भारतीय शिक्षा पद्धति 

भारतीय शिक्षा पद्धति 

सतीश शर्मा

 शिक्षा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करती है।भारत में शिक्षा की शुरुआत प्राचीन काल से ही हुई थी, और इसके शुरुआती रूप को विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं से जोड़ा जा सकता है। सबसे शुरुआती शिक्षा प्रणाली गुरुकुल पद्धति थी, जिसमें गुरुओं के मार्गदर्शन में छात्र वेद, व्याकरण, ज्योतिष, और अन्य पारंपरिक ज्ञान का अध्ययन करते थे। शिक्षा का अर्थ है ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और समझ को प्राप्त करने की प्रक्रिया। यह एक व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक चीजें सीखता है। शिक्षा से व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में मदद मिलती है।

शिक्षा के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं, जैसे- औपचारिक शिक्षा – यह स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों जैसी औपचारिक शिक्षा संस्थाओं में दी जाती है। इसमें पाठ्यक्रम, शिक्षक और परीक्षा शामिल होते हैं। अनौपचारिक शिक्षा – यह जीवन के अनुभवों, परिवार और दोस्तों से प्राप्त होती है। इसमें कोई निश्चित पाठ्यक्रम या शिक्षक नहीं होता है। गैर-औपचारिक शिक्षा – यह औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के बीच की शिक्षा है। इसमें ऑनलाइन पाठ्यक्रम, कार्यशालाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।

शिक्षा के कई उद्देश्य हैं, जैसे – शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न विषयों और विषयों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न कौशल विकसित करने में मदद मिलती है, जैसे कि समस्या समाधान, आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और संचार। शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलती है, जैसे कि नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक। शिक्षा से व्यक्ति को विभिन्न चीजों और घटनाओं को समझने में मदद मिलती है।

 गुरुकुल  शिक्षा का सबसे प्राचीन रूप था, जिसमें छात्र गुरु के घर पर रहकर उनसे ज्ञान प्राप्त करते थे। शिक्षा का मुख्य फोकस वेदों, उपनिषदों, और अन्य धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन था व शिक्षा में व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, और अन्य विषयों को भी शामिल किया गया था।

अंग्रेजों ने भारत में पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत की, जिसमें अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया। 

अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम – 1835 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम लागू किया, जिसके अनुसार अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया और अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा दिया गया। अंग्रेजों की शिक्षा नीति, जिसे लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति के नाम से भी जाना जाता है, 1835 में भारत में लागू की गई थी । इसका मुख्य उद्देश्य भारत में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना था ताकि भारतीयों का एक ऐसा वर्ग तैयार किया जा सके जो ब्रिटिश प्रशासन की सहायता कर सके. इस नीति के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू थे, जिनका भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा । इस का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना था | लॉर्ड मैकाले ने अपनी मिनट ऑन एजुकेशन में अंग्रेजी को शिक्षा और प्रशासन का माध्यम बनाने की सिफारिश की थी । इस नीति का उद्देश्य भारतीयों को पश्चिमी विज्ञान, साहित्य और दर्शन से परिचित कराना था । अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जो प्रशासनिक पदों के लिए योग्य भारतीयों का एक वर्ग तैयार कर सके । इस नीति ने भारतीय भाषाओं और संस्कृति को नजरअंदाज कर दिया और पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ बताया | यह नीति केवल कुछ ही वर्गों तक सीमित थी, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ी। मैकाले की शिक्षा नीति का भारतीय विद्वानों ने विरोध किया, भारतीय संस्कृति के लिए खतरा माना। 

