पिंपल्स से छुटकारा – गर्मियों में पिंपल्स जैसी समस्या ज्यादा होती है। ऐसे में आप पुदीने का इस्तेमाल कर सकते है।
पुदीने की कुछ पत्तियों को पीसकर उनमें 2-3 बूंदे नींबू के रस की मिलाकर पिंपल्स से प्रभावित जगह पर लगाएं और कुछ देर के लिए छोड़ दें। फिर ठंडे पानी से चेहरा धोएं। लगातार कुछ दिनों तक ऐसा करने से पिंपल्स गायब हो जाएगा और चेहरे पर चमक आएगी।
ऑयली स्किन प्रॉबल्म – अगर आपकी स्किन ऑयली है तो पुदीने का फेशियल आपको हर स्किन प्रॉबल्म से बचाएंगा। इसको बनाने के लिए 2 टेबलस्पून ताजा पिसे पुदीने में 2 टेबलस्पून दही और 1 टेबलस्पून ओटमील मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार करें और 10 मिनट तक अपने चेहरे पर लगाएं। इसके बाद चेहरा धो लें।
मजबूत बाल – पुदीने का पानी एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जिससे बाल धोने से बालों से संबंधी कई दिक्कते
दूर होती हैं पुदीने के पानी से सिर धोएं और फिर सादे पानी से सिर धो लें, कुछ दिन लगातार ऐसा करने से बाल खूबसूरत व मजबूत होने लगेंगे। साथ ही इससे हेयर फॉल की समस्या भी दूर रहेगी।
झाइयों से राहत – पुदीने न केवल सेहत के लिए बल्कि एंटी-एजिंग या चेहरे पर मौजूद झाइयों को हटाने में मददगार होता है। पुदीने के रस को मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर चेहरे पर लगाने से झाइयां दूर होती है और चेहरा का ग्लो भी बढ़ता है। इसके अवाला पुदीने के पेस्ट में हल्दी मिलाकर लगाने से ब्लैकहेड्स भी निकल जाते हैं।
नोट – पोदीना के सेवन से बहुत से अन्य शारीरिक एवं मानसिक लाभ अन्य तरीके से मिलते हैं। अतः इसका उपयोग हर उम्र के लोगों करना चाहिए। आप बच्चों एवं वृद्ध लोगों को जरूर सेवन करायें। जिससे पेट बनने वाली गंदगी को रोकता है। साथ ही मल -मूत्र को साफ रखने में सहयोग करता है। जिससे शरीर में ताकत एवं ताजगी पैदा करता है।
बिपिन चंद्र पाल
उनके कार्यक्रम में स्वदेशी, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा शामिल थी। उन्होंने गरीबी और बेरोजगारी को मिटाने के लिए स्वदेशी के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का प्रचार किया और प्रोत्साहित किया। वे सामाजिक कुरीतियों को रूप से दूर करना चाहते थे और राष्ट्रीय आलोचना के माध्यम से राष्ट्रवाद की भावना जगाना चाहते थे।


कमाई
अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद मां का दर दर भटकना सुधा से देखा नहीं जा रहा था और फिर वह घर की सबसे बड़ी बेटी थी इसलिए उसने स्वयं अपने कंधों पर घर की मां और छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी उठाने का निर्णय लिया काफी कोशिशों के बाद आखिरकार उसे एक नौकरी मिल ही गई मगर ये उसके घर से काफी दूर थी जिसके लिए उसे पहले लोकल सवारी आटो जोकि शेयरिंग वाली होती है उसे लेकर बस अड्डे तक पहुंचना होगा और उसके बाद लगभग डेढ़ घंटे बस का सफर उसके बाद कंपनी में काम खैर परिवार की जिम्मेदारी उठानी ही थी तो वह खुशी खुशी मान गई ऐसे ही वह घर का बेटा बन गई यूं तो उसे नौकरी करते हुए दो महीने से ऊपर हो चले थे सबकुछ ठीक ही चल रहा था मगर आज दोपहर से जो बरसात शुरू हुई वह शाम को ड्यूटी खत्म होने तक भी नहीं रुकीं थी वह जैसे तैसे घर वापसी के लिए बस स्टैंड पहुंचीं मगर लगभग एक घंटा बीतने पर भी उसे बस नहीं मिल पाई कंधे पर अपना बैग लटकाएं हुए वह बस की इंतजार कर रही थी अब बरसात बंद हो गई चुकी थी आखिरकार बस भी आ ही गई बस में बहुत भीड़ थी महिलाएं कम पुरुष अधिक और उनकी नजरें जो उसके भीगे हुए कपड़ों घूरती सी प्रतीत हो रही थी घर देर से पहुंचना मतलब मां और छोटे भाई बहन का परेशान होना और उसपर महिलाओं के साथ घटने वाली घटनाओं के कारण वह स्वयं भी डरी हुई थी जैसे तैसे बस जाम से जूझते हुए डेढ़ घंटे की बजाय ढाई घंटे में बस अड्डे तक पहुंच ही गई मगर आज रोज साढ़े सात की जगह रात के नौ बज गए थे स्टैंड पर आटो भी नहीं था उसने वहां रुककर इंतजार करने की बजाय पैदल चलना ही उचित समझा ताकि वह घर पहुंच सके अभी वह करीब सौ मीटर ही चली होगी कि एक साइकिल रिक्शा उसकी तरफ आता दिखाई दिया
