पुण्य भूमि मानचित्र परिचय

भारत की पारम्परिक सीमा “त्रिविष्टप” (तिब्बत) भारत के उत्तर में रही है। कैलाश मानसरोवर, गान्धार, कश्यप-सागर (कैस्पियन सागर), बर्मा (ब्रह्मदेश), श्रीलंका, ईरान (आर्यान), अफगानिस्तान (उप गणस्थान) आदि भारत के अंग रहे हैं।
वृहत्तर भारत की सीमाएं- दक्षिण में हिन्दु महासागर और पूर्व में ब्रह्मदेश, श्याम, काम्बोज, द्वारावती (सुमात्रा), स्वर्ण दीप (बोर्नियो), सिंह द्वीप आदि । हिन्दु एशिया (इण्डोनेशिया) पश्चिम में यूनान तक महाभारत का विस्तार । समस्त पृथ्वी पर चक्रवर्तियों का शासन (धर्मानुशासन)। महाभारत के युद्ध (जनमेजय) के बाद चक्रवर्ती प्रथा समाप्त। भारत की सीमायें क्रमश: संकुचित । बुद्ध के पश्चात् सैनिक तैयारियाँ और जागरुकता भी बन्द । चन्द्रगुप्त मौर्य को फिर से दहेज में गान्धार मिला परन्तु अरब आक्रमण के बाद गान्धार अफगानिस्तान बना। अँग्रेजों के ‘भारत-साम्राज्य’ में बलोचिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बर्मा (ब्रह्मदेश) और मलाया का एक भाग भारत का ही अंग माना जाता था।
मुख्य शहर
काशी ,कांची ,आव्न्तिका ,वैशाली ,गया ,जगन्नाथ पुरी ,विजय ननर ,पाटलिपुत्र ,प्रयागराज ,अम्रतसर ,सोमनाथ ,तक्षशिला, ,द्वरिका ,इन्द्रप्रस्थ,हरिद्वार, अयोध्या मथुरा-वृंदावन ,नासिक, चित्रकूट रामेश्वरम
मुख्य नदी –
गंगा ,यमुना ,सरस्वती ,सिधु ,ब्रहमपुत्र ,गण्डकी ,कावेरी ,महानदी ,रेवा ,गोदा
मुख्य पर्वत –
हिमालय,महेंद्र पर्वत उड़ीसा, मलयगिरि पर्वत मैसूर, सह्याद्रि पर्वत पश्चिमी घाट, रैवतक सौराष्ट्र मे गिरनार, विंध्यांचल तथा अरावली राजस्थान
मुख्य सरोवर पञ्च सरोवर
१. पम्पा सरोवर (कर्नाटक), २. मानसरोवर (तिब्बत). ३. पुष्कर सरोवर (राजस्थान), ४. बिन्दु सरोवर (गुजरात), ५. नारायण सरोवर (गुजरात)।
चार मठ
बद्रीनाथ में ज्योर्तिमठ, द्वारिका में शारदा मठ, जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ, मैसूर में शृंगेरीमठ ।
द्वादश ज्योतिर्लिंग –
सोमनाथ (गुजरात), नागेश्वर अथवा नागनाथ (गुजरात), भीमशंकर (महाराष्ट्र), त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र), घुश्मेश्वर “घृष्णेश्वर” (महाराष्ट्र), महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश), ओंकारेश्वर अथवा अमलेश्वर (मध्य प्रदेश), वैद्यनाथ (झारखण्ड), केदारनाथ (उत्तराखण्ड), विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश), रामेश्वरम् (तमिलनाडु), मल्लिकार्जुन (आन्ध्र प्रदेश)।
देवी मां के 52 शक्तिपीठों की पूरी सूची
1. मणिकर्णिका घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
2. माता ललिता देवी शक्तिपीठ, प्रयागराज
3. रामगिरी, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश
4. वृंदावन में उमा शक्तिपीठ (कात्यायनी शक्तिपीठ)
5. देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर
6. हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ, मध्य प्रदेश
7. शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ, अमरकंटक, मध्यप्रदेश
8. नैना देवी मंदिर, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
9. ज्वाला जी शक्तिपीठ, कांगड़ा, हिमाचल
10. त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ,जालंधर, पंजाब
11. महामाया शक्तिपीठ, अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर
12. माता सावित्री का शक्तिपीठ, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
13. मां भद्रकाली देवीकूप मंदिर, कुरुक्षेत्र,हरियाणा
14. मणिबंध शक्तिपीठ, अजमेर के पुष्कर में
15 .बिरात, मां अंबिका का शक्तिपीठ राजस्थान
16. अंबाजी मंदिर शक्तिपीठ- गुजरात
17. मां चंद्रभागा शक्तिपीठ, जूनागढ़, गुजरात
18. माता के भ्रामरी स्वरूप का शक्तिपीठ, महाराष्ट्र
19. माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ, त्रिपुरा
20.देवी कपालिनी का मंदिर, पूर्व मेदिनीपुर जिला, पश्चिम बंगाल
21. माता देवी कुमारी शक्तिपीठ, रत्नावली, बंगाल
22- माता विमला का शक्तिपीठ, मुर्शीदाबाद, बंगाल
23- भ्रामरी देवी शक्तिपीठ जलपाइगुड़ी, बंगाल
24. बहुला देवी शक्तिपीठ- वर्धमान, बंगाल
25. मंगल चंद्रिका माता शक्तिपीठ, वर्धमान, बंगाल
26. मां महिषमर्दिनी का शक्तिपीठ, वक्रेश्वर, पश्चिम बंगाल
27. नलहाटी शक्तिपीठ, बीरभूम, बंगाल
28. फुल्लारा देवी शक्तिपीठ, अट्टहास, पश्चिम बंगाल
29. नंदीपुर शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
30. युगाधा शक्तिपीठ- वर्धमान, बंगाल
31. कलिका देवी शक्तिपीठ, बंगाल
32. कांची देवगर्भ शक्तिपीठ, कांची, पश्चिम बंगाल
33. भद्रकाली शक्तिपीठ, तमिलनाडु
34. शुचि शक्तिपीठ, कन्याकुमारी, तमिलनाडु
35. विमला देवी शक्तिपीठ, उत्कल, उड़ीसा
36. सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ, आंध्र प्रदेश
37. श्रीशैलम शक्तिपीठ, कुर्नूर, आंध्र प्रदेश
38. कर्नाट शक्तिपीठ, कर्नाटक
39. कामाख्या शक्तपीठ, गुवाहाटी, असम
40. मिथिला शक्तिपीठ, – भारत नेपाल सीमा
41. चट्टल भवानी शक्तिपीठ, बांग्लादेश
42. सुगंधा शक्तिपीठ, बांग्लादेश
43. जयंती शक्तिपीठ, बांग्लादेश
44. श्रीशैल महालक्ष्मी, बांग्लादेश
45. यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ, बांग्लादेश
46. इन्द्राक्षी शक्तिपीठ, श्रीलंका
47. गुहेश्वरी शक्तिपीठ, नेपाल
48. आद्या शक्तिपीठ, नेपाल
49.दंतकाली शक्तिपीठ- नेपाल
50. मनसा शक्तिपीठ,तिब्बत
51. हिंगुला शक्तिपीठ-पाकिस्तान
महाजनपद
महाजनपद – अवंती,महाजनपद – अश्मक ,महाजनपद – अंग,महाजनपद – कंबोज
महाजनपद – काशी,महाजनपद – कुरु,महाजनपद – कौसल,महाजनपद – गंधार
