सुप्रीम कोर्ट का आदेश दि 9 नवम्बर 2019 राम मंदिर पर
रविंदर रस्तोगी नोएडा
1992 दिसंबर में कार सेवा के दौरान बाबरी ढांचा ध्वस्त हो गया.
उसके तुरंत पश्चात भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरसिंघ राव जी ने घोषणा की इसी स्थान पर दुबारा मस्जिद बनवाई जाएगी
परंतु हिंदुओं का हिंदुओं का आक्रोश देखकर वह अपने निर्णय से पीछे हट गए और अपने निर्णय को बदलते हुए उन्होंने उच्चतम न्यायालय सलाह मांगी कि उच्चतम न्यायालय बताएं क्या बाबरी ढांचा किसी मंदिर के ऊपर बना था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय में कोई ओपिनियन देने से इंकार कर दिया. विवाद बना रहा.
इसके बाद कालांतर मे वाजपेयी प्रधान मंत्री बने. विश्व हिंदू परिषद एवं मंदिर निवास के लगातार दबाव के कारण उन्होने सुप्रीम कोर्ट से अविवादित स्थन पर मंदिर निर्माण की अनुमती मांगी. सुप्रीम कोर्ट ने अनुमती नही दी परंतु हाई कोर्ट को इस मामले की त्वरित निर्धारण के लिए आदेश दिए. हाई को अपने सुनवाई के दौरान 2003 को अर्कोलोजीकल सर्वे ऑफ इंडिया को आदेश दिया कि जिस स्थान पर बाबरी ढांचा था उस स्थान का निरीक्षण करके बताएं कि ढांचा के नीचे क्या है ए एस आई ने सर्वे करने के उपरांत जो अपनी रिपोर्ट दी उसके अंदर उन्होंने निरीक्षण करके अपनी रिपोर्ट यह कहा –
1 दुबारा उपयोग की गयी ईंटे मिली
2 मस्जिद पहले से बनी हुई दीवारों के ऊपर बनाई गई थी.
- पहले की दीवारे कुषाण व गुप्त काल की थी.
- दीवारों पर मनुष्यों/देवो के चित्रमिले.
- कुछ ऐसे सिक्के भी मिले जिन पर गरुढ का चित्र था.
- जिस भवन के खंडहर ऊपर बाबरी ढांचा बनाया गया था वह संभवत मंदिर था वहां पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थी.
- हिंदुओं के अनेक प्रतीक चिन्ह वहां पर मिले और पुराना भवन जिसकी दीवारों पर ढांचा बनाया गया था बहुत विशाल था.
- बाबरी ढांचे मे हिंदुओ और मुस्लिम दोनो के प्रतीक चिन्ह मिले.
इसके आधार पर एवं अन्य सबूतों के आधार पर हाई कोर्ट ने अपने आदेश दि 30सितम्बर 2010 मे उस पूरे स्थान को यहां पर बाबरी ढांचा खड़ा था, 3 भागों में बांट दिया.
अ जिस स्थान पर मूर्तियों थी वो स्थान हिंदूओ को मंदिर बनाने के लिए दी दिया जाए.
ब एक भाग निर्मोही अखाडे को दे दिया जाए.
स और एक तिहाई स्थान मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए.
इसके विरोध मे सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट में गए.
मुस्लिम पक्ष
सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने ए एस आई की रिपोर्ट को रेकोर्ड मे से लेने का विरोध किया. परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया एवं रिपोर्ट से सहमति भी दी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश 9 नवम्बर 2019 को कहा
- यह ढांचा मंदिर तोड़कर बनाया है या किसी खंडहर के ऊपर बनाया है इस बारे मे कुछ स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले इसलिए यह नही कहा जा सकता कि बाबरी ढांचा मंदिर को तोड़ कर बनाया गया था.( कुछ ब्रिटिश विद्वानो ने यह कहा था कि मस्जिद मंदिर तोड कर बनाई गयी थी) परंतु यह स्वीकार किया कि मस्जिद किसी पूजा स्थल के ऊपर बनायी गया थी.
- मुस्लिम पक्ष द्वारा कहा गया कि जो एक बार मस्जिद है वह हमेशा मस्जिद रहती है इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान में मस्जिद का स्थान वही है जो अन्य पूजा स्थल का है और मस्जिद को कोई विशेष वरीयता नहीं दी जा सकती.
