अर्गला स्त्रोत्र 

अर्गला स्त्रोत्र 

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते |

जयन्ती’ – सबसे उत्कृष्ट एवं विजय शालिनी ।अपने भक्तों के जन्म-मरण आदि संसार-बन्धन को दूर करती हैं, उन मोक्ष दायिनी मंगलमयी देवी का नाम ‘मंगला’ है । जो प्रलयकाल में सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है; वह ‘काली’ है। अपने भक्तों का मंगल करती है, वह ‘भद्रकाली’ है। दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती हैं, वे जगदम्बिका ‘दुर्गा’ कहलाती हैं। भक्तों के भी सारे अपराध क्षमा करती हैं, उनका नाम ‘क्षमा’ है। सबका कल्याण करने वाली को ‘शिवा’ कहते हैं। सम्पूर्ण प्रपंच को धारण करने के कारण भगवती का नाम ‘धात्री’ है। यज्ञ भाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करने वाली स्वाहा । स्वधा रूप से श्राद्ध,तर्पण को स्वीकार करके पितरों का पोषण करने वाली। इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके तुम्हें मेरा नमस्कार हो। देवि चामुण्डे  तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि तुम्हारी जय हो। सबमें व्याप्त रहने वाली देवि तुम्हारी जय हो। कालरात्रि तुम्हें नमस्कार हो मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्मा जी को वरदान देने वाली देवि ! तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो, महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो रक्तबीज का वध और चण्ड- मुण्ड का विनाश करने वाली देवि । तुम रूप दो, जय दो, यश दो  शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि ! तुम रूप दो, जय दो, यश दो | सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाली देवि तुम रूप दो, जय दो | देवि ! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओंका नाश करने वाली हो तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो | चण्डिके जो भक्ति पूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा मस्तक झुकाते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो | चण्डिके जो भक्ति पूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो | चण्डिके इस संसार में जो भक्ति पूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। मेरे शत्रुओं का नाश करो  मेरे बल की वृद्धि करो,माँ मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो देवि  मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम सम्पत्ति प्रदान करो मुझे रूप दो, जय दो, यश दो | अम्बिके  देवता और असुर-दोनों ही तुम्हारे चरणों पर अपना  मस्तक झुकते रहते हैं तुम रूप दो, जय दो, यश दो | तुम अपने भक्तजन को विद्वान्, यशस्वी और लक्ष्मीवान् बनाओ तथा रूप दो, जय दो, यश दो, प्रचण्ड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके  मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो,चतुर्मुख ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि तुम रूप दो, जय दो, यश दो | देवि अम्बिके  भगवान् विष्णु नित्य-निरन्तर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं तुम रूप दो, जय दो, यश दो, महादेव जी के द्वारा प्रशंसित होने वाली परमेश्वरि  तुम रूप दो, जय दो, यश दो | शची पति इन्द्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाली परमेश्वरि तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो | प्रचण्ड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि तुम रूप दो, जय दो, यश दो | देवि अम्बिके तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनन्द प्रदान करती रहती हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो | उत्तम कुल में उत्पन्न हुई मनोहर पत्नी प्रदान करो | जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है  |

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