चेदि महाजनपद,वृज्जि महाजनपद,वत्स महाजनपद,पंचाल महाजनपद,
मगध महाजनपद,मत्स्य महाजनपद,मल्ल महाजनपद,शूरसेन महाजनपद
साम्राज्य
मौर्य साम्राज्य,सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य,सम्राट् अशोक का साम्राज्य,महाराजा खारवेल,सम्राट् पुष्यमित्र शुंग
सम्राट् विक्रमादित्य,गौतमी पुत्र महाराजा शातकर्णी (सातवाहन),सम्राट् समुद्रगुप्त का साम्राज्य,सम्राट् चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय का साम्राज्य ,सम्राट् स्कंदगुप्त का साम्राज्य,महाराजा पुलकेशिन प्रथम का साम्राज्य,सम्राट् यशोधर्मन का साम्राज्य ,वर्धन वंश का साम्राज्य
महान नारियाँ
सती सावित्री ,देवी जानकी ,देवी सती,महारानी द्रौपदी ,सती कण्णगी,देवी गार्गी
साध्वी मीरा,रानी दुर्गावती,रानी लक्ष्मीबाई,महारानी अहिल्या (अहिल्याबाई होलकर),रानी चन्नम्मा,रानी रुद्रामांबा (रुद्रांबा),भगिनी निवेदिता,माँ सारदा
महापुरुष
भगवान् श्रीराम,महाराजा भरत,भगवान् कृष्ण,पितामह भीष्म,धर्मराज युधिष्ठिर
वीर अर्जुन,मुनि मार्कडेय,राजा हरिश्चंद्र,भक्त प्रह्लाद,देवर्षि नारद,भक्त ध्रुव,वीर हनुमान,राजा जनक,महर्षि व्यास,महर्षि वसिष्ठ,मुनि शुकदेव,राजा बलि,महर्षि दधीचि,देवशिल्पी विश्वकर्मा,राजा पृथु,महर्षि वाल्मीकि
महात्मा बुद्ध,आचार्य चाणक्य (कौटिल्य),समर्थ रामदास,संत कवि पुरंदरदास,वीर बिरसा मुंडा,संत सहजानंद,स्वामी रामानंद,भरतमुनि,कवि कालिदास,राजा भोज,शिल्पी जकणाचार्य,महाकवि सूरदास,संगीतकार त्यागराज,कवि रसखान
चित्रकार रविवर्मा,मनीषी भातखंडे ,राजा भाग्यचंद्र,महर्षि अगस्त्य,राजा कंबु
राजा कौडिन्य,राजा राजेंद्र चोल,सम्राट् अशोक,महाराजा पुष्यमित्र,महाराजा खारवेल,आचार्य चाणक्य,सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य,सम्राट् विक्रमादित्य,महाराजा शालिवाहन,सम्राट् समुद्रगुप्त,महाराजा हर्षवर्धन,राजा शैलेंद्र,महाराजा बप्पा रावल,वीर लाचित बड़फुकन ,राजा भास्कर वर्मा
महाराजा यशोधर्मा,महाराजा कृष्णदेव राय ,महाराजा ललितादित्य,भगवान् भार्गव (परशुराम ),राजा भगीरथ,धनुर्धारी एकलव्य,महर्षि मनु,देववैद्य धन्वंतरि,राजा शिबि,राजा रंतिदेव,महात्मा बुद्ध,
तीर्थंकर जिनेंद्र,गुरु गोरखनाथ,महर्षि पाणिनि,महर्षि पतंजलि,आचार्य शंकराचार्य,आचार्य मध्वाचार्य,आचार्य निंबार्काचार्य,आचार्य रामानुजाचार्य,आचार्य वल्लभाचार्य,संत झूलेलाल,महाप्रभु श्रीचैतन्य,संत तिरुवल्लुवर,संत नायन्मार,संत आलवार,संत कवि कंबन,संत बसवेश्वर,महर्षि देवल,संत रविदास,संत कबीर,गुरु नानक देव,भक्त नरसी,गोस्वामी तुलसीदास,दशमेश (गुरु गोविंद सिंह) ,संत कवि शंकरदेव,संत ज्ञानेश्वर,संत तुकाराम,भगवान् भार्गव (परशुराम ),,वीर मुसुनूरि नायक,महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी,महाराजा रणजीत सिंह
