PARYAVARAN

विश्व पर्यावरण दिवस – “सुजलां,सुफलां पर्यावरण” 

भूमि जल वायु जीव जंतु और वनस्पतियों के रूप में बाह्य पर्यावरण और आस्था के रूप में आंतरिक पर्यावरण दोनों ही परमात्मा के बनाए हुए हैं उनकी एकात्मता को समझने समझा जाना चाहिए। भूमि जलवायु वनस्पति और जीव जंतु के रूप में हमारे सामने उपस्थित प्राकृतिक जगत को जिसमें हम आव्रत हैं, जो हमारे मनुष्य जीवन के चारों ओर विद्वान हैं पर्यावरण कहते हैं। प्रदूषण बढ़ने के कारण खंडित यांत्रिक दृष्टि,प्रकृति का शोषण,विकास का गलत अर्थ याने अधिकाधिक उत्पादन व अधिकाधिक उपभोग,त्रुटिपूर्ण उत्पादन तंत्र व उत्पादन तकनीकी,परमाणु ऊर्जा निर्माण ,परिवहन,वनों की अन्धा धुन्ध कटाई,फैशन,पैकेजिंग, प्रचार और वर्तमान स्वरूप, दोषपूर्ण जीवनशैली व उपयोग शैली इस कारण  भूमंडलीय तापमान में वृद्धि,ओजोन परत में छेद,अम्लवर्षा,सागरीय प्रदूषण,जलवायु परिवर्तन के परिणाम दिखने लगे |

विश्व पर्यावरण दिवस (WED) की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा 5 जून, 1972 को स्वीडन के स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में की गई थी। इसका उद्देश्य पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण को रोकना और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उन्हें बहाल करना है । केवल स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र के साथ ही हम लोगों की आजीविका को बढ़ा सकते हैं, जलवायु परिवर्तन का प्रतिकार कर सकते हैं और जैव विविधता के पतन को रोक सकते हैं। तेजी से बढ़ती प्रजातियों के नुकसान और प्राकृतिक दुनिया के क्षरण से निपटने के लिए कार्रवाई का आह्वान करना होगा । प्रथम विश्व पर्यावरण दिवस 1973 में मनाया गया था। पर्यावरण की रक्षा और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण  से निपटने के लिए सार्वजनिक स्तर और व्यक्तिगत स्तर पर बहुत कुछ किया जा सकता है।  जब भी संभव हो हमें अपने पानी की खपत को कम करना चाहिए हमें पुन: प्रयोज्य शॉपिंग बैग ले जाना चाहिए और प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग करने से बचना चाहिए। पेड़ लगाने और टिकाऊ रोशनी का उपयोग करने से हमारे पर्यावरण में बड़ा अंतर आ सकता है। उद्योगों पर लगाम लगाई जानी चाहिए, ताकि वे हानिकारक रसायनों को हमारे कीमती जलस्रोतों में न फेंके।

”अश्र्च्त्थमेकं पिचुमिन्दमेकं न्यग्रोधमेकं दश पुष्पजाति द्वे द्वे, तथा दाड़िम मातुलुंगे पञ्चाम्ररोपी नरकं न याति” अर्थ – ”एक पीपल, एक नीम, एक बरगद, दस फूलों के पौधे, दो दो अनार के वृक्ष तथा पाँच आम और नारंगी के वृक्ष लगाने वाला मनुष्य नरक नहीं जाता..” हजारों वर्ष पुराने, हमारे पुराण में यह श्लोक कितनी दूर दृष्टि के साथ लिखा गया होगा यह विचारने योग्य बात है | यह श्लोक आज के प्रदुषण पीड़ित माहौल में कितना प्रासंगिक बैठता है यह हम सभी भलीभांति जानते हैं | अब के वनस्पति वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि पीपल, नीम, बरगद आदि ऐसे वृक्ष हैं जो बहुतायत में ऑक्सीजन की मात्रा छोड़ते हैं |

