राम वही जो हर जीव में रमता है।
-सुमित कुमार, नोएडा
राम जिस चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसके संग होके फिर संसार में व्यक्ति दो ही स्थितियों को प्राप्त होता है। एक तो वह निस्पृह भाव को स्वीकार करता है, यानि बिना किसी अवरोध के चाल-गमन, दूसरा वह इंद्रियों को अपने एकाधिकार में रख, केवल राम के निमित्त कर्म करने की योजना बनाता है। राम ही उसके सुख का सेतु हैं। राम के बगैर इस संसार की कोई भी वस्तु उसे प्रिय नहीं लगती। और राम जहां हो, वहां पर हर वस्तु का महत्व कुछ और ही हो जाता है।
राम यानि शुद्ध चेतना, नाम से ही प्रकट हो रहा है कि कितनी बड़ी चीज की बात हो रही है, राम वो जो आपको पूर्ण शांत कर दे, राम हर दिल के साथी, जब अपना संबंध एकमात्र राम से है तो क्यों न ऐसा कर लेते हैं कि उन्हीं से पूछ लिया करें कि क्या करना या क्या नहीं? क्योंकि राम से अच्छा उत्तर इसका कोई नहीं दे सकता है, राम के जितनी शक्ति भी यहां किसी में नहीं क्योंकि राम निर्विकार हैं, समूचे विश्व के आधार हैं, जड़-चेतन सभी पदार्थ उनके ही निमित्त प्रयोजनीय है। राम बाधाओं को नहीं देखते, वे अवसर तलाशते हैं, राम में रमी हुई चेतना स्वयं को पूर्ण परिपक्व एवं इस संसार से परित्यक्त स्वीकारती है, राम विषय-भोगों की लालसा नहीं, राम कोई चमत्कृत कर देने वाला स्वप्न नहीं, राम स्वयं परमात्मा हैं। एक अखंड, बुलंद आवाज जिसके उच्चारण में समूची सृष्टि कांप उठे, धरती बादल सब हिल डुल कर उसका परिचय हमें देवें, कौन है राम से विलग, राम किसके नहीं। अनादि नियंता, शुद्ध, अखंड, आनंदस्वरूप, अविनाशी ऐसे हैं राम। अद्वितीय, अप्राप्य, विशुद्ध, सदा स्थित राम इस संसार की लीला के परम दृष्टा हैं। राम हैं वो जो न कभी मिटाया जा सकता है, न जिसकी प्रतिछाप पड़ती, जो स्वयं में संपूर्ण है, जिससे प्रेरित हर प्राणी की वाणी है। राम हैं विशुद्ध तत्व।
इस आधार पर हमारे धार्मिक चरित्र के राम भी उतने ही प्रासंगिक हैं क्योंकि उनका व्यक्तित्व भी उतना ही विराट है जितना विराट ब्रह्म की चेतना, जितना शून्याकाश में मधुर वाणी का गुंजन, जितनी प्रिय किसी भोले बालक की चेहरे की चमक, राम हैं सर्वव्यापी, अखंड अमृत, अतात्विक वस्तु, अप्राप्य से भी अतिदुर्लभ अचिंत्य वस्तु। राम हैं सर्वव्यापी ईश्वर, प्रत्येक जीव की चेतना के सुआधार, प्राणों के जन्मदाता, सृष्टि की प्रत्येक क्रियाविधि के निर्माता। राम जड़ से परे चेतन का स्वरूप है, राम आत्मतत्व का ही दूसरा नाम है।
प्रभु श्रीराम से हमारा संबंध….
