करवा चौथ (करक चतुर्थी)
हिन्दू पंचांग अनुसार कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन यह व्रत किया जाता है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। इस व्रत में अपने वैवाहिक जीवन को समृद्ध बनाए रखने के लिए सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है।
सभी विवाहित स्त्रियाँ इस दिन श्री गणेश जी की पुजा, शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। चूंकि शिव-पार्वती का पति-पत्नी के युगल रूप में धार्मिक महत्त्व है इसलिए इनके पूजन से सभी स्त्रियाँ पारिवारिक सुख-समृधि की कामना करती हैं।
करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा करने का बहुत ही खास महत्व है। चंद्रमा को शीतलता और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है और इससे मिली मानसिक शांति से रिश्ते मजबूत होते हैं। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर लोग जो मोक्ष को प्राप्त हुए हैं वह भी चंद्रमा वाले दिन यानी पूर्णिमा वाले दिन ही प्राप्त हुए है। जैसे समुद्र को चंद्रमा रेगुलेट करता है वैसे ही हमारे मन को भी चंद्रमा रेगुलेट करता है। चंद्रमा को लंबी आयु का वरदान मिला है. चांद के पास प्रेम और प्रसिद्धि है। यही वजह है कि सुहागिनें चंद्रमा की पूजा करती है। जिससे ये सारे गुण उनके पति में भी आ जाए।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16,25,45 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।
पूजन विधि एवं नियम, व्रत विधि:-
जल से भरा हुआ लोटा रखें। करवा ले, करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें,कथा सुने |
‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’
रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। इसके बाद पति को भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
जिनके पति फोज में हैं या प्रदेश में है वह उन के फोटो को देख कर अपने व्रत को सम्पन्न करें।
सुहागिनों को इस दिन खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि सुहाग सामग्री यानि चूड़ी, मैहंदी , बिंदी, सिंदूर को कचड़े में बिल्कुल ना फेंके,इतना ही नहीं अगर चूड़ी पहनते वक्त टूट भी(मोल) जाए तो उसे संभालकर पूजा स्थान पर रख दें।
करवा चौथ व्रत कथा
एक समय की बात है, सात भाइयों की एक बहन थी उसका नाम वीरो था , पहले लडकियों की शादी 12 से 15 साल तक कर दी जाती थी गोणा बाद में होता था। अक्सर पहला करवा चोथ मायके में ही मनाया जाता था। वीरो का विवाह एक राजा से हुआ। विवाहोपरांत जब पहला करवा चौथ था , तो वीरो रानी अपने मायके में थी । रीति-रिवाज अनुसार उसने करवा चौथ का व्रत तो रखा किन्तु अधिक समय तक व भूख-प्यास सहन नहीं कर पा रही थी, और चाँद दिखने की प्रतीक्षा में बैठी रही।
उसका यह हाल उन के सातों भाइयों से ना देखा गया, अतः उन्होंने बहन को भुखा देख कर युक्ति बनाई। एक पीपल के पेड़ के पिछे जा कर आग जलाई ओर उसके आगे छलनी लगा दी, जो उनके घर से दिखता था, दो भाई भागते आये बहन चांद निकल आया अर्घ्य दे ले, नकली चाँद की छाया दिखा दी। बहन को लगा कि असली चाँद दिखाई दे गया है। उसने भाभीयो से कहा भाभी चांद निकल आया, भाभीयो ने कहा तेरा ही चांद निकला है हमारा नही वह नादान समझ नहीं पाई और उसने नकली चांद को अर्घ्य दें कर अपना व्रत समाप्त कर लिया। इधर जैसे ही बीरो ने पहला ग्रास मुंह में डाला बाल आ गया, दुसरा टुकड़ा खाने लगी मक्खी मुंह में आ गई, तिसरा टुकड़ा उठाती कि ससुराल से खबर आ गई पति मरनासन्न अवस्था में है जल्दी भेजो उसके पति का स्वास्थ्य बिगड़ गया है
यह समाचार सुनते ही वह तुरंत अपने ससुराल को रवाना हो गयी। रास्ते में वीरो रानी की भेंट (बुड्ढा बुढ़िया) के रुप में शिव-पार्वती से हुईं। कंयु कि पहले मोटर गाड़ियां नही होती थी जंगलो में से पगडंडी वाले रास्ते या बैलगाड़ी घोडा इत्यादि होते थे। वह बुरी तरह रो रही थी वीरों ने बुढ़िया के पैर छुए तो माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इसका कारण वह खुद है। वीरों रानी को पहले तो कुछ भी समझ ना आया किन्तु जब उसे पूरी बात का पता चला तो उसने माँ पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की।
यह देख माँ पार्वती ने रानी से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत करें। तत्पश्चात देवी माँ ने रानी को व्रत की पूरी विधि बताई। माँ की बताई विधि का पालन कर रानी ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति की पुनः प्राप्ति की।
वैसे करवा चौथ की अन्य कई कहानियां भी प्रचलित हैं किन्तु इस कथा का जिक्र शास्त्रों में होने के कारण इसका आज भी महत्त्व बना हुआ है। द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत की आज भी वही मान्यता है। द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं। यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था।