महर्षि कपिल,महर्षि कणाद,आचार्य सुश्रुत,आचार्य चरक,आचार्य भास्कराचार्य द्वितीय,ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर,आचार्य सायणाचार्य और माधवाचार्य
स्वामी रामकृष्ण परमहंस,स्वामी दयानंद सरस्वती,कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर
राजा राममोहन राय,स्वामी रामतीर्थ महर्षि अरविंद,स्वामी विवेकानंद,दादाभाई नौरोजी,गोपबंधुदास,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,महात्मा गांधी
रमण महर्षि,महामना मदनमोहन मालवीय,कवि सुब्रह्मण्यम भारती,आचार्य नागार्जुन,महर्षि भरद्वाज,ज्योतिषाचार्य आर्यभट्ट,श्री जगदीशचंद्र बसु,श्री चंद्रशेखर वेंकटरामन,श्री रामानुजन,नेताजी सुभाषचंद्र बोस,स्वामी प्रणवानंद,स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर,श्री ठक्कर बप्पा,डॉ. भीमराव आंबेडकर,श्री ज्योतिराव फुले,श्री नारायण गुरु ,डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ,श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर
भारत के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय
ओदंतपुरी,विक्रमशिला, जगदला, वल्लभी, तक्षशिला, नालंदा, कांचीपुरम, मान्यखेत, सुशोभित विहार और ललितागिरी (ओडिशा), शारदा पीठ, नागार्जकोंडा
यह देव भूमि है- यहाँ तैंतीस करोड़ देवता रहते थे अर्थात् जितनी जनसंख्या उतने ही देवता । प्रत्येक व्यक्ति धर्म के अनुसार आचरण करता था इसलिए देवतुल्य अर्थात् देव भूमि है यह। दूसरी बात- एक बार राक्षसों ने ब्रह्माजी को शिकायत की कि आप देवताओं का अधिक ध्यान करते हैं- हमारा उतना नही । ब्रह्माजी ने कहा कि इसका उत्तर बाद दूँगा । कुछ दिन बाद ब्रह्माजी ने देवताओं और राक्षसों दोनों को भोज पर आमंत्रित किया । बढ़िया से बढ़िया पकवान अर्थात् 56 प्रकार के व्यंजन सबके सामने परोसे गए। राक्षसों और देवताओं के शिविर अलग-अलग थे। ब्रह्माजी ने अपनी सामर्थ से सबके हाथ कड़े कर दिए अर्थात् कोहनी के पास गुड़ नही पा रहे थे। ब्रह्माजी पहले राक्षसों के शिविर में पहुँचे और वहाँ एक विचित्र दृश्य देखा। राक्षस लोग पकवान हाथ में उठाते- आसमान की तरफ उछालते और वह पकवान कभी दायी ओर, कभी बाईं ओर और कभी दूसरे द्वारा फेंका गया पकवान उनके मुँह के पास गिरता था ।
ब्रह्माजी ने कहा कि इतना श्रेष्ठ पकवान होते हुए भी आप लोग खा नही रहे हो- ऐसा क्यों ? उत्तर था कि खायें कैसे- हमारे हाथ ही नही मुड़ रहे हैं। ठीक है कहकर राक्षसों को साथ ले देवताओं के शिविर में पहुँचे- सब लोग बड़े प्रेम पूर्वक खा रहे थे। मेरा हाथ मेरे मुँह तक नहीं जायेगा लेकिन पड़ोसी के मुँह तक तो जायेगा और इस प्रकार से सब लोग बड़े प्रेमपूर्वक खा रहे थे। राक्षसों को अपनी गलती का अहसास हो गया। दूसरों का विचार करने वाले लोग जहाँ रहते हैं’ उनकी भूमि ही पुण्य भूमि है। यह शाश्वत सत्य भी है कि “परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अथमायी”
