पर्यावरण योद्धाओ का पिपलांत्री गाँव
सतीश शर्मा
पिपलांत्री गाँव की सभी महिलाये वृक्षों को राखी बांधती है | इन सब की प्रेरणा है समाज सेवक 60 वर्ष के श्री श्याम सुंदर पालीवाल जो राजस्थान के उदयपुर के राजमंदा जिले के पिपलांत्री गांव में रहते हैं । उनकी लगन, मेहनत व दूरदृष्टि ने ही पिपलांत्री को आज जैसा बनाया है। राजस्थान के भूरे रंग के विपरीत, पिपलांत्री अपनी हरियाली, वनस्पतियों और जीवों तथा पारिस्थितिकी-नारीवाद के लिए प्रसिद्ध है। बारहवीं पास सामाजिक कार्यकर्ता श्याम सुंदर पालीवाल ने अपने गांव को बदलने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने का रास्ता खोज निकाला। कम उम्र में एक मार्बल कंपनी में काम करने से लेकर पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त करने तक, वे कड़ी मेहनत, समर्पण और परिश्रम की मिसाल हैं। डेढ़ दशक पहले पिपलांत्री गांव पथरीला था। संगमरमर की खदानों के चलते यहां पेड़ पौधों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। इतना ही नहीं यहा लज स्तर भी 900 फीट नीचे जा चुका था | जब से बेटियों की याद में यहां पौधे लगाने की शुरूआत हुई, तब से यहां की किस्मत ही बदल गई। अब यह क्षेत्र हरियाली से पूरी तरह आच्छादित हो चुका है।
श्याम सुंदर पालीवाल भारतीय राज्य राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गाँव के एक सामाजसेवी व सरपंच है जिन्हें 2021 में समाज सेवा के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने वर्ष 2006 में अपनी बेटी को खो दिया था जिसकी स्मृति में उन्होंने हर नवजात बालिका के जन्म का उत्सव मनाने के लिये 111 पौधे लगाने का एक अभियान शुरू किया। इस अभियान के अंतर्गत पंचायत नवजात के नाम पर सावधि बैंक जमा खाता खोलती है।
इसके अंतर्गत बालिकाओं के माता-पिता से आशा की जाती है कि वे पौधों का पालन-पोषण करेंगे और एक हलफनामे पर हस्ताक्षर करेंगे, जिसमें वे आश्वासन देंगे कि 18 वर्ष की आयु से पूर्व अपनी बेटियों का विवाह नहीं करेंगे या कन्या भ्रूण हत्या नहीं करेंगे। इस अभियान का ही परिणाम है कि राजस्थान का पिपलांत्री गाँव के दीर्घकालिक सूखे और पानी की कमी से बचा रहा। पालीवाल के नेतृत्व में इस अभियान के अंतर्गत भूजल स्तर के पुनर्भरण के लिये पास की पहाड़ियों पर चेक डैम बनाना और राजसमंद को पेड़ों से भरे नखलिस्तान में बदल देना शामिल है।
एक सरपंच (पंचायत के मुखिया) के रूप में कई परियोजनाओं में कार्य किया | स्कूल की इमारत को बेहतर बनाना और शिक्षा को और अधिक व्यावहारिक बनाना शामिल था। अपनी बढ़ती भागीदारी और मानवीय दृष्टिकोण के साथ, उन्होंने सबसे अधिक प्रचलित तीन समस्याओं को सबसे कुशल तरीके से निपटाया। बालिकाओं को बचाना, अधिक पेड़ लगाना और जल को पुनर्जीवित करना। उनका काम आसान नहीं था । गांव के चारों ओर फैले खदानों के अवशेषों के कारण, मिट्टी की उर्वरता अकल्पनीय रूप से कम हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल में कमी आई और निर्जलीकरण के कारण उनकी अपनी बेटी की मृत्यु हो गई। चूंकि खनन उद्योगों को बंद नहीं किया जा सकता था, इसलिए श्री पालीवाल ने सबके साथ मिलकर काम करने की रणनीति बनाई। उन्होंने सरकार की सभी पहलों, नीतियों और सब्सिडी का उपयोग कर गांव को बदला ।
