वट सावित्री व्रत कथा
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन आने वाले सावित्री व्रत की कथा में निम्न प्रकार से है-भद्र देश के एक राजा थे नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नही थी। वे संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोचारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुत सम्बद्ध मंत्र से हवन करते थे । काफी सालों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर कहा कि: राजन आपके यहा एक सुन्दर व सुशील कन्या का जन्म होगा। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
कन्या बड़ी बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयंवर खोज के लिए भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हो तुम? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक साल बाद ही उसकी मौत हो जाएगी। ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। आपको और किसी को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि पिता जी आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
सावित्री अपने सुसुराल मे ही रहकर सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय गुजरता गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बताया था। जैसे-जैसे वक्त करीब आना शुर हुआ सावित्री अधीर होने लगी। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया गया। हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी वन मे लकड़ी काटने गया साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान काठ काटने के लिए एक पेड़ चढ़ गया। तभी लगा कि उसके सिर में तेज दर्द हो रहा है, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गया। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपनी गोद में पति के सिर को रखकर उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री के सामने कई यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलती हैं।
उन्हें देखकर यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! धरती तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मैं उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सून कर यमराज प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और कहा- मैं तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए आंख की स्थिति जताई, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के द्वारा सौ पुत्रों की मां बनने का वरमांगा। सावित्री क द्वारा वर सुनने के बाद यमराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौटें। जहां सत्यवान मरा पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित संबंध बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके सुसुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।
उसी समय से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट व्रत का पूजन-अर्चन करने का विधान है। यह व्रत करने से स्वरवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका स्वरभक्ति अखंड रहता है। सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार :- यह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। उसी प्रकार महिलाओं को अपना गुरु केवल पति को ही मानना चाहिए। गुरु दीक्षा के चक्र में इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए। वट सावित्रि व्रत में वट यानि बरगद के वृक्ष के साथ-साथ सत्यवान-सावित्री और यमराज की पूजा की जाती है। माना जाता है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव वास करते हैं। अतः वट वृक्ष के समक्ष बैठकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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