मकर संक्रान्ति का महत्व व कथा

मकर संक्रान्ति का महत्व व कथा

सतीश शर्मा
मकर संक्रान्ति (माघ मास की सौर एकम्) इस दिन भगवान सूर्यनारायण मकर राशि में प्रवेश करते हैं,दक्षिणायन समाप्त होकर उत्तरायण प्रारंभ होता है| संक्रांति के दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर अपने पुत्र शनि की राशि यानी मकर राशि में आते हैं | सूर्य और शनि का संबंध मकर संक्रांति के पर्व से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है,इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है और एक बार फिर से सभी और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है मकर संक्रांति आने वाला है जो हिंदू धर्म में अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। असल में इस पर्व का महत्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश (संक्रांति) से जुड़ा है और यह पर्व सूर्य देवता को ही समर्पित है। यह दिन समाज को अज्ञान रूपी अन्धकार से प्रकाश रूपी ज्ञान की ओर, हीनता से श्रेष्ठता की ओर, क्षुद्रता से गौरव की ओर, निराशा से आशा की ओर तथा अवगुणों का नाश कर सद्‌गुणों की ओर जाने की प्रेरणा देता है। यह उत्सव किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। जैसे लोहड़ी, पोंगल इत्यादि।तिल व गुड़ के पदार्थ खाने की इस दिन प्रथा है। छोटे-छोटे तिलों की तरह बिखरे समाज को गुड़ रूपी आत्मीयता से बाँध कर संगठित करने का उदात्त संस्कार दिया जाता है। संक्रान्ति का अर्थ है सम्यक् दिया में क्रान्ति अर्थात समाज में ऐसी क्रांति लाना जो सभी प्रकार से शुभ तथा समाज-जीवन का उन्नयन करने वाली हो । क्रांति की बात आज बहुत सुनाई पड़ती है। क्रांति का अर्थ है आमूल परिवर्तन । अन्य समाजों में अनेको क्रांतियाँ हुई हैं, किन्तु वे सभी रक्तपात से युक्त तथा परस्पर वैमनस्य उत्पन्न करने वाली हुई। उनका परिणाम् समाज-जीवन के पतन के रूप में सामने आया। हमारे देश में जो क्रांतियाँ हुई वे समाज-जीवन को बलशाली करने वाली हुईं। 
उदाहरण- श्रीराम जी द्वारा असुरों का नाश।श्रीकृष्ण द्वारा समाज को विभिन्न लीलाओं द्वारा संगठित करना व संघर्ष के लिए प्रेरित करना।चाणक्य द्वारा महापद्मनन्द का नाश व चन्द्रगुप्त को आगे लाया जाना। छत्रपति शिवाजी द्वारा हिन्दू पदपादशाही की स्थापना, ऐसे अनेक उदाहरण हैं। ये सभी संक्रांतियाँ थी। क्रांति के चार चरण – किसी भी परिवर्तन के लिये चार बातों की आवश्यकता रहती है, सर्वप्रथम एक विचार जो शाश्वत सिद्धान्तों पर आधारित हो। दूसरा चरण है योजना, योजना पूर्ति के लिये संगठन  अन्तिम लक्ष्य प्राप्ति । अपने जीवन में अगर हम प्रगति चाहते तो हमे भी उरोक्त के अनुसार प्रयास करना चाहिए |
मकर संक्रांति की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव और शनिदेव में अच्छे संबंध नहीं थे। दरअसल. इसका कारण था सूर्य देव का शनि की माता छाया के प्रति उनका व्यवहार। दरअसल, शनि देव का रंग काला होने के कारण सूर्य देव ने उनके जन्म के दौरान कहा था कि ऐसा पुत्र मेरा नहीं हो सकता। इसके बाद से सूर्य देव ने शनि देव और उनकी माता छाया को अलग कर दिया था। जिस घर में वह रहते थे उसका नाम कुंभ था। सूर्यदेव के ऐसे व्यवहार से क्रोधित होकर छाया ने उन्हें श्राप दे दिया