और वह रिक्शा उस के पास आकर रुक गया आशंकित मन से उसने रिक्शा वाले को देखा बूढ़ा बुजुर्ग.. सफेद बाल और लाल-लाल आंखें उस रिक्शा चालक को देखकर वह सोच ही रही थी कि उसमें बैठे या नहीं, तभी रिक्शा चालक बोल पडा बिटिया किस तरफ जाना है आओ बैठो
पता नहीं क्यों, उसकी बातों में अपनापन लगा और सुधा उस रिक्शा में बैठकर घर का रास्ता बताने लगी करीब आधे घंटे बाद रिक्शा उस के घर के सामने पहुंच गया संतोष भरी सांस लेते हुए सुधा पर्स में रुपये निकालने लगी कि रिक्शा वाला बोला …नहीं बिटिया पैसे नही लूंगा… मैं भी इसी तरफ रहता हूं जब से हमारा देश बहन-बेटियों की रूह कंपाने वाली घटनाओं से उबल रहा है… आखिरी सवारी के रूप में रोज ही किसी बहन या बेटी को सुरक्षित घर पहुंचा देता हूं ,मगर आप की मेहनत… मेरा मतलब ये तो आपकी रोजी रोटी कमाई का जरिया है तो फिर… हां बिटिया …. मगर मैं कमाता तो जरूर हूं सुधा ने हैरानी से रिक्शा वाले को देखते हुए पूछा क्या बाबा….
सुकून… कहकर वह रिक्शा वाला मुस्कुराते हुए वहां से चला गया और सुधा भींगी हुई पलकों को साफ करते हुए बुदबुदा उठी … बाबा ईश्वर आपकी कमाई में हमेशा बरकत बनाए रखें |
महाराष्ट्र दिवस
भारत देश जब स्वतंत्र हुआ था उस वक्त हमारे देश का नक्शा एक दम अलग हुआ करता था और भारत के कई सारे राज्य एक ही हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे इन राज्यों को भाषा और क्षेत्र के आधार पर बांटा जाने लगा और इस तरह से भारत के कई नए राज्यों का निर्माण किया गया. इस वक्त जिनकी अपनी अलग-अलग भाषा और वेशभूषाएं हैं. वहीं भारत के लगभग सारे राज्य हर साल अपने राज्य का स्थापना दिवस भी मनाते हैं और इसी तरह महाराष्ट्र में भी हर साल मई के महीने में स्थापना दिवस मनाया जाता है |


भविष्यवाणी
एक पंडितजी के घर में उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था। उनका नाम पंडित विष्णुदत्त शास्त्री था। पंडितजी ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने दाई से कह रखा था कि जैसे ही बालक का जन्म हो नींबू प्रसूतिकक्ष से बाहर लुढ़का देना। बालक जन्मा लेकिन बालक रोया नहीं तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी और पीठ को मला और अंततः बालक रोया। दाई ने नींबू बाहर लुढ़काया और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई। उधर पंडितजी ने गणना की तो उन्होंने पाया कि बालक की कुंडली में पितृहंता योग है अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों ही उनकी मृत्यु का योग है। पंडितजी शोक में डूब गए और अपने पुत्र को इस लांक्षन से बचाने के लिए बिना कुछ कहे बताए घर छोड़कर चले गए।
सोलह साल बीते।
बालक अपने पिता के विषय में पूछता लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सबकुछ बताकर चुप हो जाती क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था। अस्तु! पंडितजी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना।
उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई।
राजा ने डौंडी पिटवाई जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा उसे मुंहमांगा इनाम मिलेगा लेकिन गलत साबित हुई तो उसे मृत्युदंड मिलेगा। बालक ने गणना की और निकल पड़ा। लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।
“राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी।” वृद्ध ज्योतिषी ने कहा।
बालक ने अपनी गणना से मिलान किया और आगे आकर बोला,”महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा।”
