ये कौन सी साइंस है ?
किशन लाल शर्मा
कला और विज्ञान के विषय में एक विशेष अंतर यह है कि विज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण के साथ अपने सिद्धांतों (प्रिन्सिपल्स) को आपकी आँखों के समक्ष सिद्ध करता है। यह बात कला के विषयों में नहीं है। कला का क्षेत्र भावनात्मक गूढ अदृश्य विचारों का प्रकटीकरण है। विज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से अपने सिद्धान्तों को पूर्ण विश्वास से अपनी छाती ठोक कर कहता है। उदाहरणार्थ मुझे 18 मई 1974 की एक ऐतिहासिक घटना याद है। भारत के प्रसिद्ध भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने अपना पहला परमाणु
विस्फोट परीक्षण , राजस्थान के पोखरण रेंज में किया था। पूरी सावधानी और हर संभावित अवधानों का समाधान निकाल कर पहले से ही पूरी तैयारी की गई थी । अनुसंधान तथा जमीन पर एक्चुअल प्रयोग करने से संबंधित अनेक वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम के पश्च्यात जिस घडी का बेसब्री से इंतज़ार था वह आगई थी। जमींन में 300 फीट गहरा कुआँ खोद कर नीचे ही बगल में परमाणु – शक्ति परीक्षण की यह डिवाइस रखी गई थी। इस स्थान से सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते हुए कुछ दूर एक लकड़ी की ऊंची मचान बनाई गई थी। इस स्थान से उस ख़तरनाक डिवाइस को अति विशेष बिजली के तारों से जोड़ा गया था। प्रोजेक्ट के हैड डॉक्टर राजारमन्ना को इस डिवाइस को फायर करने के लिए एक बटन दबाना था। डॉक्टर राजारमन्ना मचान पर चढ़े और अपने दिल की धड़कनों को थाम कर ; अपने ईष्ट भगवान शिव शंकर नारायण – सालिग्राम जो भी थे ,उनको याद करके बड़े धैर्य से बटन दबाया। कुछ नहीं हुआ। सभी को धरती हिला देने वाले बड़े धमाकेदार विस्फोट की प्रतीक्षा थी। धमाका नहीं हुआ। सभी मौजूद वैज्ञानिकों के चेहरों की हवाईयां उड़ गईं। क्या प्रयोग विफल हो गया ? सब निशब्द थे। इतनी भयानक चुप्पी किसी से भी सहन नहीं हो रही थी। मन में चिंता और घबराहट थी। ये क्या हो गया ? एक उदासी सी छा गई। किसी के भी मुंह से शब्द तो क्या उनकी सांसें तक अटक गईं थीं । डॉक्टर राजारमन्ना लकड़ी की उस ऊंची मचान से संभल कर धीरे – धीरे नीचे उतरे। सभी की नजरें डॉक्टर राजरमन्ना के चेहरे पर टिकी थीं।
डॉक्टर साहब ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बडी गंभीरता ,आत्मविश्वास तथा दृढ विश्वास के साथ कहा
” अगर भौतिक विज्ञानं के सिद्धांत (प्रिंसिपलस ) सही हैं तो ये डिवाइस फटनी चाहिए। ” उनके मुंह से ये शब्द निकले ही थे कि दूसरी ओर जोर का धरती हिला देने वाला, कान फाड़ देने वाला धमाका हुआ। धूल – धुंए से भरा काला
बादल आकाश में ऊंचा फैल गया। डॉक्टर साहिब ने ख़ुशी के मारे अपनी टोपी ऊपर आकाश में उछालते हुए ख़ुशी से कहा , भौतिक विज्ञान के
सिद्धांत कभी गलत नहीं हो सकते। इन सिद्धांतों ने आज अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर दिखाया है ।
कला का क्षेत्र भी विशाल, विस्तृत और असीमित है। इसमें रंग है , प्यार है , भावनाएं हैं, करुणा है और रुदन भी है । प्रकृति के अनेक रंग और रूप हैं। महा कवि सुमित्रानंदन जी पंत ने वर्षा ऋतु के पश्चात धरती हरी चादर ओढ़ लेती है। कवी चित्रण करता है,