पर वे मौन साथ लेते हैं । इसलिए ‘धर्म’ शब्द मौलिक है और विधायक है।
परम् वैभव
राजा भोज के काल में राज्य व्यवस्था बहुत अच्छी थी और प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। उसका दरवारी चारण अपने राजा की प्रशस्ति में गा रहा था “ एको राजा रामचन्द्र दूजो राजा भोज” | जैसे ही उसने यह दोहराया तो अचानक एक कौवे ने उसके मुँह में बीट कर दी। इस पर राजा भोज ने कुपित होकर उसे मारने के लिए अपना धनुष वाण उठा लिया । तुरन्त कौवा मनुष्य की बोली में बोलकर कहने लगा, “राजन् ! यह चारण झूठ बोल रहा है।” राजन ने पूछा कैसे ? | मेरे साथ चलो- मैं दिखलाता हूँ । राजा भोज अपने सैनिकों के साथ उसके पीछे-पीछे चल दिए । चलते-चलते एक गुफा आ गई- गुफा में बहुत अंधेरा था । कौवे ने कहा ‘राजन्! डरो मत- आगे चलकर सत्य के दर्शन होंगे। अंधेरी गुफा में थोड़ा चलने के बाद एक स्थान ऐसा था जो प्रकाश से जगमगा रहा था- चारों तरफ उजियारा ही उजियारा। बीच में एक टोकरे में मोती रखे थे जिसमें से प्रकाश झिलमिला रहा था । सब आश्चर्य चकित थे । राजा ने पूछा ‘यह सब कैसे संभव हुआ ?’ कौवे ने कहा प्रभु रामचन्द्र के राज्य में एक किसान ने अपनी जमीन दूसरे किसान को बेची। जब वह खेत जोत रहा था तब खुदाई करते समय एक मटका निकला जिसमें बहुमूल्य मोती थे । किसान ने सोचा इन मोतियों पर उस किसान का अधिकार है जिससे मैंने जमीन खरीदी है। किसान वे मोती लेकर जमीन बेचने वाले किसान के पास गया और कहा सम्भालो
अपनी सम्पदा क्योंकि यह आपकी जमीन से निकले हैं। वह किसान कहने लगा कि मैंने तो यह जमीन आपको बेच दी है इसलिए अब इन पर आपका अधिकार है। इस पर तकरार हुई और निष्कर्ष निकला- न यह आपकी और न मेरी- यह राज्य की सम्पत्ति है-‘ चलो राजा रामचन्द्र को सौंप देते हैं । वे उन बहुमूल्य हीरों को लेकर राजा के पास पहुँच गए और कहा राजन् ! ये बहुमूल्य हीरे जमीन से निकले हैं- इन पर आपका अधिकार है । इस पर राजा ने कहा कि यह मेरे कैसे हो सकते हैं ? पर्याप्त कहन-सुनन पर यह तय हुआ कि उन्हें ब्राह्मणों को दान कर दें किन्तु किसी भी ब्राह्मण ने उन्हें लेना स्वीकार नही किया क्योंकि उन्हें इसकी आवश्यकता ही नही थी । फिर यह तय किया गया कि इन्हें भिखारियों में बाँट दें किन्तु राज्य में कोई भी ऐसा भिखारी नही मिला जो उन मोतियों को स्वीकारे । अन्त में यह तय हुआ कि इन्हें ऐसे स्थान पर रख दो जहाँ से जिसे आवश्यकता हो ले जाए और अब तक कोई भी उन्हें लेने नहीं आया । तबसे यह हीरे यही पर रखे हुए हैं। यह है राम राज्य, उसकी तुलना कैसे की जा सकती है ? ऐसा रामराज्य और परम वैभव लाने में हम समर्थ हों- उसके लिए हमें हे भगवन्! आपका आशीर्वाद चाहिए ।