राजा ने अनुमति दे दी। “राजन वर्षा आज ही होगी लेकिन चार बजे नहीं बल्कि चार बजे के कुछ पलों
के बाद होगी।” वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया और उन्होंने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली। “महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे और ओले पचास ग्राम के होंगे।” बालक ने फिर गणना की। “महाराज ओले गिरेंगे लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से अडतालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं होगा।” अब बात ठन चुकी थी। लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का इंतजार करने लगे। साढ़े तीन तक आसमान पर बादल का एक कतरा नहीं था लेकिन अगले बीस मिनिट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी। अंधेरा सा छा गया। बिजली कड़कने लगी लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद न गिरी। लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनिट हुये धरासार वर्षा होने लगी। वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया। आधे घण्टे की बारिश के बाद ओले गिरने शुरू हुए। राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये। कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला। शर्त के अनुसार सैनिकों ने वृद्ध ज्योतिषी को सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा। “महाराज, इन्हें छोड़ दिया जाये।” बालक ने कहा। राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को मुक्त कर दिया गया। “बजाय धन संपत्ति मांगने के तुम इस
अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो।”बालक ने सिर झुका लिया और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया तो उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। “क्योंकि ये सोलह साल पहले मुझे छोड़कर गये मेरे पिता श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं।” वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा। दोनों महल के बाहर चुपचाप आये लेकिन अंततः पिता का वात्सल्य छलक पड़ा और फफक कर रोते हुए बालक को गले लगा लिया। “आखिर तुझे कैसे पता लगा कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ।” “क्योंकि आप आज भी गणना तो सही करते हैं लेकिन कॉमन सेंस का प्रयोग नहीं करते।” बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा। “मतलब”? पिता हैरान था। “वर्षा का योग चार बजे का ही था लेकिन वर्षा की बूंदों को पृथ्वी की सतह तक आने में कुछ समय लगेगा कि नहीं?” “ओले पचास ग्राम के ही बने थे लेकिन धरती तक आते आते कुछ पिघलेंगे कि नहीं?” “और…” “दाई माँ बालक को जन्म लेते ही नींबू थोड़े फैंक देगी, उसे कुछ समय बालक को संभालने में लगेगा कि नहीं और उस समय में ग्रहसंयोग बदल भी तो सकते हैं और पितृहंता योग पितृरक्षक योग में भी तो बदल सकता है न?” पंडितजी के समक्ष जीवन भर की त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी और वह समझ गए कि केवल दो शब्दों के गुण के अभाव के कारण वह जीवन भर पीड़ित रहे और वह थे– सामान्य समझ ।


गूलर के औषधीय गुण
इंदु मित्तल
गूलर की लकड़ी पानी में बहुत टिकाऊ होती है। इसीलिए कुएँ की तलहटी में गोल चक्र बनाकर डालते हैं। इसी के ऊपर ईंट की गोल दीवार बनाते हैं। इसकी लकड़ी से नाव भी बनायी जाती है।गूलर के फलों में मैग्नीशियम की अच्छी मात्रा होती है।
गूलर
