स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के प्रेरक प्रसंग

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के प्रेरक प्रसंग 

सतीश शर्मा

आज से 162 साल पहले आज के दिन ही एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ था, जिसे दुनिया स्वामी विवेकानंद के नाम से जानती है। लेकिन 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस (नेशनल यूथ डे) के रूप में भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद के जीवन की कुछ प्रेरक कहानियां जो हमें बहुत कुछ जीवन मे करने के लिए  प्रेरणा देतीं है ।

संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है – एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश गए…. तो उनका भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा आपका बाकी सामान कहाँ है?

स्वामी जी बोले…’ बस यही सामान है’….

तो कुछ लोगों ने व्यग्य किया कि… ‘अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है……कोट पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है?

इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुसकुराए और बोले- ‘हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है…. आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं… जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है, संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है।

अपनी भाषा पर गर्व – एक बार स्वामी विवेकानंद विदेश गए जहाँ उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया और इंग्लिश में HELLO कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कहा…. उन लोगों को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगों में से एक ने हिन्दी में पूछा “आप कैसे है”?? तब स्वामी जी ने कहा “आई एम् फाईन थैंक यू”

उन लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा की जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिन्दी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है??

तब स्वामी जी ने कहा….. जब आप अपनी माँ का सम्मान कर रहे थे तब में अपनी माँ का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान किया।

यदि किसी भी भाई बहन को इंग्लिश बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिन्दी नहीं आती है क्योंकि हिन्दी ही हमारी राष्ट्र भाषा है हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए की हमें हिन्दी आती है।

क्या आपने किसी देश को देखा है जहाँ सरकारी काम उनकी राष्ट्र भाषा को छोड़ कर किसी अन्य भाषा या इंग्लिश में होता हो …. यहाँ तक की जो भी विदेशी मंत्री या व्यापारी हमारे देश में आते हैं वो अपनी ही भाषा में काम करते है या भाषण देते हैं फिर उनके अनुवादक हमें हमारी भाषा या इंग्लिश में अनुवाद करके समझाते हैं

जब वो अपनी भाषा नहीं छोड़ते तो हमें हमारी राष्ट्र भाषा को छोड़कर इंग्लिश में काम की क्या जरुरत है

देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा – भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थै कि कुछ बच्चें पास आकर खड़े हो गए।

उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया ‘आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?’

स्वामीजी ने अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- ‘माँ, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

सच्चा पुरुषार्थ – एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के समीप आकर बोली: “मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ”

विवेकानंद बोले: “क्यों? मुझसे क्यों ? क्या आप जानती नहीं की मैं एक सन्यासी हूँ?”

औरत बोली: “मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूँ और वो वह तब ही संभव होगा जब आप मुझसे विवाह करेंगे”

विवेकानंद बोले: “हमारी शादी तो संभव नहीं है, परन्तु हाँ एक उपाय है”

औरतः क्या?

विवेकानंद बोले “आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूँ, आज से आप मेरी माँ बन जाओ….

आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जायेगा,

औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली की आप साक्षात् ईश्वर के रूप है।

इसे कहते है पुरुष और ये होता हैः पुरुषार्थ…

एक सच्चा पुरुष सच्चा मर्द वो ही होता है जो हर नारी के प्रति अपने अन्दर मातृत्व की भावना उत्पन्न कर सके।

 गंगा हमारी माँ है और उसका नीर, जल नहीं, अमृत है। – एक बार स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका में एक सम्मेलन में भाग ले रहे थे, सम्मेलन के बाद कुछ पत्रकारों ने उन से भारत की नदियों के बारे में एक प्रश्न पूछा।

पत्रकार ने पूछा- स्वामी जी आप के देश में किस नदी का जल सबसे अच्छा है?

अच्छा है। स्वामी जी का उत्तर था – यमुना का जल सभी नदियों के जल से

पत्रकार ने फिर पूछा- स्वामी जी आप के देशवासी तो बोलते है कि गंगा का जल सब से अच्छा है।

स्वामी जी का उत्तर था माँ है और उस का नीर जल नहीं है, कौन कहता है गंगा नदी है, गंगा हमारी अमृत है।

यह सुन कर वहाँ बैठे सभी लोग स्तब्ध रह गये और सभी स्वामी जी के सामने निरुत्तर हो गये।

लक्ष्य पर ध्यान लगाओ – स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे, एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दुक से निशाना लगाते देखा, किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था, तब उन्होंने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे।

उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिल्कुल सही लगा….. फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिल्कुल सटीक लगे, ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा भला आप ये कैसे कर लेते हैं?

स्वामी जी बोले तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ, अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तुम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए तब तुम कभी चूकोगे नहीं। अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो, मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है।

डर का सामना – एक बार बनारस में स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी वहां मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनके नजदीक आने लगे और डराने लगे। स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे पर बंदर तो मानो पीछे ही पड़ गए ओर वे उन्हें

दौड़ाने लगे। पास खड़ा एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रही था, उसने स्वामी जी को रोका और बोला रुको! उनका सामना करो। स्वामी जी तुरन्त पलटे और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे, ऐसा करते ही सभी बन्दर भाग गए।

इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा भी यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो।

माँ से बढ़कर कोई नहीं – स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, माँ की महिमा संसार में किस कारण से गाई जाती है? स्वामी जी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ। जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।

स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बांध लिय और चला गया। पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना काम करता रहा, किन्तु हर क्षण उसे परेशानी और थकान महसूस हुई शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना फिरना उसके लिए असह्य हो उठा। थका मांदा वह स्वामी जी के पास पहुंचा और बोला मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूंगा।

एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया। माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढ़ोती है और ग्रहस्थी का सारा काम करती है। संसार में माँ के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है। इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं। 

3 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के प्रेरक प्रसंग”

    1. Yugal Kishor Joshi

      Its really a very knowledgeable write up, I really learnt a lot and will keep in mind the thrice examples written by satishji. I will follow his another write ups regularly.

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