” कौन अकेली खेल रही मां , वह अपनी वय वाली में ?’ पृथ्वी , पहाड़ और विस्तृत फैली घाटियों में अनेक रंग – बिरंगे पुष्पों की छटा देखते ही बनती है।
यह सब देख कर मन में ये एक स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है , ” ये कौन चित्रकार है , ये कौन ?”इसी भूमि पर कुछ समय पहले घास का एक तृण भी नहीं था। इस निर्जीव भूमि में
किसने जीवन भर दिया ? ये रंग – बिरंगे रंग इसमें किस ने भर दिए ? ये रंग किसके गर्भ या कहाँ छुपे थे ? इनमें जीवन ? इन इन लहलहाते अनेक रंगों में रंगे धरती के परिधान पहने एक नयी नवेली सोलह श्रृंगार किये अठखेलियां करती दुल्हन सी नजर आने लगी है। इसको छू लेने का मन
करने लगा है। ये रसायनिक ; जड़मूल परिवर्तन इस जड़ भूमि में कैसे आ गया ? इसको करने वाला कौन है ? वह स्वयं तो बहुत ही सुन्दर होगा। ये चमत्कारी कौन सी साइंस है ?
यदि हम देखें तो चमत्कार तो अनेक हैं। कोसों दूर बैठे स्वजनों को परिवार के दूर बैठे प्रियजन की अस्वस्थता या अमंगल का स्वतः ही कैसे आभास हो जाता है ? घर में सब कुछ कुशल मंगल
होते हुए भी रसोई में भोजन पकाती माँ को घर से दूर बेटा – बेटी की अचानक से चिंता क्यों होने लगती है ? उसके मन की गहराइयों में बच्चों की चिंता का बीज कैसे उग आया ? माँ की दाहिनी आँख या दाहिना अंग फड़कने लगता है। माँ को ऐसी चिता क्यों हो जाती है ?
रामचरित मानस के सुन्दर काण्ड में तुलसी दास जी ने भी स्त्री के दाहिने अंग या आँख फड़कने वाली साइंस का वर्णन किया है। लंका पर चढ़ाई करने के लिए जब रामजी की सेना समुद्र पार एकत्रित हो जाती है तो लंका में अशोक वाटिका में बैठी सीता माता को मंगलमय शगुन होने लगते हैं।
जब भालू और वानरों की सेना एकत्रित हो जाती है तो श्री राम प्रसन्न होते हैं और सेना को लंका पर चढ़्ढाई करने के लिए आदेश देते हैं।
” हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।
जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।
प्रभु पयान जाना बैदेहीं । फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।
जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई। ”
शगुन – अपसगुन का विचार सदा से ही हमारे समाज में प्रचलित रहा है। यात्रा के लिए शुभ दिन ; शुभ मुहूर्त और दिशा के जानकार पंडित जी से पूछ कर ही प्रस्थान का निश्चय किया जाता है। इसमें गणित , गणना , ग्रह , नक्षत्र ,सब की दशा , दिशा के ज्ञान से ही निर्णय लिए जाते हैं।
निःसन्देश यह एक विशिष्ट ज्ञान और कठिन साइंस है।
हमारे सनातन धर्म के संस्कारों , संस्कृति में बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करना , उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रथा है। अन्य संस्कृतियों में भी आशीर्वाद ब्लेस्सिंग्स देना है और इन ब्लेस्सिंग्स का , आशीर्वाद का सकारात्मक प्रभाव होता भी है। यह भी एक साइंस है। इसकी केमिस्ट्री क्या है ,
उसका वर्णन करना कठिन है। लेक़िन अनुभवों के आधार पर इसकी पुष्टि की जाती है। ब्रह्माण्ड के गर्भ में क्या कुछ छिपा है , जिसका जिस प्रकार जानना कठिन है , उसी प्रकार यह कौन सी साइंस है , इसको भी परिभाषित करना कठिन है।