भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा विविधतापूर्ण सामाजिक परिवेश और लोक आस्था का प्रतीक है –  कुम्भ मेला 

भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा विविधतापूर्ण सामाजिक परिवेश और लोक आस्था का प्रतीक है –  कुम्भ मेला 

सतीश शर्मा 

कुंभ मेले का इतिहास इतिहास लिखने की परंपरा से भी बहुत पुराना है, कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महापर्व है | यह एक ऐसा सम्पूर्ण धार्मिक आयोजन है जिसमें खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं, और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का समावेश होता है | यह मेला अनादिकाल से लग रहा है व सामाजिक समरसता ओर सद्भाव के साथ सभी इसमे स्नान कर अपना जन्म सफल करते है | ,इसकी शुरुआत समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है | हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार,समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला था | अमृत कलश  को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था,जब देवता और असुर में अमृत प्राप्त करने को लेकर भयंकर युद्ध चल रहा था, उस दौरान अमृत कलश से कुछ बूंद पृथ्वी के चार स्थलों पर गिरा था जिसमें प्रयागराज यमुना व गंगा का संगम में, हरिद्वार में गंगा में,उज्जैन शिप्रा नदी में,नासिक गोदावरी नदी में  शामिल है इन स्थानों पर अमृत गिरा था | इसके बाद इन्हीं दिव्य स्थान में कुंभ लगता है अर्धकुंभ केवल दो स्थानों पर आयोजित किया जाता है, प्रयागराज और हरिद्वार | अर्ध का मतलब होता है आधा इसीलिए यह छह साल बाद आयोजित किया जाता है |12 साल बाद मनाये जाने वाले कुंभ मेले को ही पूर्ण कुंभ मेला कहा जाता है |

कुम्भ मेला ओर ग्रह स्थिति

सभी महाकुंभ मेले का आयोजन ग्रहों की स्थिति के आधार पर किया जाता है,जब बृहस्पति ग्रह वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य राशि मकर राशि में गोचर करते हैं, तो महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है । इसी लिए 2025 में महाकुंभ प्रयागराज गंगा यमुना ओर सरस्वती  संगम के किनारे पर  लगेगा। जब सूर्य और गुरु सिंह राशि में एक साथ होते हैं, तो महाकुंभ का आयोजन नासिक गोदावरी के तट पर किया जाता है। जब गुरु ग्रह कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तो हरिद्वार गंगा किनारे पर महाकुंभ का आयोजन होता है । जब सूर्य अपनी उच्च राशि मेष और गुरु सिंह राशि में विराजमान होते हैं, तो महाकुंभ का आयोजन उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे पर किया जाता है । ज्योतिष के मुताबिक, महाकुंभ के समय ग्रहों की स्थिति शुभ होती है । इस समय स्नान करने, साधना करने व पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कुंभ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि  ‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ “घड़ा, सुराही, बर्तन” है। यह वैदिक ग्रन्थों में पाया जाता है। इसका अर्थ, अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है। ओर समुन्द्र मंथन के समय अमृत कुभ पात्र मे था इसलिए इसका नाम कुम्भ पढ़ा 

अखाड़ों की अवधारणा हिंदू धर्म के इतिहास और आध्यात्मिकता में गहराई से निहित है। अखाड़े मूलतः साधुओं के समूह या मठ को कहते हैं।सनातन धर्म में 13 अखाड़े हैं, शिव संन्यासी संप्रदाय अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के अखाड़े,उदासीन संप्रदाय के अखाड़े | इन अखाड़ों के संन्यासी ध्यान, तप, साधना, और धार्मिक प्रवचन देते हैं. इसके अलावा, ये लोगों को धर्म का मार्ग भी बताते हैं | इन अखाड़ों के आचार्य वैश्विक स्तर पर भी कई अभियान चलाते हैं | पर्याय सभी अखाड़े कुम्भ स्नान करने आते हैं,इस दौरान संपूर्ण भारत से लाखों श्रद्धालु भक्तजन भी  स्नान करने आते है व विविध वेश  भूषा मे आए साधु संतों के दर्शन करते है कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृति और धार्मिक मेला है। 

12 वर्षों के अंतराल के उपरांत  इस वर्ष आयोजित होने जा रहे महाकुंभ प्रयागराज,अब तक के सभी कुंभ पर्वों के सापेक्ष कहीं अधिक दिव्या और भव्य होगा मानवता की है अमूर्त सांस्कृतिक विरासत पूरी दुनिया को सनातन भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा विविधतापूर्ण सामाजिक परिवेश और लोक आस्था का साक्षात्कार करावेगी | इस बार के कुंभ में कुछ प्रमुख विशेषताएं रहने वाली है जैसे डिजिटल सांस्कृतिक प्रदर्शनी,डिजिटल सुरक्षा कवच,तकनीकी नवाचार का संगम,डिजिटल निगरानी और प्रबंधन,स्वच्छ कुंभ कोष स्वच्छता मित्रों और नाविक साथियों के द्वारा विशेष व्यवस्था, व्यापक कचरा प्रबंधन प्रणाली,25000 डस्टबिन 100 मीटर पर एक डस्टबिन की सुविधा रहने वाली है,नमामि गंगे योजना के तहत प्लास्टिक फ्री महाकुंभ सुख व गीले कचरे का पृथक निस्तारण बेस्ट जेनरेशन इन स्ट्रक्चर | इस बार के कुंभ को पूर्णतया पर्यावरण अनुकूल मेला  बनाने का प्रयास हो रहा है | 

कुंभ पर्व 2025 शाही स्नान तिथियां

महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है, जोकि 13 जनवरी 2025 को है. वहीं महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2024 को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन होगा। इस दौरान शाही स्नान की तिथियां कुछ इस प्रकार रहने वाली हैं।

13 जनवरी 2025 – पौष पूर्णिमा 

14 जनवरी 2025 – मकर संक्रांति

29 जनवरी 2025 – मौनी अमावस्या

3 फरवरी 2025 – बसंत पंचमी

12 फरवरी 2025 – माघी पूर्णिमा

26 फरवरी 2025 – महाशिवरात्रि

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