क्या पाया

शहरों की गलियों में ,ढूंढा अपने आप को ,
अँधेरो में पाया ,मैंने अपने आप को ,
कर के वफ़ा मैंने ,दिखाया अपने यार को ,
बदले में पाया ,खतरे में अपनी जान को ,
शोरगुल में चाहा ,पाना सुनसान को ,
आदमी के भेष में पाया शैतान को ,
मतलब परस्त दुनियां में ,देखा इन्सान को,
कचरे के ढेर में पाया ईमान को,
सुनील अग्रहरि,Ahlcon international school, Delhi
शुक्रिया आभार ।