गणेश चौथ का व्रत ( सकट चौथ ) सतीश शर्मा

गणेश चौथ का व्रत ( सकट चौथ )

सतीश शर्मा 

माघ  कृष्ण पक्ष की  चौथ को गणेश चौथ का व्रत होता है। इसे संकष्ट चतुनी या सकट चौथ कहते हैं। सुबह पहले सिर सहित नहायें मेहदी  लगायें और सफेद तिल और गुड् व तिलकुट  बनाये। एक पटरे  पर जल का लोटा, चावल, रोली, एक कटोरी में तिलकुट और रूपये रखकर जल के लोटे पर सतिया बनाकर तेरह टीका करें और चौध विनायक जी की कहानी सुनें। तब  थोड़ा सा तिलकुट ले लें। कहानी सुनने के बाद एक कटोरी में तिलकुट और रुपये रखकर हाथ में जल रखकर फेरकर सासूजी के पैर छूकर दे थे। जल का लोटा और हाथ के तिल उठाकर रख दे। शाम को चन्द्रमा को अर्थ देंकर खाना खा लें। दक्षिणा और तिलकुट जो पंडिताइन जी  कहानी कहे उसे दे दें। जब खाना खायें तिलकुट जरूर खाये।

सकट चौथ की कहानी

एक साहूकार और एक साहूकारनी थी । वह धर्म पुण्य को नहीं मानते थे। इसके कारण उनके बच्चा नहीं हुआ। एक दिन पड़ोसन सकट चौथ की कहानी सुन रही थी तब साहूकारनी उसके पास जाकर बोली तुम क्या कर रही हो? चौथ का व्रत करने से क्या होता है? तब वह बोली कि अन्न, धन, सुहाग हो, बेटा हो। तब साहूकार की बहू बोली कि यदि मेरे गर्भ रह जाये तो सवा सेर तिलकुट करूगी और चौथ का व्रत भी करूंगी। उसके गर्भ रह गया तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाये तो मैं ढाई सेर का तिलकुट करूंगी। उसके लड़का भी हो गया तो वह बोली कि है चौथ माता! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा तो सवा पांच सेर का तिलकुट करूंगी। जब बेटे का विवाह तय हो गया तो वह विवाह करने चले गए। तब चौथ माता, बिन्दायक ने सोचा कि जब से इसके गर्भ रहा है तब से रोज तिलकुट बोलती है और अब तो बेटे का विवाह भी हो रहा है तब भी तिल का एक दाना भी नहीं दिया। अगर हम इसको प्रपंच नहीं दिखायें तो अपने को तो कलयुग में कोई भी नहीं मानेगा। हम इसके बेटे को फेरों में से ले लेंगे। जब उसने तीन फेरे लिए तो चौथ माता गरजती हुई आई। और उसको उठाकर पीपल पर बिठा दिया। इसके बाद सब ओर हाहाकार मच गया और सब उसको ढूंढने लगे। परन्तु कहीं भी नहीं मिला। लड़‌कियां गनगौर पूजने  गांव से बाहर दूब लेने जाती थीं। तब वह एक लड़की को देखकर कहता ‘आ मेरी अर्द्ध ब्याही  ।’ यह बात सुनकर वह लड़की सूखकर कांटा हो गई। तब लड़की की मां बोली मैं तुझे अच्छा खिलाती हूँ, अच्छा पहनाती हूं फिर भी तू क्यों सूखती जा रही है? तो वह बोली कि जब मैं दूब लेने जाती हूं तो पीपल में से एक आदमी बोलता है कि आ मेरी अर्द्धब्याही। और उसने मेंहदी लगा रखी है, सेहरा बाध रखा है। तो उसकी मां उठी और देखा कि वह तो उसका जमाई है। तब वह अपने जमाई से बोली कि यहा क्यों बैठा है। मेरी बेटी तो अर्द्धब्याही कर दी और अब क्या लेगा? तब वह बोला कि मेरी मां ने चौथ माता का तिलकुट बोला था उसने नहीं किया और चौथ माता नाराज हो गई और मेरे को यहां बिठा दिया। वह वहां गई और साहूकारनी से बोली कि तुमने सकट चौथ का कुछ बोला है क्या? तब साहूकारनी बोली-तिलकुट बोला था। फिर साहूकारनी बोली कि अगर मेरा बेटा आ जाये तो ढाई मन का तिलकुट करूंगी। गणेश चौथ राजी हो गई और उसके बेटे को फेरों में लाकर बिठा दिया। बेटे का विवाह हो गया तब उन लोगों ने ढाई मन का तिलकुट कर दिया और बोली कि हे चौथ माता! तेरे आशीर्वाद से मेरे बेटे बहू घर आए हैं जिससे मैं हमेशा तिलकुट करके व्रत करूंगी। सारे नगर में ढिढोरा पिटवा दिया कि सब कोई तिलकुट करके चौथ का व्रत करना। हे चौथ माता! जैसा उसके बहू बेटे को मिलवाया वैसा सबको मिलवाना। कहते सुनते सब परिवार का भला करना। 