प्रश्न अटपटा है, प्रश्नकर्ता की यह अभिलाषा है कि सब मिल कर इसे उजागर करें। यह हम सभी जानते हैं कि राम के देश में आज अराजकता, अनैतिकता और अंध:चलन के विभिन्न दृश्य दिखाई पड़ते हैं, राम की आत्मा का यहां अनुकरण एवं प्रेरणा भाव नहीं दिखाई देता, परंतु फिर भी इस संभावना को कोई भी जागृत मनुष्य नहीं झुठला सकता कि राम जैसे चरित्र को भारत अपने हृदय में न धारण करे। पीढ़ियों से राम हमारी श्रद्धा के पात्र रहे हैं, ऐसा क्या है राम में, एक साधारण मनुष्य जैसे ही जन्में परंतु राम की चेतना में ऐसी विशिष्टता थी कि उसने उन्हें साधारण से कहीं ऊपर एक महामानव में परिवर्तित कर दिया। राम नीति के प्रवर्धक रहे हैं, धर्म-दर्शन की वह प्रेरणा है, परंतु क्या राम सच मुच ऐसे हैं जिनका चरित्र लाखों वर्षों तक, मनुष्यता की प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। उत्तर मिलता है निश्चित ही हां, वे ऐसे हैं और क्योंकि वे ऐसे हैं इसलिए उन्हें भारत की जनता ही क्या, सारा विश्व नमन करता है, और उनकी पताका को फहराने हर धर्म-संस्कृति का इच्छुक उन्मुख हो पड़ता है। राम के जीवन पर दृष्टि डालें तो दिखेगा कि कितनी कठिनाई उन्होंने झेली, मात्र एक मर्यादा की रक्षा के लिए। राम ने निज-हित की चिंता नहीं की, वे तो उस परमात्मा की दिव्य आवाज के प्रतिनिधि थे, जिसे सुनने प्रत्येक युग में मनुष्य की तंद्रा जाग उठती है, राम कोई नैतिक विधान नहीं बताते, वे तो स्वयं चरित्र से सीख दे, सबको अपने पाले में लेना जानते हैं। राम ने इस भारत को गौरवान्वित किया है, उन्हें पढ़ कर एवं समझने के उपरांत इतना ही समझ में आता है कि इस संसार में राम जैसी कोई चेतना ही नहीं। मनुष्य के विकास की सर्वोच्च संभावना को कृष्ण कहा है, परंतु राम अपने आप में निराले हैं, क्योंकि वे इस समाज से जुड़े हैं, जन-आस्था के पदचिन्ह हैं, तथा उन्हें आम भारतीय आसानी से स्वीकार लेता है, इसलिए राम का स्थान अद्वितीय है। राम ने यहां जन्म लेकर यह बताया है कि यह भूमि त्याग, तपस्या और बलिदान की जन्मदात्री है, इसे महापुरुषों के संग एवं दैवीय चरित्र से नित्य स्नान करने शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। आज राम की चर्चा सुनाई देती है, पर क्या अंतःवासी राम को भी हम उसी श्रद्धा एवं परिपूर्ण भाव से सुन पाते हैं, राम किस चेतना के अधिकारी हैं। इसे यदि समझ लिया जाए तो फिर राम विषयक धारणा पूर्ण परिपक्व हो जाती है। राम है दासता से मुक्ति के प्रतीक, राम वो हैं तो प्रत्येक जीव में उसकी चेतना के रूप में समाए हुए हैं, राम घट-घट वासी, राम मेरे भी आपके भी, हम सब के परंतु क्या राम अपना वास्तविक चरित्र हमारे रंग-रूप में प्राप्त कर सके, क्या राम मात्र एक मर्यादा हैं, या राम सकल विश्व की वह चेतना जिसे प्रत्येक मानव देह में अवतरित हो उसके दिव्य कायाकल्प की दिशा में बढ़ना है। राम ईश्वर हैं, कौन राम से विरक्ति धारण करेगा, परंतु इन राम को समझा किसने हैं। राम एक ऐतिहासिक चरित्र बन कर रह गए, उन्हें कथा-कहानियों में जगह तो मिली, पर क्या वे हमारे हृदय में भी समा सके, क्या जिन राम की हम बात करते हैं, वे हमारे चरित्र में उतर कर, हमें भी वैसा ही महान बना सके।
