पितृ-दोष क्यों एवं उपाय (ज्योतिष शास्त्र एवं ज्ञान)

पितृ-दोष क्यों एवं उपाय

                 (ज्योतिष शास्त्र एवं ज्ञान)

 

सूर्य आत्मा का कारक है वही वैदिक ज्योतिष में इसे पिता का कारक कहा गया है तो राहु और शनि जब सूर्य को प्रभावित करते है तो ‘पितृ दोष’ का निर्माण होता है। इस दोष में यह है कि सूर्य राहु से युति होना चाहिए और उस पर शनि की दृष्टि होनी चाहिए। दूसरी ओर अगर शनि सूर्य के साथ हो या राहु उसे देख रहा हो तो भी पितृ दोष’ प्रमाण होता  है।

अगर पंचम और नवम में ऐसी ग्रह स्थिति हो तो निश्चित ही जातक को ‘पितृ दोष’ से पीड़ित होते हैं। दरअसल पंचम भाव पिछले जन्म का भाव है। वही नवम भाव उससे पंचम यानी धर्म का भाव होने के कारण ऐसा होता है। दरअसल दक्षिण भारत में कुछ विद्वान नवम भाव से पिता का विचार करते है वही इस भाव से पुत्र के पुत्र का भी विचार होता है इसलिए नवम भाव में यह दोष बने तो ज्यादा परेशानी वाला होगा।

ज्योतिष मतानुसार अगर चन्द्रमा भी शनि राहु से युक्त पीड़ित हो तो जातक को मातामही का दोष लगता है। इसके अलावा अगर सूर्य चंद्र दोनों पीड़ित हो तो बेहद नकारात्मक प्रभाव जातक के ऊपर पड़ता है। हालांकि विज्ञान के अनुसार सूर्य चंद्र सिर्फ अमावस्या को ही एक दूसरे से बेहद करीब होंगे और ऐसे में पंचम नवम में शनि राहु से युति या 

 

दृष्टि की शर्त कई सालों में एक बार आएगी। 

दरअसल राहु चंद्र को कमजोर करता है वही वायु तत्व शनि उस युति को और खराब कर देता है। जिससे जातक जीवन भर मान- सम्मान- सुख- शांति को तरस जाता है और उसे कहीं भी शांति नहीं मिलती है। 

हमारी संस्कृति में पितरों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और जीवित ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी हम उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करते है।

            अगर किसी जातक की कुंडली में ऊपर दी गई ग्रह स्थिति बन रही है तो उसे अमावस्या के दिन व पितृ पक्ष के दौरान दोष निवारण के उपाय करने चाहिए।

अगर किसी की कुंडली नहीं है तो भी विद्वानों ने पितृ दोष के कुछ लक्षण कहे है जो इस प्रकार है-:

इस दोष से पीड़ित जातक हर जगह असफलता हासिल करता है भले ही वो अपना स्थान ही क्यों न बदल ले। 

ऐसे जातक के घर में कभी शांति नहीं होगी। विवाह के कई वर्षों के बाद भी संतान नहीं होती है। ऐसे जातक को कोई ना कोई बीमारी घेरे रहती है। उसे शरीर में हमेशा भारीपन लगता है। ऐसा जातक घर में कोई मांगलिक काम भी करवाना चाहे तो उसके काम में बाधा आती है। ऐसे जातक के घर में अच्छी खासी कमाई के बाद भी पुत्रों में झगड़ा लगा रहता है। शादी विवाह योग्य बच्चों के बनते रिश्ते में बात बिगड़ने लगती है। अर्थात विवाह में देरी पैदा होती है। कुंडली के जिस भाव में पितृ दोष बनता है अक्सर वह भाव कुंडली का ज्यादा पीड़ित होता है।

जैसे-: यदि पितृ दोष कुंडली के 12वें भाव में बन गया तो फालतू का कर्ज, बीमारियों पर पैसा खर्च- घर में संतानों में व्यसन पैदा होना इत्यादि समस्या उत्पन्न होने लग जाती है।

इस दोष से बचने के कुछ उपाय 

वैसे तो शास्त्रों में पितृ दोष के काफी उपाय बताए गए हैं कुछ उपाय ऐसे होते हैं जो कुंडली जांचने के बाद ही करने चाहिए, लेकिन कुछ सामान्य उपाय होते हैं जो कोई भी व्यक्ति कर सकता है वह इस प्रकार है-:

                  हर अमावस्या को देवताओं को भोग लगाकर अपने पितरों के निमित्त अन्न और वस्त्र भेंट करना चाहिए।सूर्य देव की रोजाना विधिवत पूजा करे और अर्घ्य दें और सूर्य देव के सामने अपने पितरों की शांति की प्रार्थना करें। साल में एक बार किसी पवित्र नदी के किनारे पितरों के निमित्त गरीबों को भोजन दे। अमावस्या के दिन व पहली रात्रि अर्थात चतुर्दशी के रात्रि में कुछ विशेष नियमों का पालन करें। अमावस्या के दिन भगवत गीता के पाठ करें या सुने। भगवत गीता का सातवां अध्याय करना भी श्रेयस्कर  होता है। अमावस्या के दिन विधिपूर्वक पितरों के नियमित गाय को रोटी- गुड़ इत्यादि खिलाएं। उसके बाद ही परिवार के सदस्य भोजन ग्रहण करें। अमावस्या के दिन विधिवत रूप से मंदिर- देवालय- देव वृक्ष आदि की सेवा करें।

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