पीपल, बरगद, पाकड़, गूलर और आम ये पांच तरह के पेड़ धार्मिक रूप से बेहद महत्व रखते हैं क्योंकि ये अन्य पेड़ों की तुलना में अधिक ऑक्सीजन उत्सर्जन करते हैं। ये पेड़ मनुष्य के जीवन के लिये विभिन्न रूप से लाभकारी हैं। गूलर के पेड़ का महत्व पूजा-पाठ, शादी-विवाह और आयुर्वेद के लिये काफी मायने रखता है। शादी के दौरान गूलर के पेड़ की लकड़ियों और पत्तियों से विवाह के लिये मंडप तैयार किया जाता है। गूलर के पेड़ की लकड़ी से बने पाटे (पीढ़ा) पर बैठकर दूल्हा-दुल्हन की वैवाहिक रस्में संपन्न होती हैं। इनकी लकड़ियों को छोटे-छोटे टुकड़े कर हवन कुंड में डाले जाते हैं और फिर हवन की आहुति होती है। गूलर को संस्कृत में उदुम्बर, बांग्ला में हुमुर, मराठी में औदुंबर, गुजराती में उम्बरा, अरबी में जमीझ, फारसी में अंजीरे आदम कहते हैं।इस पर फूल नहीं आते।
इसकी शाखाओं में से फल उत्पन्न होते हैं। फल गोल-गोल अंजीर की तरह होते हैं और इसमें से सफेद-सफेद दूध निकलता है। इस पेड़ के फल भालू के पसंदीदा भोजन में से एक हैं, जिसे वे बड़े ही चाव के साथ खाते हैं। इस दुर्लभ पेड़ की पहचान थोड़ी मुश्किल है। लेकिन इसके फल से आप इसे आसानी से पहचान सकते हैं। इसके फलों को तोड़ने पर इसके अंदर छोटे-छोटे कीड़े निकलते हैं। इस
वृक्ष के फल, पत्ते, जड़ आदि से अनेक रोगों का इलाज होता है। गूलर का पेड़ औषधीय गुणों और पोषक तत्वों से भरपूर होता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। गूलर में फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो रोगों से लड़ने में हमारी मदद करते हैं। गूलर का उपयोग मांसपेशीय दर्द, मुंह के स्वस्थ्य में, फोड़े ठीक करने में, घाव भरने, बवासीर के इलाज आदि में किया जाता है।
गूलर में एंटी-डायबिटिक, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-अस्थमैटिक, एंटी-अल्सर, एंटी-डायरियल और एंटी-पायरेरिक गुण होते हैं। इसके फलों के रस का उपयोग कर हिचकी का इलाज किया जाता है।
गूलर के फलों और पत्तियों से निकाले गये रस में अल्सर को ठीक करने वाले गुण होते हैं। हृदय की अनियमित धड़कनों को नियंत्रित करने के लिये मैग्नीशियम बहुत ही लाभकारी होता है। अनियमित धड़कन मांसपेशीय तनाव और ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण हो सकती हैं। मैग्नीशियम की अच्छी मात्रा गूलर के फलों में मौजूद रहती है। जो इन सभी लक्षणों को दूर करने साथ-साथ आपके पाचन को भी ठीक रखता है। मैग्नीशियम का उचित मात्रा में सेवन कर आप ऐंठन, उल्टी, पेट दर्द, पेट फूलना और कब्ज जैसी समस्याओं को रोक सकते हैं।शरीर में मैग्नीशियम की कमी को पूरा करने के लिये विकल्प के रूप गूलर का उपयोग किया जाता है। रक्तशर्करा लिये आप गूलर के पेड़ की छाल का काढ़ा उपयोग कर सकते हैं। गूलर की छाल रक्त शर्करा को कम करने में फायदेमंद हो सकता है। हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये कॉपर आवश्यक होता है। कॉपर हमें संक्रमण से लड़ने की शक्ति देता है साथ ही यह घावों के उपचार में भी मदद करता है। गूलर के वृक्ष में कॉपर अच्छी मात्रा में होता है जो एनिमिया से बचाने में हमारी मदद करता है। गूलर की लकड़ी पानी में बहुत टिकाऊ होती है, इसलिए कुएँ की तलहटी में गोल चक़्र बनाकर डालते हैं। इसी के ऊपर ईंट की गोल दीवार बनाते हैं। इसकी लकड़ी से नाव भी बनाई जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस हर साल भारत में विभिन्न परिवारों के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने और परिवारों के महत्व को स्वीकार करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन देश के विभिन्न संगठनों द्वारा मनाया जाता है। जहां संगठन के सदस्य और साथ ही उनके परिवार के सदस्य अलग-अलग कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।


अंकशास्त्र की मदद से जाने जीवन से जुड़े शुभ या अशुभ समय को
अंक ज्योतिष से जानें आखिर आपके जीवन का कौन सा साल होगा बेहद शुभ जिस तरह वैदिक ज्योतिष में नवग्रहों और नक्षत्रों आदि से किसी के भविष्य को जाना जा सकता है, कुछ वैसे ही अंकशास्त्र की मदद से आप अपने जीवन से जुड़े शुभ या अशुभ समय को जान सकते हैं. अंक ज्योतिष के अनुसार आपके लिए कौन सा वर्ष शुभ वर्ष साबित हो सकता है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं।
