आखिर 2024 चुनाव मे हुआ क्या और क्यों

आखिर 2024 चुनाव मे हुआ क्या और क्यों

                 बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

   शायद आपको याद हो एक बार भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में ही हंसकर कहा था कि मोदी टेबल पर टफ बार्गेनर है।ये मजाक नही था,दुनिया के बड़े बड़े देशों ने विश्व के एक सबसे बड़े बाजार भारत का सदैव ही शोषण किया था,आज वे मुल्क बेबस है मोदी के आगे। कम मेक इन इंडिया की नीति से विश्व मे हलचल मची है, इससे मोदी का ऊपर से गुणगान करने वाले देश अंदर से मोदी के किसी भी प्रकार हटने का सपना देखते हैं। इसी प्रकार दुनिया के बड़े बड़े उद्योगपति भी जिनके आर्थिक हित मोदी के आने से प्रभावित हुए है,वे अपनी दौलत लुटाकर भी मोदी को धराशायी देखने का सपना देखते आये है।विशेष रूप से तब जब वे भारत के दुश्मन देश चीन से उसकी मुठभेड़ के समय मुख्य विपक्षी दल को चीन के पाले में देखते हैं, तब इन शक्तियों को लगता है कि मोदी को हटाने का प्रयास किया जा सकता है।यही कारण था 2024 कि चुनावो से पूर्व ही अमेरिकी उद्योगपति जार्ज सोरोस ने घोषणा कर दी थी कि 1000 मिलियन डॉलर तैयार है,मोदी सरकार को हटाने को।बेबस अरब देश मोदी को समर्थन और सम्मानित करने को मजबूर है,क्योकि तेल लेने के लिये मोदी अरब देशो से निर्भरता खत्म करने  की दिशा में निरंतर कार्यरत हैं।रूस से सस्ती दर से तेल लेना इसी नीति का हिस्सा है।इलेक्ट्रिक  वाहन को बढ़ावा देना इसी दूरदर्शी नीति की ओर अग्रसर होना है।इस चुनाव में ये सब शक्तियां मोदी के विरुद्ध सक्रिय थी।विदेशी एजेंसियों का हथियार होता है,प्रोपेगैंडा। और कांग्रेस ने उस प्रोपेगैंडा में अपने को मोदी नफरत में इस्तेमाल होने दिया।

      80 करोड़ गरीबो को मुफ्त राशन, मुफ्त गैस सिलेंडर,गरीबो को घर,पानी,बिजली के ऊपर एक लाख खटखटा भारी पड़ गये।वैसे यहां यह कहना समाचीन होगा,लंबे समय तक मुफ्त वितरण को लाभान्वित वर्ग अपना हक मानने लगता है और वह उसे सरकार की क्षमता का प्रतीक मानना बंद कर देता है।उसकी मानसिकता बन जाती है कि मुफ्त राशन,पानी,गैस,बिजली ये हमारा हक है ही उसे कौन छीनेगा इसलिये अब यदि एक लाख रुपये या अन्य सुविधाओं की घोषणा दूसरा कर रहा है तो क्यो न उसे आजमाया जाये।यह फेक्टर भी इस चुनाव में रहा है।

     मोदी एक ब्रांड के रूप में देश मे राजनीतिक रूप से उभरे हैं।वे अकेले अपने कंधो पर पूरे चुनाव को खींच के जाने की क्षमता रखते हैं।कुछ हद तक तो यह ब्रांड   मार्का राजनीति ठीक है,और इसी कारण बीजेपी को फिरभी 240 सीट मिल गयी तथा एनडीए की सरकार की स्थापना भी तीसरी बार हो गयी है,पर नुकसान क्यों हुआ जानने के लिये हम पाते हैं कि इस ब्रांड मार्का राजनीति से नुकसान हुआ है।मोदी ब्रांड से पूरी पार्टी के नेताओ और कार्यकर्ताओं में अति आत्मविश्वास भर गया ,वे मोदी ब्रांड से इतने आश्वस्त थे कि वे जीत ही जायेंगे।कार्यकर्ताओं और जनता से कट गये। शीर्ष नेतृत्व भांप ही नही पाया कि जनता उसके द्वारा चयनित उम्मीदवार से नाराज है।इसका सटीक उद्धाहरण अयोध्या से उम्मीदवार लल्लू सिंह का है, जिन्होंने गत दस वर्षों में अयोध्या की जनता से अपने को वंचित रखा।

      नेतृत्व भी दस वर्षों के निष्कंटक राज में इतना अति आत्मविश्वासी हो गया था जो यह भी नही समझ पाया कि मोदी जी की खुद की कांस्टिट्यूटी में क्या गुल खिल रहा है,जहां से बीजेपी का सर्वोच्च नेता मात्र डेढ़ लाख वोट से ही जीत पाया।

        चुनाव के समय दिया जाने वाले बयानो से चुनाव प्रभावित होता है।बीजेपी अध्यक्ष नड्डा द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरूरत बीजेपी को अब नही रह गयी कहकर एक नकारात्मक संदेश दिया।इससे वे संघ कार्यकर्ता जो चुनाव के समय में बीजेपी के लिये जान झोंक देते थे,कुछ निरुत्साहित हुए।

       विपक्ष के किसी भी नेता को बीजेपी में शामिल कर लेना भी बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओ और जनता को बहुत अच्छा नही लगा।शिवसेना से शिंदे को लेना तो सबको अच्छा लगा पर अजीत पवार को बेवजह शामिल करना अच्छा निर्णय नही माना गया।बेकार में ही महाराष्ट्र में अपने बीच एक पॉवर सेंटर का निर्माण कर लेना, उचित नही था।

      अंत मे इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि हिन्दू समाज हमेशा जाग्रत अवस्था मे रहने वाला समाज नही है,उसे निरंतर जगाना पड़ता है,इसी तथ्य को समझ कर ही तो पू. डॉ हेडगेवार ने 1925 में निरंतर प्रतिदिन शाखा लगाने का मंत्र दिया था।इसे भूलने का मतलब है हिन्दू समाज को विघटन की राह पर डाल देना।

     2024 के चुनाव परिणाम में बीजेपी हारी नही बल्कि बल्कि बच गयी है,शायद ईश्वर ने एक अवसर प्रदान किया है संभलने का और सब कमियों को दूर कर एक पक्की डगर बनाने का।

3 thoughts on “आखिर 2024 चुनाव मे हुआ क्या और क्यों”

  1. बहुत सारगर्भित लेख एवं 2024 के चुनाव परिणामों पर भाजपा के प्रदर्शन की सही व्याख्या। इस उत्तम लेख के लिए साधुवाद।

  2. Dr preeti mittal

    Very true
    But
    जो होता है अछे के लिये होता है शायद इस बार अगर हम अछे से जीत भी जाते तो शायद भविष्य के लिय ओवरकॉंफिडेंट होते। ये झटका शायद भविष्य के लिय एक नयी उम्मीद और स्पष्ट राजनीति जो देशहित मे हो लेकर आये और फिर एक बार भारतीय जनता पार्टी अपना पूर्ण बहुमत लेकर आएगी राष्ट्रीयसव्यंसेवक संघ का सदैव ही भाजपा के लिये विशेष स्नेह रहा है और रहेगा भी 🙏

  3. Dr preeti mittal

    True
    But
    2024 के चुनाव में जो हुआ उसके पीछे कई प्रमुख कारण थे। नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने पिछले दो कार्यकालों में कई प्रमुख नीतियाँ और योजनाएँ लागू कीं जो जनता के बीच लोकप्रिय रहीं, जैसे मुफ्त राशन, मुफ्त गैस सिलेंडर, घर, पानी, और बिजली की सुविधाएँ। इसके बावजूद, कई कारक थे जो इस बार चुनावी नतीजों को प्रभावित कर गए।

    1. **विदेशी हस्तक्षेप और आर्थिक हित**: अमेरिकी उद्योगपति जॉर्ज सोरोस द्वारा 1000 मिलियन डॉलर की घोषणा मोदी सरकार को हटाने के लिए करना यह दर्शाता है कि विदेशी आर्थिक हितधारक मोदी के कार्यकाल से नाखुश थे। दुनिया के बड़े देशों ने भारत का हमेशा शोषण किया, लेकिन मोदी की नीतियों, विशेषकर ‘मेक इन इंडिया’ के चलते, इन देशों को मोदी का विरोध करना पड़ा।

    2. **आर्थिक और भू-राजनीतिक रणनीति**: मोदी सरकार की नीतियों ने भारत की निर्भरता तेल आयात के मामले में अरब देशों से कम की और रूस से सस्ती दर पर तेल लेना इसी रणनीति का हिस्सा था। इससे मोदी को बेदखल करने का प्रयास और बढ़ गया।

    3. **अति आत्मविश्वास और ब्रांड राजनीति**: मोदी एक मजबूत ब्रांड के रूप में उभरे हैं, लेकिन इसी ब्रांड पर अत्यधिक निर्भरता से पार्टी के नेता और कार्यकर्ता जनता से कट गए। अति आत्मविश्वास के चलते नेतृत्व ने जनता की नाराजगी को नजरअंदाज किया। अयोध्या से लल्लू सिंह का उदाहरण इसका सटीक प्रमाण है।

    4. **संगठनात्मक चुनौतियाँ**: बीजेपी अध्यक्ष नड्डा का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की जरूरत न होने का बयान संघ कार्यकर्ताओं के लिए नकारात्मक संदेश था, जिससे उनके मनोबल में गिरावट आई। चुनावी समय में आरएसएस कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

    5. **सहयोगी दलों के साथ चुनौतियाँ**: विपक्ष के नेताओं को बीजेपी में शामिल करने की नीति ने कुछ पुराने कार्यकर्ताओं और जनता को नाराज किया। अजीत पवार को शामिल करना महाराष्ट्र में एक पॉवर सेंटर का निर्माण करना उचित नहीं माना गया।

    6. **सतर्कता की कमी**: बीजेपी की जीत के बावजूद, यह समझना महत्वपूर्ण है कि हिन्दू समाज को निरंतर जागरूक रखना आवश्यक है। डॉ. हेडगेवार की शाखा लगाने की नीति इस जागरूकता को बनाए रखने का एक प्रयास था। इसे भूलना समाज को विघटन की ओर ले जा सकता है
    निष्कर्ष
    2024 के चुनाव में बीजेपी पूरी तरह से हार नहीं गई बल्कि यह उनके लिए एक चेतावनी के रूप में काम कर सकता है, जिससे वे अपनी कमजोरियों को दूर कर भविष्य में और मजबूत स्थिति बना सकें। ईश्वर ने शायद एक अवसर प्रदान किया है संभलने का और सब कमियों को दूर करने का।🙏

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