नोट – अगर हम कुछ संकल्प करते है तो उसे जरूर पूरा करें |

माघ मास की गणेशजी की कथा

सतयुग में एक हरिश्चन्द्र नाम का राजा था। हरिश्चन्द्र काफी धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति थे। उनकी प्रजा हर तरह से सुखी थी। उनके राज्य में एक ब्राह्मण के यहां पुत्र पैदा हुआ तो उस ब्राह्मण की मृत्यु हो गई। ब्राह्मण की पत्नी अपने पुत्र को पालती हुई गणेश चतुर्थी का व्रत एवं पूजन किया करती थी।

एक दिन जब उसका पुत्र कुछ बड़ा हो गया तो घर के आसपास खेलने लगा। वहां एक कुम्हार भी रहता था। किसी ने कुम्हार से कहा कि यदि तू किसी बालक की बलि अपने आवा में दे देगा तो तेरा आवा सदा जलता रहेगा और बर्तन पकते रहेंगे। यह सुनने के बाद कुम्हार ने जब ब्राह्मण के बालक को गणेश की मूर्ति से खेलता देखा तो बालक को पकड़कर आवा रख दिया और आग लगा दी।

जब ब्राह्मणी का बालक काफी देर हो जाने के बाद भी घर नहीं पहुंचा तो ब्राह्मणी बड़ी दुखी हुई। वह उसकी जीवन-रक्षा के लिये गणेशजी से प्रार्थना करने लगी। गणेशजी की कृपा से उसके पुत्र का बाल भी बांका नहीं हुआ। बस थोड़ा-सा जल-भर गया।

अपने अपराध का ज्ञान होने पर कुम्हार राजा हरिश्चन्द्र के पास गया और अपने इस कुकृत्य के लिये क्षमा प्रार्थना करने लगा। राजा ने ब्राह्मणी से पूछताछ की तो उसने बताया कि गणेशजी की सकट चौथ का व्रत करने के कारण ही मेरे पुत्र के प्राण संकट से बचे हैं उसने कुम्हार से कहा कि यदि तुम भी इस व्रत को करो तो तुम्हारे भी सभी दुख दूर हो जायेंगे।

उद्यापन

अगर आपका इसी साल में बेटा हो या बेटे का विवाह हो तो चौथ माई का उद्यापन होता है। एक सेर सफेद तिल और एक सेर गुड़ मिलाकर तिलकुट करें और एक चम्मच से तिलकुट की तेरह कुढी करें और उस पर एक तीयल रख इच्छानुसार रुपये रखकर हाथ फेरकर रोली, चावल, मिनश्कर बाद में सासूजी के पैर छूकर दे दें। चौथ माई की कहानी सुनें और सिर्फ चौथ का उद्यापन करें तो एक थाली में तेरह जगह चार-चार जगह हलवा रखें और एक तीयल, रुपये उस पर रखकर सास को पैर छू कर दें। ब्राह्यणी जिमायें। उन्हें एक कुढ़ा, हलवा पूरी दे दें। टिक्का लगा कर दक्षिणा दें। कोई भी उद्यापन करें तो इस प्रकार उद्यापन की तैयारी करें।

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करे शर्मा जी 9312002527

उपरोक्त कथाएं मैं बचपन में अपनी माता जी स्वर्गीय श्री मती रामेश्वरी देवी जी से सुनता था जितना समझ आया उतना लिख दिया।

 

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