राम का यशगान तो सदा से होता रहा है, आगे भी होता रहेगा परंतु राम को अपने हृदय का अनादि संगीत बना, उस रामत्व से अन्यों को जोड़, सबके सर्वमंगल की दिशाधारा अपना हम राम के वास्तविक सेवक नहीं बनते, क्या राम मात्र एक प्रतिमा है या भारत की अमर आत्मा का जीवंत चरित्र। उस राम से प्रेरणा प्राप्त कर हर युग में चमत्कारिक परिवर्तन हुए हैं, राम ने अपने दिव्य सत्संग से लोगों को निखारा है, पर क्या राम हमारी आत्मा के, हमारे विचारों एवं मूल्यों के प्रतिनिधि बन सके। राम के जैसा दूसरा कोई चरित्र नहीं, राम ही मनुष्य की सर्वोच्च आकांक्षा है, इन राम ने जिनके भी जीवन में प्रवेश किया है, वे धन्य हो गए, राम को अपनाकर दुख-ताप-अंधकार कुछ भी न रहा, फिर राम से मोह-त्याग किस बात का, जिन राम ने जीवन-मूल्यों की फसल करना सिखाया, जिन्होंने मनुष्य के विकास का प्रकट स्वरूप दिखाया, उन राम को भूल आज यदि भारत की जनता एवं इसके जनप्रतिनिधि अपने ही क्रियाकलाप में व्यस्त रहें, तथा राम के चरित्र को अपने में धारण कर, नीति-निर्धारण न करें, तो राम की चेतना कैसे उन लाखों-करोड़ों व्यक्तियों में दिखाई देगी, जिन्हें राम का पुनीत कर्तव्य सौंपा गया है। हमें राम को एक ऐसे चरित्र के रूप में अपनाना चाहिए, जो सच में मानवता के उस विशाल परिकर का प्रतिनिधित्व करे, जिसे हम जगाना एवं संवारना चाहते हैं। राम की चेतना अद्भुत है, इसमें कोई संदेह नहीं, उनके जैसा विशाल हृदय, उनकी दिव्य भावना, कलुशरहित चिंतन तथा सर्वांगीण रूप से चेतना को ऊर्ध्वगति देने की प्रणाली, यह सभी राम की विशेषताएं हैं, परंतु क्या राम रूप जीवन-अमृत को हम धारण कर पाए, क्या वर्तमान संदर्भ में भारत उतना उजागर एवं पुनर्जीवित हो सका है, जिसकी आकांक्षा सदियों से भूदेवता कर रहे हैं। क्यों नहीं उसे वह स्थान दिया गया, जो सच में प्रत्येक भारतवासी की पीड़ा है, चेतना का उन्मुखीकरण, क्या इसके प्रयास हुए, भारत स्वतंत्र हो गया पर आज भी इसका सुनियोजित ढ़ाँचा अध्यात्म के परिप्रेक्ष्य में, जीवन-मूल्यों के निस्तारण में, मनोभूमि की परिष्कृति एवं जीवन के निर्माण में न हो सका, राम वही है जो प्रत्येक हृदय में बसे हुए हैं, परंतु उनको उजागर करने का ध्येय-चिंतन विरलों में ही पाया जाता है। ऐसा क्यों, कहां गई हमारी आत्मीयता, कहां गया वह स्वप्न भारत को उज्ज्वल एवं अपने प्राचीन वैभव की पुनरावृत्ति करने का, महापुरुषों का यशगान तो खूब हुआ, पर भारत सोया रह गया। हे! राम अब तुमसे ही आशा है कि तुम इस धरती पर पुनर्जीवित हो सको, सबको सुमंगल की दिशा में, चेतना के केंद्रीकरण एवं विशालता में मानव-उत्कर्ष की प्राधानता में जी उठो। हे! राम जिस भूमि पर तुमने जन्म लिया, वह तुम्हारे ऋण से मुक्त न हो पायेगी पर तुम कहां हो, ये लोग जो तुम्हें पूजते हैं भीतर से तुमसे दूर जाया करते हैं, तुम सबके हृदय में हो तो दिखो न उजागर
होके, यह मेरी प्रार्थना है और यह हर भारतवासी की प्रार्थना बने कि राम हमारे हृदय का गुंजन ही नहीं, हमारे कार्यों की रूपरेखा एवं सुदूर भविष्य का उज्ज्वल चरित्र बने।