1 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 1, 10, 19, 28 तारीख को हुआ है, वे 01 मूलांक वाले होते हैं. मूलांक 1 का स्वामी सूर्य होता है. जिसे वैदिक ज्योतिष में ग्रहों का राजा माना गया है. मान्यता है कि मूलांक एक वालों के जीवन में 1, 10, 19, 28 अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित होती है. इसी तरह मूलांक एक वालों को जीवन के 37वें, 46वें, 55वें, 64वें और 73वें सर्वाधिक शुभता और प्रगति लिये होता है।
2 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 02, 11, 20, 29 को हुआ होता है, उनका मूलांक दो होता है. अंक शास्त्र के अनुसार मूलांक 02 वाले जातक काफी क्रिएटिव होते हैं. इनके लिए जीवन का 2, 11, 20, 29, 38, 47, 56, 65, 74, 83 वाँ वर्ष अत्यन्त ही शुभ और सफलता देने वाला साबित होता है।
3 अंक शास्त्र के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 3, 12, 21, 30 तारीख को हुआ
होता है उनका मूलांक तीन होता है. अंक ज्योतिष के अनुसार मूलांक तीन वालों के जीवन का 3, 12, 21, 30, 39, 48, 57, 66, 75वां वर्ष शुभ फलों को प्रदान करने वाला और सफलतादायक साबित होता है।
4 अंक ज्योतिष के अनुसार किसी भी महीने की 4, 13, 22, 31 तारीख को जन्में लोगों का मूलांक चार होता है. मूलांक चार से जुड़े लोग काफी शौकीन होते हैं. अंक ज्योतिष के अनुसार मूलांक चार से जुड़े लोगों के लिए 4, 13, 22, 31, 40, 49, 58, 67, 76वाँ वर्ष अत्यंत ही शुभ और लकी साबित होता है।
5 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 5, 14, 23 तारीख को हुआ होता है, उनका मूलांक पांच होता है. मूलांक 05 अच्छे वक्ता और समझदार होते हैं. अपने कार्य को बहुत सोच-समझकर करते हैं. अंक ज्योतिष के अनुसार मूलांक पांच वालों के जीवन का 5, 14, 23, 32, 41, 50, 59, 68 व 77वां वर्ष अत्यंत ही शुभ साबित होता है।
6 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 6, 15, 24 तारीख को हुआ होता है, उनका मूलांक छह होता है. मूलांक 06 का संबंध शुक्र ग्रह से होता है. अंकों की दुनिया में मूलांक 06 से जुड़े लोग बेहद आकर्षक होते हैं. मूलांक छह वालों के जीवन का 6, 15, 24, 33, 42, 51, 69, 78वां वर्ष अत्यंत शुभ और सफलता लिये होता है।
7 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी महीने की 7, 16 एवं 25 तारीख को हुआ होता है, उनका मूलांक सात होता है. मूलांक 07 से जुड़े लोग बहुत ही सुलझे हुए होते हैं. इनके जीवन का 7, 16, 25, 34, 43, 52, 61, 70वां वर्ष अत्यंत ही शुभ एवं सफलतादायक होता है।
8 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोंगों का जन्म किसी भी माह की 8, 17, 26 तारीख को हुआ होता है, उनका मूलांक छह होता है. मूलांक 08 से जुड़े लोगों को अपने जीवन में सफलता थोड़े से संघर्ष के बाद मिलती है, लेकिन मिलती जरूर है. मूलांक आठ वालों के जीवन का 17, 26, 35, 44, 53, 62, 71 एवं 80वां वर्ष अत्यंत ही शुभ साबित होता है।
9 अंक ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 9, 18, 27 तारीख को हुआ होता है, उनका मूलांक 09 होता है. मूलांक 09 से जुड़े लोग मंगल ग्रह से प्रभावित होते हैं. मूलांक 09 पूर्णांक माना जाता है और ऐसे लोगों के जीवन का 9, 18, 36, 45, 54, 63, 72 एवं 81वां वर्ष अत्यंत ही शुभ और समृद्धिदायक माना जाता है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो।

हार्ट अटैक