- मुस्लिम पक्ष का यह भी कहना था कि स्थान 16वी शताब्दी से मस्जिद है और मुसलमानों के कब्जे में है और इस नाते यह स्थान मुस्लिम को मस्जिद बनाने के लिए दे दिया जाए इसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट ने जो विस्तृत निर्णय दिया उसके कुछ अंश इस प्रकार से हैं
–ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि जमीन का मालिकाना हक मुसलमानों के पास था. सरकारी दस्तावेजों में यह भूमि नज़ूल भूमि है यानि सरकारी जमीन है.और वक्फ की नही मानी जा सकती.
– जहा तक इस जमीन पर लगातार मुसलमानों के कब्जे की बात है, कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले कि यह मस्जिद कब बनाई गई थी इसे बाबर ने बनवाया था अथवा औरंजेब ने बनवाया था. इतिहासकारो की इस बारे में अलग–अलग राय हैं. यह मस्जिद 1525 और 1850 के बीच कभी बनी थी और 1992 तक रही.
– ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि 1525 के बाद और 1854 से पहले इस स्थान पर लगातार नमाज पढ़ी गई हो.
– इस बात के प्रमाण मिले कि मस्जिद बनने के बाद भी वहां पर हिंदू लगातार पूजा करते थे एवं उसको राम जन्म का स्थान मानते थे बाबरी ढांचे के अंदर भी हिंदू लगातार पूजा करते आ रहे थे.
– हिंदुओं ने उस ढांचे को कभी मस्जिद के रूप में स्वीकार नहीं किया.
–मस्जिद के आस पास अनेको हिंदु मंदिर 1856-57 से थे.
–इसवी संवत 1850 कुछ निहंगो ने कब्जा कर लिया एवं मुसलमानों को नमाज पढ़ने से रोक दिया . बाद मे पुन: मुसलमानों ने वहां पर कब्जा कर लिया.
–1856 में पुन: हिंदूओ ने उस स्थान पर कब्जा कर लिया और मुसलमानों का प्रवेश बंद कर दिया. उसके बाद यह बात अंग्रेजी शासन के पास पहुंची. शासन ने इस मामले को निपटाने के लिए जो पूरा स्थान था उसमे एक रेलिंग लगा दी जो ढांचे को उसके सामने के आंगन से अलग करती, एवं आदेश कर दिया कि ढांचे के अंदर मुसलमान लोग नमाज पढ़ेंगे और ढांचे के बाहर का सारा स्थान हिंदुओं को पूजा करने के लिए दे दिया.
– ढांचे के बाहर एक चबूतरा था जिसे राम चबूतरा कहा जाता था उस चबूतरे पर हिंदूओं ने उस मूर्तियों की स्थापना कर दी एवं पूजा करने लगे. शासन ने उन मूर्तियों को हटाने का आदेश दिया परंतु कभी आदेश को लागू नहीं किया गया और वह मूर्तियां वही रही. मुसलमानों को ढांचे में प्रवेश करने के लिए पीछे की तरफ से एक दरवाजा बना दिया गया.
– उसके पश्चात भी हिंदुओं ने इस विभाजन को स्वीकार नही किया और बहुत बार हिंदू ढांचे के अंदर घुस कर राम की पूजा अर्चना करते थे.
– मुसलमानों यह मानकर की पूरा स्थान उनकी संपत्ति है, सरकार से प्रार्थना की कि हिंदुओं को आंगन में पूजा करने के कारण उसका किराया मुसलमानों को दिया जाए परंतु वह भूमि सरकारी होने के कारण ऐसा कोई आदेश अंग्रेजी सरकार द्वारा नहीं दिया गया
– मुसलमान वहां पर लगातार नमाज पढ़ते थे इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला.
– इससे यह स्पष्ट होता है कि ढांचे के बाहर हिंदुओं का निरंतर अधिकार था और ढांचे के अंदर भी हिंदू पूजा करते थे और मुसलमान नमाज भी पढ़ते थे.
