होलाष्टक व हालिका-दहन का समय
सतीश शर्मा
होलाष्टक का मतलब है, होली से आठ दिन पहले का समय,यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘होली’ और ‘अष्टक’. होलाष्टक, फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पूर्णिमा तक रहता है. क्योंकि होली से 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाता है होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होगा और 14 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा इसलिए उसमें कोई शुभ और मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए. तो आइए जानते हैं होलाष्टक के समय कौन से कार्य नहीं करने चाहिए. होलाष्टक के समय कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, जमीन खरीदना, निर्माण कार्य करना, मुंडन, नामकरण और गृह प्रवेश नहीं करने चाहिए.इन 8 दिनों में प्रह्लाद को आग में जलाने, पर्वत से गिराने, विष देने, हाथियों से कुचलवाने जैसी यातनाएँ दी गईं लेकिन वह भगवान विष्णु की भक्ति से अडिग रहे। धार्मिक दृष्टि से यह प्रह्लाद की कठिन परीक्षा का समय था, इसलिए इसे अशुभ समय माना जाता है।
होलिका दहन कब करें
प्रदोष-व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भद्रा-रहितकाल में होलिका दहन किया जाता है।
‘सा प्रदोषव्यापिनी भद्रारहित ग्राह्या ।। (धर्मसिन्धुः)
यदि प्रदोषकाल के समय भद्रा हो तो दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा में होलिका दहन करना चाहिए। यदि दूसरे दिन पूर्णिमा प्रदोष व्यापिनी न हो, तो पहिले दिन भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन करें। परन्तु यदि उस दिन (पहिले दिन) भद्रा निशीथ (अर्द्धरात्रि) के बाद या निशीथ में समाप्त हो रही हो, तो भद्रा के मुखकाल को छोड़कर भद्राकाल में ही निशीथ से पहिले होलिका दहन कर लेना चाहिए, क्योंकि निशीथ के अनन्तर होलिका दहन करने का निषेध है-
‘परदिने प्रदोष-स्पर्शाभावे पूर्वदिने यदि निशीथात्प्राक्-भद्रासमाप्तिः तदा
भद्रावसानोत्तरमेव होलिका-दीपनम् । निशीथोत्तरं भद्रा-समाप्तौ भद्रामुखं त्यक्त्त्वा भद्रायामेव।’ (धर्मसिन्धुः)
इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा (सं. 2081 वि.) केवल 13 मार्च, 2025 ई. को ही प्रदोषव्यापिनी है। 14 मार्च को तो वह प्रदोषकाल को बिल्कुल भी स्पर्श नहीं कर रही। 13 मार्च को भद्रा अर्द्धरात्रि 24-37 मि. से पहिले 23-31 मिनट पर समाप्त हो रही है। अतः होलिका दहन 13 मार्च, बृहस्पतिवार, 2025 ई. को रात्रि 23-31 मिनट के बाद और निशीथ 24-37 मिं से पहिले ही करना शास्त्रसम्मत होगा। 13 मार्च, 2025 ई. को भद्रा मुखकाल 20- 18 मि. से 22-27 मि. तक रहेगा तथा भद्रा-पुच्छकाल 19-24 मि. से 20-18 मि. तक रहेगा। अतएव आवश्यक परिस्थितिवश भद्रा मुखकाल को त्यागकर भद्रा पुच्छकाल में होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु शास्त्र-निर्देशानुसार भद्रा बाद 23-31 तथा निशीथकाल से पहिले ( 24-37 मिं. तक ही होलिका-दहन करना चाहिए।