आँमला नौमी
सतीश शर्मा
आंमला नौमी वाले दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करते हैं । जल, मोली, रोली, चावल,गुड़, सुहाली, पतारा, आंवला, एक ब्लाऊज ओर दक्षिणा चढ़ाएं । दीया और धूप जलाकर एक सौ आठ फेरे दें। कहानी कहें। ब्राह्मण ब्राह्माणी का ब्लाऊज देकर जिमायें, धोती दक्षिणा दें। भोजन में आंवले का होना जरूरी है और स्वयं भी भोजन करें। आपकी इच्छा हो तो दक्षिणा, गहना डालकर लाल कपड़े में बांधकर ब्राह्मण को दें।
आँमला नौमी की कहानी
एक आँवलिया राजा था जो रोज एक मन सोने के आंवले दान करता था और बाद में भोजन करते थे । एक दिन उसके बेटों बहुओं ने देखा कि रोज इतने आवंले का दान करेंगे तो सारा धन खत्म हो जाएगा इसलिए इनका दान बन्द कर देना चाहिए। एक पुत्र आया और राजा से बोला कि आप तो सारा धन लुटा देंगे। इसलिए आप आवंले का दान करना बंद कर दीजिए। तब राजा और रानी उजाड़ में जाकर बैठ गए और वह आंवलों का दान नहीं कर सके, इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। तब भगवान ने सोचा कि अगर हमने इनका सत्त नहीं रखा तो दुनिया में हमें कोई नहीं मानेगा। तब भगवान ने सपने में कहा कि तुम उठो और तुम्हारे पहले जैसी रसोई हो गई है और आवंले का वृक्ष लगा हुआ है। तुम दान करो और खाना खा लो। तब राजा रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसा राज पाट हो गया है और सोने के आवंले वृक्ष पर फैले हुए हैं। तब राजा रानी सवा मन आंवले का दान करने लगे। उधर बहू बेटे से धर्म अन्नदाता का बैर पड़ गया। आसपास के लोगों ने कहा कि जंगल में एक आंवलिया राजा है सो तुम वहां चले जाओ तो तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा।
वे दोनों वहां पहुंच गए। वहां पर रानी अपने बेटे और बहु को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इन लोगों से काम तो कम करायेंगे और मजदूरी ज्यादा देंगे। एक दिन रानी ने अपनी बहू को बुलाकर कहा कि मेरा सिर धोकर नहला दे। बहू सिर धोने लगी तो बहू की आंख में से पानी निकलकर रानी की पीठ पर पड़ा। तब रानी बोली कि मेरी पीठ पर आसू क्यों गिरे हैं, मुझे बताओ। तो बहू बोली कि मेरी भी सासु की पीठ पर ऐसा ही मस्सा था और हमने उसे घर से बाहर निकाल दिया। वह एक मन आवंला का दान करते थे तो हमने उन्हें भगा दिया। तब सासू बोली-हम ही तुम्हारे सास ससुर हैं। तुमने हमें निकाल दिया था परन्तु भगवान ने हमारा सम्मान रखा है। हे भगवान! जैसा राजा रानी का मान रखा वैसा सबका रखना। कहते सुनते सारे परिवार का थ्यान रखना। इस कहानी के बाद विन्दायक जी की कहानी जरूर सुनें।
विन्दायक जी की कहानी
एक छोटा सा लड़का अपने घर से लड़कर निकल गया और बोला कि आज तो मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊंगा। तब लड़का चलते – चलते उजाड़ में चला गया तो बिन्दायक जी ने सोचा कि मेरे नाम से ही इसने घर छोड़ा है इसलिए इसे घर भेजें, नहीं तो जंगल में शेर वगैरा खा जायेगें। फिर बिन्दायक जी बूढ़े ब्राहाण का भेष धरकर आये और बोले कि तू कहा से आ रहा है और कहा जा रहा है? तब वह बोला कि मैं बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूं। तब वह बोले कि मैं बिन्दायकजी हूं. मांग तू क्या मांगता है। परन्तु एक बार ही मांगियों। वह लड़का बोला कि क्या मांगू, बाप की कमाई, हाथी की सवारी, दाल भात मुटठी परासें, ढोकता मुटठी भर कर डोल, स्त्री ऐसी हो जैसे फूल गुलाब का। तो बिन्दायक जी बोले कि लड़के तूने सब कुछ मांग लिया। जा, तेरा ऐसा हो जाएगा।
फिर वह लड़का घर आया तो देखा एक छोटी बीनणी चौकी पर बैठी है और घर में बहुत धन हो गया तब वह लड़का अपनी मां से बोला कि देख मां, मैं कितना धन लाया हूं। विन्दायक जी से मांगकर लाया हूं। हे विन्दायक जी महाराज। जैसा उस लड़के को धन दिया वैसा सबको देना। कहते सुनते अपने परिवार को धन देना।
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