इन प्रमाणों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट इस परिणाम पर पंहुचा कि ना तो मुस्लिमो के पास जमीन का कोई मालिकाना हक था, ना ही लगातार उनका कब्जा था, ना ही कब्जा अविवादित था, नाही सामान्य जनता उसको मस्जित के रूप मे स्वीकार करती थी. इन सबके कारण सुप्रीम कोर्ट ने वह जमीन मुस्लिमो की सम्पत्ति मानने से इंकार कर दिया .
हिंदू पक्ष
- मुस्लिम पक्ष द्वारा इस बात का प्रमाण मांगे जाने पर कि राम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था सुप्रीम ने कहा कि यह विश्वास की बात है और किसी भी वर्ग के विश्वास को प्रमाणों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट नहीं देख सकता. सुप्रीम कोर्ट श्रद्धा के विषय में कोई विवेचना नहीं कर सकता. शासन द्वारा बिना किसी नये आदेश के स्थिति वही मानी जाएगी जो 1947 के पहले थी.
- हिंदुओं के इस कथन पर कि यहां पर राम मंदिर था और उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी मुस्लिम शासकों का यह कार्य गलत था, इस पर कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम शासकों ने जो कुछ किया वह सही था या गलत, इस पर कोई टिप्पणी करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं है. एक शासक के निर्णय को उसके बाद वाला शासक ही बदल सकता है. स्थान पर पहले मुगल शासकों का अधिकार था और उनके किसी भी निर्णय को अंग्रेजी शासन ने नहीं बदला, मात्र 1934 मे रेलिंग लगाकर मुसलमानों को ढांचे से अंदर का स्थान और हिंदू को ढांचे के बाहर का स्थान देने के अतिरिक्त.
- अतः यह कोर्ट इस विषय पर विचार नहीं करेगा कि वहां पर मस्जिद का निर्माण करना गलत था अथवा सही.
- हिंदू पक्ष का यह भी कथन था कि यह ढांचा मस्जिद होने के सारी आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करता उस पर कोर्ट का कहना था कि क्योंकि मुसलमान इसे मस्जिद मानते हैं इस इसलिए कोर्ट उन बातों पर नहीं जाएगा कि इसमें मस्जिद की सारी आवश्यकताएं हुई हुई है अथवा नहीं, ढांचे को मस्जिद ही मानना होगा.
1934 में हिंदुओं ने ढांचे पर पुन: अधिकार कर लिया और कुछ मात्रा में ढांचे को नुकसान भी पहुंचाया जिस की भरपाई हिंदुओं के ऊपर टेक्स लगाकर अंग्रेज़ सरकार ने की और ढांचे को की मरम्मत करवा दी. 1914 से 1949 तक मुसलमान वहां पर मात्र शुक्रवार को ही नमाज पढ़ते थे दैनिक नमाज पढ़ने का प्रमाण नहीं मिला.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ढांचा सब तरफ से से हिंदू संपत्तियों से घिरा हुआ था. ढांचे के सामने आंगन पर हिंदुओं का अधिकार था. ढांचे के पीछे सब स्थानों पर हिंदू की संपत्ति थी अतः उस ढांचे में प्रवेश का भी कोई मार्ग नहीं था.
1949 में रामलला के प्राकट्य के बाद में वहां से मूर्तियों का हटाने के बारे में आदेश देने के बारे में अदालत ने कोई भी निर्देश देने से मना कर दिया परंतु हिंदुओं को स्थान पर बाहर से ही पूजा अर्चना करने का अधिकार दे दिया एवं शांति बनाए रखने हेतु मुसलमानों का प्रवेश निषेध कर दिया
इन सब बातों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट का मानना था
मुसलमानों का दावा हिंदुओं के दावे के सामने कमजोर है इस कारण वह पूरा स्थान हिंदूओं को दे दिया गया.
क्योंकि वहां पर स्थित मस्जिद को तोड़ दिया गया था, अतः मुसलमानों को मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया.
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- हिंदुओ ने उस ढांचे पर मुस्लिमो का अधिकार कभी स्वीकार नहीं किया.
- उस स्थान को पाने के लिये लगातार संघर्ष करते रहे.
- इस उद्देश्य के लिये शासन के निर्देशों को भी नहीं माना.
इससे स्पष्ट है कि अन्याय कोई भी करे ( शासन करे तो भी ) सहन नहीं करे वरन् संघर्ष करते रहें तभी हम अपने अधिकार प्राप्त कर पायेंगे.