महाकुंभ मे मौनी अमावस्या का महत्व
सतीश शर्मा
महाकुंभ मे मौनी अमावस्या वाले दिन स्नान व दान का बहुत महत्व है | माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या और माघी अमावस्या कहते है । इस दिन मौन रहना चाहिए। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले साधक को मुनि पद की प्राप्ति होती है। यह दिन सृष्टि संचालक मनु का जन्म दिवस भी है। इस दिन गंगा स्नान तथा दान दक्षिणा का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मौन रहने से आत्मबल मिलता है। मौनी अमावस्या के दिन लोग गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं | शस्त्रों के अनुसार मौनी अमावस्या वाले दिन तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है |
माघ (मौनी) अमावस्या के दिन गुरु वृष में तथा सूर्य-चन्द्र मकर राशि में होंगे। इसलिए इस दिन प्रयागराज में कुम्भ महापर्व का योग बन रहा है। यह इस कुम्भ महापर्व के उन की प्रमुख स्नान की तिथि है, इस दिन महाकुंभ का द्वितीय प्रमुख स्नान होगा। इस दुर्लभ महापर्व में त्रिवेणी ( गंगा ,यमुना व सरस्वती ) संगम पर स्नान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होगा। इसीदिन – षड्दर्शन के शंकराचार्यादि सन्त महात्मा संन्यासी, उदासीन, निर्मल, वैष्णव, अग्नि व अन्य अखाड़े अपने सभी शिष्यों सहित विशाल शोभा यात्रा निकालकर महाकुंभ ( त्रिवेणी संगम ) में स्नान करेंगे । पुराणों मे लिखा है कि ‘कार्तिक महीने में एक हजार बार गंगा में स्नान करने से, माघ मास में सौ बार गंगा में स्नान करने से और वैशाख मास में करोड़ बार नर्मदा में स्नान करने से जो पुण्य अर्जित होता है, वह प्रयागराज में होने वाले कुम्भ-पर्व पर केवल एक ही बार स्नान करने से हमे वह पुण्य प्राप्त हो जाता है।
सहस्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च।
वैशाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ।। (स्कन्दपुराण)
इस परमपावन महापर्व पर त्रिवेणी में स्नान करके महापुण्य अर्जित किया जा सकता है। यदि अत्यधिक भीड़ के कारण इस योग की कालावधि में त्रिवेणी में स्नान का अवसर न मिल सके तो किसी अन्य पवित्र नदी जैसे गङ्गा, यमुना, नर्मदा इत्यादि में भी स्नान-दानादि से इस योग के माहात्म्य का लाभ अर्जित किया जा सकता है। माघी अमावस्या के दिन श्रवण नक्षत्र भी विद्यमान् रहने से कुम्भ-पर्व का माहात्म्य अनन्त गुणा अधिक रहेगा।
अगर आप कही नहीं जा प रहे है तो घर पर मोनी अमावस्या के दिन प्रातः उठ कर स्नान करे पानी मे थोड़ा गंगा जल मिल ले , सबरे पीपल के पेढ के नीचे पाँच दिए जला दें ,इसी तरह सायंकाल में भी पाँच दिए सरसों के तेल के जला दें |
रामचरित्र मानस मे तुलसीदास जी ने भी उलेख किया है की प्रयागराज मे स्नान करने का बहुत पुण्य मिलता है |
माघ मकरगत रबि जब होई । तीरथपतिहिं आव सब कोई ॥
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं ॥
माधमें जब सूर्य मकर राशिपर जाते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयागको आते हैं। देवता, दैत्य, किनर और मनुष्योंके समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणीमें स्नान करते हैं।॥
पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता ॥
भरद्वाज आश्रम अति पावन । परम रम्य मुनिबर मन भावन ॥
श्रीवेणीमाधवजीके चरणकमलोंको पूजते हैं और अक्षयवटका स्पर्शकर उनके शरीर पुलकित होते हैं। भरद्वाजजीका आश्रम बहुत ही पवित्र, परम रमणीय और श्रेष्ठ मुनियोंके मनको भानेवाला है ॥
तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा ॥
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा । कहहिं परसपर हरि गुन गाहा ॥
तीर्थराज प्रयागमें जो स्नान करने जाते हैं उन ऋषि-मुनियोंका समाज वहाँ (भरद्वाजके आश्रममें) जुटता है। प्रातःकाल सब उत्साहपूर्वक स्नान करते हैं और फिर परस्पर भगवान्के गुणोंकी कथाएँ कहते हैं ॥
अधिक जानकारी हेतु काल करे शर्मा जी 9312002527