धर्म रक्षक कमलादेवी हजारिका
आसाम में एक ईसाई धर्म प्रचारक भेजे गए थे, नाम था फादर क्रूज। इन्हें असम के एक प्रभावशाली परिवार के लड़के को घर आकर अंग्रेजी पढ़ाने का अवसर मिला। पादरी साहब धीरे-धीरे घर का निरीक्षण करने लगे। उन्हें पता चल गया कि बच्चे की दादी इस घर में सबसे प्रभाव वाली हैं। इसलिए उनको यदि ईसा की शिक्षाओं के जाल में फँसाया जाए तो उनके माध्यम से पूरा परिवार और फिर पूरा गाँव ईसाई बनाया जा सकता है। पादरी साहब दादी माँ को बताने लगे कि कैसे ईसा कोढ़ी का कोढ़ ठीक कर देते थे, कैसे वो नेत्रहीनों को नेत्र ज्योति देते थे, आदि-आदि… दादी ने कहा बेटा, हमारे ”राम_कृष्ण” के चमत्कारों के आगे तो कुछ भी नहीं ये सब ! तुमने सुना है कि हमारे राम ने एक पत्थर का स्पर्श किया तो वो जीवित स्त्री में बदल गई। राम जी के नाम के प्रभाव से पत्थर भी तैर जाता था पानी में, आज भी तैर रहे हैं, पादरी साहब खामोश हो जाते। पर अपने कुत्सित प्रयास जारी रखते।
एक दिन पादरी साहब चर्च से केक लेकर आ गए और दादी को खाने को दिया।
पादरी साहब को विश्वास था कि दादी न खायेंगी, पर उसकी आशा के विपरीत दादी ने केक लिया और खा गई। पादरी साहब आँखों में गर्वोक्त उन्माद भरे अट्टहास कर उठे, माताजी ! तुमने चर्च का प्रसाद खा लिया, अब तुम ईसाई हो । दादी ने पादरी साहब के कान खींचते हुए कहा,वाह रे गधे ! मुझे एक दिन केक खिलाया तो मैं ईसाई हो गई। और मैं प्रतिदिन तुमको अपने घर का खिलाती हूँ, तो तू हिन्दू कैसे नहीं हुआ रे नमक हराम ? तू तो प्रतिदिन सनातन धर्म की इस आदि भूमि का वायु, जल लेता है फिर तो तेरा रोम-रोम हिन्दू बन जाना चाहिए। अपने स्वधर्म और राष्ट्र को पथभ्रष्ट होने और गलत दिशा में जाने से बचाने वाली ये दादी माँ थी आसाम की सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी कमलादेवी हजारिका कौन जानता है इनको असम से बाहर ? हमारा कर्तव्य है कि सारा देश इनके बारे में जानें…