देश आजाद होने के बाद एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 – 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य और शिक्षकों का बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर फोकस। नीति ने प्राचीन संस्कृत भाषा के शिक्षण को भी प्रोत्साहित किया, जिसे भारत की संस्कृति और विरासत का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की महत्वाकांक्षी दृष्टि से, जिसका उद्देश्य भारत को उन्नत राष्ट्रों की श्रेणी में लाना था, से लेकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 द्वारा लाए गए प्रतिमान बदलाव तक, जिसमें पहुँच, समानता और गुणवत्ता पर जोर दिया गया, हम इन नीतियों द्वारा उत्पन्न इरादों, परिणामों और चुनौतियों का गहराई से अध्ययन करते हैं। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 1986) ने भारत में शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधारों को लागू किया। इस नीति का मुख्य उद्देश्य शिक्षा में असमानताओं को दूर करना, विशेषकर लड़कियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए, और सभी के लिए शैक्षिक अवसरों की समानता सुनिश्चित करना था पर उसमे ज्यादा सफलता नहीं मिली ।

शिक्षा नीति 2024 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का ही एक हिस्सा है, जो शिक्षा प्रणाली में सुधार और प्रगतिशील बदलाव लाने के लिए बनाई गई है। यह नीति आधुनिक युग की आवश्यकताओं और सीखने की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने का प्रयास करती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2024 मे डिजिटल शिक्षा पर जोर दिया गया ओर नीति डिजिटल प्लेटफार्मों को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बनाने पर जोर देती है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा | नीति कौशल विकास पर भी ध्यान केंद्रित करती है, जिससे छात्रों को रोजगार के लिए तैयार किया जा सके।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति मे तीन भाषा बनी यह नीति छात्रों को तीन भाषाओं का ज्ञान देने पर जोर दिया गया है, जिससे स्थानीय भाषाओं का महत्व बढ़ेगा और छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके. यह नीति कला, विज्ञान और वाणिज्य जैसी पारंपरिक धाराओं के बीच विभाजन को समाप्त करने का प्रयास करती है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति  कम उम्र से ही व्यावसायिक प्रशिक्षण और इंटर्नशिप को एकीकृत करने पर जोर देती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षकों और छात्रों के बीच बेहतर जुड़ाव को बढ़ावा देने का प्रयास करती है, जिससे सीखने के परिणामों में सुधार होगा। 

नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क – केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने अप्रैल 2023 में NCF का ड्राफ्ट जारी किया था, जिसमें 12वीं की बोर्ड परीक्षा को दो टर्म में लेने का प्रस्ताव रखा गया था। नई नीति के तहत बोर्ड परीक्षाओं में नए नियम लागू होंगे, जैसे कि छात्रों को दो बार बोर्ड परीक्षा देने का मौका मिलेगा. 12वीं के छात्रों के लिए सेमेस्टर प्रणाली लागू की जाएगी। छात्रों को विभिन्न विषयों को मिलाकर पढ़ने का मौका मिलेगा। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कौशल केंद्र स्थापित किए जाएंगे । विभिन्न विषयों की ऑनलाइन कक्षाओं का राज्य स्तर पर संचालन होगा। एकल संकाय महाविद्यालयों का बहु-संकाय महाविद्यालयों में परिवर्तन, एकल संकाय महाविद्यालयों को बहु-संकाय महाविद्यालयों में परिवर्तित किया जाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के कारण, स्वाध्यायी विद्यार्थियों के लिए भी नीति लागू की जाएगी।

एन सी ई आर टी द्वारा तैयार pre-school शिक्षा दिशा निर्देशों को प्रारंभिक बचपन की शिक्षा प्रथाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अनुशंसित किया गया है। नई शिक्षा नीति (एनईपी) में 5+3+3+4 को लागू किया गया है इसका मतलब है कि स्कूली शिक्षा को चार चरणों में विभाजित किया गया है 5 साल का फाउंडेशन चरण, 3 साल का प्रारंभिक चरण, 3 साल का मध्य चरण, और 4 साल का माध्यमिक चरण। यह पारंपरिक 10+2 प्रणाली की जगह लेता है । शेष अगले लेख में ,,,,,,

2 thoughts on “भारतीय शिक्षा पद्धति ”

  1. Yugal Kishor Joshi

    भारतीय पद्धति से शिक्षा का महत्व व अन्य शिक्षा के माध्यम का सटीक विश्लेषण।

  2. Shailendra Gupta

    जानकारी बहुत अच्छी लगी, साँझा करने के लिये धन्यवाद

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