हनुमान जी की महिमा
हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष
हनुमान जी के चरित्र से हमे हर वक्त कुछ ना कुछ सिखने को मिलता है। जब हम हनुमान चालीसा या सुंदर कांड पढते है तो हमारी सभी मनोकामना पूर्ण होती है ओर अगर समझ कर पढे तो हमे उनके जीवन से ऐसी काफी शिक्षा मिलती है जो हमे जीवन जीने के लिए काम आती हैं।
हनुमान जी जीवित देवता हैं इसलिए उनकी जयंती नहीं जन्मोत्सव मनाया जाता है। हनुमान जी कलयुग के ऐसे देवता हैं जो क्षण भर में खुश होने पर सभी की मनोकामनाएं तुरंत पूरी कर देते हैं।
माता सीता ने हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नव निधियां दी थी इसका विवरण सुंदरकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बड़े ही सुंदर तरीके से किया है हनुमान चालीसा में भी हनुमान जी के बारे में लिखा है अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अवसर दिन जानकी माता।
हनुमान जी एक श्रेष्ठ वकील भी थे जब लंका मे माता सीता की खोज करने गए तो रावण के सामने जिस तरीके से राम जी के विषय में संवाद किया वह एक उल्लेखनीय संवाद है।
माता सीता को खोजने के वक्त जब अशोक वाटिका पहुंचे तो माता सीता को ढाढस बनाने के लिए उन्होंने कहा कि मां यह जो वृक्षों पर सुंदर फल लगे हुए हैं क्या मैं इनको खा सकता हूं । मां ने कहा कि इनको रक्षा करने के लिए बहुत सारे राक्षस और महाबली तैनात हैं। उन्होंने कहा माता अगर आपकी इजाजत हो तो मुझको इन रक्षको का कोई भय नहीं है उनका उद्देश्य माता सीता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ाना व दिखाना चाहते थे कि राम जी की सेना में कितने बहादुर और बलशाली योद्धा हैं,और लंकावासियो के अंदर भी एक भय उत्पन्न करना चाहते थे कि जो दूत आया है वह कोई कमजोर नहीं है।
हनुमान जी का लंका में इतना भय हो गया था कि जब अंगद जी गए तो सारी लंका में यह हो गया कि एक और वानर आ गया है, पहले वाला वानर हंगामा करके गया था और यह दूसरा वानर ना जाने क्या हंगामा करके जाएगा।
अगर हम हनुमान चालीसा पढ़ते हैं तो हमारे ऊपर ऊपरी छाया का कोई प्रभाव नही रहता है। हनुमान चालीसा के में लिखा है भूत पिशाच निकट नहीं आवे महावीर जब नाम सुनावे।
हनुमान जी कोई भी काम अपने हाथ में लेते तो पूरा करके ही विश्राम करते। जब सीता की खोज के लिए जा रहे थे तो मैनाक पर्वत ने कहा कि हनुमान जी थोड़ा सा आराम कर लीजिए तो उन्होंने कहा कि नहीं राम काज कीजे ने बिना मोहि कहां विश्राम।
हनुमान जी जानते थे कि किसके साथ कैसे बर्ताव करना है जब सुरसा ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास कर तो हनुमान जी ने उसी के प्रकार से जैसा वह कर रही थी वैसा करके,जैसे वह मुंह बड़ा रही थी वैसा वैसा आकार बढ़कर उसको उसी के हथियार से जवाब दिया और उसका मान सम्मान भी रखते हुए वहां से रास्ता निकाला।
जब समुद्र में जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक राक्षसी परछाई देख करके पक्षियों को खा जाती है तो उन्होंने अपनी परछाई भी विलुप्त कर दी तो जैसे संकट आया वैसे ही ताकत का इस्तेमाल कर समस्या का समाधान किया। हनुमान जी जानते थे कि हाउ टू यूज द पावर।
लंका में घुसते वक्त जब लंकनी ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास कर तो अनु विनय नहीं करी सीधा ही मुष्ठीका का का प्रहार मारा और बता दिया कि रावण का काल आ गया है।
लेकिन जब विभीषण जी मिले तो वह भी एक बार को चकित रह गए कि लंका में यह सज्जन पुरुष कहां से आकर के रह रहा है और उनसे पूरा परिचय करके और राम जी का पूरा वृत्तांत सुनकर कि मैं यहां क्यों आया हूं बताकर और विभीषण जी का सहयोग लेकर अशोक वाटिका की तरफ गए।
हनुमान जी चाहते तो मेघनाथ का भी वध कर सकते थे लेकिन एक तो ब्रह्मास्त्र का मन रखने के लिए और दूसरा रावण का दरबार देखना और रावण की शक्तियों का आकलन करना यह भी हनुमान जी का उद्देश्य था।
हनुमान जी यश की कामना से बिल्कुल दूर रहते थे। हनुमान जी ने कभी नहीं कहा कि मैंने यह सारा काम करा है जब सीता माता की खोज करके आए तो उन्होंने कहा कि प्रभु आप ही के आशीर्वाद से और आप ही ने मुझसे यह सारा काम करवाया है। जब राम जी ने उनको कहा कि हनुमान में तेरा यह ऋण उतर नहीं सकता हूं तो हनुमान जी ने कहा कि प्रभु मैं तो कुछ किया ही नहीं जो कुछ किया और करवाया वह आप ही ने करवाया है । शायद यही कारण है कि आज हनुमान जी कलयुग में राम जी से ज्यादा पूजे जाते हैं
शनि ग्रह की दशा में भी हनुमान जी को पूजते हैं क्योंकि हनुमान जी ने शनि महाराज को लंका से मुक्त कराया था।