क्या आपको पता है कि अगले 40-50 वर्षों बाद हमारी सारी खेती योग्य भूमि बंजर हो जाएंगी? रिसर्च कहता है कि खेती करने के लिए भूमि में मिनिमम 3% ऑर्गेनिक कंटेन्ट होने चाहिए दुनिया के अलग अलग हिस्सों में यह 1 से लेकर 3% तक है | वहीं भारत में मात्र 0.5% बचा है। प्रति सेकंड विश्व में 1 एकड़ ज़मीन बंजर हो रही है तो आप इससे गणना कर लीजिए कि हम कितनी तीव्र गति से विनाश की ओर बढ़ रहे हैं |दुनिया में जहाँ 52% खेती योग्य भूमि बंजर हो चुकी है तो भारत में यह आंकड़ा 60% है | ऊपर से जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों का क्षरण भूमि से जितने ऑर्गेनिक कंटेंट समाप्त होते जाएंगे भूमि का जलस्तर उतना गिरता जाएगा जब भूमि में नमी ही नहीं बचेगी तो हरियाली कहाँ से आएगी?

स्थिति इतनी भयावह है | जग्गी वासुदेव की SaveSoil मुहीम के बारे में आज डिटेल में पढ़ा तो मेरी आँखें फटी रह गईं | हम आज भी न चेते तो हमारी आने वाली पीढ़ी भूख से मरेगी इसे टालने का एक मात्र उपाय है संसाधनों का सीमित उपयोग, पेड़ लगाना, केमिकल और फ़र्टिलाइज़र को तिलांजलि देना गाय, भैंस आदि पालिये, उनके गोबर, मूत्र और प्राकृतिक खाद का प्रयोग कीजिये केंचुआ पालन कीजिये तो शायद स्थिति नियंत्रण में आये लेकिन एक या दो लोगों के प्रयास से नहीं होगा प्रत्येक व्यक्ति को इसका ध्यान रखना होगा, लोगों को जगाना होगा अपने लिए न सही अपने बच्चों से तो सभी को प्यार होगा न तो उन्हें शुद्ध भोजन और जल मिलता रहे ये हम नहीं सोचेंगे तो भला कौन सोचेगा |

 पर्यावरण को हम मनुष्य जितनी हानि पहुंचा सकते थे पहुँचा चुके हैं | अब प्रकृति हमें नुकसान पहुंचा रही है | आज से सौ वर्ष पहले किसी भी फल में जितने अधिकतम न्यूट्रिशन्स होते थे उसका 10% भी उनमें आज शेष नहीं बचा आप संतरे को ले लीजिए उसमें पहले यदि 100% न्यूट्रिशन होते थे तो आज मात्र 10% बचा है मतलब आप आज 100 संतरे खा लीजिये और आज से 100 वर्ष पहले का 1 संतरा बराबर था |

पर्यावरण की रक्षा हेतू बरसात के पानी को बचाए,नदी को बचाए,अधिक पेड लगाए,कौन कौन से पेड़ लगाएं कि ज्यादा लाभ हो और मेहनत सही दिशा में हो। इस संदर्भ में स्कंदपुराण में लिखा है –

अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम्  दश चिञ्चिणीकान्।

कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।

अश्वत्थः =  पीपल 100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है,पिचुमन्दः नीम 80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है न्यग्रोधः वटवृक्ष 80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है चिञ्चिणी इमली 80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है कपित्थः कविट 80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है बिल्वः बेल 85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है आमलकः आवला 74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है आम्रः  आम 70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है,उप्ति = पौधा लगाना,जो कोई इन वृक्षों के पौधो का  रोपण करेगा,उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेंगे। इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में जलवायु परिवर्तन के दर्शन हो रहे हैं। अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं। औऱ गुलमोहर,निलगिरी जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं उनका ज्यादा रोपण ना करे । पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है। पीपल, बड और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है। ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है। साथ ही, धरती के तापनाम को भी कम करते है। हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर  फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बना ली |  शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है | क्योकि पीपल 24 घन्टे आक्सीजन देता है |  

प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति के अनुसार पृथ्वी पर ऐसी कोई भी ऐसी वनस्पति नहीं है, जो औषधि न हो। घरों में तुलसी के पौधे लगाने होंगे। आगामी वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर के अंतर पर यदि  एक एक पीपल,बड़,नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाए, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा। हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने “भारत” को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते हैं । भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है। आइए हम पीपल,बड़,बेल,नीम,आंवला,जामुन व आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं “सुजलां,सुफलां पर्यावरण ” देने का प्रयत्न करें।          सतीश शर्मा संघचालक केशव भाग नॉएडा 

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