था। माता छाया ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का श्राप दिया था। जिससे क्रोधित होकर सूर्यदेव ने छाया और शनिदेव का घर जलाकर राख कर दिया था। सूर्यदेव के पुत्र यम ने सूर्य देव को उस श्राप से मुक्त किया था। साथ ही उनके सामने मांग रखी थी की वह उनकी माता यानी छाया के साथ अपने व्यवहार में बदलाव लाएं। इसके बाद सूर्यदेव छााया और शनिदेव से मिलने के लिए उनके घर पहुंचे थे। जब सूर्यदेव वहा पहुंचे तो उन्होंने देखा की वहां कुछ भी नहीं था सब कुछ जलकर बर्बाद हो गया था। इसके बाद शनिदेव ने काले तिल से अपने पिता का स्वागत किया था। शनिदेव के ऐसे व्यवहार से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उस दिन उन्हें नया घर दिया जिसका नाम था मकर। इसके बाद से ही शनिदेव दो राशियों कुंभ और मकर के स्वामी हो गए। शनिदेव के इस व्यवहार से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें यह भी कहा कि जब भी वह मकर संक्रांति के मौके पर उनके घर आएंगे तो उनका घर धन धान्य से भर जाएगा। उनके पास किसी भी वस्तु की कमी नहीं रहेगी। साथ ही यह भी कहा कि इस दिन जो लोग भी मकर संक्रांति के मौके पर मुझे काले तिल आर्पित करेंगे उनके जीवन में सुख समृद्धि आएगी। इसलिए मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य देव की पूजा में काले तिल का इस्तेमाल करने से व्यक्ति के घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती है।
संक्राति का पर्व पौष मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को जब सूर्य मकर राशि में प्रविष्ट होता है।  सवेरे हलवा पूरी या खीर बनाते हैं और खिचड़ी रेवड़ी रुपये (मूंग की दाल चावल मिलाकर) मिनशकर ब्राह्मण को देते हैं। साथ में सामर्थ्य होने पर कोई भी 14 चीजें मिनशकर गरीबों को बांट देते हैं। संकरात के 360 प्रकार के नेग होते हैं। जिन लड़कियों की इसी वर्ष शादी होती है। उस लड़की से जो भी नियम कराया जाता है। दूसरे वर्ष उस लड़की से उद्यापन करवाकर उसके मायके से ससुराल में विशेष बायना भी भेजा जाता है। इस बायने में मावे अर्थात् खोए के तीन सौ साठ बए अर्थात् पेड़े या लड्डू और सास ससुर के कपड़े, चांदी की दीया बत्ती व चिड़िया, बाजरा, चावल और सामर्थ्य होने पर पूरे परिवार के लिए कपड़े भी भेजे जाते हैं। संकरात पर लड़‌कियों के यहां सामर्थ्यानुसार प्रतिवर्ष लड़की, दामाद व बच्चों के गर्म-ठंडे वस्त्र, फल-मिठाई, गज्जक व रेवड़ी और दामाद के टीके का लिफाफा, लड़की व बच्चों के रूपये भेजे जाते हैं ( या अपने परिवार की परंपरा के अनुसार करें ) । बहुएं ससुर जी को जगाने और कपड़े पहनाने व गुड़ की भेली. फल रूपये देवें व ओढ़ने बिछाने के कपड़े देवें, सास को सीढ़ी चढ़ाने उतारने तथा ननद-ननदेऊ, जेठ- जेठानी को वस्त्र देवें, देवर को बादाम से मनाने आदि कार्य भी संकरात के दिन करती है। आज के दिन से एक वर्ष तक चिड़ियों को एक मुटठी बाजरा डालना, सफाई कर्मचारी को एक टोकरा व झाडू देकर एक वर्ष तक घर के बाहर झाडू लगवाना और अगली संकरात पर साड़ी ब्लाउज और रूपये देना, घर के दरवाजे के बाहर दीया जलाना, अथवा एक माह तक एक थाल प्रतिदिन ब्राह्मण को दान देना आदि नियम भी कुछ महिलाएं धारण करती हैं।
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