UNIFORM CIVIL CODE

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता पर एक गोष्टी का आयोजन 8 जुलाई skytek metrout culb सेक्टर 76 मे हुआ

समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी सांप्रदायिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है। संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। जैसे कि अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू किया है। भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है, बल्कि भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं।

लैंगिक समानता की ओर कदम: भारत में व्यक्तिगत कानून प्रायः महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, विशेष रूप से विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संरक्षण से संबंधित मामलों में। समान नागरिक संहिता इस तरह के भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगी।

कानूनों की सरलता और स्पष्टता: समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों के मौजूदा ढुलमुल तंत्र को नियमों के एक समूह से प्रतिस्थापित कर विधिक प्रणाली को सरल बनाएगी जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होगी। इससे सभी नागरिकों के लिये कानून अधिक सुलभ हो जाएँगे और वे इसे आसानी से समझ पाएँगे।

एकरूपता और निरंतरता: समान नागरिक संहिता कानून के अनुप्रयोग में निरंतरता सुनिश्चित करेगी, क्योंकि यह सभी के लिये समान रूप से लागू होगी। यह कानून के अनुप्रयोग में भेदभाव या असंगति के जोखिम को कम करेगी।

यह सांप्रदयिक या व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर भेदभाव को समाप्त करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि कानून के तहत सभी को समान अधिकार एवं सुरक्षा प्राप्त हो।

आधुनिकीकरण और सुधार: समान नागरिक संहिता भारतीय विधि प्रणाली के आधुनिकीकरण और इसमें सुधार की अनुमति देगी, क्योंकि यह समकालीन मूल्यों एवं सिद्धांतों के साथ कानूनों को अद्यतन करने और सामंजस्य बनाने का अवसर प्रदान करेगी।

युवाओं की आकांक्षाओं की पूर्ति: जबकि विश्व डिजिटल युग में आगे बढ़ रहा है, युवाओं की सामाजिक प्रवृत्ति एवं आकांक्षाएँ समानता, मानवता और आधुनिकता के सार्वभौमिक एवं वैश्विक सिद्धांतों से प्रभावित हो रही हैं।

समान नागरिक संहिता के अधिनियमन से राष्ट्र निर्माण में उनकी क्षमता को अधिकतम कर सकने में मदद मिलेगी।

सामाजिक समरसता: समान नागरिक संहिता सभी व्यक्तियों द्वारा अनुपालन किये जाने हेतु नियमों का एक सामान्य समूह प्रदान कर विभिन्न धार्मिक या सामुदायिक समूहों के बीच तनाव एवं संघर्ष को कम करने में मदद कर सकती है।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954: विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत किसी भी नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, नागरिक विवाह की अनुमति है। यह किसी भी भारतीय व्यक्ति को धार्मिक रीति-रिवाजों से बाहर विवाह करने की अनुमति देता है।

शाह बानो केस (1985): इस मामले में शाह बानो द्वारा भरण-पोषण के दावे को व्यक्तिगत कानून के तहत ख़ारिज कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125—जो पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के संबंध में सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, के तहत शाह बानो के पक्ष में निर्णय दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने आगे यह अनुशंसा भी की थी कि लंबे समय से लंबित समान नागरिक संहिता को अंततः अधिनियमित किया जाना चाहिये।

सर्वोच्च न्यायालय ने सरला मुद्गल निर्णय (वर्ष 1995) और पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटीना परेरा केस (वर्ष 2019) में भी सरकार से समान नागरिक कानून लागू करने का आह्वान किया।

 ‘ब्रिक बाय ब्रिक एप्रोच’: भारत में समान नागरिक कानून लागू करने के लिये चरणबद्ध प्रक्रिया या ‘ब्रिक बाय ब्रिक एप्रोच’ अपनाई जानी चाहिये, न कि सर्वव्यापी या बहुप्रयोजी दृष्टिकोण। महज समान संहिता लागू किये जाने से अधिक महत्त्वपूर्ण है एक उपयुक्त एवं न्यायपूर्ण संहिता लागू करना। सामाजिक अनुकूलनशीलता पर विचार: समान नागरिक संहिता का खाका तैयार करते समय समान नागरिक कानून की सामाजिक अनुकूलनशीलता पर विचार करने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत कानून के उन क्षेत्रों से आरंभ करना उपयुक्त होगा जो सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत और निर्विवाद हैं, जैसे कि विवाह एवं तलाक संबंधी कानून। यह समान नागरिक कानून के लिये सर्वसम्मति और समर्थन के निर्माण में मदद कर सकता है, साथ ही नागरिकों के समक्ष विद्यमान कुछ सर्वाधिक दबावकारी मुद्दों को भी संबोधित कर सकता है। हितधारकों के साथ चर्चा एवं विचार-विमर्श: इसके साथ ही, समान नागरिक कानून को विकसित करने और लागू करने की प्रक्रिया में सांप्रदयिक नेताओं, कानूनी विशेषज्ञों एवं समुदाय के प्रतिनिधियों सहित हितधारकों की एक विस्तृत शृंखला को संलग्न किया जाना उपयुक्त होगा। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि समान नागरिक संहिता विभिन्न समूहों के विविध दृष्टिकोणों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगी तथा इसे सभी नागरिकों द्वारा उचित एवं वैध रूप में देखा जाएगा।

