जाने नवग्रह व नक्षत्र के बारे में, दोष दूर करने के उपाय व कोन सा रत्न पहने
सतीश शर्मा
सूर्य ग्रह
जिनका सूर्य प्रबल होता है वे बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होते है। वे अपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उन्हे नहीं आता है। वे सरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज के प्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बनालेता है। सूर्य को एक प्रभावशाली ग्रह माना जाता है।
अगर कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो निम्न मंत्र का जाप करें।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा. ॐ सूर्याय नम: ॐ घृणि सूर्याय नम: । सूर्य का बीज मंत्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ॥ सूर्य का रत्न माणिक्य है ।
सूर्य की वस्तुओं से स्नान करने के अतिरिक्त सूर्य की वस्तुओं का दान करने से भी सूर्य के अनिष्ट से बचा जा सकता है।कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत करने के लिए हर रविवार लाल वस्त्र या तो धारण करें या दान करें, पिता से बहसना करे व सेवा करे । सूर्य की दान देने वाली वस्तुओं में तांबा, गुड़, गेहूं, मसूर दाल दान की जा सकती है। यह दान प्रत्येक रविवार या सूर्य संक्रांति के दिन किया जा सकता है।सूर्य देव को हमेशा तांबे के लोटे से ही जल चढ़ाना चाहिए। भगवान सूर्य को जल देते हुए सूर्य मंत्र का जाप जरूर करें। सूर्य देव को जल देते समय तांबे के लोटे में चावल, कुमकुम और फूल डाल जरूर डाल दें। सूर्य को जल देने वाले लोटे में इन चीजों को डालने से भगवान भास्कर हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
चंद्र ग्रह
नवग्रहों में सूर्य के बाद चन्द्रमा ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है | चंद्र ग्रह कर्क राशी का स्वामी है |
कमजोर चंद्र के कारण होने वाले कष्ट – व्यक्ति को स्त्री पक्ष से या स्त्री को लेकर कष्ट बना रहता है | हारमोंस की समस्या और अवसाद का योग बनता है नींद न आने की समस्या भी होती है,व्यक्ति बार बार नींद में चौंक कर उठ जाता है | व्यक्ति को माता का सुख नहीं मिलता या व्यक्ति के सम्बन्ध माता से ख़राब होता है |
चंद्र दोष दूर करने के उपाय – कुण्डली में उत्पन्न चंद्र दोष को दूर करने के लिए सर्वौत्तम उपाय है कि सोमवार के दिन भगवान शिव का गाय के दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।स्फटिक की माला पहनने से भी चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।चंद्रोदय के समय दूध में चावल और बताशा डाल कर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।चंद्र नीच का हो तो चंद्र की चीजों का दान नही लेना चहिये। शिव चालीसा का नियमित पाठ करें। चंद्र पीड़ा की विशेष शांति हेतु चांदी, मोती, शंख, सीप, कमल और पंचगव्य मिलाकर सात सोमवार तक स्नान करें। पंच धातु के शिवलिंग का निर्माण करके उसका यथायोग्य पूजन करने से चंद्र पीड़ा शांत होती है। सोम वार के व्रत करे | पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन करे व चन्द्रमा की रौशनी में चंद्र मन्त्र का जाप करे | चंद्र देव को सफेद रंग प्रिय है इसलिय सोमवार व पूर्णिमा को सफेद रंग की चीज दान करे |
चंद्र ग्रह का रत्न – मोती , चंद्र ग्रह की धातु – सुवर्ण , चांदी,चंद्र ग्रह का वार – सोमवार ,दान योग्य वस्तु – चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,श्वेत पुष्प ,शंख ,श्वेत चन्दन | चन्द्रमा कमजोर होने पर होने वाले रोग तिल्ली ,पांडू ,यकृत ,कफ ,उदर संबंधी रोग
चंद्रदेव मंत्र
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:। ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।
ज्योतिष में चंद्रमा को मन और भावनाओं का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिष में चंद्रमा की स्थिति को कुंडली में बहुत महत्व दिया जाता है। चंद्रमा को एक शुभ ग्रह माना जाता है और इसे मन का कारक ग्रह भी कहा जाता है। चंद्रमा की कुछ ज्योतिषीय मान्यताएं:चंद्रमा को माता का प्रतीक माना जाता है।चंद्रमा को शांति और शीतलता का प्रतीक माना जाता है।चंद्रमा को भावनाओं और कल्पना का प्रतीक माना जाता है।चंद्रमा को स्त्री ग्रह माना जाता है।
बृहस्पति ग्रह
बृहस्पति सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है, जो सूर्य से पाँचवाँ ग्रह है। यह एक गैस विशालकाय ग्रह है, जिसका द्रव्यमान सौर मंडल के सभी अन्य ग्रहों के संयुक्त द्रव्यमान से लगभग 2.5 गुना अधिक है।बृहस्पति को चंद्रमा और शुक्र के बाद रात्रि आकाश में तीसरा सबसे चमकीला प्राकृतिक पिंड माना जाता है,बृहस्पति अपनी धुरी पर सबसे तेजी से घूमने वाला ग्रह है, जिससे इसका दिन लगभग 9.9 घंटे का होता है,बृहस्पति का वायुमंडल बहुत घना है, जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन गैसें होती हैं।
बृहस्पति को देवगुरु या ज्ञान का कारक माना जाता है। बृहस्पति ग्रह को मज़बूत करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं – गुरुवार के दिन सुबह उठकर स्नान करें और पीले रंग के कपड़े पहनें,गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा करें
गुरुवार के दिन ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ मंत्र का जाप करें,गुरुवार के दिन पीले रंग की चीज़ें खाएं और दान करें,गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करें और दीपक जलाएं,गुरुवार के दिन विष्णु भगवान को पीला चंदन या केसर का तिलक लगाकर पूजा करें,गुरुवार के दिन व्रत रखें,गुरुवार के दिन किसी गरीब ब्राह्मण को पीले वस्त्र, हल्दी, केला, बेसन, चने की दाल का दान करें,बृहस्पति की शुभता पाने के लिए रुद्राष्टाध्यायी और शिवसहस्त्रनाम का पाठ करें। बृहस्पति यंत्र या पुखराज धारण करें। पीपल के पेड़ को जल अर्पित करें ।किसी वृद्ध ब्राह्मण की देखभाल करें और उन्हें पीले वस्त्र का दान करें, माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएं,अपने पिता की सेवा करें व उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें,साधु-सन्यासियों की सेवा करें,झूठी गवाही न दें,गरुड़ पुराण का पाठ करें।
बुधवार के उपाय
बुधवार को भगवान गणेश की पूजा करें और उन्हें दुर्वा, मोदक, और पीले फूल चढ़ाएं।
“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः” मंत्र का जाप करें, इससे बुध ग्रह मजबूत होता है,हरी मूंग दाल का दान करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है और करियर में तरक्की मिलती है,दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं,ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ करने से धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं,गाय को हरी घास खिलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं,बुधवार के दिन हरे रंग के कपड़े पहनने से बुध ग्रह मजबूत होता है,यदि आप हरे रंग से परहेज करते हैं तो बुधवार के दिन हरे रंग के कपड़े न पहनें।
शमी के पत्तों को भगवान गणेश को अर्पित करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं,तुलसी का पत्ता धोकर खाने से बुध ग्रह मजबूत होता है,बुधवार के दिन पैसे का लेन-देन करने से आर्थिक समस्याएं हो सकती हैं।
शुक्र ग्रह
शुक्र की राशियां वृषभ और तुला हैं. शुक्र को स्त्री ग्रह माना जाता है | ज्योतिष में शुक्र को भौतिक सुखों का कारक माना गया है | शुक्र ग्रह का रंग चमकीला सफ़ेद और गुलाबी होता है | शुक्र ग्रह को प्रेम, सौंदर्य, और सुख-सौभाग्य का ग्रह माना जाता है | अंकज्योतिष में मूलांक 6 को शुक्र का अंक माना गया है।यह वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ लग्न वालों को बड़ा अच्छा फल प्रदान करते हैं। इन्हें इन लग्नों में राजयोग कारक ग्रह कहा जाता है। देवराज इंद्र को इनका अधिदेवता माना जाता है।यह ग्रह दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी, स्त्री जाति |
जिन लोगों के वैवाहिक जीवन और आपसी रिश्तों में परेशानियां आ रही हों, उन्हें चमकीले सफ़ेद या गुलाबी रंग की चीज़ों का इस्तेमाल करना चाहिए | शुक्र के शत्रु राशि सिंह में होने से वैवाहिक जीवन, नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों और उनके परिवार पर कठिनाइयों के बादल छाए रहेंगे। श्याम, गौर वर्ण कालक्ष्मी की मूर्ति को दूध, शहद, घी (मक्खन तेल), दही, चीनी – जिसे पंचामृत कहा जाता है – से स्नान कराने से शुक्र ग्रह प्रसन्न होगा क्योंकि, वह यानी देवी लक्ष्मी शुक्र की स्वामिनी हैं। नियमित रूप से सफेद फूल और चंदन के लेप (तिलक) के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करने से शुक्र प्रसन्न होगा।
शुक्र ग्रह के उपाय किए – शुक्रवार के दिन सफ़ेद रंग के कपड़े पहनें और सफ़ेद चीज़ों का दान करें | शुक्रवार का व्रत रखें और खट्टा भोजन न खाएं | शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करें | शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें | शुक्र ग्रह को मज़बूत करने के लिए ‘ॐ द्रां द्रीं दौं सः शुक्राय नमः’ मंत्र का जाप करें | शुक्र यंत्र को घर में स्थापित करें और नियमित रूप से इसकी पूजा करें. शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए चमकीले रंग के कपड़े पहनें | शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए सुगंधित वस्तुओं का इस्तेमाल करें | शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए गाय, कौवे, या कुत्ते को कुछ भोजन दें | शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए गरीबों को सफ़ेद वस्त्र दान करें | शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए महिलाओं का सम्मान करें | शुक्रवार के दिन खीर, ज्वार, इत्र, रंग-बिरंगे कपड़े, चांदी और चावल का दान करें | शुक्रवार के दिन अपने शरीर पर चंदन का लेप लगाना चाहिए | शुक्र कमज़ोर है तो छह या 13 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए | ज्योतिष के मुताबिक, कुंडली में शुक्र ग्रह कमज़ोर होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं | ये समस्याएं आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और वैवाहिक जीवन से जुड़ी हो सकती हैं | आर्थिक समस्याएं धन की तंगी, दरिद्रता, हर काम में असफलता, तरक्की में बाधाएं | शारीरिक समस्याएं चेहरे पर चमक की कमी त्वचा रोग हार्मोनल असंतुलन आंखों की समस्या मधुमेह कमर में दर्द गुर्दे की समस्या सांस लेने की समस्या मानसिक समस्याएं आत्मविश्वास में कमी, निर्णय लेने में कठिनाई, खुद पर से भरोसा खत्म होना | वैवाहिक जीवन में परेशानियां, संतान सुख नहीं मिलना,कामुकता धीरे-धीरे कम होना शराब, जुआ, धूम्रपान जैसी चीज़ों का आदी होना व्यभिचार नपुंसकता गर्भाशय के रोग स्तन रोग |
मंगल ग्रह
सौर परिवार में मंगल का चोथा स्थान है | मंगल ग्रह को ऊर्जा, भूमि और साहस का कारक ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना गया है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह होते हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के जबकि कर्क राशि में नीच के माने गए हैं।
मंगल का रत्न – मूंगा ,कमजोर मंगल के रोग – पित ,वायु ,कर्ण रोग,विशु चिका , खुजली | कुंडली में मंगल 4 ,8 भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है | मंगल की धातु – सुवर्ण ,ताम्र | मंगल का दान – मसूर ,गूढ़ ,घी ,लाल वस्त्र ,लाल कनेर ,कस्तूरी , लाल चन्दन |मंगल का बीज मंत्र- ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।मंगल का अंक – 9
मंगल अशुभ हो तो कभी कभी जेल के दर्शन भी हो जाते हैं | कुंडली का मंगल जीवन के सुख, संपत्ति, विवाद और मुकदमेबाजी जैसे पहलुओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है | यानि जीवन के हर मोड़ पर खराब या अशुभ मंगल का प्रभाव रहता है और इंसान की जिंदगी को प्रभावित भी करता है | मंगलवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान करें। हनुमान जी के मंदिर जाकर संतरी रंग के सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर हनुमान जी को चौला चढ़ाएं। मंगल ग्रह के मंत्रों का जाप करें। ढाई किलो लाल मसूर की दाल किसी कुष्ठ रोगी को दान करें।
इंद्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।मंगल ग्रह या मंगल दोष हेतु अक्सर हनुमानजी की पूजा बताई जाती है और हनुमानजी का दिन भी मंगलवार भी है परंतु मंगलदेव ही मंगल ग्रह के देवता है और उनका वार भी मंगलवार ही होता है। मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है।
बुध ग्रह
बुद्ध की उत्पत्ति अत्रि गोत्र में मानी जाती है बुद्ध चेतन इच्छा सदाचार मानव जीवन में तरक्की और चेतना शक्ति का मुख्य रूप से प्रतिनिधित्व करता है ऐश्वर्या प्रेम उदारता आकांक्षा आत्मविश्वास अधिकारी है संतुलित करता है यह पुरातन बेटा आविष्कार करता राजा मंत्री आदि का भी प्रतिनिधित्व करता है हृदय रक्त का संचालन आंख कान हड्डी आदि पर भी बुद्ध अपना अधिक से अधिक प्रभाव डालता है
बुधवार का दिन गणेश जी का होता है| वो सभी देवताओं में सबसे प्रिय हैं, इसलिए उनकी पूजा सभी देवताओं से पहले की जाती है| उनकी पूजा-अर्चना करने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है. जानकार मानते हैं कि अगर बुधवार के दिन कुछ उपाय किये जाए तो बुध ग्रह का अच्छा प्रभाव पड़ता है.बुध ग्रह से दमा और अन्य रोग |
सांस की बीमारियां बुध के दूषित होने से होती हैं। बहुत खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है। व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है। कुंडली में अगर बुध ग्रह कमजोर है तो करें ये उपाय – घर के पूर्व दिशा में लाल झंडा लगायें।ऐसे व्यक्ति को हरे रंग के कपड़ों और वस्तुओं से परहेज करना चाहिए। 100 ग्राम चावल में चने की दाल मिलाकर बहते जल नदी या नहर में प्रवाहित करें।
बुधवार को मंत्र का जाप करने से दिमाग तेज होता है और व्यापार में मिलती है तरक्की मिलती है | बुध को मानसिक तनावों से राहत देने वाला, मन की एकाग्रता बढ़ाने वाला और याददाश्त तेज करने वाला ग्रह माना गया है। यही नहीं काराबोर में कामयाबी भी बुध के शुभ योग से मिलती है।
बुध मंत्र – बीज मंत्र ‘ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः’ तथा सामान्य मंत्र ‘बुं बुधाय नमः’ है। बुध ग्रह का रंग – बुध का रंग वैसे तो हरा होता है पर कुछ लोग बुध का रंग श्याम मानते हैं। बुध ग्रह का रत्न – पन्ना ,बुद्ध का अंक 5
धर्म-कर्म में दृढ़ रहे बुद्धिमान मधुर भाषी सुंदर विद्वान धार्मिक जीवन माता-पिता में बहुत प्रेम रखें दर्शन में रुचि रखें चित्रकार ,
8 और 22 वर्ष में अगर बच जाए तो 64 वर्ष की आयु आलसी नशेड़ी अगर बुध कमजोर हो तो यदि बुध अशुभ होकर अनिष्ट प्रभाव देता हो तो दुर्गा मां की उपासना करें प्रसंचित हो
नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से पहला नक्षत्र है। यह मेष राशि में 0 डिग्री से 13.2 डिग्री तक स्थित है। इस नक्षत्र का स्वामी केतु है और यह अश्विनी कुमार नामक देवताओं से संबंधित है, जो चिकित्सक के रूप में जाने जाते हैं।
अश्विनी नक्षत्र के बारे में कुछ मुख्य बातें-स्वामी ग्रह – केतु,देवता – अश्विनी कुमार,राशि – मेष,नाड़ी – मध्य नाड़ी,शुभ रंग – लाल,गुण – ऊर्जावान, साहसी, गतिशील, चंचल, तीव्र गति से काम करना
व्यवसाय-डॉक्टर, सर्जन, उद्यमी, वैज्ञानिक, तकनीकी विशेषज्ञ, खिलाड़ी, मीडिया, मनोरंजन
अश्विनी नक्षत्र में जन्मे लोगों का व्यक्तित्व-ये लोग ऊर्जा से भरे होते हैं और हमेशा कुछ ना कुछ करते रहना पसंद करते हैं। ये लोग चुनौतियों से नहीं डरते और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ रहते हैं। ये लोग जल्दी निर्णय लेते हैं और जल्दी काम करते हैं। ये लोग अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हैं और शांत स्वभाव के होते हैं। ये लोग दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। हनुमान जी की पूजा करें और मंगलयंत्र की स्थापना करें। लाल रंग के वस्त्र या रत्न पहनें। ॐ अश्विना तेजसा चक्षु प्राणेन सरस्वती वीर्यम् मंत्र का जाप करें। अश्विनी नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह अश्वमुख (घोड़े का मुख) है, जो गति, ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है। यह नक्षत्र गंडमूल नक्षत्रों में से एक है, इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे लोगों को विशेष ध्यान रखना चाहिए। अश्विनी नक्षत्र में जन्मे लोग अक्सर अपनी योजनाओं को सार्वजनिक करने से पहले उन्हें पूरा करने की कोशिश करते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो सकते हैं, इसलिए उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों के लिए कुछ उपाय हैं जो उनकी समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकते हैं। इन उपायों में अश्विनी नक्षत्र मंत्र “ॐ अश्विनी कुमारया नमः” का जाप करना, हनुमान जी की पूजा करना, मूंगा रत्न धारण करना, और पीपल वृक्ष की पूजा करना शामिल है । अश्विनी कुमार के स्वास्थ्य मंत्र का जाप करने से गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है ।
मंगलवार, शनिवार, अश्विनी नक्षत्र के दिन पूजा या अभिषेक करने से भी सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं ।
अश्विनी नक्षत्र के जातकों को अपने करियर और स्वास्थ्य के प्रति अधिक ध्यान देना चाहिए। वे रचनात्मक और ऊर्जावान होते हैं, और उन्हें ऐसे क्षेत्र में काम करना चाहिए जो उनकी रचनात्मक क्षमताओं और ऊर्जा का उपयोग करता है ।
भरणी नक्षत्र
भरणी नक्षत्र आकाश मंडल का दूसरा नक्षत्र है, और इसका स्वामी शुक्र ग्रह है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग मेष राशि के होते हैं और उन पर मंगल और शुक्र दोनों का प्रभाव रहता है. भरणी नक्षत्र के जातक साहसी, स्वाभिमानी और ऊर्जावान होते हैं, और उन्हें कला और सौंदर्य से लगाव होता है.
भरणी नक्षत्र की विशेषताएं – राशि: मेष राशि,स्वामी ग्रह: शुक्र,देवता: यम,लिंग: स्री | भरणी नक्षत्र का संबंध दुर्घटना और व्यवधान से माना जाता है, इसलिए इस नक्षत्र में यात्रा करना वर्जित है | भरणी नक्षत्र पर मंगल और शुक्र दोनों का प्रभाव होता है, जिससे जातक में साहस, ऊर्जा, कला और सौंदर्य के प्रति लगाव होता है | नाम अक्षर: ली, लू, ले, लो.
भरणी नक्षत्र में जन्मे लोग – साहसी और स्वाभिमानी होते हैं,कला और सौंदर्य से प्रेम करते हैं,ऊर्जावान और महत्वाकांक्षी होते हैं,सत्य का पालन करते हैं और झूठा दिखावा पसंद नहीं करते,मित्र के प्रति वफादार होते हैं |
भरणी नक्षत्र में उपाय – भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों को यम की पूजा करनी चाहिए,इस नक्षत्र में जरूरतमंदों को तिल और गाय का दान करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है,भरणी नक्षत्र में यात्रा करने से बचना चाहिए।
कृत्तिका नक्षत्र
कृत्तिका नक्षत्र ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से तीसरा नक्षत्र है, जो 26°40′ मेष राशि से 10° वृष राशि तक फैला हुआ है। इस नक्षत्र का स्वामी सूर्य है, और इसे अग्नि देवता से जोड़ा जाता है, जो अग्नि, परिवर्तन और शुद्धिकरण का प्रतीक है।
कृत्तिका नक्षत्र की विशेषताएं – अग्नि का प्रतीक – कृत्तिका नक्षत्र अग्नि का प्रतीक है, जो परिवर्तन और शुद्धिकरण की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इस नक्षत्र में जन्मे लोगों में नेतृत्व क्षमता और दृढ़ इच्छाशक्ति होती है। कृत्तिका नक्षत्र में जन्मे लोग तेजस्वी और बुद्धिमान होते हैं। ये लोग रचनात्मक कार्यों में रुचि रखते हैं और किसी भी कार्य की जड़ तक पहुँचने के लिए तत्पर रहते हैं। कृत्तिका नक्षत्र के जातक प्रभावशाली और दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। ये लोग धैर्यवान होते हैं और किसी भी चुनौती से घबराते नहीं हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृत्तिका नक्षत्र का संबंध भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय से है। कार्तिकेय देवताओं के सेनापति हैं और कृत्तिका नक्षत्र में जन्मे लोगों में भी नेतृत्व क्षमता और सेनापति की तरह गुण देखे जाते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे लोगों को अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए और उन्हें प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। कभी-कभी इस नक्षत्र में जन्मे लोग क्रोध और अधीरता से जूझ सकते हैं, इसलिए उन्हें इन भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। कृत्तिका नक्षत्र में जन्मे लोगों को रचनात्मक कार्यों में रुचि रखनी चाहिए और उन्हें अपने जीवन में शामिल करना चाहिए।
रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र, चौथा नक्षत्र में वृषभ राशि में स्थित एक महत्वपूर्ण नक्षत्र है, जो ज्ञान, समृद्धि और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। यह नक्षत्र चंद्रमा द्वारा शासित है और इसे नक्षत्रों की रानी भी कहा जाता है।
स्वामी ग्रह – रोहिणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह है
देवता – रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रह्माजी हैं
विशेषताएँ- रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग सुंदर, आकर्षक, मनमोहक और सौम्य स्वभाव के होते हैं।वे संगीत और कला के प्रति आकर्षित होते हैं।इनमें रचनात्मक क्षमता होती है।वे बुद्धिमान और प्रतिभाशाली होते हैं।वे मेहनती और महत्वाकांक्षी होते हैं।ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।रोहिणी नक्षत्र को ब्रह्मांड का उद्यान भी कहा जाता है।यह नक्षत्र किसी भी स्थान के मध्यवर्ती प्रदेश को संकेत करता है।रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली है।रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग जनता के बीच लोकप्रिय होते हैं।वे धर्म-कर्म के कार्यों में हिस्सा लेते हैं।वे घूमने-फिरने के शौकीन होते हैं।वे वर्तमान का पूरी तरह आनंद लेते हैं।
मृगशिरा नक्षत्र
मृगशिरा नक्षत्र, जिसे मृगशीर्ष भी कहा जाता है, हिंदू ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से पांचवां नक्षत्र है। यह नक्षत्र ओरायन नक्षत्र से संबंधित है और इसे “हिरण का सिर” के रूप में जाना जाता है. यह नक्षत्र वृष और मिथुन दोनों राशियों के बीच फैला हुआ है, जिसमें पहले दो पद वृष राशि और शेष पद मिथुन राशि में आते हैं.
मृगशिरा नक्षत्र ओरायन नक्षत्र से संबंधित है, जो आकाश में एक चमकदार नक्षत्र है,यह नक्षत्र वृष और मिथुन राशियों के बीच फैला हुआ है.
स्वामी ग्रह: इस नक्षत्र का स्वामी मंगल ग्रह है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बुद्धिमान, संवेदनशील और कलात्मक होते हैं। वे आकर्षक और सामाजिक होते हैं और उनमें सीखने की इच्छा होती है,महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याएँ जैसे मासिक धर्म की समस्याएँ या एसटीडी होने की संभावना होती है, मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं और भूमि-भवन से लाभ प्राप्त करते हैं.
आर्द्रा नक्षत्र
आर्द्रा नक्षत्र, भारतीय ज्योतिष में सत्ताइस नक्षत्रों में से छठा नक्षत्र है, जिसका स्वामी राहु है और यह मिथुन राशि में आता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति चतुर, चालाक और बुद्धिमान होते हैं, साथ ही राजनीति और लेखन में सफल होते हैं। नक्षत्र का स्वामी: राहु,राशि: मिथुन,प्रभाव: राहु और बुध का प्रभाव
इस नक्षत्र में जन्मे जातक चतुर और चालाक,कूटनीति और राजनीति में रुचि रखने वाले,ज्ञान की चाहत करने वाले होते हैं,समस्याओं का सामना धैर्य से करते हैं, यह लोग लेखन और व्यवसाय में सफल व हंसी-मजाक पसंद करने वाले होते हैं। स्वास्थ्य – इन्हें सर्दी, खांसी और छाती संबंधी रोग हो सकते हैं । नक्षत्र से संबंधित देवता – रुद्र (भगवान शिव का एक रूप) । इनकी प्रकृति तामसिक होती है। आर्द्रा नक्षत्र आकाश में एक मणि के समान दिखाई देता है । आर्द्रा नक्षत्र को जीवनदायी कहा जाता है और कृषिकार्य की शुरुआत इसी नक्षत्र में होने के कारण यह नक्षत्र सर्वाधिक लोकप्रिय नक्षत्र है । आर्द्रा नक्षत्र में सूर्य के आने से बारिश का मौसम शुरू हो जाता है ।
पुनर्वसु नक्षत्र
पुनर्वसु नक्षत्र, ज्योतिष के अनुसार आकाश में स्थित 27 नक्षत्रों में से सातवाँ नक्षत्र है, जिसकी अवधि 20° मिथुन से 3.20° कर्क तक है। यह नक्षत्र ज्ञान, बुद्धि और पुनर्जागरण से संबंधित माना जाता है।
स्वामी ग्रह – पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी ग्रह बृहस्पति है। यह नक्षत्र मिथुन और कर्क राशि में फैला हुआ है.
इस नक्षत्र कीअधिष्ठाता देवी अदिति,प्रतीक-बाणों से भरा तरकस । “पुनर्वसु” शब्द का अर्थ है “पुनरावृत्ति” या “प्रकाश की वापसी” । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बुद्धिमान, रचनात्मक, अनुकूल और आध्यात्मिक होते हैं। यह नक्षत्र भगवान राम के जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति थी।मलयालम भाषा में इसे पुनर्थम और दक्षिण भारत में पुनर्पुषम कहा जाता है । पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम तीन चरण मिथुन राशि में स्थित होते हैं तथा चौथा चरण कर्क राशि में होता।इस नक्षत्र पर मिथुन राशि तथा इसके स्वामी ग्रह बुध और कर्क राशि तथा इसके स्वामी चन्द्रमा का भी प्रभाव पड़ता है। पुनर्वसु नक्षत्र को आध्यात्मिक जगत से जुड़ाव रखने वाला माना जाता है । अश्वघोष ने कहा है कि पुनर्वसु ने आयुर्वेद चिकित्सातंत्र का वह भाग पूरा किया जिसे अत्रि ऋषि पूरा नहीं कर सके थे । चरकसंहिता के मूल ग्रंथ अग्निवेशतंत्र के रचयिता अग्निवेश के ये गुरु एवं भरद्वाज ऋषि के समकालीन थे ।
पुष्य नक्षत्र
पुष्य नक्षत्र को भारतीय ज्योतिष में बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। यह 27 नक्षत्रों में से आठवां नक्षत्र है और इसे नक्षत्रों का राजा भी कहा जाता है। यह नक्षत्र कर्क राशि के अंतर्गत आता है और इसका स्वामी चंद्रमा है. पुष्य नक्षत्र का प्रतीक गाय का थन है और इस नक्षत्र को पोषण और समृद्धि से संबंधित माना जाता है. पुष्य नक्षत्र में विवाह के अलावा अन्य सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं, जैसे कि गृह प्रवेश, भूमि-भवन की खरीद, नया व्यवसाय शुरू करना, और सोना-चांदी की खरीदारी. जब पुष्य नक्षत्र गुरुवार के दिन पड़ता है, तो इसे गुरु पुष्य नक्षत्र कहा जाता है। यह एक विशेष रूप से शुभ योग है और इस दौरान किए गए कार्य बहुत फलदायी होते हैं. पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मेहनती, उदार, और परोपकारी होते हैं. पुष्य नक्षत्र में श्राद्ध करने से पितरों को शांति मिलती है और धन, संतान, और समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र को विद्या, ज्ञान, और शिक्षा के लिए भी शुभ माना जाता है.
आश्लेषा नक्षत्र
आश्लेषा नक्षत्र, ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से नवम है। यह कर्क राशि में स्थित है और इसका देवता नाग है। आश्लेषा नक्षत्र का स्वामी बुध ग्रह है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग वाणी में मधुर और दूसरों को प्रभावित करने वाले होते हैं।
आश्लेषा नक्षत्र की विशेषताएं – देवता: नाग,राशि: कर्क,स्वामी: बुध,गुण: मधुर वाणी, दूसरों को प्रभावित करने वाले, अपने दोस्तों के लिए कुछ भी करने को तैयार,दोष: अहंकारी, चतुर, अपने फायदे के लिए दूसरों का इस्तेमाल करने वाले,शुभ अक्षर: दी, डू, डे, डो, डे, मे और दा,शुभ रंग: पीला, सफेद, हरा,शुभ दिशा: पूर्व,कार्यक्षेत्र: राजनीति, लेखक, अभिनेता, कला, वाणिज्य
आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों के लिए सुझाव वाणी में मधुरता रखें अपने शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करें, क्योंकि आपकी वाणी लोगों को प्रभावित कर सकती है।
दोस्तों के साथ संबंध बनाए रखें – अपने दोस्तों के प्रति वफादार रहें और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहें।अपने अहंकार को नियंत्रित करें और दूसरों की बातों को ध्यान से सुनें। किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले सोच-विचार करें और सावधान रहें। अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखें, क्योंकि वे आपके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ,चमेली के पौधे को लगाने से जीवन में सकारात्मकता आती है ,चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को चोला चढ़ाने से उनकी कृपा बनी रहती है
आश्लेषा नक्षत्र के जातकों के लिए कई क्षेत्रों में सफलता की संभावना है। वे लेखक, अभिनेता, राजनेता, कलाकार, या व्यवसायी बन सकते हैं। इन जातकों को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने गुणों का उपयोग करना चाहिए और अपने दोषों को नियंत्रित करना चाहिए।
मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र, आकाशमंडल के 27 नक्षत्रों में से दसवां नक्षत्र है. यह सिंह राशि में आता है. मघा नक्षत्र के स्वामी केतु हैं और इसके देवता पितर हैं. मघा शब्द का अर्थ होता है बलवान, महान, शक्तिशाली। सूर्य और केतु का प्रभाव रहता है । ये महत्वाकांक्षी, साहसी, स्पष्टवादी, धार्मिक होते हैं व धनवान, ऊंचे पद पर, पारिवारिक परंपराओं का पालन करने वाले ये लोग ठिगने कद के साथ सुदृढ वक्षस्थल और मज़बूत झंघा
विद्या अध्ययन, लेखन, शिल्प, बरगद की पूजा करें तो अच्छा रहेगा। ये लोग अपने रिश्तों को बहुत ईमानदारी से निभाते हैं । ये लोग अपने वादे को दिल से निभाते हैं और किसी भी काम को अधूरा नहीं छोड़ते । ये लोग धन से जुड़े फ़ैसले बहुत होशियारी से लेते हैं ।
ये लोग अपने स्वभिमान को बहुत महत्व देते हैं । ये लोग सरकार और सरकारी तंत्र से निकटता बनाए रखते हैं । ये लोग दान-पुण्य के काम बहुत पसंद करते हैं । ये लोग अपने घर में धन-धान्य से संपन्न होते हैं ।
पूर्वा फाल्गुनी
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, जो 27 नक्षत्रों में से 11वाँ है, ज्योतिष में सिंह राशि में आता है और इसका स्वामी शुक्र ग्रह है, जो प्रेम, सुंदरता, धन और आकर्षण का प्रतीक माना जाता है।नक्षत्र स्वामी: शुक्र,राशि: सिंह
प्रतीक – बिस्तर के दो पाए या झूला,कला, साहित्य, प्रेम, सुंदरता और रचनात्मकता में रुचि,अशुभ प्रभाव – कुछ जातकों में क्रूरता या कामुकता हो सकती है,भाग्य – पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है । व्यवसाय – रचनात्मक और कलात्मक क्षेत्रों में सफलता मिल सकती है । स्वास्थ्य – स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचने के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित आहार का पालन करना चाहिए । उपाय – पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे लोगों को शुक्र ग्रह से संबंधित उपाय करने चाहिए, जैसे कि शुक्र देव की पूजा करना, सफेद वस्त्र पहनना और मीठा खाना पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्मे लोगों का व्यक्तित्व – आकर्षक, करुणाशील, सामाजिक और आत्मविश्वासी होते हैं,रचनात्मक और कलात्मक होते हैं,प्रेम और सौंदर्य के प्रति आकर्षित होते हैं,कुछ लोग क्रूर या कामुक प्रवृत्ति के हो सकते हैं । वे विवादों से दूर रहना चाहते हैं और शांति पसंद करते हैं ।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र भारतीय ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से 12वां नक्षत्र है। इसका स्वामी सूर्य है सिंह राशि है और अग्नि तत्व है। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए लोग रचनात्मक,ऊर्जावान और नेतृत्व क्षमता वाले होते हैं, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र विवाह के लिए शुभ माना जाता है, जिससे वैवाहिक जीवन में सुख, प्रेम और समृद्धि आती है,इस नक्षत्र में पैदा हुए पुरुषों को पेट दर्द, फेफड़ों की समस्या और पक्षाघात की समस्या हो सकती है, जबकि महिलाओं को गर्भाशय और गैस्ट्रिक समस्या हो सकती है,इस नक्षत्र के जातक राजनीति, संगीत, खेल, मीडिया और जन संपर्क से जुड़े कार्यों में सफल होते हैं।
हस्त नक्षत्र
हस्त नक्षत्र, जिसे 27 भारतीय नक्षत्रों में से 13वां नक्षत्र माना जाता है, आकाश में हाथ या पंजे के आकार में स्थित है. यह नक्षत्र कन्या राशि में है और इसका स्वामी चंद्रमा है. हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बुद्धिमान, रचनात्मक, और आत्मविश्वासी होते हैं,हस्त का अर्थ होता है “हाथ”,हस्त नक्षत्र कन्या राशि में आता है,इस नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है, जबकि बुध राशि का स्वामी है,हस्त नक्षत्र का प्रतीक हाथ या बंद मुट्ठी है, जो कुशलता, शिल्प कौशल और इच्छाओं को प्रकट करने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है | प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं, हस्त नक्षत्र के चार चरण हैं – रो, ष, ण, ढ,
हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति परिश्रमी, महत्वाकांक्षी और रचनात्मक होते हैं. वे अपने कार्यों को पूरा करने के लिए दृढ़ निश्चयी होते हैं | हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वाले पुरुष मददगार और भरोसेमंद होते हैं | हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वाली महिलाएं थोड़ी अंतर्मुखी होती हैं, लेकिन वे रचनात्मक क्षेत्रों में सफल हो सकती हैं | हस्त नक्षत्र के दौरान किए गए सभी कार्यों का शुभ फल प्राप्त होता है,हस्त नक्षत्र में हुए विवाह लंबे समय तक चलते हैं और सफल रहते हैं,हस्त नक्षत्र को हमारे जीवन में परिश्रम करने की क्षमता और हाथ की कला से किए जाने वाले कार्यों के साथ जोड़कर देखा जाता है |
हस्त नक्षत्र में जन्मे बच्चे का भविष्य आमतौर पर अच्छा होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे मेहनती, बुद्धिमान और रचनात्मक होते हैं। वे स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने वाले और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ होते हैं,वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ होते हैं और मुश्किलों का सामना करने से नहीं डरते,वे स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने वाले होते हैं और दूसरों की राय से प्रभावित नहीं होते,वे परिश्रमी होते हैं और अपने काम को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार रहते हैं,वे संवेदनशील और भावनात्मक होते हैं, इसलिए वे दूसरों की भावनाओं को आसानी से समझ सकते हैं,वे अध्ययनशील और ज्ञान के प्रति उत्सुक होते हैं,हस्त नक्षत्र में जन्मे बच्चे के लिए करियर के विकल्प – इस नक्षत्र में जन्मे बच्चे कई क्षेत्रों में सफल हो सकते हैं, जैसे – कला और रचनात्मक क्षेत्र: कला, संगीत, नृत्य, लेखन, आदि,शिक्षा – शिक्षक, प्रोफेसर,उद्यमी, व्यापारी,डॉक्टर, नर्स, आदि,इंजीनियर, वैज्ञानिक | इस नक्षत्र में जन्मे बच्चों को अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने और कड़ी मेहनत करने की सलाह दी जाती है। उन्हें अपने कौशल को विकसित करने और नए ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए |
हस्त नक्षत्र में कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं जिनसे जीवन में सुख-समृद्धि, धन और सफलता प्राप्त होती है। इनमें से कुछ उपाय हैं – “ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:” मंत्र का जाप 5 बार करने से खर्चों पर नियंत्रण मिलता है,घर में श्वेत दक्षिणावर्त शंख स्थापित करके रोज पूजा में उपयोग करने से घर में स्थायी सुख-समृद्धि बनी रहती है,हस्त नक्षत्र पर सविता का शासन होता है, इसलिए सविता की पूजा करने से बाधाएं दूर होती हैं, प्रेरणा बढ़ती है और आध्यात्मिक तथा व्यक्तिगत विकास में मदद मिलती है,हस्त नक्षत्र में जन्मे लोगों को चांदी और पानी का दान करना चाहिए,हस्त नक्षत्र का पेड़ रीठा है, इसलिए रीठा के पेड़ का दर्शन करना या उसे लगाना शुभ माना जाता है,हस्त नक्षत्र में जन्मे लोगों को गरीबों को ऐसे खाद्य पदार्थ देने चाहिए जिन्हें बनाने में हाथों का इस्तेमाल होता है, अगर आपको अपने नए ऑफिस में काम करने में परेशानी हो रही है तो शिव मंदिर में जाकर नारियल अर्पित करना और शिव के मंत्र का जाप करना चाहिए,घर की सुख-समृद्धि को बरकरार रखने के लिए रीठा का फल भगवान शंकर के मंदिर में अर्पित करें,धन-दौलत और शोहरत के लिए शिव चालीसा का पाठ करें और शिवलिंग को दूध से नहलाएं.
चित्रा नक्षत्र
चित्रा नक्षत्र आकाश मंडल के 27 नक्षत्रों में से 14 वां नक्षत्र है। इस नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह हैं और इसके अधिष्ठाता देव विश्वकर्मा हैं. चित्रा नक्षत्र के बारे में कुछ खास बातें – इस नक्षत्र का प्रतीक मोती है,जो सुंदरता, पवित्रता, और शुभता को दर्शाता है। इस नक्षत्र के पहले दो चरण कन्या राशि में और आखिरी दो चरण तुला राशि में आते हैं – इस नक्षत्र में जन्मे लोगों को रचनात्मक और बुद्धिमान माना जाता है । इस नक्षत्र में जन्मे लोग आशावादी और मिलनसार होते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे लोग अपने काम में लगनशील होते हैं और किसी भी काम को जल्दी पूरा करते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे लोग अपने बुद्धि कौशल से अपने ज्ञान को बढ़ाने वाले होते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे लोग रिश्तों को लेकर भावुक होते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे लोग अपने स्वास्थ्य पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते और गुर्दे और मूत्राशय की समस्या का सामना कर सकते हैं ।इस नक्षत्र का भाग्यशाली अंक एक है । चित्रा नक्षत्र का भाग्यशाली रत्न मोती है,शुभ दिन मंगलवार है,शुभ रंग पीला है,शुभ दिशा दक्षिण है,शुभ धातु तांबा है।
स्वाति नक्षत्र
स्वाति नक्षत्र 15वां नक्षत्र होता है, स्वाति नक्षत्र राहु द्वारा शासित होता है। यह तुला राशि में स्थित होता है और इसके देवता वायु और सरस्वती हैं । इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति आमतौर पर बुद्धिमान, आत्मविश्वासी और नेतृत्व क्षमता वाले होते हैं,स्वाति नक्षत्र में जन्मे लोग स्वतंत्र और रचनात्मक होते हैं,राहु के प्रभाव के कारण, ये व्यक्ति चतुर और चालाक भी होते हैं,ये लोग आत्मनिर्भर होते हैं और अपने आसपास के लोगों की भी देखभाल करते हैं,ये लोग सामाजिक प्रवृत्ति के होते हैं, लेकिन उन्हें दोस्त बनाने में कठिनाई हो सकती है। स्वाति नक्षत्र में जन्मे लोगों में नेतृत्व क्षमता होती है,ये लोग आध्यात्मिक प्रवृत्ति के भी होते हैं। शिक्षा में इन्हें बाधाएं आ सकती हैं, लेकिन अंततः इन्हें सफलता मिलती है। इनके वैवाहिक संबंध सामान्य होते हैं । प्रथम चरण का स्वामी गुरु है, और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चतुर और बुद्धिमान माना जाता है,द्वितीय चरण का स्वामी शनि है, और इस चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को जिद्दी और कभी-कभी आलसी माना जाता है । तृतीय चरण का स्वामी शनि है, और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को शांत और न्यायप्रिय माना जाता है ,चतुर्थ चरण का स्वामी गुरु है, और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भाग्यशाली और उदार माना जाता है।
विशाखा नक्षत्र
विशाखा नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से 16वां नक्षत्र है। इसका स्वामी गुरु बृहस्पति है। यह तुला राशि और वृश्चिक राशि दोनों से जुड़ा हुआ है, जिसके तीन चरण तुला राशि में और एक चरण वृश्चिक राशि में आते हैं । स्वामी ग्रह – बृहस्पति,राशि – तुला और वृश्चिक,देवता -इंद्र और अग्नि, विशाखा का अर्थ है “विभाजित” या “एक से अधिक शाखाओं वाला” । इस नक्षत्र में विवाह, कारीगरी, चित्रकारी और औषधी से संबंधित कार्य शुरू करना शुभ माना जाता है । विशाखा नक्षत्र में जन्मे लोग बुद्धिमान, पढ़े-लिखे और उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले होते हैं । यह नक्षत्र सौभाग्य, व्यावसायिक सफलता, शक्ति, समृद्धि, सुंदरता और उपलब्धियों से जुड़ा माना जाता है । अक्षर – विशाखा नक्षत्र में जन्मे लोगों के नाम अक्षर “रे”, “रो” और “री” से शुरू होते हैं । विशाखा नक्षत्र में जन्मे लोग भाग्यशाली माने जाते हैं और उनके पास धन की कमी नहीं होती । विशाखा नक्षत्र में जन्मे लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि गले या छाती से संबंधित समस्या।
विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को अपने जीवन में कुछ खास चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि निर्णय लेने में कठिनाई या दूसरों से बात करने में संकोच। हालांकि, यह नक्षत्र उन्हें सफलता और समृद्धि भी प्रदान करता है।
हनुमान जी को विभिन्न मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग भोग लगाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, गुड़ और चने का भोग लगाने से घर में शांति आती है और शनि दोष दूर होता है, इमरती का भोग लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, केले का भोग लगाने से भक्त को हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है,घर में शांति के लिए- गुड़ और चने का भोग,मनोकामना पूर्ति के लिए-इमरती का भोग,मंगल दोष निवारण के लिए-केसर-भात,धन लाभ के लिए-खीर,शत्रु नाश के लिए – पान का बीड़ा,सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए- बूंदी के लड्डू,दुख से लड़ने की ताकत के लिए: चूरमा के लड्डू,सफलता प्राप्त करने के लिए – पान का बीड़ा और हनुमान चालीसा का पाठ,रक्षक बनने के लिए-नारियल,हनुमान जी को चोला चढ़ाने से भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अनुराधा नक्षत्र
अनुराधा नक्षत्र, ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से 17वां नक्षत्र है. यह वृश्चिक राशि में आता है. इस नक्षत्र के स्वामी शनि हैं. अनुराधा नक्षत्र में जन्मे लोगों के बारे में कहा जाता है कि ये दृढ़ निश्चयी, साहसी, और महत्वाकांक्षी होते हैं | अनुराधा नक्षत्र स्वामी – शनि,राशि – वृश्चिक,आकार – कमल और छतरी जैसा,देवता मित्र, 12 आदित्यों में से एक, व्यक्तित्व – रचनात्मक, न्यायपूर्ण, अनुशासित, दृढ़ निश्चयी,प्रभाव – जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मददगार,कर्मक्षेत्र – आर्थिक, मनोविज्ञान, शिक्षा, व्यवसाय, वैज्ञानिक, संगीतकार, अभिनेता,इस नक्षत्र में जन्मे लोग अवसरों का पूरा लाभ उठाते हैं,ये लोग हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं,ये लोग दिखावटी दुनिया को पसंद नहीं करते,ये लोग जीवन की गहरी समझ रखते हैं,ये लोग हठी और दृढ़ निश्चयी होते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग मेहनती और लक्ष्य के प्रति गंभीर होते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोगों पर मंगल और शनि का विशेष प्रभाव रहता है | अनुराधा नक्षत्र में कुछ विशेष उपाय करने से आर्थिक और सामाजिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। इन उपायों में पूजा, दान और कुछ विशेष वस्तुओं का प्रयोग शामिल है।
आर्थिक लाभ के लिए – कोयला और धागा,अनुराधा नक्षत्र में अपने हाथ की लंबाई के बराबर काला धागा और छोटा कोयला लें। कोयले को धागे में बांधकर कपड़े में लपेटकर अपने धन रखने के स्थान पर रखें या पूरे दिन अपनी जेब में रखें, लाल रेशमी कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और सफेद फूलों की माला, सफेद मिठाई अर्पित कर पूजा करें। पूजा के बाद गरीब और जरूरतमंदों को अन्न, भोजन, वस्त्र आदि का दान कर सकते हैं.
सामाजिक लाभ के लिए,काले चने का उपाय – अगर आपके निवास स्थान या बिजनेस पर किसी की बुरी नजर लग गई है तो पूरे दिन काले चने को पानी में भिगो दें। भिगोये हुए काले चने के साथ काली उड़द, काली हल्दी और सरसों को काले कपड़े में बांध लें.
पोटली – यदि आप सरकारी नौकरी पाने की इच्छा रखते हैं तो शुक्रवार के दिन अनुराधा नक्षत्र में काले कपड़े में काली उड़द, गुड़, काले तिल और जौ रखकर पोटली बना लें.
अन्य उपाय अनुराधा नक्षत्र में हनुमान जी की पूजा करने से भी लाभ मिलता है। पूजा में सिंदूर और लाल फूल अर्पित करें,शनिदेव के मंत्र का जाप – शनिदेव के मंत्र “ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चरायनम:” का जाप करें, हर तरह की टेंशन से मुक्ति पाने के लिए मौलश्री के पेड़ को प्रणाम करें और उसकी जड़ में जल चढ़ाएं |
ज्येष्ठा नक्षत्र
ज्येष्ठा नक्षत्र वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से 18वां नक्षत्र है। यह वृश्चिक राशि में स्थित है और बुध ग्रह इसका स्वामी है। इस नक्षत्र के देवता इंद्र हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र को गंड मूल नक्षत्र भी कहा जाता है। यह नक्षत्र वृश्चिक राशि में आता है। बुध नक्षत्र का स्वामी होने के कारण, इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों पर बुध का प्रभाव अधिक होता है। इंद्र इस नक्षत्र के देवता हैं, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से साहसी, आत्मविश्वासी और निर्णायक होते हैं। ये लोग आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं और वाणी में चतुराई रखते हैं। केतु और शुक्र का शुभ होना इन जातकों के जीवन को उन्नत करता है। कुछ लोगों का मानना है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति आवेगी, चिड़चिड़े और आक्रामक हो सकते हैं | ज्योतिषियों का मानना है कि इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग वकील, नेता और उद्यमी बन सकते हैं | इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों में इच्छा शक्ति बहुत प्रबल होती है।
मूल नक्षत्र
मूल नक्षत्र ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से एक है। इसे “गंडमूल नक्षत्र” भी कहा जाता है। यह नक्षत्र केतु के द्वारा शासित है और कुछ ज्योतिषियों द्वारा इसे एक अशुभ नक्षत्र माना जाता है, जबकि कुछ अन्य इसे एक भाग्यशाली नक्षत्र मानते हैं. मूल नक्षत्र को ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण नक्षत्र माना जाता है। यह “गंडमूल” नक्षत्रों में से एक है, जिनमें मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा, अश्विनी, रेवती और मघा शामिल हैं. मूल नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है, जो एक छाया ग्रह है. मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को कुछ ज्योतिषियों द्वारा भाग्यशाली माना जाता है, जबकि कुछ अन्य इसे अशुभ मानते हैं। कुछ मान्यताएँ हैं कि मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को माता-पिता, परिवार और स्वयं के लिए हानिकारक हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति मूल नक्षत्र में जन्म लेता है, तो ज्योतिषियों द्वारा कुछ उपाय बताए जाते हैं, जैसे कि मूल नक्षत्र की शांति करवाकर दोष को शांत करना. मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति आमतौर पर शक्तिशाली, दृढ़ निश्चयी और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ होते हैं. वे अक्सर दूसरों की मदद करने और उनकी देखभाल करने वाले होते हैं. कुछ मामलों में, वे संवेदनशील और सहज स्वभाव के भी हो सकते हैं.
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से 20वां नक्षत्र है। यह धनु राशि में स्थित है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है । इस नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में होते हैं, इसलिए इस पर बृहस्पति का भी प्रभाव पड़ता है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के नामाक्षर हैं – भू, धा, फा, ढा, भे । अधिपति ग्रह: शुक्र,राशि धनु, स्वामी शुक्र,लिंग स्त्री । ये लोग हर कार्य को मेहनत से करते हैं और उत्साही रहते हैं । ये हर समय प्रसन्न रहते हैं और जीवन का आनंद लेते हैं । ये अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चयी होते हैं । ये किसी भी चुनौती का सामना करने से नहीं डरते । ये दूसरों की मदद करने और सत्य का पालन करने में विश्वास रखते हैं । ये अपने विचारों से आसानी से नहीं हटते । इन्हें आसानी से गुस्सा आ जाता है । ये दूसरों की भावनाओं को समझने में विफल हो सकते हैं।पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कुछ विशिष्ट उपाय करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
एक नया मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरें और किसी मंदिर या सुपात्र ब्राह्मण को दान करें। शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की उपासना करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
यदि आप व्यवसाय शुरू करने या उद्यम शुरू करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको उच्च पद पर आसीन और विश्वसनीय लोगों का समर्थन प्राप्त करना चाहिए। पूर्वा षाढा़ नक्षत्र के स्वामी शुकाचार्य हैं । साथ ही इस नक्षत्र में जल की उपासना भी बतायी गई है और जल के देवता वरूण देव हैं। लिहाजा आज के दिन जल के व्यर्थ उपयोग से वरूण देव का दोष लगता है।
*उत्तरषाढा़ नक्षत्र*
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र को 21वां नक्षत्र माना जाता है, सूर्य का नक्षत्र है और इसका स्वामी सूर्यदेव है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अक्षर भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी हैं। यह नक्षत्र धनु और मकर राशि में फैला हुआ है और इसके स्वामी सूर्य और शनि हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति शक्तिशाली, आकर्षक और मिलनसार होते हैं। वे अपने कामों को समर्पण और ईमानदारी से करते हैं और हर क्षेत्र में कुशल होते हैं। उत्तराषाढ़ा का अर्थ है “अंतिम विजय” या “अपराजित”, जो दर्शाता है कि इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं । ये लोग आकर्षक और मिलनसार होते हैं, जिनका सरल व्यवहार दूसरों को आकर्षित करता है । वे अपने काम को समर्पण और ईमानदारी के साथ करते हैं और गलत कामों से दूर रहते हैं । वे मेहनती और बुद्धिमान होते हैं और हर तरह के कामों में माहिर होते हैं । कुछ लोग इन्हें दयालु और शांत स्वभाव का बताते हैं । इस नक्षत्र में जन्मे लोग अपने प्रयासों में अंततः सफलता प्राप्त करते हैं । इन लोगों को अपने करियर में सावधान रहना चाहिए क्योंकि जिस पर भरोसा किया जाता है, वह धोखा दे सकता है । महिलाओं को लेखन में रुचि हो सकती है और वे शिक्षक के तौर पर भी सफल हो सकती हैं । सलाहकार, बैंक, शोधकर्ता, वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता जैसे करियर अच्छे रहते हैं। इन लोगों को इन क्षेत्रों में सफलता मिल सकती है । इन लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, क्योंकि उन्हें कुछ स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं । हाथी के दांत को माना जाता है। परंपराओं का सम्मान करते हैं और परंपराओं को तोड़ने वाले लोगों को पसंद नहीं करते हैं।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में कुछ विशिष्ट उपाय करके अपने जीवन में शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप जीवन में विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो सोमवार को बेल पत्रों की माला बनाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। यदि आप करियर में सफलता चाहते हैं, तो सोमवार को कटहल के पेड़ को प्रणाम करें। यदि आप विद्या के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में सूर्यदेव को लाल पुष्प अर्पित करें और 21 बार सूर्य मंत्र का जप करें। यदि आप अपनी वाणी को मधुर और स्वभाव को नम्र बनाए रखना चाहते हैं, तो एक बर्तन में जल भरकर, उसमें कुछ सिक्के डालकर मंदिर में रखें, अगले दिन सिक्के निकाल कर अपने पास रखें और जल को पौधे में डालें।
यदि आप बेहतर स्वास्थ्य और लंबी आयु चाहते हैं, तो सूर्यदेव के मंत्र का 108 बार जप करें। अगर आप अपने गुस्से पर काबू पाना चाहते हैं, तो आज के दिन गुड़ का भोग लगाएं। अगर आप मजबूत इरादों के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें। यदि आप राजनीति में कदम रखना चाहते हैं, तो चींटियों को शक्कर मिला हुआ आटा डालना चाहिए। यदि आपको लगता है कि किसी नजर दोष के कारण आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, तो नींबू पर काले रंग से ‘क्लीं’ लिखकर आपके ऊपर से वार दें और फिर उसे फेंक दें। यदि आप अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो शिवलिंग पर दूध अर्पित करें और शिव मंत्र का 11 बार जप करें। इस नक्षत्र में जन्मे लोगों को चाहिए कि किसी जरूरतमंद को कांसे के कटोरे में घी भरकर अपना चेहरा देख कर दान करें, यह छाया दान आपके सेहत के लिए लाभकारी होगा।
श्रवण नक्षत्र
श्रवण नक्षत्र, वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से 22वां नक्षत्र है. इसे भगवान विष्णु का नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग रचनात्मक, बुद्धिमान, और परिश्रमी होते हैं।
इस नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है,इस नक्षत्र का प्रतीक कान और बाण है,इस नक्षत्र के चारों चरण मकर राशि में आते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग दूसरों की परेशानी नहीं देख सकते और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग स्वच्छता पसंद करते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग यात्राओं के शौकीन होते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग सीखने और पढ़ने की चाहत रखते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग धर्म-कर्म में रुचि रखते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग ज्ञान की गहराई रखते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग उदार और दायलु होते हैं,इस नक्षत्र में जन्मे लोग सरल स्वभाव के कारण मित्रों और सगे-संबंधियों में लोकप्रिय होते हैं।इस नक्षत्र का नाम माता-पिता के भक्त श्रवण कुमार के नाम पर रखा गया है।
श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों के लिए कुछ उपाय हैं, जैसे कि कपास की जड़ को भुजा में बांधना, ब्राह्मणों को भोजन कराना, और आक के पौधे को घर में लगाना या उपहार स्वरूप देना,अपामार्ग की जड़ को भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है।
कपास की जड़ को भुजा में बांधने से लाभ होता है।किसी जरूरतमंद बच्चे को विषय की पुस्तकें दान करें।“ॐ ऋं, ॐ ऌं” मंत्र का जाप करें। आक के पौधे को घर में लगाएं और जल दें। आक के वृक्षों को लोगों को उपहार स्वरूप भी दें।
धनिष्ठा नक्षत्र
धनिष्ठा नक्षत्र, आकाश मंडल के 27 नक्षत्रों में से 23वां नक्षत्र है. यह नक्षत्र चार तारों से मिलकर बना है और इसकी आकृति मंडल, मुरज या मृदंग की तरह दिखती है. ज्योतिष के मुताबिक, धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी मंगल है और देवता वसु हैं | धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले बहुमुखी प्रतिभा और बुद्धि के धनी होते हैं, स्वभाव से नरम दिल और संवेदनशील होते हैं,इनका दिमाग तेज़ होता है और ये ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,किसी भी तरह की परेशानियों और विघ्न-बाधाओं से घबराते नहीं और उनका डटकर सामना करते हैं | वाद-विवाद और तर्क करने में काफ़ी माहिर होते हैं,दूसरों को अपनी बातों में जल्दी प्रभावित कर लेते हैं,ये भाग्यशाली व मिलनसार स्वभाव के होते हैं,अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति जिम्मेदार होते हैं | धनिष्ठा नक्षत्र को संपत्ति और अधिकार से जुड़ा माना जाता है | धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों का मन कई विशेष सामाजिक कामों में लगता है.*धनिष्ठा नक्षत्र*
धनिष्ठा नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से 23वां नक्षत्र है। इसका अर्थ “सबसे धनवान” होता है। इस नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह और देवता वसु हैं।धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुमुखी प्रतिभा के धनी,मिलनसार और जिम्मेदार होते हैं ।
धनिष्ठा मतलब “सबसे धनवान”,स्वामी – मंगल ग्रह,
देवता – वसु,राशियाँ – धनिष्ठा नक्षत्र के पहले दो चरणों में जन्म लेने वाले लोगों की राशि मकर होती है और आखिरी दो चरणों में जन्म लेने वाले लोगों की राशि कुंभ होती है । धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों पर शनि और मंगल का विशेष प्रभाव पड़ता है। ये लोग बहुमुखी प्रतिभा और बुद्धि के धनी होते हैं।इनमें स्वाभिमान की भावना भरी होती है और ये मान-सम्मान को बहुत महत्व देते हैं।ये स्वभाव से नरम दिल और संवेदनशील होते हैं.
इनका दिमाग तेज होता है और ये ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इनका सामाजिक दायरा काफी बड़ा होता है और ये सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ये किसी भी तरह की परेशानियों और विघ्न-बाधाओं से घबराते नहीं और उनका डटकर सामना करते हैं।
ये वाद-विवाद और तर्क करने में काफी माहिर होते हैं। इनको अकेले रहना पसंद नहीं होता और लोगों के साथ घुलना-मिलना अच्छा लगता है। ये दूसरों को अपनी बातों में जल्दी प्रभावित कर लेते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में यात्रा जैसे कार्यों को शुरू करने को शुभ माना जाता है।
धनिष्ठा नक्षत्र में शमी वृक्ष की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस नक्षत्र के स्वामी मंगल ग्रह हैं, इसलिए मंगल की उपासना करना भी शुभ होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में श्री हनुमान और भगवान शंकर की पूजा करने से भी अच्छे फल प्राप्त होते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में गौ माता की सेवा करना भी शुभ माना जाता है। धनिष्ठा नक्षत्र में धन-समृद्धि प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जा सकते हैं, जैसे कि सुबह मुख्य द्वार पर उपाय करना, जरूरतमंद व्यक्ति को कंबल दान करना, शाम को ईशान कोण में दीपक जलाना, और मां लक्ष्मी का प्रिय भोग अर्पित करना। धनिष्ठा नक्षत्र को भाग्यशाली और संपत्ति से जुड़ा हुआ माना जाता है।
*शतभिषा नक्षत्र*
शतभिषा नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 24वां नक्षत्र है। इसका शाब्दिक अर्थ है “सौ चिकित्सक” और यह कुंभ राशि के अंतर्गत आता है । इसका स्वामी राहु है, जो एक छाया ग्रह है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बुद्धिमान, सत्यनिष्ठ, महत्वाकांक्षी और एकांतप्रिय होते हैं । शतभिषा नक्षत्र में नामकरण, मुंडन, कोई नया सामान खरीदना और विद्या आरंभ करना शुभ माना जाता है । इस नक्षत्र में यात्रा करना और विवाह करना अशुभ माना जाता है । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक रहस्यमयी, साहसी और चतुर होते हैं । राहु और शनि का प्रभाव इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों पर रहता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक समाज में प्रतिष्ठित होते हैं, अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं और करियर में सफल होते हैं। शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक बुद्धिमान, सत्यनिष्ठ और महत्वाकांक्षी होते हैं। उन्हें एकांत प्रिय होता है और वे गुप्त विषयों में रुचि रखते हैं।शतभिषा नक्षत्र में कुछ विशेष उपाय करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए मंदिर में सरसों के तेल की शीशी दान करें, ज्ञान में वृद्धि के लिए चंदन का टीका लगाएं, और व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए जटा वाला नारियल दान करें । चंदन को घीसकर मस्तक पर टीका लगाएं। राहु के मंत्र का 11 बार जप करें, मंत्र है – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।।
पीले रंग की कौड़ियां जलाकर उनकी राख को पानी में प्रवाहित करें या फिटकरी से दांत साफ करें। गले में चांदी की माला धारण करें । बच्चे के अंदर दूसरे लोगों की मदद करने का भाव लाने के लिए राहु मंत्र का जप करें।
*पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र*
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, 27 नक्षत्रों में से 25वां नक्षत्र है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र से जुड़े अक्षर हैं – दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची । यह कुंभ और मीन राशि के बीच स्थित है, जिसमें इसके पहले तीन चरण कुंभ में और आखिरी चरण मीन में आते हैं। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी गुरु (बृहस्पति) हैं, और इसके देवता अज एकपाद हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग आमतौर पर मददगार, विनम्र, और व्यावहारिक होते हैं, लेकिन उनमें दोहरा चरित्र भी हो सकता है। वे शांत, अन्याय के प्रति संवेदनशील, और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दृढ़ होते हैं। उन्हें धन संचय करने और जिम्मेदारी से खर्च करने की आदत होती है। वे शिक्षक, ज्योतिषी, और वैज्ञानिक क्षेत्र में रुचि रखते हैं।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग धनी, सुखी, और भाग्यशाली होते हैं। वे अपने ज्ञान और बुद्धि के लिए जाने जाते हैं। वे अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं और नकारात्मक विचारों से दूर रहते हैं। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए कुछ उपाय दिए गए हैं, जो उनके जीवन में सुख और समृद्धि ला सकते हैं – पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता अज एकपाद हैं, जो भगवान शिव का ही रूप हैं। इसलिए, भगवान शिव की पूजा करना इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिए बहुत फायदेमंद होता है । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र राहु के प्रभाव में भी होता है। राहु को शांत रखने के लिए, दुर्गा सप्तशती का पाठ या श्रवण करें, सफाई कर्मियों को दान करें, और गरीबों की मदद करें । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी ग्रह बृहस्पति है। इसलिए, बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने के लिए, बृहस्पति की पूजा करें और धार्मिक कार्य करें। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखे किया जा सकता है, जैसे कि शादी या घर का निर्माण । इस नक्षत्र में दान-पुण्य करना भी बहुत शुभ होता है। आप गरीबों को भोजन या कपड़े दान कर सकते हैं या किसी धार्मिक संस्था को आर्थिक सहायता दे सकते हैं।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से 26वाँ नक्षत्र है, जो मीन राशि के अंतर्गत आता है. इस नक्षत्र का स्वामी शनि है और यह नक्षत्र शांति, ज्ञान और वैराग्य के साथ जुड़ा हुआ है । उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मीन राशि के चतुर्थ चरण में आता है। इस नक्षत्र का देवता अतिर्बुधन्य को माना गया है, जिन्हें भगवान विष्णु को शैय्या प्रदान करने वाला माना जाता है । इस नक्षत्र का प्रतीक सिंह का पिछला पैर है । इस नक्षत्र का गुण सात्विक है । इस नक्षत्र की नाड़ी शततारि है । उत्तराभाद्रपद नक्षत्र चार चरणों में विभाजित ,पहला चरण: विनम्र, दयालु और परोपकारी,दूसरा चरण: ज्ञानी, विद्वान और अध्यात्मिक,तीसरा चरण: धनी, समृद्ध और प्रसिद्ध,चौथा चरण: साहसी, वीर और पराक्रमी ।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग धार्मिक विचारों वाले और अध्यात्म में रुचि रखते हैं।
ये लोग शांत, उदार और परोपकारी होते हैं, ये सत्यवादी और प्रभावशाली होते हैं, और अपने शब्दों से दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं,
ये जीवनसाथी के प्रति वफादार होते हैं और उन्हें वैवाहिक सुख का आनंद मिलता है । इन्हें दर्शनशास्त्र और ज्योतिष में गहरी रुचि होती है । इन्हें आमतौर पर जन्मस्थान से दूर अधिक प्रसिद्धि मिलती है । उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में कुछ उपाय दिए गए हैं जो आपके जीवन में सकारात्मकता ला सकते हैं और कुछ नकारात्मक प्रभावों से बचाव कर सकते हैं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में पितृ पक्ष में पिंडदान करना, गरीबों को भोजन कराना, वस्त्र दान करना और पितरों की पूजा करना शुभ माना जाता है, अगर आप अपना व्यवसाय बढ़ाना चाहते हैं तो केसरिया रंग का वस्त्र किसी मंदिर के पुजारी को दान करें, यदि आप लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं और अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहते हैं तो हनुमान मंदिर में खजूर दान करें,यदि आपको कोई बीमारी है तो वस्त्र दान करें और पितरों का श्राद्ध करें, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे लोगों को नीम के पेड़ की उपासना करनी चाहिए, जो शुभ फल प्रदान करती है, यदि आप किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा से परेशान हैं, तो गाय को दो केले खिलाएं जो एक-दूसरे से जुड़े हों और उस पर थोड़ा सा शहद लगाएं। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में धार्मिक कार्यों में शामिल होने से लाभ होता है। दान-पुण्य करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। अध्यात्म से जुड़ने से जीवन में शांति और स्थिरता आती है।
रेवती नक्षत्र
रेवती नक्षत्र, जो 27 नक्षत्रों में से अंतिम है, मीन राशि में आता है और इसे धन, विस्तार और उत्साह के लिए शुभ माना जाता है । रेवती नक्षत्र 32 तारों का समूह है जो एक मृदंग की आकृति जैसा दिखता है । यह मीन राशि में आता है और इसके स्वामी बुध ग्रह हैं । इस नक्षत्र में विद्या आरंभ, गृह प्रवेश, विवाह, सम्मान प्राप्ति, देव प्रतिष्ठा, वस्त्र निर्माण जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है । रेवती नक्षत्र में दक्षिण दिशा की यात्रा और शव दाह जैसे कार्य नहीं करने चाहिए । इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग तेजस्वी, सुंदर, चतुर, विद्वान और धनवान होते हैं । वायु विकार, ज्वर और पीठ दर्द जैसी समस्याओं का खतरा हो सकता है । रेवती नक्षत्र का संबंध पानी में तैरती मछली से भी जोड़ा जाता है । रेवती नक्षत्र का अंतिम पद, जो गलांत योग के रूप में जाना जाता है, कुछ लोगों में दुर्बुद्धि और दुरमति का कारण बन सकता है ।
रेवती नक्षत्र के उपाय जो विभिन्न प्रकार की समस्याओं के लिए लाभकारी हो सकते हैं।अनावश्यक खर्चों से परेशान होने पर महुआ के पेड़ का बांदा घर लाएं, लाल कपड़े में लपेटें और मंदिर में रखें। महुआ के वृक्ष से 11 पत्ते तोड़ें, उन पर चंदन या कुमकुम से “श्री” लिखें, सफेद धागे में पिरोकर हनुमान जी मंदिर में अर्पित करें। नौकरी में बदलाव और तनाव से परेशान होने पर महुआ का एक पत्ता तोड़ें, साफ पानी से धोएं, “श्री राम” लिखकर पर्स या तिजोरी में रखें, और संभव हो तो सुंदरकांड का पाठ करें। बच्चे को रात में डर लगने पर हनुमानजी को प्रणाम करें, सिंदूर लेकर बच्चे को तिलक करें, हनुमान चालीसा का पाठ करें। रेवती नक्षत्र में विद्या आरंभ, गृह प्रवेश, विवाह, सम्मान समारोह जैसे कार्य करना शुभ होता है। रेवती नक्षत्र से जुड़ा अशोक वृक्ष प्रेम और करुणा का प्रतीक है। यदि रेवती नक्षत्र में जन्मे लोगों की उम्र 17 से 21 वर्ष या 24 वर्ष के बीच है, तो जीवन में परेशानियां आ सकती हैं। रेवती नक्षत्र में जन्मे लोगों को इसी नक्षत्र के वर्तन का दान करना लाभकारी होता है।
अधिक जानकारी हेतु व जन्म कुंडली दिखाने व बनवाने हेतु संपर्क करें – सतीश शर्मा – 9312002527 , 9560518227