हमारे देश भारत में 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे | उनका नाम था महाऋषि वागभट्ट जी उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम और इस पुस्तक में उन्होंने बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखें थे ! यह उनमें से ही एक सूत्र है | वागवट जी लिखते हैं कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रक्त (blood) में , acidity (अम्लता ) बढ़ी हुई है ! अम्लता आप समझते हैं ! जिसको अँग्रेजी में कहते हैं acidity अम्लता दो तरह की होती है ! एक होती है पेट की अम्लता ! और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता | आपके पेट में अम्लता जब बढ़ती है ! तो आप कहेंगे पेट में जलन सी हो रही है | खट्टी खट्टी डकार आ रही हैं ! मुंह से पानी निकल रहा है ! और अगर ये अम्लता (acidity) और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्त अम्लता (blood acidity) होती है | और जब blood में acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त (blood) दिल की नलियों में से निकल नहीं पाती ! और नलियों में blockage कर देता है ! तभी heart attack होता है !! इसके बिना heart attack नहीं होता !
और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं !
क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है |
इलाज क्या है ?
वागवट जी लिखते हैं कि जब रक्त (blood) में अम्लता (acidity) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो क्षारीय हैं !
आप जानते हैं दो तरह की चीजें होती हैं |
अम्लीय और क्षारीय | acidic and alkaline अब अम्ल और क्षार को मिला दो तो क्या होता है ! acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है neutral होता है सब जानते हैं | तो वागवट जी लिखते हैं ! कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय (alkaline) चीजें खाओ ! तो रक्त की अम्लता (acidity) neutral हो जाएगी | और रक्त में अम्लता neutral हो गई ! तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं | ये है सारी कहानी | अब आप पूछेंगे कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जो क्षारीय हैं और हम खायें ? आपके रसोई घर में ऐसी बहुत सी चीजें है जो क्षारीय हैं ! जिन्हें आप खायें तो कभी heart attack न आए ! और अगर आ गया है ! तो दुबारा न आए | यह हम सब जानते हैं कि सबसे ज्यादा क्षारीय चीज क्या हैं और सब घर मे आसानी से उपलब्ध रहती हैं, तो वह है लौकी | जिसे दुधी भी कहते हैं | English में इसे कहते हैं bottle gourd | जिसे आप सब्जी के रूप में खाते हैं ! इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लौकी का रस निकाल-निकाल कर पियो या कच्ची लौकी खायो | वागवट जी कहते हैं रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है | तो आप लौकी के रस का सेवन करें | कितना सेवन करें – रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो कब पिये सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते हैं ! या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं | इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय बना सकते हैं ! इसमें 7 से 10 पत्ते तुलसी के डाल लो तुलसी बहुत क्षारीय है | इसके साथ आप पुदीने के 7 से 10 पत्ते मिला सकते हैं ! पुदीना भी बहुत क्षारीय है | इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले | ये भी बहुत क्षारीय है | लेकिन याद रखें नमक काला या सेंधा ही डाले ! वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले ! ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है ! 2 से 3 महीने की अवधि में आपकी सारी heart की blockage को ठीक कर देगा ! 21 वें दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा ! कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी ! घर में ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा !