भारत को जाने

भारत को जाने 

सतीश शर्मा ( केशव भाग संघ चालक नोएडा महानगर )

पुण्य भूमि मानचित्र परिचय 

यह देव भूमि है – यहाँ तैंतीस करोड़ देवता रहते थे अर्थात् जितनी जनसंख्या उतने ही देवता । प्रत्येक व्यक्ति धर्म के अनुसार आचरण करता था इसलिए देवतुल्य अर्थात् देव भूमि है यह। दूसरी बात- एक बार राक्षसों ने ब्रह्माजी को शिकायत की कि आप देवताओं का अधिक ध्यान करते हैं- हमारा उतना नही । ब्रह्माजी ने कहा कि इसका उत्तर बाद दूँगा । कुछ दिन बाद ब्रह्माजी ने देवताओं और राक्षसों दोनों को भोज पर आमंत्रित किया । बढ़िया से बढ़िया पकवान अर्थात् 56 प्रकार के व्यंजन सबके सामने परोसे गए। राक्षसों और देवताओं के शिविर अलग-अलग थे। ब्रह्माजी ने अपनी सामर्थ से सबके हाथ कड़े कर दिए अर्थात् कोहनी के पास गुड़ नही पा रहे थे। ब्रह्माजी पहले राक्षसों के शिविर में पहुँचे और वहाँ एक विचित्र दृश्य देखा। राक्षस लोग पकवान हाथ में उठाते- आसमान की तरफ उछालते और वह पकवान कभी दायी ओर, कभी बाईं ओर और कभी दूसरे द्वारा फेंका गया पकवान उनके मुँह के पास गिरता था ।

ब्रह्माजी ने कहा कि इतना श्रेष्ठ पकवान होते हुए भी आप लोग खा नही रहे हो- ऐसा क्यों ? उत्तर था कि खायें कैसे- हमारे हाथ ही नही मुड़ रहे हैं। ठीक है कहकर राक्षसों को साथ ले देवताओं के शिविर में पहुँचे- सब लोग बड़े प्रेम पूर्वक खा रहे थे। मेरा हाथ मेरे मुँह तक नहीं जायेगा लेकिन पड़ोसी के मुँह तक तो जायेगा और इस प्रकार से सब लोग बड़े प्रेमपूर्वक खा रहे थे। राक्षसों को अपनी गलती का अहसास हो गया। दूसरों का विचार करने वाले लोग जहाँ रहते हैं’ उनकी भूमि ही पुण्य भूमि है। यह शाश्वत सत्य भी है कि “परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अथमायी”

पर वे मौन साथ लेते हैं । इसलिए ‘धर्म’ शब्द मौलिक है और विधायक है।

परम् वैभव

राजा भोज के काल में राज्य व्यवस्था बहुत अच्छी थी और प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। उसका दरवारी चारण अपने राजा की प्रशस्ति में गा रहा था “ एको राजा रामचन्द्र दूजो राजा भोज” | जैसे ही उसने यह दोहराया तो अचानक एक कौवे ने उसके मुँह में बीट कर दी। इस पर राजा भोज ने कुपित होकर उसे मारने के लिए अपना धनुष वाण उठा लिया । तुरन्त कौवा मनुष्य की बोली में बोलकर कहने लगा, “राजन् ! यह चारण झूठ बोल रहा है।” राजन ने पूछा कैसे ? | मेरे साथ चलो- मैं दिखलाता हूँ । राजा भोज अपने सैनिकों के साथ उसके पीछे-पीछे चल दिए । चलते-चलते एक गुफा आ गई- गुफा में बहुत अंधेरा था । कौवे ने कहा ‘राजन्! डरो मत- आगे चलकर सत्य के दर्शन होंगे। अंधेरी गुफा में थोड़ा चलने के बाद एक स्थान ऐसा था जो प्रकाश से जगमगा रहा था- चारों तरफ उजियारा ही उजियारा। बीच में एक टोकरे में मोती रखे थे जिसमें से प्रकाश झिलमिला रहा था । सब आश्चर्य चकित थे । राजा ने पूछा ‘यह सब कैसे संभव हुआ ?’ कौवे ने कहा प्रभु रामचन्द्र के राज्य में एक किसान ने अपनी जमीन दूसरे किसान को बेची। जब वह खेत जोत रहा था तब खुदाई करते समय एक मटका निकला जिसमें बहुमूल्य मोती थे । किसान ने सोचा इन मोतियों पर उस किसान का अधिकार है जिससे मैंने जमीन खरीदी है। किसान वे मोती लेकर जमीन बेचने वाले किसान के पास गया और कहा सम्भालो

अपनी सम्पदा क्योंकि यह आपकी जमीन से निकले हैं। वह किसान कहने लगा कि मैंने तो यह जमीन आपको बेच दी है इसलिए अब इन पर आपका अधिकार है। इस पर तकरार हुई और निष्कर्ष निकला- न यह आपकी और न मेरी- यह राज्य की सम्पत्ति है-‘ चलो राजा रामचन्द्र को सौंप देते हैं । वे उन बहुमूल्य हीरों को लेकर राजा के पास पहुँच गए और कहा राजन् ! ये बहुमूल्य हीरे जमीन से निकले हैं- इन पर आपका अधिकार है । इस पर राजा ने कहा कि यह मेरे कैसे हो सकते हैं ? पर्याप्त कहन-सुनन पर यह तय हुआ कि उन्हें ब्राह्मणों को दान कर दें किन्तु किसी भी ब्राह्मण ने उन्हें लेना स्वीकार नही किया क्योंकि उन्हें इसकी आवश्यकता ही नही थी । फिर यह तय किया गया कि इन्हें भिखारियों में बाँट दें किन्तु राज्य में कोई भी ऐसा भिखारी नही मिला जो उन मोतियों को स्वीकारे । अन्त में यह तय हुआ कि इन्हें ऐसे स्थान पर रख दो जहाँ से जिसे आवश्यकता हो ले जाए और अब तक कोई भी उन्हें लेने नहीं आया । तबसे यह हीरे यही पर रखे हुए हैं। यह है राम राज्य, उसकी तुलना कैसे की जा सकती है ? ऐसा रामराज्य और परम वैभव लाने में हम समर्थ हों- उसके लिए हमें हे भगवन्! आपका आशीर्वाद चाहिए ।

भारत की पारम्परिक सीमा “त्रिविष्टप” (तिब्बत) भारत के उत्तर में रही है। कैलाश मानसरोवर, गान्धार, कश्यप-सागर (कैस्पियन सागर), बर्मा (ब्रह्मदेश), श्रीलंका, ईरान (आर्यान), अफगानिस्तान (उप गणस्थान) आदि भारत के अंग रहे हैं।

वृहत्तर भारत की सीमाएं- दक्षिण में हिन्दु महासागर और पूर्व में ब्रह्मदेश, श्याम, काम्बोज, द्वारावती (सुमात्रा), स्वर्ण दीप (बोर्नियो), सिंह द्वीप आदि । हिन्दु एशिया (इण्डोनेशिया) पश्चिम में यूनान तक महाभारत का विस्तार । समस्त पृथ्वी पर चक्रवर्तियों का शासन (धर्मानुशासन)। महाभारत के युद्ध (जनमेजय) के बाद चक्रवर्ती प्रथा समाप्त। भारत की सीमायें क्रमश: संकुचित । बुद्ध के पश्चात् सैनिक तैयारियाँ और जागरुकता भी बन्द । चन्द्रगुप्त मौर्य को फिर से दहेज में गान्धार मिला परन्तु अरब आक्रमण के बाद गान्धार अफगानिस्तान बना। अँग्रेजों के ‘भारत-साम्राज्य’ में बलोचिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बर्मा (ब्रह्मदेश) और मलाया का एक भाग भारत का ही अंग माना जाता था।

 भारत से टूटकर बने है यह 15 देश , इतिहास जानिए:-

भारत को पहले अखण्ड भारत कहते थे | क्यूंकि भारत पुरे विश्व में बहुत बड़ा था | समय के साथ यहाँ के बटवारे होते गए | आपको जानकर हैरानी होगी | भारत से ही 15 देशों का जन्म हुआ | यह कैसे हुआ | यह 15 देश कौन से है | यह जानिए —

ईरान : जब भारत से आर्यन ईरान में बलुचिस्थान में पहुंचे | तब वहाँ बस गए | उसी से इसका नाम इरयाना पड़ा |उसके बाद अरबो ने यहाँ आक्रमण किया | साथ ही यह बस गए | तब इसका नाम ईरान पड़ा।

कम्बोडिया : प्रथम शताब्दी में कम्बोडि नामक भरतीय ब्राह्मण ने इस देश में हिन्दू राज की स्थापना की | इसी से इसका नाम कम्बोडिया पड़ा| बाद में यह स्वतंत्र देश हो गया।

वियतनाम : इस देश का नाम पहले चम्पा था | यह भारत का एक अंग था | 1825 में चम्पा में हिन्दुराज समाप्त हुआ | यह एक अलग देश बना।

मलेशिया : यहाँ बोध धर्म भारतीयों ने स्थापित किया | यह देश भारतीय संस्कृति के लिए मशहूर था | 1948 में अंग्रेजों से आजाद होकर यह अलग देश बना।

इंडोनेशिया : यह भारत का संपन्न देश था | यहाँ हिन्दू कम रह गए | फिर यह एक अलग मुस्लिम देश बना | परन्तु यहाँ आज भी राम मंदिर है | जहाँ मुस्लिम पूजा करते है।

फिलिपींस : मुसलमानो ने आक्रमण कर यहाँ अपना राज जमा लिया । फिर यह अलग देश बना ,परन्तु आज भी यहाँ हिन्दू रीती रिवाज अपनाये जाते है।

अफगानिस्तान : यह भारत का एक अंग था । यहाँ हिंदू राजा अम्बी का राज था | जिसने सिकंदर से संधि कर उसे यह राज्य दिया था | महाभारत के शकुनि और गंधारी यहाँ कन्दरि के थे | इस्लाम के बाद यह भारत से सांस्कृतिक रूप से भी अलग देश बन गया ।1876

नेपाल : यह भारत का एक अंग था | इसका एकीकरण एक गोरखे ने किया | महात्मा बुद्ध यही राजवंश के थे |1904
भूटान : यह पहले भारत के भद्रदेश से जाना जाता था | हमारे ग्रंथो में इस देश का उल्लेख है | 1906 में इसे एक संपन्न राज्य घोषित कर दिया।

तिब्बत : हमारे ग्रंथो में त्रिविशिस्ट के नाम से इसका नाम है | भारतीय शासको को हराकर चीन ने इसे अपने में मिला लिया।1914

श्रीलंका : इसका नाम ताम्रपानी था | पहले पुर्तगाली , फिर अंग्रेजो ने यहाँ अधिकार किया | 1937 में अंग्रेजो ने इसे भारत से अलग कर दिया।

म्यांमार : इसका पहले नाम बर्मा था | यहाँ का प्रथम राजा वाराणसी का राजकुमार था | 1852 में अंग्रेजो ने यह अधिकार किया | 1937 में इसे भारत से अलग कर दिया।

पाकिस्तान : यहाँ आज़ादी के बाद बहुत से हिन्दू मंदिर तोड़ दिए गए थे | सभी जानते है | यह भारत से अलग हुआ देश है।1947

बांग्लादेश : यह देश भी 15 अगस्त से पहले भारत का अंग था | फिर यह पूर्वी पाकिस्तान का अंग बना | 1971 में भारतीय फ़ौज ने इसे पाकिस्तान से अलग कराया |
थाईलैंड : इसका प्राचीन भारतीय नाम श्यामदेश था | पहले यहाँ हिन्दू राजस्व था | बाद में यहाँ बोध प्रचार हुआ। |[

 मुख्य शहर 

काशी ,कांची ,आव्न्तिका ,वैशाली ,गया ,जगन्नाथ पुरी ,विजय नगर ,पाटलिपुत्र ,प्रयागराज ,अम्रतसर ,सोमनाथ ,तक्षशिला, ,द्वरिका ,इन्द्रप्रस्थ,हरिद्वार, अयोध्या मथुरा-वृंदावन ,नासिक, चित्रकूट,रामेश्वरम 

मुख्य नगर स्थान  

अयोध्या– मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे ‘अयोध्या’ का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-योध्या अर्थात् ‘जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ७वीं शताब्दी में यहाँ आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। यह नगरी सप्त पुरियों में से एक है-

द्वारकाभारत के गुजरात राज्य के देवभूमि द्वारका ज़िले में स्थित एक प्राचीन नगर और नगरपालिका है। द्वारका गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है। यह हिन्दुओं के चारधाम में से एक है और सप्तपुरी में से भी एक है। यह श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल है और गुजरात की सर्वप्रथम राजधानी माना जाता है।

काशी –  विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है – ‘काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:’। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।

कांची पल्लवों की राजधानी थी, जिन्होंने उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी तक फैले क्षेत्र पर शासन किया था। पल्लवों ने शहर को प्राचीर, खंदक आदि से किलेबंद किया, जिसमें चौड़ी और अच्छी सड़कें और सुंदर मंदिर थे।

 उज्जैन– स्कन्द पुराण के 28वें अध्याय में उल्लेख है कि इस नगर के अधिष्ठाता देव महादेव ने त्रिपुरी के शक्तिशाली राक्षस अंधकासुर को पराजित कर विजय प्राप्त की। अतः स्मृति स्वरूप उज्जयिनी नाम रखा गया। उज्जयिनी अवन्ति जनपद की महत्वपूर्ण नगरी थी; जो कालान्तर में राजधानी बन गई। इसी कारण अवन्तिका अवन्तिपुरी के नाम से विख्यात हो गई।(उज्जैन)

हरिद्वार – उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ है। यह नगर निगम बोर्ड से नियंत्रित है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। 3139 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख (गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को ‘गंगाद्वार’ के नाम से भी जाना जाता है; जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ “हरि (ईश्वर) का द्वार” होता है।

मथुरा – भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में स्थित एक नगर है। मथुरा ऐतिहासिक रूप से कुषाण राजवंश द्वारा राजधानी के रूप में विकसित नगर है। उससे पूर्व भगवान कृष्ण के समय काल से भी पूर्व अर्थात लगभग 7500 वर्ष से यह नगर अस्तित्व में है.यह धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। मथुरा भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म, दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, चैतन्य महाप्रभु आदि से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है

रामेश्वरम – जिसे तमिल लहजे में “इरोमेस्वरम” भी कहा जाता है, भारत के तमिल नाडु राज्य के रामनाथपुरम ज़िले में एक तीर्थ नगर है, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम चार धाम तीर्थस्थलों में से एक है। यह रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है, जो भारत की मुख्यभूमि से पाम्बन जलसन्धि द्वारा अलग है और श्रीलंका के मन्नार द्वीप से 40 किमी दूर है। भौगोलिक रूप से यह मन्नार की खाड़ी पर स्थित है। चेन्नई और मदुरई से रेल इसे पाम्बन पुल द्वारा मुख्यभूमि से जोड़ती है। रामायण की घटनाओं में रामेश्वरम की बड़ी भूमिका है। यहाँ श्रीराम ने भारत से लंका तक का राम सेतु निर्माण करा था, ताकि सीता की सहायता के लिए रावण के विरुद्ध आक्रमण करा जा सके। यहाँ श्रीराम ने शिव की उपासना करी थी और आज नार के केन्द्र में खड़ा शिव मन्दिर उशी घटनाक्रम से समबन्धित है। नगर और मन्दिर दोनों शिव व विष्णु भक्तों के लिए श्रद्धा-केन्द्र हैं।

नासिक – या नाशिक भारत के महाराष्ट्र राज्य के नाशिक ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय और महाराष्ट्र का चौथा सबसे बड़ा नगर है। नाशिक गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है। यह महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में, मुम्बई से 150 किमी और पुणे से 205 किमी की दुरी में स्थित है। यह शहर प्रमुख रूप से हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केन्द्र है। इस शहर का सबसे प्रमुख भाग पंचवटी है। इसके अलावा यहां बहुत से मंदिर भी है। नाशिक में त्योहारों के समय में बहुत अधिक संख्या में भीड़ दिखाई पड़ती है।

जगन्नाथ  पुरी – भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी ज़िले में बंगाल की खाड़ी से तटस्थ एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। पुरी भारत के चार धाम में से एक है और यहाँ 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मन्दिर स्थित होने के कारण इसे श्री जगन्नाथ धाम भी कहा जाता है।

प्रयागराजजिसका भूतपूर्व नाम इलाहाबाद था, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर है। यह प्रयागराज ज़िले का मुख्यालय है और हिन्दूओं का एक मुख्य तीर्थस्थल है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग था। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है।

पाटलिपुत्र– बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र,कुसुमपुर,पुष्पपुरी और अजिमावाद था। पवित्र गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसे इस शहर को लगभग 2000 वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से अब पटना में एक रेलवे स्टेशन भी है। पाटलिपुत्र अथवा पाटलिपुत्र प्राचीन समय से ही भारत के प्रमुख नगरों में गिना जाता था। पाटलिपुत्र वर्तमान में पटना को ही कहा जाता हैं। इतिहास के अनुसार, सम्राट अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने अपनी राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया और बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहां साम्राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी बनाई। बाद में, शेर शाह सूरी (1538-1545) ने पाटलिपुत्र को पुनर्जीवित किया,[4] जो 7 वीं शताब्दी सीई के बाद से गिरावट में था, और इसका नाम पटना रखा।

अमृतसर – जिसका ऐतिहासिक नाम रामदासपुर और जिसे आम बोलचाल में अम्बरसर कहा जाता है, भारत के पंजाब राज्य का (लुधियाना के बाद) दूसरा सबसे बड़ा नगर है और अमृतसर ज़िले का मुख्यालय है। यह पंजाब के माझा क्षेत्र में है और एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, धार्मिक, यातायात और आर्थिक केन्द्र है। यह सिख धर्म का सबसे पवित्र नगर है और यहाँ सबसे बड़ा गुरद्वारा, स्वर्ण मंदिर, स्थित है। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का हृदय माना जाता है। यह गुरू रामदास का डेरा हुआ करता था। अमृतसर चण्डीगढ़ से 217 किमी 

कांची – कांचीपुरम उत्तरी तमिलनाडु के प्राचीन व मशहूर शहरों में से एक है। कांचीपुरम को दक्षिण की काशी भी कहा जाता है। यह मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है। कांचीपुरम को पूर्व में कांची कहा जाता था और अब यह कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है। कांचीपुरम को भारत के सात पवित्र शहरों में से एक का दर्जा मिला हुआ है। इसलिए यहाँ साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।

तक्षशिला – वर्तमान समय में तक्षशिला, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी जिले की एक तहसील तथा महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है जो इस्लामाबाद और रावलपिण्डी से लगभग 32 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है

इंद्रप्रस्थ – को केवल महाभारत से ही नहीं जाना जाता है। पाली -भाषा के बौद्ध ग्रंथों में इसका उल्लेख इंद्रपट्ट या इंद्रपट्टन के रूप में भी किया गया है, जहां इसे कुरु साम्राज्य की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है, जो यमुना नदी पर स्थित है। बौद्ध साहित्य में हथिनीपुरा (हस्तिनापुर) और कुरु साम्राज्य के कई छोटे शहरों और गांवों का भी उल्लेख है। इंद्रप्रस्थ ग्रीको-रोमन दुनिया के लिए भी जाना जा सकता है ऐसा माना जाता है कि दूसरी शताब्दी सीई से टॉलेमी के भूगोल में इसका उल्लेख “इंदबारा” शहर के रूप में किया गया है, जो संभवतः प्राकृत से लिया गया है।”इंदबत्ता” के रूप में, और जो शायद दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में था। उपिंदर सिंह (2004) इंद्रप्रस्थ के साथ इंदबारा के इस समीकरण को प्रशंसनीय बताते हैं। नई दिल्ली के रायसीना क्षेत्र में खोजे गए 1327 सीई के एक संस्कृत शिलालेख में इंद्रप्रस्थ को दिल्ली क्षेत्र के एक प्रतिगण (जिला) के रूप में भी नामित किया गया है।

सोमनाथगुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है। यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है।

चित्रकूट धामभारत के उत्तर प्रदेश राज्य के चित्रकूट जिले में स्थित एक शहर है। यह उस जिले का मुख्यालय भी है। यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र मे स्थित है और बहुत सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक महत्व रखता है। चित्रकूट भगवान राम की कर्म भूमि है। भगवान राम ने वनवास के 11 वर्ष चित्रकूट मे बिताये थे।

गया – भारत के बिहार राज्य के गया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय और बिहार राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। इस क्षेत्र के लोग मगही भाषा बोलते हैं और गया भारत के अतंरराष्ट्रीय पर्यटक स्थलों मे से एक हैं यहाँ पर विदेशी पर्यटकों लाखों की संख्या मे आते हैंइस नगर का हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में गहरा ऐतिहासिक महत्व है। शहर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। गया तीन ओर से छोटी व पत्थरीली पहाड़ियों से घिरा है, जिनके नाम मंगला-गौरी, श्रृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि हैं। नगर के पूर्व में फल्गू नदी बहती है

वैशाली –  दुनिया में पहली गणराज्य होने का विश्वास, वैशाली ने महाभारत काल के राजा विशाल से अपना नाम लिया है। कहा जाता है कि वह यहां एक महान किला का निर्माण कर रहा है, जो अब खंडहर में है। वैशाली एक महान बौद्ध तीर्थ है और भगवान महावीर के जन्मस्थान भी है। ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध ने तीन बार इस जगह का दौरा किया और यहां काफी समय बिताया। बुद्ध ने वैशाली में अपना आखिरी प्रवचन भी दिया और यहां अपने निर्वाण की घोषणा की। उनकी मृत्यु के बाद, वैशाली ने दूसरी बौद्ध परिषद भी आयोजित की।

मुख्य नदी – 

गंगा ,गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई उत्तराखंड में हिमालय के गंगोत्री हिमनद के गोमुख स्थान से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक भारत की मुख्य नदी के रूप में विशाल भू-भाग को सींचती है।

यमुनायमुना भारत की एक नदी है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री नामक जगह से निकलती है और प्रयाग में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्धु, बेतवा और केन उल्लेखनीय हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, कालपी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। ,

सरस्वती यह सिंधु घाटी सभ्यता से पहले की संस्कृति है और सिंधु घाटी सभ्यता में भी जारी रही. ऐसा अनुमान है कि 900 BC में सरस्वती सूखने लगी. यह नदी आदिबद्री (देहरादून के नजदीक) और राजस्थान, गुजरात से बहते हुए अरब सागर में जाकर गिरती थीइसे प्लाक्ष्वती, वेद्समृति, वेदवती भी कहते है! ऋग्वेदमें सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी।

,सिधुसिन्धु नदी एशिया की सबसे लम्बी नदियों में से एक है। यह पाकिस्तान, भारत और चीन के माध्यम से बहती है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा माना जाता है। इस नदी की लम्बाई प्रायः 3610 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है

ब्रहमपुत्र – ब्रह्मपुत्र भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले में स्थित मानसरोवर झील के निकट होता है, जहाँ इसे यरलुङ त्सङ्पो कहा जाता है। तिब्बत में बहते हुए यह नदी भारत के अरुणांचल प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है।2,900 km,

गण्डकीगण्डकी नदी, नेपाल और बिहार में बहने वाली एक नदी है जिसे बड़ी गंडक या केवल गंडक भी कहा जाता है। इस नदी को नेपाल में सालिग्रामि या सालग्रामी और मैदानों मे नारायणी और सप्तगण्डकी कहते हैं। यूनानी के भूगोलवेत्ताओं की कोंडोचेट्स तथा महाकाव्यों में उल्लिखित सदानीरा भी यही है।८१४  ,

कावेरीकावेरी कर्नाटक तथा उत्तरी तमिलनाडु में बहनेवाली एक सदानीरा नदी है। यह पश्चिमी घाट के पर्वत ब्रह्मगिरीसे निकली है। इसकी लम्बाई प्रायः 760 किलोमीटर है। दक्षिण पूर्व में प्रवाहित होकर कावेरी नदी बंगाल की खाड़ी में मिली है। सिमसा, हेमावती, भवानी इसकी उपनदियाँ है।,

महानदी छत्तीसगढ़ तथा ओड़िशा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला था। महानन्दा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। ,

रेवा-नर्मदा नदी – जिसे स्थानीय रूप से कही-कही रेवा नदी भी कहा जाता है, भारत के 5वीं सबसे लम्बी नदी और पश्चिम-दिशा में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है। यह मध्य प्रदेश राज्य की भी सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में बहती है।१३१२  ,

गोदा,गोदावरी नदी – भारत के प्रायद्वीपीय भाग की एक प्रमुख नदी है। यह नदी दूसरी प्रायद्वीपीय नदियों में से सबसे बड़ी नदी है। इसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमी घाट में त्रयंबक पहाड़ी से हुई है। यह महाराष्ट्र में नाशिक ज़िले से निकलती है। इसकी लम्बाई प्रायः 1465 किलोमीटर है। इस नदी का पाट बहुत बड़ा है।

मुख्य पर्वत –

हिमालय,महेंद्र पर्वत उड़ीसा, मलयगिरि पर्वत मैसूर, सह्याद्रि पर्वत पश्चिमी घाट, रैवतक सौराष्ट्र मे गिरनार, विंध्यांचल तथा अरावली राजस्थान 

मुख्य सरोवर पञ्च सरोवर 

१. पम्पा सरोवर (कर्नाटक), २. मानसरोवर (तिब्बत). ३. पुष्कर सरोवर (राजस्थान), ४. बिन्दु सरोवर (गुजरात), ५. नारायण सरोवर (गुजरात)। 

चार मठ 

हिंदू धर्म का संत समाज शंकराचार्य द्वारा नियुक्त चार मठों के अधीन है। हिंदू धर्म की एकजुटता और व्यवस्था के लिए चार मठों की परंपरा को जानना आवश्यक है।

चार मठों से ही गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता है। चार मठों के संतों को छोड़कर अन्य किसी को गुरु बनाना हिंदू संत धारा के अंतर्गत नहीं आता।

आदिशंकराचार्यजी ने जो चारपीठ स्थापित किये,उनके काल निर्धारण में उत्थापित की गई भ्रांतियाँ–

  1. उत्तर दिशा में बदरिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ  स्थापना-युधिष्ठिर संवत् (Y.S.) 2641-2645
  2. पश्चिम में द्वारिकाशारदा पीठ- यु.सं.(Y.S.) 2648

3.दक्षिण शृंगेरीपीठ- 2648 Y.S.

  1. पूर्व दिशा जगन्नाथपुरीगोवर्द्धन पीठ2655 Y.S.

शंकराचार्य जी ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जो बाद में स्वयं शंकराचार्य कहे जाते हैं। जो व्यक्ति किसी भी मठ के अंतर्गत संन्यास लेता हैं वह दसनामी संप्रदाय में से किसी एक सम्प्रदाय पद्धति की साधना करता है। ये चार मठ निम्न हैं:-

श्रृंगेरी मठ – श्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण में चिकमंगलुुुर में स्थित है।श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है तथा मठ के अन्तर्गत ‘यजुर्वेद’ को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था।वर्तमान में स्वामी भारती कृष्णतीर्थ इसके 36वें मठाधीश हैं।
गोवर्धन मठ – गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘वन’ व ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य है ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ तथा इस मठ के अंतर्गत ‘ऋग्वेद’ को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद चार्य हुए। वर्तमान में निश्चलानन्द सरस्वती इस मठ के 145 वें मठाधीश हैं।
शारदा मठ – शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य है ‘तत्त्वमसि’ तथा इसके अंतर्गत ‘सामवेद’ को रखा गया है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक शंकराचार्य जी के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे।हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे। वर्तमान में पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानन्द सरस्वती जी इसके 80 वें मठाधीश हैं ।
ज्योतिर्मठ – उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ। ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश त्रोटकाचार्य बनाए गए थे। वर्तमान में “परमाराध्य” परमधर्माधीश अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज ‘1008’ जी इसके 53 वें मठाधीश हैं।

उक्त मठों तथा इनके अधीन उपमठों के अंतर्गत संन्यस्त संतों को गुरु बनाना या उनसे दीक्षा लेना ही हिंदू धर्म के अंतर्गत माना जाता है। यही हिंदुओं की संत धारा मानी गई है।

बद्रीनाथ में ज्योर्तिमठ, द्वारिका में शारदा मठ, जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ, मैसूर में शृंगेरीमठ

द्वादश ज्योतिर्लिंग – 

सोमनाथ (गुजरात), नागेश्वर अथवा नागनाथ (गुजरात), भीमशंकर (महाराष्ट्र), त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र), घुश्मेश्वर “घृष्णेश्वर” (महाराष्ट्र), महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश), ओंकारेश्वर अथवा अमलेश्वर (मध्य प्रदेश), वैद्यनाथ (झारखण्ड), केदारनाथ (उत्तराखण्ड), विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश), रामेश्वरम् (तमिलनाडु), मल्लिकार्जुन (आन्ध्र प्रदेश)।

देवी मां के 52 शक्तिपीठों की पूरी सूची

  1. मणिकर्णिका घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश,2. माता ललिता देवी शक्तिपीठ, प्रयागराज  
  2. रामगिरी, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश,4. वृंदावन में उमा शक्तिपीठ (कात्यायनी शक्तिपीठ)
  3. देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर,6. हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ, मध्य प्रदेश
  4. शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ, अमरकंटक, मध्यप्रदेश,8. नैना देवी मंदिर, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश  
  5. ज्वाला जी शक्तिपीठ, कांगड़ा,  हिमाचल,10. त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ,जालंधर,  पंजाब
  6. महामाया शक्तिपीठ, अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर,12. माता सावित्री का शक्तिपीठ, कुरुक्षेत्र, हरियाणा,13. मां भद्रकाली देवीकूप मंदिर, कुरुक्षेत्र,हरियाणा,14. मणिबंध शक्तिपीठ, अजमेर के पुष्कर में,15 .बिरात, मां अंबिका का शक्तिपीठ राजस्थान,16. अंबाजी मंदिर शक्तिपीठ- गुजरात
  7. मां चंद्रभागा शक्तिपीठ, जूनागढ़, गुजरात,18. माता के भ्रामरी स्वरूप का शक्तिपीठ, महाराष्ट्र
  8. माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ, त्रिपुरा,20.देवी कपालिनी का मंदिर, पूर्व मेदिनीपुर जिला, पश्चिम बंगाल ,21. माता देवी कुमारी शक्तिपीठ, रत्नावली, बंगाल,22- माता विमला का शक्तिपीठ, मुर्शीदाबाद, बंगाल,23- भ्रामरी देवी शक्तिपीठ जलपाइगुड़ी, बंगाल,24. बहुला देवी शक्तिपीठ- वर्धमान, बंगाल,25. मंगल चंद्रिका माता शक्तिपीठ, वर्धमान, बंगाल,26. मां महिषमर्दिनी का शक्तिपीठ, वक्रेश्वर, पश्चिम बंगाल,27. नलहाटी शक्तिपीठ, बीरभूम, बंगाल,28. फुल्लारा देवी शक्तिपीठ, अट्टहास, पश्चिम बंगाल,29. नंदीपुर शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल,30. युगाधा शक्तिपीठ- वर्धमान, बंगाल,31. कलिका देवी शक्तिपीठ, बंगाल,32. कांची देवगर्भ शक्तिपीठ, कांची, पश्चिम बंगाल,33. भद्रकाली शक्तिपीठ, तमिलनाडु,34. शुचि शक्तिपीठ, कन्याकुमारी, तमिलनाडु,35. विमला देवी शक्तिपीठ, उत्कल, उड़ीसा,36. सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ, आंध्र प्रदेश,37. श्रीशैलम शक्तिपीठ, कुर्नूर, आंध्र प्रदेश,38. कर्नाट शक्तिपीठ, कर्नाटक,39. कामाख्या शक्तपीठ, गुवाहाटी, असम,40. मिथिला शक्तिपीठ, – भारत नेपाल सीमा,41. चट्टल भवानी शक्तिपीठ, बांग्लादेश,42. सुगंधा शक्तिपीठ, बांग्लादेश,43. जयंती शक्तिपीठ, बांग्लादेश,44. श्रीशैल महालक्ष्मी, बांग्लादेश,45. यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ, बांग्लादेश,46. इन्द्राक्षी शक्तिपीठ, श्रीलंका  ,47. गुहेश्वरी शक्तिपीठ, नेपाल,48. आद्या शक्तिपीठ, नेपाल,49.दंतकाली शक्तिपीठ- नेपाल,50. मनसा शक्तिपीठ,तिब्बत,51. हिंगुला शक्तिपीठ-पाकिस्तान

महाजनपद

काशी – वाराणसी

इसकी राजधानी वाराणसी वरुणा और अस्सी नदी के बीच स्थित थी। यहाँ का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक ब्रह्मदत्त था। प्रारम्भ में यही सबसे शक्तिशाली महाजनपद था। इसका अधिकार कोसल व अंग पर भी था। परन्तु बाद में कोसल की शक्ति के आगे इसने आत्मसमर्पण कर दिया। काशी को अविमुक्त क्षेत्र अभिधान भी कहा जाता था। अथर्ववेद में काशी के निवासियों का सर्वप्रथम जिक्र मिला है।

कोसल – श्रावस्ती

वर्त्तमान अवध का क्षेत्र इसके अंतर्गत आता था। इसकी राजधानी श्रावस्ती अचिरावती/राप्ती नदी के तट पर बसी थी। यह एक चंद्राकार रूप में बसा हुआ नगर था। यहाँ का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक प्रसेनजित इच्छवाकु कुल का था। इसके प्रधानमंत्री दीर्घचारण ने विद्रोह कर इसके पुत्र को गद्दी पर बिठा दिया। प्रसेनजित शरण लेने अपने दामाद अजातशत्रु के पास राजगृह पंहुचा परन्तु राजमहल के बाहर ही इसकी मृत्यु हो गयी। कोसल की पूर्वी सीमा पर सदानीरा (गंडक) नदियां, पश्चिमी सीमा पर गोमती नदी, दक्षिणी सीमा पर सर्पिका (सई) नदी बहती थी। श्रावस्ती की पहचान आधुनिक महेत से की जाती है। शाक्यों का कपिलवस्तु गणराज्य, कुशावती नगर और साकेत (अयोध्या) कोसल महाजनपद के ही अंतर्गत आते थे।

अंग – चम्पा

यह आधुनिक भागलपुर और मुंगेर जिले में अवस्थित था। इसकी राजधानी चम्पा थी। चम्पा को ही पुराणों में मालिनी कहा गया है। चम्पा नदी अंग व मगध के बीच सीमा का निर्धारण करती थी। बुद्ध काल में चम्पा की गणना भारत के 6 महानगरों में की जाती थी। यहाँ का शासक दधिवाहन महावीर स्वामी का भक्त था।

चेदि – शक्तिमती

ये आधुनिक बुन्देलखण्ड में अवस्थित था। इसकी राजधानी शक्तिमती थी।

वत्स – कौशाम्बी

भगवान बुद्ध के समय यहाँ का शासक उदयन था, जो कि पौरवंशीय था। ये पुरुजन्य हस्तिनापुर छोड़कर आए थे। उदयन को अवन्ति के शासक प्रद्योत ने बन्दी बना लिया और अपनी पुत्री वासवदत्ता का संगीत शिक्षक नियुक्त कर दिया। उदयन और वासवदत्ता के बीच प्रेमसंबंध हो गए तो वे भागकर कौशाम्बी आ गए। भास ने इसी पर आधारित स्वप्नवासदत्ता नामक कहानी की रचना की। कौशाम्बी बौद्ध व जैन दोनों धर्मो का प्रमुख केंद्र थी। यह जैनियों के छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु की जन्मस्थली है। यहीं के प्रभासगिरि पर्वत पर उन्होंने तप किया था। यह यमुना नदी किनारे स्थित थी।

कुरु – इंद्रप्रस्थ

यह आधुनिक दिल्ली, मेरठ, थानेश्वर के क्षेत्र पर विस्तृत था। महात्मा बुद्ध के समय यहाँ का शासक कोरव्य था। यहाँ के लोग बल-बुद्धि के लिए विख्यात थे। हस्तिनापुर नगर इसी में पड़ता है।

पांचाल – अहिच्छत्र व काम्पिल्य

यह आधुनिक रुहेलखण्ड के बरेली, बदायूं, फर्रुखाबाद के क्षेत्र में विस्तृत था। पांचाल दो भागों में विभक्त था। उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र या अहिच्छेत्र और दक्षिणी पांचाल की राजधानी काम्पिल्य थी। कान्यकुब्ज (कन्नौज) इसी के अंतर्गत आता था।

मत्स्य – विराटनगर

यह आधुनिक जयपुर के निकट अवस्थित था। इसका संस्थापक विराट था।

सूरसेन – मथुरा

यहाँ का शासक अवन्तीपुत्र था। यह महात्मा बुद्ध का शिष्य था। इसी के माध्यम से मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार व प्रसार हुआ।

अश्मक – पैठान/प्रतिष्ठान/पोतन/पोटिल

यह दक्षिण में स्थित एकमात्र महाजनपद था। यह गोदावरी के तट पर अवस्थित था। यहाँ पर इच्क्षवाकु वंश के शासकों का शासन था।

अवन्ति – उज्जैन, महिष्मति

यहाँ का शासक चंडप्रद्योत महासेन था। यह राज्य दो भाग में विभक्त था। उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जैन और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी महिष्मति थी। दोनों राजधानियों के बीच वेत्रवती नदी बहती थी। मगध के अतिरिक्त यही राज्य था जहाँ लोहे की खाने थीं।

गांधार – तक्षशिला

गांधार काबुल घाटी में अवस्थित था। पुष्कलावती यहाँ का द्वितीय प्रमुख नगर था।

कम्बोज – हाटक/राजपुर

कम्बोज अपने घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था। यह गांधार का पड़ोसी राज्य था और अफगानिस्तान में पड़ता था। कौटिल्य ने इसे वार्ताशस्त्रोजीवी संघ कहा है।

वज्जि – वैशाली

यह आठ जनों का संघ था जिनमे सबसे प्रमुख लिच्छवि थे। इसकी राजधानी गण्डक नदी के तट पर अवस्थित थी। गंगा नदी वज्जि और मगध के बीच की सीमा का निर्धारण करती थी। इस संघ में आठ न्यायालय थे। लिच्छवि गणराज्य को विश्व का पहला गणतंत्र माना जाता है।

मल्ल – कुशीनगर, पावा

यह आधुनिक उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में पड़ता था। यह दो भागों में विभक्त था। इसके उत्तरी भाग की राजधानी कुशीनगर और दक्षिणी भाग की राजधानी पावा थी। बुद्ध की मृत्यु के बाद मल्लों ने अपनी स्वतंत्रता खो दी। वे मगध की साम्राज्यवादी नीतियों का शिकार हो गए।

मगध – आधुनिक पटना तथा गया जिला इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी “गिरिव्रज” बाद में “पाटलिपुत्र” थी। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्व वेद में मिलता है। अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है। गौतम बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ वंश के बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे।

महाजनपद राजधानी

काशी वाराणसी, कोशल श्रावस्ती,अंग चम्पा,चेदि शक्तिमती,वत्स कौशाम्बी,कुरु इंद्रप्रस्थ ,पांचाल अहिच्छत्र, काम्पिल्य,मत्स्य विराटनगर,सूरसेन मथुरा,अश्मक पैठान/प्रतिष्ठान/पोतन/पोटिल,अवन्ति उज्जैन, महिष्मति ,गांधार तक्षशिला,कम्बोज हाटक/राजपुर,वज्जि वैशाली,मल्ल कुशीनगर, पावा ,

मगध गिरिव्रज – राजगृह

साम्राज्य 

मौर्य साम्राज्य,सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य,सम्राट् अशोक का साम्राज्य,महाराजा खारवेल,सम्राट् पुष्यमित्र शुंग

सम्राट् विक्रमादित्य,गौतमी पुत्र महाराजा शातकर्णी (सातवाहन),सम्राट् समुद्रगुप्त का साम्राज्य,सम्राट् चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय का साम्राज्य ,सम्राट् स्कंदगुप्त का साम्राज्य,महाराजा पुलकेशिन प्रथम का साम्राज्य,सम्राट् यशोधर्मन का साम्राज्य ,वर्धन वंश का साम्राज्य

 भारत के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय

 ओदंतपुरी,विक्रमशिला, जगदला, वल्लभी, तक्षशिला, नालंदा, कांचीपुरम, मान्यखेत, सुशोभित विहार और ललितागिरी (ओडिशा), शारदा पीठ, नागार्जकोंडा

तक्षशिला – शिक्षा पाँचकों शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित, पाँचवीं शताब्दी ईसवी में अस्त चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य तथा चरक जैसे व्यक्तित्व इससे सम्बन्ध रहे।

नालंदा –  पाँच शताब्दी में राजा कुमार गुप्त द्वारा मगध में स्थापितं सन 1202-03 ई. में न ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी द्वारा ध्वस्त ।