श्री पालीवाल के लिए यह काम आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने जो देखा, उसे सुधारना शुरू कर दिया। वही गांव जो लड़कियों को बेरहमी से मारता था, वही गांव हर लड़की के जन्म पर 111 पेड़ लगाता है। दहेज की अवधारणा को भी लक्षित किया गया और एक वित्तीय योजना शुरू की गई, जिसने दहेज के बोझ को कम किया और शिक्षा को बढ़ावा दिया। डंप यार्ड जो खनन कचरे से भरे थे, अब वनस्पतियों और जीवों से भरे हरे-भरे पहाड़ बन गए हैं।
पिपलांत्री अब पानी और बिजली के मामले में आत्मनिर्भर है। पिपलांत्री वह जगह है जहाँ नवाचार देखने को मिलता है। महिलाओं ने मिलकर एलोवेरा की अतिरिक्त उपज से उत्पाद बनाए और अच्छा मुनाफा कमाया। सौर ऊर्जा से चलने वाली जल शोधन प्रणाली देखी गई, जो जल आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए पानी को शुद्ध करने के लिए बुद्धिमान प्रणाली है। 157 गांवों ने पिपलांत्री मॉडल को अपनाया है। श्याम सुंदर पालीवाल की मुहिम की वजह से ही उनके गांव पिपलांत्री में सूखे की समस्या नहीं होती है. पेड़ों के लगाए जाने पर पूरे गांव में हरियाली है और उनके नेतृत्व में चेक डैम बनवाएं जाने पर इलाके का ग्राउंड वॉटर भी अपनी तय सीमा से नीचे नहीं जाता है.पिपलांत्री यह गांव, अपनी अनोखी पहल के लिए जाना जाता है |
किरण निधि योजना – उन्होंने कई बेटियों का भविष्य सवारने का इरादा किया. उन्होंने ‘किरण निधि योजना’ की शुरुआत की. बढ़ते भ्रूण हत्या के मामलों को कम करने और ख़त्म होती हरियाली को बचाने के लक्ष्य के साथ इस योजना की शुरुआत की गई.इसके तहत् शारीरिक हिंसा, मौखिक व भावनात्मक हिंसा, लैगिक व आर्थिक हिंसा य धमकी देना आदि महिलाओं एवं विपेक्षी परिवारो को कार्यालय मे काउंसलिंग के लिये बुलाया जाता है एवं दोनो परिवारो को समझाइस दी जाती है एवं दोनो परिवारो को घरेलू विवाद और संबंधी समझौता कराया जाता है।बहनों के लिए रक्षाबंधन का पर्व बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। किन्तु उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले का पिपलांत्री गांव की कहानी ही बेहद अजूबी है। पर्यावरण की रक्षा के लिए यहां की महिलाएं पिछले डेढ़ दशक से पेड़ों को राखी बांधती हैं।
राजसमंद जिले की पहचान बनी निर्मल ग्राम पंचायत में अब गांव की बेटियां ही नहीं, शहरों से भी पेड़ों को राखी बांधने बहनें पहुंचती हैं। रक्षाबंधन पर्व पर इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचने लगे हैं।रक्षाबंधन पर पेड़ों की राखी बांधने की ही नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी यहां की महिलाएं रखती हैं। यहां लगाए गए पौधे अब तीस फीट ऊंचाई के हो चुके हैं। आज पिपलांत्री गांव कश्मीर की वादियों से कमतर नहीं।
पिपलांत्री गांव की कहानी विदेशों में पढ़ाई जाती है। डेनमार्क सरकार के लिए यह गांव किसी अजूबे से कम नहीं है। इस गांव की कहानी डेनमार्क के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई जाती है। डेनमार्क से मास मीडिया यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स यहां स्टडी करने आते हैं।