महाराणा प्रताप
सतीश शर्मा
राणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा उदय सिंह द्वितीय उनके पिता थे और रानी जीवन कंवर उनकी माता थीं। महाराणा उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के शासक थे, जिनकी राजधानी चित्तौड़ थी। महाराणा प्रताप को युवराज की उपाधि दी गई थी क्योंकि वे अपने पच्चीस पुत्रों में सबसे बड़े थे। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं में से एक थे. उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया और हमेशा अपनी मातृभूमि की रक्षा की । उनकी अदम्य साहस, शौर्य और स्वतंत्रता की भावना ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया । महाराणा प्रताप न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे अपनी संस्कृति और स्वाभिमान के प्रतीक भी रहे । एकलिंग जी महादेव को मेवाड़ राज्य के महाराणाओं और राजपूतों का कुल देवता बताया गया है । जब भी मेवाड़ का राजा किसी युद्ध में जाता था तो सबसे पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना करता था और आशीष लेता था । महाराणा प्रताप ही अपने पूर्वजों की इस परंपरा को निभाते थे और एकलिंग जी को धोक लगाकर कही युद्ध में जाते थे । महाराणा प्रताप ने 1583 में विजयादशमी पर मेवाड़ को आज़ाद कराने के लिए अभियान छेड़ा था । इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा था.एक हिस्से का नेतृत्व खुद महाराणा प्रताप कर रहे थे, तो दूसरी हिस्से का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थे । बहलोल खान, मुगल बादशाह अकबर के सेनापति थे । कहा जाता था कि बहलोल खान को कभी कोई जंग में नहीं हरा सका था । अकबर बहलोल खान पर पूरी तरह से भरोसा करता था । बहलोल खान बहुत बेरहम था,बहलोल खान दुश्मनों को बहुत दर्दनाक मौत देता था महाराणा प्रताप और बहलोल खान के बीच हल्दीघाटी के युद्ध में सामना हुआ था । इस युद्ध में बहलोल खान महाराणा प्रताप के सामने टिक नहीं पाया था । महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को एक ही वार में घोड़े समेत दो हिस्सों में काट दिया था ।
महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ 225 लड़ाइयां लड़ीं, जिनमें से अधिकांश में उन्हें जीत मिली। उनके बेटे महाराणा अमर ने राजा के तौर पर 17 बड़ी लड़ाइयां लड़ीं और सभी में जीत हासिल की। मारवाड़ के राव चंद्रसेन राठौर ने अपना जीवन मुगलों से लड़ते हुए बिताया और जब तक वे जीवित रहे, अकबर मारवाड़ में पैर नहीं रख सका। भांजी सिंह जडेजा ने भी मुगलों को भारी नुकसान पहुंचाया।भामा शाह (1547-1600) महाराणा प्रताप सिंह के एक प्रसिद्ध सेनापति, मंत्री और करीबी सहयोगी थे। उनके द्वारा प्रदान की गई वित्तीय सहायता से महाराणा प्रताप को अपनी सेना को बहाल करने और अपने खोए हुए क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा वापस पाने में मदद मिली।महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो,और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी।कहा जाता है कि शिकार करते समय महाराणा प्रताप के धनुष की कमान उनकी आंत में लगी। इससे उनके पेट में गहरा जख्म हो गया। इसी से उनकी मौत हो गई।महाराणा प्रताप के शौर्य की बात हो और उनके प्रिय घोड़े चेतक का जिक्र न किया जाए, यह भी संभव नहीं। दरअसल महान राजपूत योद्धा महाराणा प्रताप का अश्व चेतक भी उन्हीं की भांति वीर योद्धा था, जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था।
महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ के सबसे प्रसिद्ध और वीर राजाओं में से एक थे। महाराणा प्रताप ने अपने शासनकाल में कई लड़ाइयाँ लड़ीं और उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी सबसे प्रसिद्ध लड़ाई हल्दीघाटी की लड़ाई थी, जो 1576 में हुई थी। इस लड़ाई में, महाराणा प्रताप ने मुगल बादशाह अकबर की सेना का सामना किया और वीरता से लड़े। हालांकि वह इस लड़ाई में हार गए, लेकिन उनकी वीरता और साहस ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप में प्रसिद्ध बना दिया। महाराणा प्रताप एक वीर योद्धा होने के साथ-साथ एक न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजा भी थे। वह अपने लोगों के प्रति बहुत दयालु थे और उन्होंने हमेशा अपने राज्य की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। उनकी विशेषताओं में शामिल हैं । महाराणा प्रताप एक वीर योद्धा थे जिन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह एक न्यायप्रिय राजा थे जिन्होंने हमेशा अपने लोगों के हितों की रक्षा की। महाराणा प्रताप एक धर्मपरायण राजा थे जिन्होंने हमेशा अपने धर्म के अनुसार कार्य किया। महाराणा प्रताप की विरासत आज भी जीवित है। वह एक महान योद्धा और एक न्यायप्रिय राजा के रूप में जाने जाते हैं। उनकी वीरता और साहस ने उन्हें एक महान व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध बना दिया है। उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। महाराणा प्रताप एक महान योद्धा और एक न्यायप्रिय राजा थे जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। उनकी वीरता और साहस ने उन्हें एक महान व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध बना दिया है। उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।
कुछ महत्वपूर्ण लड़ाई – तराइन की पहली लड़ाई – 1191 , पानीपत की पहली लड़ाई – 1526 , खानवा का युद्ध – 1527 , चौसा का युद्ध – 1539 , कन्नौज की लड़ाई – 1540 , हल्दीघाटी की लड़ाई 1576