समान नागरिक संहिता पर चर्चा 

रवींद्र गौतम 

समान नागरिक संहिता में क्या है और क्यों है इस विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा करने से पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मेरी समझ में समान नागरिक संहिता मात्र निम्न बिंदुओं पर समान अधिकार और कर्तव्य की बात करती है 

1.विवाह में ( बहु पत्नी अथवा बहुपति प्रथा)

2. विवाह की न्यूनतम आयु 

3. विवाह विच्छेद की प्रक्रिया.

4. विवाह विच्छेद के उपरांत भरण पोषण एवं संपत्ति के बंटवारे के संबंधी नीतियां

5 किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसकी संपत्ति का बंटवारा

6. गोद लेने की प्रक्रिया व अधिकार.

इन सब विषयों पर भारत का संविधान जो सन 1950 से लागू हुआ से पहले क्या स्थिति थी. और संविधान में क्या प्रावधान किए गए जिनके आधार पर हिंदू कोड बिल आधारित कानून बने

संविधान के प्रावधानों को देखते हैं भारतीय संविधान की धारा 14 के अनुसार शासन किसी भी नागरिक के मध्य पंथ अथवा लिंग के आधार पर कोई मतभेद नहीं करेगा इसका स्पष्ट अर्थ है की अगर इन विषयों पर संसद द्वारा कोई कानून बनाया जाता है तो वह सभी पंचों पर पंथ्यों के मानने वालों पर समान रूप से लागू होगा साथ ही वह समान रूप से पुरुषों और स्त्रियों में भी लागू होगा

अब हम संविधान से पूर्व स्थिति पर आते हैं संविधान लागू होने से पूर्व इन विषयों में जो स्थिति थी एक-एक करके उस पर चर्चा करते हैं एवं संविधान बनने के बाद उन में क्या परिवर्तन आया और उन परिवर्तनों में क्या विसंगतियां ही आए इस पर भी चर्चा करते हैं

1.बहु पति अथवा बहु पत्नी प्रथा:- हिंदुओं में बहु पत्नी पर कोई रोक नहीं थी कोई अधिकतम सीमा भी नहीं थी जबकि मुसलमानों में यह प्रावधान था और अभी भी है कि वह 4 तक पत्नियां रख सकता है. ईसाइयों में भी बहु पत्नी प्रथा नहीं थी. हिंदू कोड बिल संविधान में प्रदत्त लैंगिक समानता के आधार पर नियम यह बनना था की जो अधिकार पुरुषों के हैं वही अधिकार स्त्रियों के भी होने चाहिए अगर पति एक से अधिक पत्नी रख सकता है तो यह अधिकार पत्नी को भी होना चाहिए कि वह एक से अधिक पति रख सकें परंतु क्योंकि यह बदलते परिवेश में उचित नहीं लगता था इसलिए बहू पत्नी अथवा बहु पति प्रथा पर रोक लगानी चाहिए थी परंतु यह नियम मात्र हिंदुओं पर लगाना संविधान की धारा14 में प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है यहां यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इस्लाम में चार शादियां करने की कोई बाध्यता पुरुषों पर नहीं है इसलिए एक पत्नी संबंधी कानून कहीं से भी इस्लाम विरोधी नहीं है

2. विवाह संबंधी आयु:- हिंदुओं में कोई न्यूनतम आयु नहीं थी मुसलमानों में यह आयु 16 वर्ष थी हिंदू कोड बिल के अनुसार यह आयु  हिंदुओं के लिए पहले 16 वर्ष की गई बाद में बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया . जब यह आयु हिंदुओं की युवतियों के लिए 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष की गयी थी उसी समय यह नियम मुसलमानों पर भी लागू किया जाना चाहिए था और इसका प्रावधान अन्य मता्वलंबियों पर भी लागू किया जाना चाहिए था ऐसा नहीं करना धारा 14 का उल्लंघन है.

3. तलाक संबंधी नियम:- हिंदुओं में तलाक का कोई प्रावधान नहीं था अगर कोई हिंदू अपनी पत्नी को छोड़ देता था तो उस पर कानून में कोई बाध्यता नहीं थी कि वह अपनी पत्नी का भरण पोषण करें जबकि मुसलमानों में प्रत्येक महीने में एक बार तलाक होने के उपरांत तलाक हो जाता था और मुस्लिम युवक को अपनी तलाकशुदा पत्नी को मेहर देने की पात्रता थी हिंदू कोड बिल आने के बाद हिंदुओं पर तलाक देने के लिए एक लंबी प्रक्रिया बना दी गई जिसमें महीनों अथवा वर्षों लग जाते हैं यह धारा 14 का उल्लंघन है जो प्रक्रिया हिंदू के लिए बनाई गई थी वैसी ही प्रक्रिया मुसलमानों और अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी बनानी चाहिए थी

4. तलाक के बाद भरण पोषण का प्रावधान वह संपत्ति का बंटवारा- हिंदुओं में ऐसा कोई प्रावधान था ही नहीं जबकि मुसलमानों में व अन्य मातावलम्बियों  में इस संबंध में प्रावधान थे. हिंदू कोड बिल के उपरांत हिंदुओं में यह प्रावधान किया गया की पति की संपत्ति का बंटवारा होकर उसका एक भाग पत्नी को मिलेगा उसके अतिरिक्त पत्नी को आजीवन भरण पोषण का उत्तरदायित्व भी पति के ऊपर रहेगा ऐसा प्रावधान मात्र हिंदुओं पर लागू करना धारा 14 का उल्लंघन है

5. उत्तराधिकार संबंधी नियम:- हिंदू कोड बिल से पहले उत्तराधिकार में मात्र बेटों को ही सारी संपत्ति बंटवारे में मिलती थी पुत्रियों को इस बारे में कोई अधिकार नहीं था जबकि अन्य मतावलंबियों में पुत्रियों को भी इस संबंध में कुछ मिलने का प्रावधान था और अभी भी है . हिंदू कोड बिल के बाद पुत्र और पुत्री में सारा भेदभाव उत्तराधिकार के संबंध में समाप्त कर दिया गया है  जबकि मुसलमानों में अभी भी है समानता नहीं है. यह संविधान धारा 14 मे प्रदत्त लैंगिक व पथिक समानता का  उल्लंघन है .

6. गोद लेने का अधिकार :-यह प्रावधान हिंदू कोड बिल से पहले भी था और हिंदू कोड बिल के बाद भी है मात्र प्रक्रिया बना दी गई है. यह प्रावधान सभी मतावलंबियों को मिलना चाहिए. जो भी संतान हीन व्यक्ति किसी बालक अथवा बालिका को गोद लेना चाहता है तो निर्धारित प्रक्रिया के पालन के उपरांत उसे यह अधिकार मिलना चाहिए

7. समान नागरिक संहिता नहीं होने के दुष्परिणाम:- समान नागरिक संहिता नहीं होना मतांतरण को बढ़ावा देता है कुछ उदाहरण

अ) अगर कोई हिंदू युवक दूसरी शादी करना चाहता है तो वह मुसलमान बन के यह कर सकता है

ब) यदि कोई हिंदू अपनी पुत्री का विवाह जल्दी करना चाहता है अथवा कोई लड़की 18 वर्ष से पहले ही विवाह करना चाहती है तो अगर वह किसी मुस्लिम से विवाह कर ले तो वह कानून सम्मत हो जाता है परंतु यदि वह किसी हिंदू से विवाह कर ले तो वह गैरकानूनी हो जाता है यह भी मतांतरण  को बढ़ावा देता है. क्योंकि अगर कोई लड़का 18 वर्ष से कम आयु की लड़की से निकाह करना चाहता है तो वह मुसलमान बनकर यह कर सकता है हिंदू रहते हुए अगर करेगा तो अपराध माना जाएगा

स) तलाक की प्रक्रिया:- यदि कोई हिंदू अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता है और संपत्ति का बंटवारा अथवा भरण पोषण नहीं करना चाहता तो वह मुसलमान बनकर इन सब दायित्वों से बच सकता है यह भी मत अंतरण को बढ़ावा देता है |

क) इन सबके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात यह भी है कि जब क्रिमिनल कानून सबके लिए एक समान है तो अन्य नागरिक कानूनों में भी समानता क्यों नहीं जबकि यह प्रावधान कहीं से भी इस्लाम के विरोध में नहीं है |

 ना ही शरिया के विरोध में है यही कारण है कि विश्व के अनेक मुस्लिम देशों ने बहु पत्नी प्रथा पर और तलाक संबंधी तथा पर परिवर्तन किए हैं और वहां सभी माता बुलंदियों के लिए एक ही कानून है इसके अतिरिक्त यूरोप और अमेरिका में भी यही स्थिति है |

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdKcPy83LAALZqG2Te-Vn2RvC7qthkg0TTdzz6xX317iGhyxQ/viewform?usp=pp_url

4 thoughts on “UNIFORM CIVIL CODE”

  1. बहुत ज्ञानवर्धक गोष्ठी रही
    मैं समान नागरिक संहिता का समर्थन करता हूँ और उम्मीद करता हूँ की यह जल्दी लागू हो जाएगी 🙏

  2. सलिल नायक

    एक देश एक क़ानून !
    समय और समाज को ध्यान में रख कर क़ानून में समुचित बदलाओ ।
    Reservation — को अब लोगों की आमदनी के हिसाब से । कोशिश होनी चाहिए की शिक्षा और उपचार — के रूप में लोगों की मदद हो ।

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