बसंत पंचमी – ज्ञान ,काम व बलिदान का संगम
सतीश शर्मा
माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर मां सरस्वती प्रकट हुई थीं इसी वजह से इस दिन बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मां सरस्वती की प्रतिमा को विराजमान कर उपासना की जाती है। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।बसंत पंचमी का दूसरा नाम श्री पंचमी भी है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से होती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। इस वर्ष बसंत पंचमी 2 फरवरी, 2025 को पड़ रही है। सरस्वती माता के आशीर्वाद के साथ यह सबसे शुभ दिनों में से एक अबूझ मुहूर्त यानी किसी प्रकार के तारा बाल चंद्र बल या अन्य ग्रह नक्षत्र के शुद्ध का विचार नहीं किया जाता है इस दिन विवाह आदि शुभ कार्य कर सकते है। यह दिन बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो नई शुरुआत और विकास का प्रतीक है। खेतों में सरसों के फूल अपनी खुशबु से वातावरण को सुगंधित बनाते हैं। माता को पीला/बसंती रंग पसंद है इसलिए बसंत पंचमी का रंग पीला होता है और जैसा कि नाम से पता चलता है ‘बसंत’ का मतलब बसंत ऋतु है। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं, देवी को पीले फूल चढ़ाते हैं और माथे पर पीले हल्दी का तिलक लगाते हैं । इस दिन का महत्व देवी माँ सरस्वती की पूजा में निहित है, जो विज्ञान, कला और शिल्प आदि ज्ञान के के सभी विभिन्न पहलुओं का प्रतीक हैं। इस दिन मां सरस्वती के साथ-साथ माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है । बसंत पंचमी के दिन विद्यारंभ संस्कार किया जाता है । प्राय सभी विद्यालयों में सरस्वती माता का पूजन किया जाता है।
बसंत पंचमी वाले दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था । महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिन 28 फ़रवरी, 1899 को बसंत पंचमी वाले दिन ही हुआ था। राजा भोज का जन्मदिन भी बसंत पंचमी को ही होता था। भोज एक दयालु राजा और कला और संस्कृति के संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुए, लेकिन वे एक योद्धा के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उन्हें मालवा क्षेत्र के आसपास केंद्रित एक राज्य विरासत में मिला था, और उन्होंने इसे अलग-अलग परिणामों के साथ विस्तारित करने के कई प्रयास किए। सिखों के लिए बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था।
ऐसी मान्यता है कि जो कला प्रेमी लोग हैं चाहे वह संगीत क्षेत्र से हो चाहे अन्य कला के क्षेत्र से हो सभी सरस्वती माता को प्रसन्न करने के लिए साधारणता आज के दिन ही अपनी विद्या आरंभ का कार्य प्रारंभ करते हैं । संगीत या कला की शिक्षा शुरू करने से पहले मां सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के दिन शुभ मुहूर्त में अपने बच्चों से मां सरस्वती की पूजा जरूर करवानी चाहिए। पूजा के दौरान मां सरस्वती को पीले रंग के फल, फूल और मिठाई अर्पित करने चाहिए।इसके अलावा मां सरस्वती को केसर का हलवा और पीले रंग के चावलों का भोग लगाएं।ऐसा करने से मां सरस्वती प्रसन्न होकर ज्ञान और कला का आशीर्वाद देती हैं।
बसंत पंचमी पर हम सरस्वती माता के इन श्लोक और मंत्रों का जाप करे तो माता का आशीर्वाद मिल जाता है |
वसंतपञ्चमी आशास्महे नूतनहायनागमे भद्राणि पश्यन्तु जनाः सुशान्ताः
सरस्वति नमौ नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:
या वीणावरदण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा
शारदा शारदांभौजवदना, वदनाम्बुजे
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु
शारदायै नमस्तुभ्यं, मम ह्रदय प्रवेशिनी, परीक्षायां समुत्तीर्णं, सर्व विषय नाम यथा
ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः
रति और कामदेव का पृथ्वी पर आगमन भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुआ था। बसंत ऋतु को रति और कामदेव का हथियार भी मानते हैं और अनेकों पुराणों में इसका उल्लेख है कि जब भी किसी की तपस्या भंग की है तो वहां पर वसंत ऋतु जैसा वातावरण बनाया गया है वसंत ऋतु में काम की संभावना अधिक हो जाती है। इस दिन पति-पत्नी आपस में एक दूसरे को भोजन कराए तो उनके आपसी संबंध मधुर होते हैं।
बसंत पंचमी के दिन वीर हकीकत राय ने धर्म के लिए और पृथ्वीराज चौहान ने अपने राष्ट्र के सम्मान हेतु अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारत मे इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है ।
वीर हकीकत राय का जन्म 1719 में स्यालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) के पास एक गांव में हुआ था उनके माता-पिता धर्मप्रेमी थे,वीर हकीकत राय पर उनका प्रभाव पढ़ा, वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के मालिक थे | उन्होंने छोटी उम्र में ही संस्कृत सीख ली थी। उन्होंने धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ बलिदान दिया था।
पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के आखिरी हिन्दू सम्राट थे । उन्होंने मुगल हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार हराया था 17वीं बार मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया था और उनकी आंखें फोड़ दी थीं तब चंद्रवरदाई ने आकर उनको शब्द भेदी बाण चलने का आवाहन किया और मोहम्मद गौरी को मार गिराया। पृथ्वीराज चौहान और चंद्रबरदाई का बसंत पंचमी के दिन ही आत्मबलिदान हुआ।
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