आत्म-अनभिज्ञता महापाप

आत्म-अनभिज्ञता महापाप

  सुमित कुमार,नोएडा

अंधेरा तभी तक है जब तक प्रकाश का दरवाजा हमने ठीक से खटखटाया नहीं। मन का कमजोर रहना तभी तक स्वीकारा जा सकता है जब तक प्रेरणा का स्फुरण सारे व्यक्तित्व में हुआ नहीं। एक बार यदि अपने जीव होने का भाव तिरोधान हुआ नहीं, और वास्तविक संपदा का अस्तित्व मुखरित नहीं हो गया तो व्यक्ति का जीवन कायाकल्प के अग्निपिंड में पूर्ण रूप से प्रज्वलित नहीं हो सकता है। हमें बनना क्या है? यह प्रश्न करने-कराने के प्रश्न से लाख गुना बड़ा है। बनने में शोभा है, सात्विकता है, और अपनी अनुचित कामनाओं का प्रदर्शन तो बिल्कुल भी नहीं है। एक बार मर्यादा स्थापित हो जाए कि ये हमारा व्यक्तित्व है, इससे पीछे तो हम हटेंगे नहीं, फिर चाहे लाख बाधाएं आएं। यदि मन परिस्थितियों के आतंक से भयभीत नहीं होता तो स्वयमेव उसे पथ दिख जाता है अपनी आंतरिक उत्कृष्टता के प्रदर्शन का। निराशा के बादल तभी छाते हैं जब अंधकार को प्रकाश में बदला नहीं गया। प्रेरणा सत्य की असत्य में जा मिले, चिंतन किसी प्रकार धुंधला एवं अपरिपक्व ही दिखाई पड़े, मन का सारा खेल एक आंतरिक दृष्टिकोण के अभाव में जड़ता का, एक दिशाहीनता का पर्याय दिख पड़े, तो समझना चाहिए कि मनुष्य ने अपने आप को बनाने में अभी पूर्ण रूप से महारथ नहीं हासिल की है। आप विराट हो, जिस दिन से इस बात को अपने अंतःस्थल में केंद्रित कर दोगे, उस दिन से देखोगे सारे दोष एवं सारे अहंजन्य विकार स्वत: नष्ट होते जा रहे हैं। दुख एवं परेशानी तो स्वभाव के, आदर्श अनुकूल चिंतनक्रम के पतित स्थिति में पड़े रहने में है। यदि उसे उठाया जा सके, मन का मर्दन कर सभी कुप्रभावों को मिटाया जा सके, तो स्वयमेव दिखने लगेगा कि कितना साहस एवं कितनी प्रेरणा आपके भीतर से उठती है। हमारे दुखों का कारण हम ही हैं और हम ही हैं जो उन्हें पूर्ण शांत कर, एकता का, महामनत्व का एवं समग्र विचारशीलता का पथ प्रशस्त कर सकते हैं। चेतना का यदि पूर्ण परिष्कार हो जाए तो इस मानव अस्तित्व की किसी भी परेशानी से मनुष्य का अंतःकरण कलंकित नहीं हो सकता। जिसे साधारण चर्म चक्षुओं से नहीं देखा जा सके, उसे ही सत्य की आवाज या मनुष्य के अंतःकरण की सर्वोच्च प्रेरणा कहा जा सकता है। हमें इस सत्य को प्रश्रय देना चाहिए, शेष बातों को इस संसार की धूलि या कहें आवरण प्रदत्त अवस्था स्वीकारना चाहिए। जहां सत्य और उसपे चढ़े आवरण का भली भांति पता लग जाएगा, तो स्वयमेव विशुद्धता पनपने लगेगी, अंदर का साहस उमड़ पड़ेगा, चेतना जाग जाएगी और वह सब कर पाएगी जिसे करने उसे भेजा गया है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *