मानवता पर युद्ध और पाकिस्तान का विभाजन ही शांति का मार्ग ?
डॉ. परमवीर ‘केसरी’, राजनीतिक विश्लेषक
“पाकिस्तान का मानवता पर युद्ध: ‘अन्याय कहीं भी हो, न्याय के लिए हर जगह ख़तरा है'”
पाकिस्तान आज एक गहरे सांप्रदायिक संकट से जूझ रहा है, जिसका मूल कारण उसकी सत्ता संरचना में क्षेत्रीय असमानता है। वर्ष 1947 से ही बलोच लोगों को उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वंचित रखा गया है। राजनीतिक, प्रशासनिक और सैन्य प्रतिष्ठान पर पंजाबी मुसलमानों का लगभग एकाधिकार बना हुआ है। पाकिस्तान की कुल जनसंख्या में बलोच, पश्तून और सिंधी समुदायों की महत्वपूर्ण भागीदारी है, परंतु सत्ता के हर स्तर पर उन्हें नजरअंदाज किया जाता है।
बलोचिस्तान, जो कि प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण प्रदेश है, वहाँ के निवासियों को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है जबकि उसी क्षेत्र से गैस और खनिज पदार्थों की आपूर्ति पाकिस्तान के अन्य प्रांतों को होती है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि संसाधनों का दोहन उस जनता के लिए किया जा रहा है जिसे हमेशा अलगाववादी और विद्रोही बताकर सैन्य कार्रवाई का शिकार बनाया गया है? पाकिस्तान की सेना ने बलोच राष्ट्रवाद को कुचलने के लिए दशकों से दमनकारी रणनीतियाँ अपनाई हैं। मानवाधिकार उल्लंघनों की लंबी सूची में बलोच विद्यार्थियों की ‘गायबशुदगी’ और पत्रकारों की हत्याएं एक आम बात बन चुकी हैं।
इसी प्रकार, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा के निवासियों में भी गहरी असंतोष की भावना है। सिंधी बुद्धिजीवियों का मानना है कि पंजाबी प्रभुत्व के चलते सिंधी भाषा, संस्कृति और पहचान को हाशिए पर धकेला गया है। वहीं, पश्तून राष्ट्रवादी आंदोलन, विशेषकर ‘पश्तून ताहफुज मूवमेंट’, यह साफ़ दर्शाता है कि पाकिस्तान की सेना किस प्रकार अपने ही नागरिकों के खिलाफ युद्धरत है। सेना द्वारा फैलाई गई हिंसा को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की आड़ में वैधता दी जाती है, जबकि इसके पीछे राजनीतिक नियंत्रण और संसाधनों पर कब्जे की मंशा होती है।
इस भीतरी असंतोष के बावजूद, पाकिस्तान भारत के विरुद्ध एक छद्म युद्ध छेड़े हुए है। वह आतंकवाद को हथियार बनाकर भारत में अशांति फैलाने की कोशिश करता है और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिले राहत पैकेज का उपयोग कर रहा है। यह न केवल भारत के लिए बल्कि समस्त मानवता के लिए खतरे की घंटी है कि एक दिवालिया राष्ट्र भी अपनी प्राथमिकताओं में युद्ध को शीर्ष पर रखता है।
गौर करने की बात यह है कि पाकिस्तान के चारों मुख्य प्रांत – पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा – सांस्कृतिक, भाषाई और ऐतिहासिक दृष्टि से एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। इनकी पहचानें अलग हैं, और उन्हें एक झूठी इस्लामी एकता के नाम पर एकजुट रखने की कोशिश, अब असफल होती दिख रही है। ऐसे में, यदि पाकिस्तान का बाल्कनाइजेशन (विभाजन) होता है, तो यह न केवल भारत के लिए बल्कि दक्षिण एशिया में स्थायी शांति की स्थापना के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया होगी।
भारत की स्थिति इस सन्दर्भ में स्पष्ट है और गीता में भी कहा गया है —
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥”
अर्थात्, सज्जनों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए भगवान बार-बार अवतार लेते हैं। भारत की नीति भी इसी श्लोक पर आधारित है — न कि आक्रामकता पर, बल्कि रक्षा और न्याय की भावना पर।
इस संदर्भ में यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अब केवल एक देश नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ एक युद्ध की प्रयोगशाला बन चुका है। जब तक इसका विभाजन नहीं होगा, शांति की कल्पना दक्षिण एशिया में असंभव है। पाकिस्तान के अंदरूनी अंतर्विरोध ही उसके पतन का कारण बनेंगे और वही मानवता के पक्ष में एक शुभ संकेत होगा।