विक्रमशिला –  आठ शताब्दी में पाल राजवंश के राज्यकाल में धर्म पाल द्वारा स्थापित।

ओदान्वापुरी – सातवीं शताब्दी में राजा गोपाल द्वारा नालंदा से 6 मील दूर स्थापित

सोमपुरा महावीर – नवीं शताब्दी में राजा देवपाल द्वारा सोमपुरा, जो अब बंगलादेश में है, में स्थापित।

जगदल विश्वविद्यालय – 12वीं शताब्दी में राजा रामपाल द्वारा अंगाल में स्थापित।

 वल्लभी – पाँचवीं शताब्दी में गुजरात में मैत्रक वंश के राजाओं द्वारा स्थापित। उपरोक्त सभी विश्वविद्यालय पूर्ण रूप से उस समय विकसित थे। यहाँ पर न केवल भारत अपितु विदेशों से भी शिक्षार्थी आते थे।

महान नारियाँ

सती सावित्री ,देवी जानकी ,देवी सती,महारानी द्रौपदी ,सती कण्णगी,देवी गार्गी 

साध्वी मीरा,रानी दुर्गावती,रानी लक्ष्मीबाई,महारानी अहिल्या (अहिल्याबाई होलकर),रानी चन्नम्मा,रानी रुद्रामांबा (रुद्रांबा),भगिनी निवेदिता,माँ सारदा

महापुरुष

भगवान् श्रीराम,महाराजा भरत,भगवान् कृष्ण,पितामह भीष्म,धर्मराज युधिष्ठिर

वीर अर्जुन,मुनि मार्कडेय,राजा हरिश्चंद्र,भक्त प्रह्लाद,देवर्षि नारद,भक्त ध्रुव,वीर हनुमान,राजा जनक,महर्षि व्यास,महर्षि वसिष्ठ,मुनि शुकदेव,राजा बलि,महर्षि दधीचि,देवशिल्पी विश्वकर्मा,राजा पृथु,महर्षि वाल्मीकि

महात्मा बुद्ध,आचार्य चाणक्य (कौटिल्य),समर्थ रामदास,संत कवि पुरंदरदास,वीर बिरसा मुंडा,संत सहजानंद,स्वामी रामानंद,भरतमुनि,कवि कालिदास,राजा भोज,शिल्पी जकणाचार्य,महाकवि सूरदास,संगीतकार त्यागराज,कवि रसखान

चित्रकार रविवर्मा,मनीषी भातखंडे ,राजा भाग्यचंद्र,महर्षि अगस्त्य,राजा कंबु

राजा कौडिन्य,राजा राजेंद्र चोल,सम्राट् अशोक,महाराजा पुष्यमित्र,महाराजा खारवेल,आचार्य चाणक्य,सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य,सम्राट् विक्रमादित्य,महाराजा शालिवाहन,सम्राट् समुद्रगुप्त,महाराजा हर्षवर्धन,राजा शैलेंद्र,महाराजा बप्पा रावल,वीर लाचित बड़फुकन ,राजा भास्कर वर्मा

महाराजा यशोधर्मा,महाराजा कृष्णदेव राय ,महाराजा ललितादित्य,भगवान् भार्गव (परशुराम ),राजा भगीरथ,धनुर्धारी एकलव्य,महर्षि मनु,देववैद्य धन्वंतरि,राजा शिबि,राजा रंतिदेव,महात्मा बुद्ध,

तीर्थंकर जिनेंद्र,गुरु गोरखनाथ,महर्षि पाणिनि,महर्षि पतंजलि,आचार्य शंकराचार्य,आचार्य मध्वाचार्य,आचार्य निंबार्काचार्य,आचार्य रामानुजाचार्य,आचार्य वल्लभाचार्य,संत झूलेलाल,महाप्रभु श्रीचैतन्य,संत तिरुवल्लुवर,संत नायन्मार,संत आलवार,संत कवि कंबन,संत बसवेश्वर,महर्षि देवल,संत रविदास,संत कबीर,गुरु नानक देव,भक्त नरसी,गोस्वामी तुलसीदास,दशमेश (गुरु गोविंद सिंह) ,संत कवि शंकरदेव,संत ज्ञानेश्वर,संत तुकाराम,भगवान् भार्गव (परशुराम ),वीर मुसुनूरि नायक,महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी,महाराजा रणजीत सिंह,महर्षि कपिल,महर्षि कणाद,आचार्य सुश्रुत,आचार्य चरक,आचार्य भास्कराचार्य द्वितीय,ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर,आचार्य सायणाचार्य और माधवाचार्य

स्वामी रामकृष्ण परमहंस,स्वामी दयानंद सरस्वती,कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर,राजा राममोहन राय,स्वामी रामतीर्थ महर्षि अरविंद,स्वामी विवेकानंद,दादाभाई नौरोजी,गोपबंधुदास,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,महात्मा गांधी,रमण महर्षि,महामना मदनमोहन मालवीय,कवि सुब्रह्मण्यम भारती,आचार्य नागार्जुन,महर्षि भरद्वाज,ज्योतिषाचार्य आर्यभट्ट,श्री जगदीशचंद्र बसु,श्री चंद्रशेखर वेंकटरामन,श्री रामानुजन,नेताजी सुभाषचंद्र बोस,स्वामी प्रणवानंद,स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर,श्री ठक्कर बप्पा,डॉ. भीमराव आंबेडकर,श्री ज्योतिराव फुले,श्री नारायण गुरु ,डॉ. केशवराव  बलिराम हेडगेवार ,श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर

संशोधन स्वीकार है अगर कुछ संशोधन हो तो इस नंबर पर whtsaap करे 9312002527 धन्यवाद जी |

2 thoughts on “भारत को जाने”

  1. महोदय जी , अपनी मातृभूमि संबंधी बहुत अच्छी,गहन सारगर्भित जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु आपका बहुत धन्यवाद , जिज्ञासु भावी पीढ़ियाँ भी ऋणी रहेंगी ।
    सादर 🙏
    -चन्द्रकान्त पाराशर
    B-111, टेलीकॉम सिटी अपार्टमेंट्स
    सेक्टर-62 नोएडा

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